गुजरात की राजनीति में तब बड़ा भूकंप आ गया जब बाढ़ जैसी आपदा के बीच कांग्रेस के 6 विधायकों ने एक के बाद एक अपने इस्तीफे सौंप दिए. हद तो तब हो गयी जब इस्तीफा देने के एक घंटे के भीतर ही तीनों विधायकों ने बीजेपी भी जॉइन कर ली और उसमें एक विधायक बलवंत सिंह राजपुत को बीजेपी ने राज्यसभा के तीसरे उम्मीदवार के तौर पर मेन्डेट भी दे दिया.
गुजरात में राज्यसभा की तीन सीटों पर, जिसमें से दो बीजेपी और एक कांग्रेस की है, अब ये जंग चार उम्मीदवारों के बीच हो गई है. एक ओर जहां देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी के सबसे कद्दावर नेता अहमद पटेल की राज्यसभा सीट पर खतरा मंडराने लगा तो पूरी की पूरी कांग्रेस पार्टी में हंगामा मच गया. दरअसल गुजरात में राज्यसभा में दो सीट जीतने के लिये बीजेपी के पास पर्याप्त विधायकों के वोट हैं, जिसमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और स्मृति ईरानी ने अपना नामांकन भरा है. जबकि तीसरी सीट बलवंत सिंह राजपूत और कांग्रेस के अहमद पटेल के लिये आर या पार की लडाई है.
कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता अहमद पटेल की राज्यसभा सीट पर खतरा मंडराने लगा है
दरअसल शंकरसिंह वाघेला के इस्तीफे के बाद ये माना जा रहा है कि शंकरसिंह वाघेला के पास कांग्रेस के 16 विधायकों का समर्थन है. जो कि कभी भी इस्तीफा दे सकते हैं. हालांकि 6 विधायकों के इस्तीफे के बाद, विधायकों के इस्तीफे का दौर थम गया है, लेकिन ये बात जरुर सामने आ गयी कि इन सबके पीछे शंकरसिंह वाघेला और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की सोची समझी रणनीति काम कर रही है. और शंकरसिंह के लिए रणनीति से ज्यादा मजबूरी भी है क्योंकि बीजेपी के तीसरे प्रत्याशी बलवंतसिंह राजपूत रिश्ते में वाघेला के समधी होते है.
शंकर सिंह वाघेला के लिए अपनी राजनीति बचाना सबसे जरूरी
ऐसे में वाघेला के कहने पर कांग्रेस छोड जोड़तोड़ की राजनीति कर किसी न किसी तरह बंलवतसिंह राजपूत को जिताना इन दिनों वाघेला का लक्ष्य हो गया है और बलवंतसिंह राजपूत के साथ उनके बेटे महेन्द्र वाघेला का भी भविष्य जुडा हुआ है. महेन्द्र वाघेला भी कांग्रेस के विघायक हैं, जिन्होंने फिलहाल इस्तीफा तो नहीं दिया है लेकिन इस्तीफा देने वालों की लिस्ट में उनका भी नाम है. वाघेला पहले ही कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं. अपने समर्थक 3 विधायकों को बीजेपी ज्वाइन करवा चुके हैं. ऐसे में अब अगर उन्हें अपनी राजनीति को बचाना है तो पुराने साथी अहमद पटेल को हराना ही होगा.
अहमद पटेल की मानें तो, अहमद पटेल ने राज्यसभा के लिये फॉर्म भरने से एक दिन पहले ही शंकरसिंह वाघेला के साथ मीटिंग की थी, उन्हें खुद की राज्यसभा सीट ऑफर की थी और कहा था कि वो खुद इस राज्यसभा सीट से चुनाव लड़ें, लेकिन शंकरसिंह वाघेला ने इनकार कर दिया. हालांकि जिस तरह से शंकरसिंह वाघेला ने कांग्रेस के विधायकों को तोडने में अहम भीमिका निभाई है, उससे अहमद पटेल काफी अहत हैं. अहमद पटेल का कहना है कि 20 साल जिस पार्टी ने वाघेला को केन्द्रीय मंत्री से लेकर कई अहम पद दिये, ऐसे में ये उनकी जिन्मेदारी है कि वो पार्टी को चुनाव में जीत दिलाएं. इस तरह से पार्टी को तोड़ने का काम नहीं करना चाहिये.
वहीं बीजेपी अहमद पटेल को हराकर सीधा सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर अपना राजनैतिक हमला बोल सकती है. तो वही गुजरात में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर सीधा हमला कर सकती है. जो कि किसी न किसी तरहा से 2017 के विधानसभा चुनाव में सीधा बीजेपी को फायदा पहुंचाएगा.
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