राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की सियासी मंशा और भारत जोड़ो यात्रा का मकसद धीरे धीरे ज्यादा ही साफ होने लगा है. राहुल गांधी भले ही 2024 को लेकर सवाल पूछे जाने पर कहें कि वो समझदार हो गये हैं और कुछ भी नहीं बोलने वाले - लेकिन भारत जोड़ो यात्रा अगले आम चुनाव की तैयारी के लिए ही शुरू की गयी है, अब कोई डिस्क्लेमर नहीं चलने वाला है.
पहले तो राहुल गांधी, दिग्विजय सिंह और जयराम रमेश सहित सारे ही कांग्रेस (Congress) नेता भारत जोड़ो यात्रा के राजनीतिक होने के बावजूद, सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय सरोकारों से जोड़ कर पेश करते रहे, लेकिन अब तो राहुल गांधी खुद ही अपने सियासी इरादे जाहिर करने लगे हैं - ऐसा इसलिए तो नहीं क्योंकि उनको भी अब राजनीति में मजा आने लगा है?
राहुल गांधी मौका देख कर कभी भी ये कहने से नहीं चूके हैं कि चुनावी राजनीति हो या सत्ता की सियासत, कभी उनकी दिलचस्पी नहीं रही - और ये जताने की ही उनकी कोशिश हुआ करती रही है, जैसे कह रहे हों - हम तो ठहरे फकीर, न जाने कब झोला उठाकर चल दें.
ये भारत जोड़ो यात्रा का असर नहीं तो क्या है - जो राहुल गांधी हर कुछ दिन बाद छुट्टी पर चले जाते थे, तीन महीने से लगातार सड़क पर बने हुए हैं. पैदल चलना तो वैसे भी उनके फिटनेस रूटीन से जुड़ा लगता है. वैसे भी जिस तरह से वो अक्सर दौड़ते और जोश से भरपूर नजर आते हैं, हालिया क्रेडिट तो भारत जोड़ो यात्रा को मिलना ही चाहिये - और जब राहुल गांधी पर भारत जोड़ो यात्रा का ऐसा असर हो तो स्वाभाविक है, आस पास के लोगों पर भी पड़ेगा.
भारत जोड़ो यात्रा का सबसे ज्यादा असर तो यूपी की राजनीति में देखने को मिल रहा है. तमिलनाडु से निकलने के बाद सिर्फ महाराष्ट्र में विपक्षी खेमे के दो दलों को भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होते देखा गया, जब सुप्रिया सुले और आदित्य ठाकरे ने...
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की सियासी मंशा और भारत जोड़ो यात्रा का मकसद धीरे धीरे ज्यादा ही साफ होने लगा है. राहुल गांधी भले ही 2024 को लेकर सवाल पूछे जाने पर कहें कि वो समझदार हो गये हैं और कुछ भी नहीं बोलने वाले - लेकिन भारत जोड़ो यात्रा अगले आम चुनाव की तैयारी के लिए ही शुरू की गयी है, अब कोई डिस्क्लेमर नहीं चलने वाला है.
पहले तो राहुल गांधी, दिग्विजय सिंह और जयराम रमेश सहित सारे ही कांग्रेस (Congress) नेता भारत जोड़ो यात्रा के राजनीतिक होने के बावजूद, सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय सरोकारों से जोड़ कर पेश करते रहे, लेकिन अब तो राहुल गांधी खुद ही अपने सियासी इरादे जाहिर करने लगे हैं - ऐसा इसलिए तो नहीं क्योंकि उनको भी अब राजनीति में मजा आने लगा है?
राहुल गांधी मौका देख कर कभी भी ये कहने से नहीं चूके हैं कि चुनावी राजनीति हो या सत्ता की सियासत, कभी उनकी दिलचस्पी नहीं रही - और ये जताने की ही उनकी कोशिश हुआ करती रही है, जैसे कह रहे हों - हम तो ठहरे फकीर, न जाने कब झोला उठाकर चल दें.
ये भारत जोड़ो यात्रा का असर नहीं तो क्या है - जो राहुल गांधी हर कुछ दिन बाद छुट्टी पर चले जाते थे, तीन महीने से लगातार सड़क पर बने हुए हैं. पैदल चलना तो वैसे भी उनके फिटनेस रूटीन से जुड़ा लगता है. वैसे भी जिस तरह से वो अक्सर दौड़ते और जोश से भरपूर नजर आते हैं, हालिया क्रेडिट तो भारत जोड़ो यात्रा को मिलना ही चाहिये - और जब राहुल गांधी पर भारत जोड़ो यात्रा का ऐसा असर हो तो स्वाभाविक है, आस पास के लोगों पर भी पड़ेगा.
भारत जोड़ो यात्रा का सबसे ज्यादा असर तो यूपी की राजनीति में देखने को मिल रहा है. तमिलनाडु से निकलने के बाद सिर्फ महाराष्ट्र में विपक्षी खेमे के दो दलों को भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होते देखा गया, जब सुप्रिया सुले और आदित्य ठाकरे ने राहुल गांधी के साथ मार्च किया. अगर राहुल गांधी को शरद पवार और उद्धव ठाकरे से भी ऐसी ही अपेक्षा रही होगी तो निराश भी हुए होंगे.
दिल्ली में दाखिल होने से पहले डीएमके सांसद कनिमोड़ी का फरीदाबाद पहुंचना और कमल हासन का दिल्ली में राहुल गांधी के साथ सड़क पर उतरना भी, उतना ही मायने रखता है जितना ब्रेक के बाद दिल्ली से रवाना होते वक्त फारूक अब्दुल्ला का मौके पर पहुंच कर सपोर्ट करना. हो सकता है वो जम्मू कश्मीर में भी यात्रा में शामिल हों या वहां का बीड़ा महबूबा मुफ्ती के साथ उमर अब्दुल्ला ने उठाने का फैसला कर रखा हो.
लेकिन अब तक की यात्रा में जो कुछ उत्तर प्रदेश की राजनीति में हुआ है, वो काफी महत्वपूर्ण है. अव्वल तो उत्तर प्रदेश में महान दल के केशवदेव मौर्य की तरह अखिलेश यादव, जयंत चौधरी और मायावती जैसा कोई नेता सामने नहीं आया है, लेकिन भारत जोड़ो यात्रा का बागपत में जिस तरह स्वागत हुआ है, उसके काफी गहरे मायने निकलते हैं - ये कुछ कुछ फीकी दुकान के ऊंचे पकवान जैसा ही है.
और ये सब यूं ही नहीं हुआ है. क्योंकि, अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने तो पहले यात्रा की खिल्ली ही उड़ाई थी. भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने को लेकर पूछे जाने पर अखिलेश का कहना था कि सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि बीजेपी को हटाएगा कौन? लेकिन जैसे ही राहुल गांधी ने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस करके सख्त रवैया दिखाया और समाजवादी पार्टी का नाम लेकर अखिलेश यादव की राजनीतिक हदें समझा दी, फिर तो वो जैसे पूरी तरह पलट ही गये.
ये ठीक है कि जयंत चौधरी ने अखिलेश यादव की वजह से भारत जोड़ो यात्रा से दूरी बना ली, लेकिन अपने तमाम सीनियर नेताओं को भेज कर मैसेज तो दे ही दिया है - और ये मैसेज अखिलेश यादव के लिए भी है.
जो फायदा यूपी चुनाव 2022 में जयंत चौधरी से अखिलेश यादव को पहुंचाया है, क्या 2024 के आम चुनाव में कांग्रेस को बिलकुल वैसा ही लाभ नहीं मिल सकता? तभी तो अखिलेश यादव बार बार थैंक यू और हैपी-जर्नी बोलते नहीं थक रहे हैं - ये सब राहुल गांधी के स्टैंड और भारत जोड़ो यात्रा का असर नहीं तो क्या है?
यूपी में कैसे बदली राजनीतिक बयार
राहुल गांधी जब भारत यात्रा के साथ बागपत पहुंचे तो राष्ट्रीय लोक दल के सीनियर नेता कार्यकर्ताओं के साथ स्वागत के लिए खड़े मिले. 2019 में अमेठी से लोक सभा चुनाव हार जाने के बाद ये पहला मौका रहा जब राहुल गांधी को काफी राहत मिली होगी.
अपनी हार के बाद राहुल गांधी काफी दिनों तक अमेठी से दूरी बना कर चल रहे थे, लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव करीब आने को हुए तो प्रियंका गांधी के साथ पहुंचे और रोड शो किया. ये गिले शिकवे दूर करने की कवायद ही लगी - राहुल गांधी ने कोई माफी तो नहीं मांगी लेकिन अपनी बातों से ये तो जता ही दिया कि वो नाराज लोगों को मनाने के लिए ही अमेठी पहुंचे हैं - फिर भी चुनाव नतीजे आये तो मालूम हुआ अमेठी के लोगों ने माफ नहीं किया है.
भारत जोड़ो यात्रा के साथ राहुल गांधी के स्वागत के लिए आरएलडी कार्यकर्ताओं को भेजना जंयत चौधरी के लिए आसान भी नहीं रहा होगा, तब भी जबकि उनके कांग्रेस नेतृत्व और कई नेताओं से अच्छे संबंध बताये जाते हैं. कांग्रेस नेताओं का भी यही मानना रहा कि अखिलेश यादव के प्रभाव में ही जयंत चौधरी यात्रा से दूरी बना रहे हैं - लेकिन जयंत चौधरी ने जो तरीका अपनाया वो उनके गढ़ से यात्रा के गुजरते वक्त कदम कदम पर उनकी मौजूदगी दर्ज करा रहा था.
जयंत चौधरी ने आरएलडी कार्यकर्ताओं को तो भेजा ही, ट्विटर पर जो पोस्ट लिखी उसमें भारत यात्रियों के लिए तपस्वी शब्द का इस्तेमाल किया है. राहुल गांधी के लिए तपस्वी शब्द का इस्तेमाल सुधींद्र कुलकर्णी भी कर चुके हैं, जो कभी अटल बिहारी वाजयपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के सहयोगी हिुआ करते थे.
राहुल गांधी की यात्रा को लेकर ट्विटर पर जयंत चौधरी लिखते हैं, "तप कर ही धरती से बनी ईंटें छू लेती हैं आकाश! भारत जोड़ो यात्रा के तपस्वियों को सलाम! देश के संस्कार के साथ जुड़ कर उत्तर प्रदेश में भी चल रहा ये अभियान सार्थक हो और एक सूत्र में लोगों को जोड़ता रहे!"
और अखिलेश यादव को भी कहना पड़ा, 'मैं राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल नहीं हुआ हूं, लेकिन उनकी इस यात्रा से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ हूं... यात्रा के लिये उनको बधाई और शुभकामनाएं देता हूं.'
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की तरफ से भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने के लिए बीजेपी विरोध की राजनीति करने वाले दलों को न्योता भेजा गया था. अखिलेश यादव से लेकर मायावती तक ऐसे सभी नेताओं ने कांग्रेस नेतृत्व की पहल की आलोचना तो नहीं कि, लेकिन किसी ने किसी बहाने यात्रा में शामिल न होने की बात कह दी. नीतीश कुमार ने तो साफ साफ बोल दिया कि भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस का अंदरूनी मामला है. वैसे नीतीश कुमार खुद भी बिहार में समाधान यात्रा पर निकले हुए हैं.
जयंत चौधरी के आदेश पर साथी नेताओं को लेकर पहुंचे आरएलडी के राष्ट्रीय सचिव कुलदीप उज्ज्वल का कहना रहा, 'राहुल गांधी की यात्रा को हम सियासी चश्मे से नहीं देख रहे हैं... हम इसे केवल कांग्रेस और राहुल गांधी की देश को एक करने की पहल के तौर देख रहे हैं.'
लगे हाथ आरएलडी नेता की तरफ से सफाई देने की भी कोशिश हुई, 'आरएलडी से समर्थन को राजनीतिक नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिये... जयंत चौधरी अगर देश से बाहर न होते तो खुद भी राहुल गांधी के साथ पैदल यात्रा करते' - और ये चीज तो जयंत चौधरी के ट्वीट से भी जाहिर होती है.
और विपक्ष के लिए राहुल गांधी का जो मैसेज है
ब्रेक के बाद दिल्ली से भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने से पहले राहुल गांधी ने एक प्रेस कांफ्रेंस की थी. राहुल गांदी ने अपने टी-शर्ट पहन कर घूमने और ठंड लगने पर स्टैंड तो साफ किया ही, विपक्षी खेमे के सारे नेताओं को बड़ा ही सख्त संदेश भी दे डाला - राहुल गांधी के निशाने पर तो अखिलेश यादव ही थे, लेकिन ऐसा लगा जैसे मैसेज सभी विपक्षी दलों को देने की कोशिश हो रही हो.
नाम तो राहुल गांधी ने अखिलेश यादव का भी नहीं लिया था, लेकिन समाजवादी पार्टी का खासतौर से नाम लेकर उसकी प्रासंगिकता और राजनीति प्रभाव क्षेत्र का जिक्र करना भला क्या था? राहुल गांधी का ये कहना कि समाजवादी पार्टी केरल, कर्नाटक या बिहार में भी नहीं चलेगी, आखिर क्या था?
केरल कर्नाटक के साथ बिहार का नाम लेना सीधे सीधे अखिलेश यादव की राजनीतिक हैसियत पर टिप्पणी नहीं तो क्या थी? सुन कर तो ऐसा ही लगा जैसे राहुल गांधी की तरफ से अखिलेश यादव की औकात बतायी जा रही हो - बस यूपी तक रहो, उसके आगे के सपने मत देखो, और वो एक निश्चित हद में रह कर ही.
उससे पहले कम से कम दो मौकों पर राहुल गांधी ने क्षेत्रीय दलों की विचारधारा की राजनीति पर बड़ी ही निगेटिव टिप्पणी की थी. और राहुल गांधी की टिप्पणी पर जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी के साथ ही आरजेडी नेता मनोज झा ने भी कमेंट किया था. दोनों नेताओं ने कांग्रेस को आईना दिखाने की कोशिश की ही, लगे हाथ ये भी सलाह दे डाली कि कांग्रेस बस सहयात्री की भूमिका में रहे, ड्राइविंग सीट पर काबिज होने की कोशिश से बाज आये.
दिल्ली की प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने बड़े ही सख्त लहजे में क्षेत्रीय दलों के बहाने पूरे विपक्ष के सामने कांग्रेस का स्टैंड साफ कर दिया - विपक्ष का नेतृत्व तो कांग्रेस ही करेगी, न तो कोई कर पाएगा न ही कांग्रेस ऐसा होने देगी.
राहुल गांधी ने अपनी तरफ से क्षेत्रीय दलों के साथ साथ पूरे विपक्ष को यही समझाने की कोशिश की कि ड्राइविंग सीट पर तो कांग्रेस ही रहेगी, लिहाजा सभी क्षेत्रीय दलों को सहयात्री ही बने रहना होगा.
फिर तो क्षेत्रीय दलों इस बात के लिए भी तैयार रहना चाहिये कि कांग्रेस उनके साथ गठबंधन भी अपनी शर्तों पर ही करेगी. सीटों का बंटवारा भी आगे से कांग्रेस के हिसाब से ही होगा. न कि जैसे बीते दिनों झारखंड, महाराष्ट्र और बिहार चुनावों के दौरान हुआ था.
क्षेत्रीय दलों की विचारधारा को लेकर राहुल गांधी और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा एक जैसा सोचते हैं. अब तक बीजेपी का जो व्यवहार एनडीए के सहयोगी दलों के साथ महसूस किया गया है, ऐसा लगता है जैसे राहुल गांधी ने भी वही पैमाना सेट कर रखा है.
मतलब, जैसे बीजेपी को सहयोगी दलों के साथ छोड़ कर चले जाने की जरा भी परवाह नहीं दिखी है, कांग्रेस भी बीजेपी विरोधी दलों के साथ वैसे ही पेश आने वाली है. कांग्रेस की शर्तों पर जो साथ आएगा, उसके अलावा बाकी सब के साथ कांग्रेस वैसे ही पेश आएगी जैसे वो बीजेपी के साथ आती है. मतलब, जैसे बीजेपी कांग्रेस के साथ पेश आती है - जैसे, बीजेपी कांग्रेस मुक्त भारत अभियान चलाती है, राहुल गांधी के भी कदम उसी दिशा में बढ़े लगते हैं.
राहुल गांधी ने अपनी तरफ से समझा दिया है कि बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले देश में अखिल भारतीय विचारधारा वाला राजनीतिक दल कांग्रेस ही है, लिहाजा बाकी किसी को भी किसी तरह के मुगालते में नहीं रहना चाहिये.
ये तो ऐसा लगता है जैसे राहुल गांधी विपक्ष को कुछ ऐसे धमका रहे हों कि अगर किसी ने कांग्रेस का नेतृत्व नहीं स्वीकार किया, या मनमानी करने लगे तो वो उनके खिलाफ भी खड़ी हो जाएगी. अब तो ऐसा लगता है जैसे राहुल गांधी विपक्ष के न मानने पर कांग्रेस को वोटकटवा तक बना डालने के लिए ठान चुके हैं - जैसे कह रहे हों, न खेलेंगे न खेलने देंगे - और अपना भी खेल बिगाड़ने से नहीं चूकेंगे.
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