उत्तर प्रदेश में चुनावी बिगूल फूंका जा चुका है. यूपी इलेक्शन को यदि एक फ़िल्म मान लें तो समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी लीड में हैं वहीं कांग्रेस, बसपा, एआईएमआईएम जैसे दल सपोर्टिंग रोल में हैं. यूपी चुनाव में भाजपा और सपा की क्या गंभीरता है? कैसे दोनों ही दलों ने जीतने के लिए जी जान लगा दी है हर बीतते दिन के साथ हम इसके गवाह बन रहे हैं. लेकिन जो बड़ा सवाल है वो कांग्रेस को लेकर है. बात कहीं न कहीं कांग्रेस के अस्तित्व से जुड़ी है. यूपी में कांग्रेस को आगे ले जाने की जिम्मेदारी प्रियंका गांधी की है और प्रियंका इस जिम्मेदारी को किस तरह निभा रही हैं? इसका सीधा जवाब हमें रायबरेली से मिला है. रायबरेली नेहरू गांधी परिवार का गढ़ है और सोनिया गांधी का संसदीय क्षेत्र है लेकिन जैसे समीकरण बने हैं प्रियंका गांधी और यूपी कांग्रेस दोनों को यहां लोहे के चने चबाने पड़ रहे हैं.
भले ही प्रियंका ने रायबरेली के लिए कमर कस ली हो और एक्टिव हो गई हों लेकिन क्योंकि उम्मीद की वो किरण उन्हें दिखाई नहीं दे रही जिसकी उन्हें उम्मीद थी इसलिए उन्होंने 'इमोशनल कार्ड' खेला है और जनता से भी अपील की कि वे गांधी परिवार से दशकों पुराने अपने रिश्ते को न भुलाए.
दरअसल बात कुछ यूं है कि प्रियंका गांधी को 2022 के विधानसभा चुनावों में रायबरेली अपने हाथ से निकलता दिखाई दे रहा है. रायबरेली के विषय में आगे किसी तरह का कोई जिक्र करने से पहले ये बताना बहुत जरूरी है कि रायबरेली में अदिति सिंह के भाजपा के खेमे में चले जाने से कांग्रेस का पूरा मनोबल टूट गया है. वहीं हरचंदपुर में भी राकेश सिंह ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया है.
इसके अलावा जिक्र अगर ऊंचाहार...
उत्तर प्रदेश में चुनावी बिगूल फूंका जा चुका है. यूपी इलेक्शन को यदि एक फ़िल्म मान लें तो समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी लीड में हैं वहीं कांग्रेस, बसपा, एआईएमआईएम जैसे दल सपोर्टिंग रोल में हैं. यूपी चुनाव में भाजपा और सपा की क्या गंभीरता है? कैसे दोनों ही दलों ने जीतने के लिए जी जान लगा दी है हर बीतते दिन के साथ हम इसके गवाह बन रहे हैं. लेकिन जो बड़ा सवाल है वो कांग्रेस को लेकर है. बात कहीं न कहीं कांग्रेस के अस्तित्व से जुड़ी है. यूपी में कांग्रेस को आगे ले जाने की जिम्मेदारी प्रियंका गांधी की है और प्रियंका इस जिम्मेदारी को किस तरह निभा रही हैं? इसका सीधा जवाब हमें रायबरेली से मिला है. रायबरेली नेहरू गांधी परिवार का गढ़ है और सोनिया गांधी का संसदीय क्षेत्र है लेकिन जैसे समीकरण बने हैं प्रियंका गांधी और यूपी कांग्रेस दोनों को यहां लोहे के चने चबाने पड़ रहे हैं.
भले ही प्रियंका ने रायबरेली के लिए कमर कस ली हो और एक्टिव हो गई हों लेकिन क्योंकि उम्मीद की वो किरण उन्हें दिखाई नहीं दे रही जिसकी उन्हें उम्मीद थी इसलिए उन्होंने 'इमोशनल कार्ड' खेला है और जनता से भी अपील की कि वे गांधी परिवार से दशकों पुराने अपने रिश्ते को न भुलाए.
दरअसल बात कुछ यूं है कि प्रियंका गांधी को 2022 के विधानसभा चुनावों में रायबरेली अपने हाथ से निकलता दिखाई दे रहा है. रायबरेली के विषय में आगे किसी तरह का कोई जिक्र करने से पहले ये बताना बहुत जरूरी है कि रायबरेली में अदिति सिंह के भाजपा के खेमे में चले जाने से कांग्रेस का पूरा मनोबल टूट गया है. वहीं हरचंदपुर में भी राकेश सिंह ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया है.
इसके अलावा जिक्र अगर ऊंचाहार का हो तो वहां भी समाजवादी पार्टी के मनोज पांडे प्रियंक गांधी और कांग्रेस को मुश्किल में डाल रहे हैं. रायबरेली को लेकर राजनीतिक पंडितों का तर्क यही है कि पार्टी के लिए रायबरेली की हर सीट पर दावेदारी खासी कमजोर है. चूंकि रायबरेली प्रियंका और कांग्रेस के लिए मान और प्रतिष्ठा से जुड़ा मुद्दा है इसलिये प्रियंका गांधी भी किसी तरह की कोई कसर छोड़ती नजर नहीं आ रही हैं.
रायबरेली में अपने चुनाव प्रचार के दौरान प्रियंका ने भाजपा पर तमाम तरह के गंभीर आरोप लगाए हैं और कहा है कि भाजपा अपना राजधर्म भूल रही है जिससे आम आदमी उपेक्षा का शिकार हो रहा है. वहीं प्रियंका ने जनता से अपील की है कि वे गांधी परिवार से दशकों पुराने अपने रिश्ते को किसी भी सूरत में न भुलाए.
ध्यान रहे कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने रायबरेली की 6 में से 2 सीटों पर अपनी विजय का परचम लहराया था. रायबरेली को लेकर एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि भले ही 2017 में कांग्रेस 2 सिरों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही हो लेकिन बात अगर 2022 के इस विधानसभा चुनावों के संदर्भ में हो तो कांग्रेस के लिए इन दो सीटों को बचा लेना भी बहुत बड़ी बात है.
चूंकि किसी जमाने में कांग्रेस की विश्वासपात्रों में शामिल अदिती भाजपा की हो चुकी हैं इसलिए कहा यही जा रहा है कि कांग्रेस शायद ही अपनी दो सीटों को सुरक्षित रख पाए.
ज्ञात हो कि अभी बीते दिन ही रायबरेली के जगतपुर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए प्रियंका गांधी ने कहा कि, 'यहां जब भी संकट होता था तो मेरे पिता यहां आया करते थे. मेरी दादी और मां ने भी यही किया. किसी से भी यहां पूछ लीजिए. वे आपके साथ खड़े रहे. भाजपा नेताओं की तरह नहीं किया, जो कोरोना संकट में छोड़कर भाग खड़े हुए.
चूंकि मौका चुनाव प्रचार का था इसलिए न केवल भाजपा और योगी आदित्यनाथ, प्रियंका ने पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मायावती पर तमाम तरह के संगीन आरोप लगाए. प्रियंका ने कहा कि, 'मैंने बीते तीन सालों में कभी नहीं देखा कि अखिलेश यादव घर से बाहर निकले हों. वहीं मायावती ने तो बाहर निकलना गवारा ही नहीं समझा.
वहीं दादी इंदिरा का जिक्र करते हुए प्रियंका ने रायबरेली की जनता से बहुत सीधे लहजे में ये भी कहा कि यदि कांग्रेस की सरकार नहीं बनेगी तो फिर आपके मुद्दों का समाधान नहीं हो सकेगा.
बहरहाल, कांग्रेस और प्रियंका गांधी के लिए रायबरेली की जनता क्या फैसला करती है? ये हमें 10 मार्च को तब पता चल जाएगा जब काउंटिंग होगी. लेकिन जिस तरह उन्होंने वोटबैंक जुटाने और जनता को रिझाने के लिए दिवंगत दादी और पिता का इस्तेमाल किया इतना तो साफ हो गया है कि यूपी विशेषकर रायबरेली के लिहाज से प्रियंका एक आ8से बुझा हुआ कारतूस हैं जिनसे कांग्रेस और 'आलाकमान' ने कुछ ज्यादा ही उम्मीदें लगा ली थीं.
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