राहुल गांधी का पांचवां गुजरात दौरा दो दिन का ही रखा गया है. पहले के चार दौरे तीन-तीन दिन के रहे. वे चारों दौरे कांग्रेस की नवसर्जन यात्रा के हिसाब से डिजाइन किये गये थे जिनमें राहुल गांधी युवाओं, किसानों, कारोबारियों और महिलाओं के बीच गये और उनकी बातें सुनी. इस दौरान रास्ते के मंदिरों में भी दर्शन और पुजारियों से आशीर्वाद लेते रहे.
राहुल गांधी के पांचवें दौरे का ताना-बाना स्पेसिफिक वोट बैंक के लिहाज से बुना गया है जिसका फोकस है - दलित और मछुआरे.
बीजेपी से मोहभंग
राहुल गांधी गुजरात में अब तक ढाई हजार किलोमीटर की नवसर्जन यात्रा पूरी कर चुके हैं - और अब कांग्रेस के दूसरे नेता उसे आगे बढ़ा रहे हैं. कुछ नेता जगह जगह नुक्कड़ सभाएं कर रहे हैं तो कई घर घर जाकर वोट मांग रहे हैं. अल्पेश ठाकोर को कांग्रेस में मिला लेने और हार्दिक पटेल के साथ डील फाइनल हो जाने के बाद अब कांग्रेस का जोर दलित वोटों पर है. हालांकि, दलितों की नई आवाज जिग्नेश मेवाणी कह चुके हैं कि वो कोई पार्टी नहीं ज्वाइन करेंगे. वो बीजेपी के खिलाफ खड़े हैं, जिसका मतलब हुआ कांग्रेस का सपोर्ट.
जिग्नेश मेवाणी का ऊना आंदोलन ही बीजेपी के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हुआ है. वरना, गुजरात में दलित मतदाताओं पर बीजेपी की मजबूत पकड़ मानी जाती रही है. तकरीबन वैसे ही जैसे कभी बड़े सपोर्टर रहे पाटीदार आज बीजेपी के खिलाफ खड़े नजर आ रहे हैं.
गुजरात की 182 सीटों में से 13 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए सुरक्षित हैं. 2012 के चुनाव में इन 13 में से 10 सीटें जीतने में बीजेपी सफल रही, जबकि कांग्रेस के हिस्से में तीन सीटें ही बच पाईं.
गुजरात में दलितों की आबादी कोई बहुत बड़ी नहीं है. इस वक्त गुजरात की आबादी करीब 6.38...
राहुल गांधी का पांचवां गुजरात दौरा दो दिन का ही रखा गया है. पहले के चार दौरे तीन-तीन दिन के रहे. वे चारों दौरे कांग्रेस की नवसर्जन यात्रा के हिसाब से डिजाइन किये गये थे जिनमें राहुल गांधी युवाओं, किसानों, कारोबारियों और महिलाओं के बीच गये और उनकी बातें सुनी. इस दौरान रास्ते के मंदिरों में भी दर्शन और पुजारियों से आशीर्वाद लेते रहे.
राहुल गांधी के पांचवें दौरे का ताना-बाना स्पेसिफिक वोट बैंक के लिहाज से बुना गया है जिसका फोकस है - दलित और मछुआरे.
बीजेपी से मोहभंग
राहुल गांधी गुजरात में अब तक ढाई हजार किलोमीटर की नवसर्जन यात्रा पूरी कर चुके हैं - और अब कांग्रेस के दूसरे नेता उसे आगे बढ़ा रहे हैं. कुछ नेता जगह जगह नुक्कड़ सभाएं कर रहे हैं तो कई घर घर जाकर वोट मांग रहे हैं. अल्पेश ठाकोर को कांग्रेस में मिला लेने और हार्दिक पटेल के साथ डील फाइनल हो जाने के बाद अब कांग्रेस का जोर दलित वोटों पर है. हालांकि, दलितों की नई आवाज जिग्नेश मेवाणी कह चुके हैं कि वो कोई पार्टी नहीं ज्वाइन करेंगे. वो बीजेपी के खिलाफ खड़े हैं, जिसका मतलब हुआ कांग्रेस का सपोर्ट.
जिग्नेश मेवाणी का ऊना आंदोलन ही बीजेपी के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हुआ है. वरना, गुजरात में दलित मतदाताओं पर बीजेपी की मजबूत पकड़ मानी जाती रही है. तकरीबन वैसे ही जैसे कभी बड़े सपोर्टर रहे पाटीदार आज बीजेपी के खिलाफ खड़े नजर आ रहे हैं.
गुजरात की 182 सीटों में से 13 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए सुरक्षित हैं. 2012 के चुनाव में इन 13 में से 10 सीटें जीतने में बीजेपी सफल रही, जबकि कांग्रेस के हिस्से में तीन सीटें ही बच पाईं.
गुजरात में दलितों की आबादी कोई बहुत बड़ी नहीं है. इस वक्त गुजरात की आबादी करीब 6.38 करोड़ है जिनमें तकरीबन 36 लाख दलित हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार गुजरात में दलितों की तादाद 7.1 फीसदी रही. राहुल गांधी के ताजा दौरे में कांग्रेस की नजर दलित वोटरों पर ही है.
'युवराज' का शपथ
रोहित वेमुला की मौत और ऊना में दलितों की पिटाई लंबे समय तक बीजेपी की मुसीबतों के सबब बने रहे. ऊना की घटना तो इतनी भारी पड़ी कि बीजेपी को गुजरात में अपना मुख्यमंत्री तक बदलना पड़ा और आगरा में अमित शाह का प्रोग्राम रद्द करना पड़ा. एक वक्त ऐसा रहा कि हालत ये हो गयी कि संघ प्रमुख मोहन भागवत को मैदान में उतर कर मोर्चा संभालना पड़ा.
राहुल गांधी इस बार दलित शक्ति केंद्र जा रहे हैं. अहमदाबाद से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित दलित शक्ति केंद्र समाज के वंचित तबके को ऊपर उठाने के लिए कई तरह के कार्यक्रम और कोर्स संचालित करता है. यहीं पर राहुल गांधी को राष्ट्रीय ध्वज सौंपा जाना है.
कांग्रेस के इसे जोर शोर से प्रचारित करने की खास वजह भी है. दलित शक्ति केंद्र द्वरा तैयार राष्ट्रीय ध्वज 125 फीट चौड़ा और 83.3 फीट ऊंचा है. बताते हैं कि दलित शक्ति केंद्र ने एक बार इसे मौजूदा मुख्यमंत्री विजय रुपाणी को देना चाहा लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया. इस पेशकश को लेकर गांधीनगर प्रशासन के अफसरों का कहना रहा कि उनके पास इसे रखने की पर्याप्त जगह नहीं है इसलिए मुख्यमंत्री नहीं ले सकते. राहुल गांधी ये ध्वज स्वीकार करने के साथ साथ छुआ-छूत मिटाने की शपथ भी लेने वाले हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ताजपोशी से पहले युवराज के लिए इसे काफी महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है. जिस हिसाब से कांग्रेस दलितों को लुभाने की कोशिश कर रही है, चुनावी घोषणा पत्र में भी उसे तवज्जो मिलने की अपेक्षा है.
घोषणा पत्र में दलित?
गुजरात में युवा दलित नेता के तौर पर उभरे जिग्नेश पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता रहे हैं. ऊना में दलितों की पिटाई के बाद जिग्नेश ने अहमदाबाद में दलितों का सम्मेलन किया और ऊना मार्च की घोषणा की और स्वतंत्रता दिवस को मौके पर पहुंच कर दलितों को अपने तरीके से आजादी मनाने के लिए प्रेरित किया. इस दौरान जिग्नेश ने जगह जगह लोगों से मुलाकात की और 20 हजार दलितों को मरे हुए जानवर न उठाने की शपथ दिलायी. दरअसल, ऊना में गौरक्षा के नाम पर ही उनकी पिटाई की गयी थी.
जिग्नेश बीजेपी सरकार के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं और कहते हैं कि वो चुनाव में बीजेपी को हराएंगे. हालांकि, उनका कहना है कि उनका राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच चुनाव नहीं लड़ेगा. फिर सवाल ये उठा कि जब उनका मंच चुनाव ही नहीं लड़ेगा तो बीजेपी को हरा कैसे पाएंगे. इस पर जिग्नेश का कहना है कि पिछले दो साल में दलितों ने फैसला कर लिया है कि वे बीजेपी को वोट नहीं देंगे. ऊपर से उन्हीं की तरह हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर की भी मुहिम रंग लायी है. ये मिली जुली कोशिश जरूर कामयाब होगी, ऐसा उन्हें यकीन है.
देखें तो दलितों के खिलाफ ऊना की घटना अकेली नहीं है. आणंद जिले में गरबा समारोह में शामिल एक दलित युवक की कुछ लोगों ने पीट पीट कर हत्या कर दी थी. गांधीनगर में मूंछ रखने को लेकर दो युवकों की पिटाई कर दी गयी और आइंदे से उन्हें मूंछ न रखने की हिदायत दी गयी.
कांग्रेस के टेक्नोक्रेट सैम पित्रोदा गुजरात के लिए चुनावी घोषणा पत्र भी तैयार कर रहे हैं. ये सैम पित्रोदा ही हैं जिन्हें राहुल गांधी की अमेरिका से लेकर गुजरात यात्रा का आर्किटेक्ट बताया जा रहा है. राहुल के इसी दौरे में कांग्रेस का घोषणा पत्र भी आने की उम्मीद जतायी जा रही है. माना जा सकता है कि घोषणा पत्र में दलितों पर जोर जरूर होगा.
नतीजे जो भी हों लेकिन राहुल गांधी को लेकर लोगों में धारणा बदलने में पित्रोदा काफी हद तक कामयाब तो माने ही जाएंगे. अब राहुल गांधी के ये दौरे बीजेपी से मोहभंग होने के बावजूद कितना लुभा पाते हैं बड़ा सवाल यही है. यूपी की खाट सभा में भी राहुल गांधी ने मेहनत में कोई कोताही तो बरती न थी.
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