2019 के आम चुनावों के परिणाम हमारे सामने हैं. जैसा माहौल काउंटिंग के दौरान दिखा रहा है साफ हो गया है कि देश की लगभग सभी प्रमुख सीटों पर भाजपा बढ़त बनाए हुए हैं जिस कारण एनडीए मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही है. बात अगर यूपीए की हो तो यूपीए कमजोर स्थिति में है. जिस हिसाब से नतीजे आ रहे हैं साफ हो गया है 2014 के बाद एक बार फिर देश ने कांग्रेस को सिरे से खारिज कर दिया है. पिछले 5 सालों में कांग्रेस की ऐसी स्थिति क्यों हुई?
बड़ी वजह राहुल गांधी को माना जा सकता है जिन्होंने चुनाव के लिए मुद्दे तो खूब उठाए. मगर जब उन मुद्दों को अमली जमा पहनाने का वक़्त आया, राहुल उठाए हुए उस मुद्दे को अधूरा छोड़कर किसी दूसरे और फिर तीसरे मुड़े पर आ गए.
कह सकते हैं कि यदि आज दोबारा भाजपा को देश की जनता ने प्रचंड बहुमत दिया है. तो उसकी एक बड़ी वजह वो अविश्वास है, जो जनता के दिल में राहुल गांधी द्वारा लिए गए अलग अलग यू-टर्न्स देखकर आया. एक कमजोर विपक्ष का होना एक अलग बात है. मगर गुजरे पांच सालों में यदि राहुल के मनोभावों का यदि गहनता से अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि अगर आज एक बड़े मैंडेट के रूप में भाजपा और पीएम मोदी दोबारा वापसी कर रहे हैं तो इसकी जिम्मेदार राहुल गांधी की वो गलतियां हैं, जिन्हें खुद कभी राहुल ने गलती की संज्ञा नहीं दी और जिन्हें उनकी पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने भी उनकी उपलब्धियां बताया.
भाजपा की इस बम्पर जीत और कांग्रेस एवं राहुल गांधी की पस्त हालत देखकर वो कहावत चरितार्थ होती नजर आ रही है जिसके अनुसार, 'इंसान जो बोता है वही काटता है.' वर्तमान परिदृश्य का अवलोकन करने और जैसी स्थिति कांग्रेस और राहुल गांधी की हुई है उसपर गौर पर...
2019 के आम चुनावों के परिणाम हमारे सामने हैं. जैसा माहौल काउंटिंग के दौरान दिखा रहा है साफ हो गया है कि देश की लगभग सभी प्रमुख सीटों पर भाजपा बढ़त बनाए हुए हैं जिस कारण एनडीए मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही है. बात अगर यूपीए की हो तो यूपीए कमजोर स्थिति में है. जिस हिसाब से नतीजे आ रहे हैं साफ हो गया है 2014 के बाद एक बार फिर देश ने कांग्रेस को सिरे से खारिज कर दिया है. पिछले 5 सालों में कांग्रेस की ऐसी स्थिति क्यों हुई?
बड़ी वजह राहुल गांधी को माना जा सकता है जिन्होंने चुनाव के लिए मुद्दे तो खूब उठाए. मगर जब उन मुद्दों को अमली जमा पहनाने का वक़्त आया, राहुल उठाए हुए उस मुद्दे को अधूरा छोड़कर किसी दूसरे और फिर तीसरे मुड़े पर आ गए.
कह सकते हैं कि यदि आज दोबारा भाजपा को देश की जनता ने प्रचंड बहुमत दिया है. तो उसकी एक बड़ी वजह वो अविश्वास है, जो जनता के दिल में राहुल गांधी द्वारा लिए गए अलग अलग यू-टर्न्स देखकर आया. एक कमजोर विपक्ष का होना एक अलग बात है. मगर गुजरे पांच सालों में यदि राहुल के मनोभावों का यदि गहनता से अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि अगर आज एक बड़े मैंडेट के रूप में भाजपा और पीएम मोदी दोबारा वापसी कर रहे हैं तो इसकी जिम्मेदार राहुल गांधी की वो गलतियां हैं, जिन्हें खुद कभी राहुल ने गलती की संज्ञा नहीं दी और जिन्हें उनकी पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने भी उनकी उपलब्धियां बताया.
भाजपा की इस बम्पर जीत और कांग्रेस एवं राहुल गांधी की पस्त हालत देखकर वो कहावत चरितार्थ होती नजर आ रही है जिसके अनुसार, 'इंसान जो बोता है वही काटता है.' वर्तमान परिदृश्य का अवलोकन करने और जैसी स्थिति कांग्रेस और राहुल गांधी की हुई है उसपर गौर पर हमें ऐसे तमाम कारण नजर आते हैं जो ये बताते हैं कि आखिर क्यों इस देश की जनता ने पुनः कांग्रेस को खारिज कर राहुल गांधी को बड़ा सबक सिखाने के बारे में विचार किया. कुछ और कहने, समझने से पहले आइये उन मुद्दों पर चर्चा कर ली जाए जिन्हें बीते 5 सालों में राहुल गांधी ने उठाया तो मगर जिन्हें भुनाने में वो बुरी तरह नाकाम रहे.
राफेल पर झूठ
बात बीते कुछ सालों के प्रमुख मुद्दों की हो तो राफेल एक ऐसा मुद्दा रहा जिसने खूब सुर्खियां बटोरीं. अपनी रैलियों में राफेल को लेकर राहुल ने सरकार को घेरना तो चाहा मगर उनका विरोध देशहित में न होकर व्यक्तिगत हित में था. अपनी रैलियों में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल डील के मद्देनजर पीएम मोदी पर ताख हमले किये. राहुल ने अपने मंच से न सिर्फ पीएम मोदी पर हमला किया बल्कि अनिल अंबानी पर भी तरह तरह के इल्जाम लगाए. राहुल ने कहा कि रफेल मामले में प्रधानमंत्री ने अनिल अंबानी को सीधा फायदा पहुंचाते हुए उन्हें 30,000 करोड़ दिए.
बात क्योंकि रफेल की चल रही है तो हमारे लिए अभी बीते दिनों हुई उस प्रेस कांफ्रेंस का जिक्र करना भी बहुत जरूरी है जिसमें अमित शाह से राफेल मुद्दे को लेकर साल हुआ था. सवाल का जवाब देते हुए शाह ने राहुल की बातों को झूठा बताया था और कहा था कि अगर इस मामले में राहुल गांधी के पास जानकारी थी तो उन्हें उसे सुप्रीम कोर्ट को बताना चाहिए था. अमित शाह ने सवाल उठाया था कि जब राहुल के पास मामले को लेकर जानकारी थी तो उन्होंने उस जानकारी को कोर्ट से क्यों छुपाया.
अपनी पत्रकार वार्ता में अमित शाह ने इस बात को भी पूरे विश्वास से रखा था कि राफेल डील में कहीं भी न तो कोई कॉम्प्रोमाइज हुआ न ही किसी के साथ पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाना गया है. ध्यान रहे किराफेल पर राहुल ने बातें तो खूब की मगर ऐसी कोई ठोस बात जनता के बीच नहीं रख सके जिससे उन्हें या उनकी पार्टी को वोट मिलता.
एयर स्ट्राइक
चाहे उड़ी हमले के बाद लिया गया एक्शन या फिर पुलवामा हमले के बाद बालाकोट पर की गई एयर स्ट्राइक हो जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फैसला लिया उसके बाद माना यही गया कि देश सुरक्षित हाथों में है. उरी हमले के बाद अपने भाषण में राहुल गांधी ने सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाते हुए पीएम मोदी पर शहीदों के खून की दलाली करने का आरोप लगाया जिसका जनता ने जबरदस्त विरोध किया. राहुल को अपनी गलती का एहसास हुआ और अभी जब बीते दिनों ही भारत ने बालाकोट में एयर स्ट्राइक की तो उस मामले पर राहुल चुप रहे और सरकार और सेना द्वारा लिए गए एक्शन का समर्थन किया.
माना जा रहा है कि देश की सेना द्वारा लिए गए एक्शन पर सवाल उठाने के कारण भी एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा था जिसने राहुल गांधी को खारिज किया. नतीजा हमारे सामने हैं चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि कांग्रेस अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है.
नोटबंदी
गुजरे दो सालों में राहुल गांधी की किसी भी रैली का अवलोकन कर लीजिये मिलेगा कि वो मुद्दा जिसपर राहुल गांधी ने खूब हो हल्ला मचाया वो नोटबंदी था. इसे कैसे राहुल गांधी ने मुद्दा बनाने का प्रयास किया इसे हम उस घटना से भी समझ सकते हैं जब हमने राहुल गांधी को अपने गार्ड्स के साथ बैंक के बाहर कतार में देखा. तस्वीर वायरल हुई जिसमें राहुल 2 हजार के 2 नोट पकड़े हंसते मुस्कुराते बाहर आए.
बात अगर तब आई उस तस्वीर पर प्रतिक्रिया की हो तो एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा था जिसने इसे राहुल का ड्रामा बताया था. माना जाता है कि जितनी हाय तौबा राहुल ने नोटबंदी को लेकर मचाई यदि उसके आधे में भी वो गंभीर होकर कुछ करते तो इसका फायदा न सिर्फ उन्हें बल्कि पूरी कांग्रेस पार्टी को मिलता.
चूंकि नोटबंदी को लेकर राहुल ने केवल और केवल ड्रामा ही किया है तो साफ हो जाता है कि इस चुनाव में उनके नकारे जाने का एक बड़ा कारण नोटबंदी के दौरान राहुल का रवैया था.
जीएसटी
किसी आम भारतीय के लिए जीएसटी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए गब्बर सिंह टैक्स. गुजरे साल की किसी भी रैली का अवलोकन कर लीजिये मिलेगा कि जीएसटी भी एक ऐसा मुद्दा था जिसपर राहुल ने सरकार को घेरने का प्रयास तो किया मगर मुद्दे के साथ इंसाफ नहीं कर पाए. राहुल के इस बर्ताव से लोग नाखुश हुए और आज परिणाम हमारे सामने हैं. बात यदि राजनीतिक विशेषज्ञों की हो तो वो भी यही मानते हैं कि नोटबंदी और जीएसटी ऐसे मुद्दे थे जिनको यदि कांग्रेस या फिर राहुल गांधी ने गंभीरता से लेते हुए सही से कैश किया होता तो आज परिणाम कुछ और होते.
चौकीदार चोर है
बात अगर राहुल गांधी की हालिया रैलियों की हो तो राफेल को लेकर उन्होंने प्रधानमंत्री की आलोचना करते हुए उन्हें 'चोर है बताया था. बात जब प्रमाण देने की हुई तो कई अहम मौकों पर राहुल बगलें झांकते नजर आए. अब जबकि परिणाम हमारे सामने हैं और स्थिति शीशे की तरह साफ है तो इस बात का भी अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि लोगों को राहुल का रुख समझ नहीं आया है और कहीं न कहीं उन्होंने वही काटा है जो उन्होंने बोया था.
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