कृषि कानूनों की वापसी के पीछे तमाम वजहें रहीं. एक बड़ी वजह बीजेपी नेताओं के प्रति उनके अपने इलाके में ही किसानों का गुस्सा भी रहा. पंजाब और पश्चिम यूपी के गांवों में किसानों ने बीजेपी नेताओं का घुसना मुहाल कर दिया था - और दोनों ही राज्यों में चुनावों से ठीक पहले ये सब बीजेपी नेतृत्व को भारी पड़ने लगा था.
क्या पंजाब में एक्टर कंगना रनौत की कार पर भीड़ का हमला भी ऐसा ही मामला हो सकता है? इंस्टाग्राम पर शेयर एक वीडियो में कंगना रनौत भी कह रही हैं कि वे बता रहे हैं कि किसान हैं - और फिर पूछती हैं, 'मेरी कार को अंदर घुसने नहीं दिया जा रहा है... क्या मैं कोई पॉलिटीशियन हूं? ये किस तरह का व्यवहार है?'
बिलकुल नहीं. कंगना रनौत कत्तई पॉलिटिशियन नहीं हैं. कम से कम घोषित तौर पर तो नहीं ही हैं - बल्कि, वो महज एक पार्टी विशेष की समर्थक हैं. और बदले में पार्टी विशेष की सरकार की तरफ से कंगना को ऐसे ही मौकों के लिए सुरक्षा मुहैया करायी गयी होगी.
आखिर कंगना रनौत को क्यों लग रहा है कि किसान उनके साथ बीजेपी नेताओं की तरह व्यवहार कर रहे हैं? ऐसा तो है नहीं कि बीजेपी नेताओं के खिलाफ किसान हर जगह बैरिकेडिंग कर रखे हैं, कुछ गांवों ऐसा जरूर हुआ है. ऐसा भी नहीं है कि महज बीजेपी समर्थक होने के नाते किसान कंगना रनौत को टारगेट कर रहे हैं - कंगना को तो ये तभी समझ में आ जाना चाहिये था जब वो किसानों को लेकर बयानबाजी कर रही थीं. असल बात तो ये है कि कंगना रनौत के खिलाफ किसानों का गुस्सा उनके निजी व्यवहार का नतीजा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के ताजा हमले में किसानों के बहाने पंजाब का खास तौर पर जिक्र भी कंगना की राजनीतिक आशंकाओं को झुठला रहा है - राहुल गांधी (Rahul...
कृषि कानूनों की वापसी के पीछे तमाम वजहें रहीं. एक बड़ी वजह बीजेपी नेताओं के प्रति उनके अपने इलाके में ही किसानों का गुस्सा भी रहा. पंजाब और पश्चिम यूपी के गांवों में किसानों ने बीजेपी नेताओं का घुसना मुहाल कर दिया था - और दोनों ही राज्यों में चुनावों से ठीक पहले ये सब बीजेपी नेतृत्व को भारी पड़ने लगा था.
क्या पंजाब में एक्टर कंगना रनौत की कार पर भीड़ का हमला भी ऐसा ही मामला हो सकता है? इंस्टाग्राम पर शेयर एक वीडियो में कंगना रनौत भी कह रही हैं कि वे बता रहे हैं कि किसान हैं - और फिर पूछती हैं, 'मेरी कार को अंदर घुसने नहीं दिया जा रहा है... क्या मैं कोई पॉलिटीशियन हूं? ये किस तरह का व्यवहार है?'
बिलकुल नहीं. कंगना रनौत कत्तई पॉलिटिशियन नहीं हैं. कम से कम घोषित तौर पर तो नहीं ही हैं - बल्कि, वो महज एक पार्टी विशेष की समर्थक हैं. और बदले में पार्टी विशेष की सरकार की तरफ से कंगना को ऐसे ही मौकों के लिए सुरक्षा मुहैया करायी गयी होगी.
आखिर कंगना रनौत को क्यों लग रहा है कि किसान उनके साथ बीजेपी नेताओं की तरह व्यवहार कर रहे हैं? ऐसा तो है नहीं कि बीजेपी नेताओं के खिलाफ किसान हर जगह बैरिकेडिंग कर रखे हैं, कुछ गांवों ऐसा जरूर हुआ है. ऐसा भी नहीं है कि महज बीजेपी समर्थक होने के नाते किसान कंगना रनौत को टारगेट कर रहे हैं - कंगना को तो ये तभी समझ में आ जाना चाहिये था जब वो किसानों को लेकर बयानबाजी कर रही थीं. असल बात तो ये है कि कंगना रनौत के खिलाफ किसानों का गुस्सा उनके निजी व्यवहार का नतीजा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के ताजा हमले में किसानों के बहाने पंजाब का खास तौर पर जिक्र भी कंगना की राजनीतिक आशंकाओं को झुठला रहा है - राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के बयान में तो, दरअसल, कैप्टन अमरिंदर सिंह और बीजेपी के संभावित गठबंधन के प्रभाव का असर लग रहा है.
जिस तरीके से राहुल गांधी कह रहे हैं, 'पंजाब में मुआवजा देना हमारी जिम्मेदारी नहीं थी, लेकिन हमनें नौकरी भी दी' - ये तो यही जता रहा है कि आने वाले विधानसभा चुनावों (Punjab Election 2022) में कांग्रेस मुकाबले में आम आदमी पार्टी की जगह बीजेपी और कैप्टन अमरिंदर सिंह की सियासी जुगलबंदी देखने लगी है.
पंजाब पर निगाहें, मोदी पर निशाना
तीनों कृषि कानूनों की वापसी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा से पहले ही पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने राज्य के किसानों को लुभाने के लिए एक खास ऐलान किया था. चन्नी ने दिल्ली में 26 जनवरी, 2021 के उपद्रव को लेकर गिरफ्तार 83 किसानों को दो-दो लाख का मुआवजा देने की घोषणा की थी - और ये पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के किसानों के बीच प्रभाव को काउंटर करने की ही कोशिश समझी गयी थी.
ठीक वैसे ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस कर बताया है कैसे पंजाब की कांग्रेस सरकार ने किसानों की आर्थिक मदद के साथ साथ सरकारी नौकरी भी दे रही है. प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोलते हुए राहुल गांधी कह रहे हैं कि किसानों को मुआवजा देना केंद्र की बीजेपी सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन पंजाब की कांग्रेस सरकार ऐसा करने के साथ साथ मारे गये किसानों के परिवार के लोगों को सरकारी नौकरियां भी दे रही है.
राहुल गांधी ये सब वैसे तो मोदी सरकार के उस बयान को लेकर कह रहे हैं जिसमें कहा गया है कि सरकार के पास किसानों की मौत से जुड़ा कोई रिकॉर्ड नहीं है. उसी के जवाब में राहुल गांधी का कहना है, 'हमारे पास इतने नाम हैं और सरकार हमसे ये रिकॉर्ड ले सकती है.'
राहुल गांधी ने कहते हैं, 'पंजाब की सरकार के पास 403 नाम हैं - और उनको हमने पांच-पाच लाख रुपये की मदद दी है... 152 शहीद किसानों के परिवारों को सरकारी नौकरी दी. बाकियों को भी हम सरकारी नौकरी देंगे.'
लगे हाथ राहुल गांधी मोदी सरकार को खूब खरी खोटी सुनाते हैं, 'थोड़ी सी आर्थिक मदद भी सरकार नहीं देना चाहती है... किसानों की मौत पर संसद में दो मिनट का भी मौन नहीं रखने दिया.'
कहते हैं, सरकार अगर 700 किसानों को 25-25 लाख देना चाहे तो वो कोई बड़ी बात नहीं है... प्रधानमंत्री सिर्फ अपनी छवि के बारे में सोच रहे हैं... किसानों और उनके परिवारों के बारे में सोचना चाहिये... सरकार को मानवता के आधार पर किसानों को आर्थिक मदद देनी चाहिए.'' हाल ही में यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि अगर समाजवादी पार्टी सत्ता में लौटती है तो किसान आंदोलन के दौरान शहीद किसानों को 25-25 लाख रुपये की सम्मान राशि देगी.
क्या ये कैप्टन-बीजेपी का कोई प्रभाव है
1. हिंदू वोटों के लिए होड़ क्यों मची है: फगवाड़ा में भगवान परशुराम की तपोस्थली का शिलान्यास करते हुए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने ऐलान किया कि राज्य सरकार हिंदुओं के तीन ग्रंथों रामायण, महाभारत और गीता पर शोध के लिए एक विशेष केंद्र स्थापित करेगी.
पिछले ही महीने पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री चन्नी केदारनाथ यात्रा पर निकले थे. उससे पहले सिद्धू ने नवरात्र के दौरान माता वैष्णो देवी मंदिर जाकर देवी के दर्शन भी किये. दर्शन पूजन अपनी जगह है, लेकिन जिस तरीके से दोनों नेताओं के मंदिर दर्शन का प्रचार प्रसार किया गया, वो तो यही जता रहा है कि ये सब हिंदू वोटर को साधने की कवायदचल रही है.
सिर्फ कांग्रेस नेता ही नहीं अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल से लेकर आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल तक हाल के दिनों में मंदिरों के चक्कर लगाते देखे गये हैं - ये सिर्फ पंजाब के 38 फीसदी हिंदू आबादी को अपनी तरफ खींचने की कोशिश है या बीजेपी को जैसे भी संभव हो सके रोकने की कोशिश है?
असल में अब तक यही माना जा रहा है कि अकाली दल के एनडीए से अलग होने के बाद से ही पंजाब के हिंदू बहुल सीटों पर फोकस कर रही है, ताकि कुछ सीटें जीती जा सकें और जहां तक संभव हो वोट शेयर बढ़ाया जा सके. अभी न सही, लेकिन अगले विधानसभा चुनाव से पहले 2024 के आम चुनाव में तो काम आएगा ही.
अब जबकि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी नयी पार्टी बना ली है और कह रहे हैं कि गठबंधन को लेकर उनकी मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बात हो रखी है, बीजेपी गठबंधन होने की सूरत में कुछ ज्यादा भी उम्मीद कर सकती है - और लगता है राहुल गांधी को भी इसी बात की चिंता सताने लगी है.
2. कैप्टन से डर लगने लगा क्या: कांग्रेस तरह तरह से कैप्टन अमरिंदर सिंह को नकारने की कोशिश करती आयी है. सवाल ये है कि अगर कैप्टन इतने ही नकारे रहे तो साढ़े चार साल तक कांग्रेस ने उनको मुख्यमंत्री क्यों बनाये रखा?
कैप्टन और चन्नी दोनों ही एक दूसरे के खिलाफ कुछ कहने से बचते देखे जा रहे थे, लेकिन अब ट्रेंड थोड़ा बदला लग रहा है और इसकी शुरुआत भी पंजाब के मौजूदा मुख्यमंत्री की तरह से ही हुई है.
एक खास बात ये भी देखने को मिली कि जिस दिन चन्नी ने कैप्टन पर नवांशहर में सीधा हमला बोला, ठीक एक दिन पहले ही उनको सिद्धू और कांग्रेस के पंजाब प्रभारी हरीश चौधरी के साथ दिल्ली बुलाया गया था. दिल्ली में आलाकमान की तरफ से पंजाब के मौजूदा राजनीतक हालात और उसके हिसाब से आगे की चुनावी रणनीति की समीक्षा की गयी.
मतलब तो यही हुआ कि कांग्रेस नेतृत्व कैप्टन के खिलाफ ज्यादा आक्रामक रुख अपनाने की हिदायद दे चुका है - और कैप्टन के खिलाफ बदले बदले चन्नी उसी का नमूना पेश कर रहे हैं. नवांशहर में चन्नी ने कैप्टन पर बादल परिवार के साथ साठ-गांठ का आरोप लगाया था. सिद्धू तो ये आरोप काफी पहले से ही लगाते आ रहे हैं.
बाकी चीजें तो अपनी जगह हैं ही पंजाब कांग्रेस में आये ये दो बदलाव इशारे तो ऐसे ही कर रहे हैं कि कैप्टन और बीजेपी के संभावित गठबंधन को हवा में नहीं लिया जा रहा है - और राहुल गांधी का मोदी सरकार पर ताजा अटैक भी यही संकेत दे रहा है.
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