राहुल गांधी का मोस्ट फेवरेट सदाबहार डायलॉग रहा है, 'मैं किसी से नहीं डरता' - और अक्सर ही वो किसी न किसी बहाने ये दोहराते रहे हैं. कई बार तो ये जताने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम तक लेकर भी बताया करते हैं कि वो बिलकुल नहीं डरते.
डर को लेकर राहुल गांधी ने अब एक लक्ष्मण रेखा भी खींच दी है. बिलकुल आर पार वाली - और ये भी साफ कर दिया है कि डरने वालों की कांग्रेस को कोई जरूरत नहीं है.
और कांग्रेस में होते हुए भी बीजेपी और आरएसएस (RSS) से सहानुभूति है रखने वालों के लिए साफ तौर पर बोल दिया है कि वे अपनी मंजिल जल्द से जल्द तलाश लें - क्योंकि कांग्रेस में अब उनके लिए कोई जगह नहीं बची है.
लेकिन राहुल गांधी ने निडर लोगों के लिए कांग्रेस का दरवाजा भी खोल दिया है. जो भी लोग निडर हैं वे अगर संघ या बीजेपी से जुड़े हैं तो वे कांग्रेस में आ सकते हैं - बल्कि उनको कांग्रेस में आ ही जाना चाहिये.
राहुल गांधी ने ये बातें ऐसे वक्त कही है जब पंजाब कांग्रेस में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनके खिलाफ बगावत कर चुके नवजोत सिंह सिद्धू अपनी अपनी जिद पर अड़े हुए हैं और कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है. इस बीच खबर आयी है कि हरीश रावत के बयान और कैप्टन अमरिंदर सिंह के गुस्से के बाद सिद्धू एक बार फिर राहुल गांधी और सोनिया गांधी से मिले हैं, लेकिन उसके बाद मीडिया से बगैर कुछ बोले चले गये हैं.
आखिर राहुल गांधी किसे संबोधित कर रहे हैं? कांग्रेस के वे कौन नेता हैं जिनके बारे में राहुल गांधी को लगता है कि वे आरएसएस की विचारधारा से इत्तेफाक रखते हैं - और राहुल गांधी उनको डरपोक मानते हैं?
राहुल गांधी के ऐसा बयान देने के पीछे क्या प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के साथ मुलाकात की भी कोई भूमिका हो सकती है?
क्या डर के आगे ही कांग्रेस की जीत है?
हाल ही में चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी के साथ साथ प्रियंका गांधी से मुलाकात की थी - और खबर ये भी रही कि सोनिया गांधी भी वर्चुअल तरीके से...
राहुल गांधी का मोस्ट फेवरेट सदाबहार डायलॉग रहा है, 'मैं किसी से नहीं डरता' - और अक्सर ही वो किसी न किसी बहाने ये दोहराते रहे हैं. कई बार तो ये जताने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम तक लेकर भी बताया करते हैं कि वो बिलकुल नहीं डरते.
डर को लेकर राहुल गांधी ने अब एक लक्ष्मण रेखा भी खींच दी है. बिलकुल आर पार वाली - और ये भी साफ कर दिया है कि डरने वालों की कांग्रेस को कोई जरूरत नहीं है.
और कांग्रेस में होते हुए भी बीजेपी और आरएसएस (RSS) से सहानुभूति है रखने वालों के लिए साफ तौर पर बोल दिया है कि वे अपनी मंजिल जल्द से जल्द तलाश लें - क्योंकि कांग्रेस में अब उनके लिए कोई जगह नहीं बची है.
लेकिन राहुल गांधी ने निडर लोगों के लिए कांग्रेस का दरवाजा भी खोल दिया है. जो भी लोग निडर हैं वे अगर संघ या बीजेपी से जुड़े हैं तो वे कांग्रेस में आ सकते हैं - बल्कि उनको कांग्रेस में आ ही जाना चाहिये.
राहुल गांधी ने ये बातें ऐसे वक्त कही है जब पंजाब कांग्रेस में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनके खिलाफ बगावत कर चुके नवजोत सिंह सिद्धू अपनी अपनी जिद पर अड़े हुए हैं और कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है. इस बीच खबर आयी है कि हरीश रावत के बयान और कैप्टन अमरिंदर सिंह के गुस्से के बाद सिद्धू एक बार फिर राहुल गांधी और सोनिया गांधी से मिले हैं, लेकिन उसके बाद मीडिया से बगैर कुछ बोले चले गये हैं.
आखिर राहुल गांधी किसे संबोधित कर रहे हैं? कांग्रेस के वे कौन नेता हैं जिनके बारे में राहुल गांधी को लगता है कि वे आरएसएस की विचारधारा से इत्तेफाक रखते हैं - और राहुल गांधी उनको डरपोक मानते हैं?
राहुल गांधी के ऐसा बयान देने के पीछे क्या प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के साथ मुलाकात की भी कोई भूमिका हो सकती है?
क्या डर के आगे ही कांग्रेस की जीत है?
हाल ही में चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी के साथ साथ प्रियंका गांधी से मुलाकात की थी - और खबर ये भी रही कि सोनिया गांधी भी वर्चुअल तरीके से मीटिंग में शामिल हुई थीं. मीटिंग को लेकर कई तरह के कयास लगाये गये हैं, लेकिन दोनों में से किसी भी पक्ष ने औपचारिक तौर पर कुछ कहा नहीं है.
देखा जाये तो राहुल गांधी ने एक तरीके से मान लिया है कि कांग्रेस में भी संघ की घुसपैठ हो चुकी है. ऐसे लोगों को राहुल गांधी चाहते हैं कि तत्काल प्रभाव से बाहर निकाल दिया जाये, लेकिन क्या कांग्रेस में ऐसे लोगों की पहचान की जा चुकी है या फिर किसी शक शुबहे के आधार पर ये राय बनी है - और क्या राहुल गांधी के इस नतीजे पर पहुंचने में प्रशांत किशोर की भी कोई भूमिका हो सकती है?
नलगोंडा से कांग्रेस सांसद उत्तम कुमार रेड्डी ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर किया है - ये वीडियो राहुल गांधी के कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम को संबोधन के समय का बताया जा रहा है.
शेयर किये गये वीडियो में राहुल कह रहे हैं, 'बहुत सारे लोग जो डर नहीं रहे हैं... जो कांग्रेस के बाहर हैं... वो सब हमारे हैं... उनको अंदर लाओ और जो हमारे यहां डर रहे हैं... उनको बाहर निकालो - चलो भैया जाओ, आरएसएस के हो, भागो... मजे लो... नहीं चाहिये... जरूरत नहीं है तुम्हारी. हमें निडर लोग चाहिये. ये हमारी आइडियोलॉजी है - ये मेरा बेसिक मैसेज है.'
लेकिन कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओें के बारे में पहले तो राहुल गांधी के मन में ऐसी कोई धारणा नहीं देखने को मिली है. वो खुद तो हमेशा ही किसी से नहीं डरने की बात करते रहे हैं, लेकिन ऐसा भी नहीं कि कांग्रेस में किसी नेता को डरपोक मानते हों या बता चुके हों.
दिसंबर 2019 में कांग्रेस की तरफ से 'भारत बचाओ रैली' आयोजित की गयी थी. रैली जब राहुल गांधी डायस पर पहुंचे तो बड़े ही गर्व के साथ बोले - कांग्रेस पार्टी का कार्यकर्ता किसी से भी नहीं डरता है. एक इंच भी पीछे नहीं हटता है - और देश के लिए अपनी जान देने से भी नहीं डरता है.'
रैली में राहुल गांधी के भाषण की एक लाइन काफी चर्चित हुई थी - और बाद में काफी विवाद भी हुआ था. राहुल गांधी के बयान पर शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने आपत्ति जताते हुए वीर सावरकर को भी नेहरू और गांधी की तरह सम्मान करने की सलाह दी थी. दरअसल, झारखंड की एक रैली में राहुल गांधी के रेप इन इंडिया बोल देने के बाद संसद में खूब हंगामा हुआ था और उनसे माफी मांगने को कहा जा रहा था.
सितंबर, 2016 में राहुल गांधी के ट्विटर हैंडल से कई ट्वीट किये गये थे और निशाने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही था. एक ट्वीट में राहुल गांधी ने कहा था - 'मुझे आपके जूते और गुस्से से डर नहीं लगता'
अभी मार्च, 2021 में ही राहुल गांधी ने किसानों के आंदोलन के सपोर्ट के दौरान एक ट्वीट में कहा था, 'जो मेरे मौन से डरते हैं, मैं उनसे नहीं डरता!'
विधानसभा चुनावों के दौरान फरवरी में तमिलनाडु के थूथुकुडी में राहुल ने कहा, 'मैं रात में सोने जाता हूं तो मुझे 30 सेकेंड के अंदर ही नींद आ जाती है क्योंकि मैं मिस्टर मोदी से नहीं डरता... तमिलनाडु के सीएम को कितना समय लगता है? वह रात में ठीक से सो नहीं सकते क्योंकि वह ईमानदार नहीं है... अब मुख्यमंत्री बेईमान हैं, इसलिए वो मिस्टर मोदी के खिलाफ खड़े नहीं हो सकते हैं.'
तमिलनाडु में तब एआईएडीएमके की सरकार थी और ई. पलानीसामी मुख्यमंत्री हुआ करते थे. चुनाव में डीएमके ने जीत हासिल की और एमके स्टालिन मुख्यमंत्री बन गये हैं. कांग्रेस ने स्टालिन की डीएमके के साथ ही गठबंधन करके चुनाव लड़ा था.
अब ये समझना जरा मुश्किल हो रहा है कि कांग्रेस नेताओं को लेकर राहुल गांधी के नजरिये में अचानक इतना बड़ा फर्क कैसे आ गया? वे कौन सी बातें हैं जो राहुल गांधी के मन में धारणा बना रही हैं कि कांग्रेस के नेता अब डरने लगे हैं, जबकि 2019 का चुनाव हार जाने और कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ देने के बाद भी रामलीला मैदान की रैली के मंच से राहुल गांधी डंके की चोट पर कह रहे थे कि कांग्रेस का कार्यकर्ता एक इंच भी पीछे नहीं हटता.
2014 में बीजेपी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद से बहुत सारे नेता कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं - और ऐसे नेताओं को लेकर राहुल गांधी की कभी कोई शिकायत भी नहीं समझ में आयी. हां, ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर इतना जरूर कहा था कि वो उनसे कभी भी आकर बात कर सकते थे. केरल में टॉम वडक्कन के बीजेपी ज्वाइन कर लेने पर मीडिया के सवालों के जबाव में ये जरूर बोले थे कि टॉम वडक्कन कोई बड़े नेता नहीं थे.
एक बार कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई की मीटिंग में भी राहुल गांधी युवाओं को यही समझाने की कोशिश कर रहे थे कि जो जाना चाहते हैं उनको चले जाने दो - आखिर वे चले जाएंगे तभी तो नये नेताओं के लिए जगह खाली होगी. हालांकि, ये खबर मीडिया में आने के बाद संगठन की तरफ से खंडन किया गया था कि ऐसी तो कोई बात ही नहीं हुई.
तो क्या राहुल गांधी अब इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि डर के आगे ही कांग्रेस की जीत है?
पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी छोड़ कर पाला बदल लेने वालों के बारे में प्रशांत किशोर की राय रही है कि जो बीजेपी में गये थे सिर्फ कूड़ा करकट थे - क्या राहुल गांधी ने प्रशांत किशोर से मुलाकात के बाद ये स्टैंड लिया है - 'कांग्रेस छोड़ो अभियान'!
ये मैसेज किसके लिए है?
राहुल गांधी का ये बयान ऐसे वक्त आया है जब कई नेता कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में जा चुके हैं और सचिन पायलट जैसे नेताओं को लेकर माना जाता है कि मौका मिलने पर वे ऐसा कभी भी कर सकते हैं - राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तो यही इल्जाम लगाकर सचिन पायलट को लगभग पैदल कर चुके हैं. हालांकि, सचिन पायलट कई बार कह चुके हैं कि वो कांग्रेस छोड़ कर कहीं नहीं जा रहे हैं.
पहला सवाल तो यही है कि राहुल गांधी का ये मैसेज किन नेताओं के लिए है?
क्या राहुल गांधी ऐसी बातें उन नेताओं से कहना चाह रहे हैं जो खुल कर और आंख मूंद कर उनकी हां में हां नहीं मिलाते?
मसलन, जो नेता जम्मू-कश्मीर पर धारा 370 को लेकर कांग्रेस के स्टैंड को जन भावनाओं के अनुरूप नहीं मानते और पुनर्विचार करने की अपील करते हैं?
ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद के बीजेपी में चले जाने के बाद आरपीएन सिंह जैसे नेता कांग्रेस में हैं जो धारा 370 पर कांग्रेस के स्टैंड को ठीक नहीं मानते - और दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह जैसे नेता हैं जो बगैर सलाह मांगे ही बयान जारी कर देते हैं कि कांग्रेस की सत्ता में वापसी होने पर जम्मू-कश्मीर की व्यवस्था पुराने स्वरूप में बहाल हो जाएगी. समझने वाली खास बात ये है कि राहुल गांधी की राजनीति के शुरुआती दिनों के सलाहकार दिग्विजय सिंह ही रहे हैं - और ये उन दिनों के ही वाकये हैं जब राहुल गांधी यूपी की पब्लिक मीटिंग में कमीज की आस्तीन चढ़ाते हुए गुस्से का सरेेआम इजहार किया करते थे.
लेकिन गुलाम नबी आजाद जैसे नेता भी कांग्रेस में हैं जो धारा 370 पर कांग्रेस के स्टैंड का झंडा बुलंद किये हुए हैं, लेकिन वो G23 के नेता के रूप में भी सामने आते हैं. कांग्रेस में एक स्थायी अध्यक्ष की मांग करने वाली चिट्ठी पर दस्तखत करने वाले नेताओं का नेतृत्व करते हैं - और जम्मू-कश्मीर की धरती से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ भी कर डालते हैं. वो भी भगवा साफा बांध कर.
या कपिल सिब्बल जैसे नेता जो कांग्रेस के हर चुनाव हारने के बाद कटाक्ष करते हैं?
कांग्रेस के कई नेता समय समय पर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी हमले या हर बात को लेकर आक्रामक न बने रहने की भी सलाह दे चुके हैं - तो क्या ऐसी सलाह देने वाले शशि थरूर, जयराम रमेश और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे नेताओं को भी राहुल गांधी डरपोक मानते हैं और उनके लिए भी कांग्रेस छोड़ कर कहीं चले जाने की बात लागू होती है?
राहुल गांधी ने कांग्रेस से बाहर के निडर नेताओं को पार्टी में लाने की भी सलाह दी है - लेकिन डूबती नाव सवार होने को भला कौन तैयार होगा?
ये ठीक है कि संघ और बीजेपी पृष्ठभूमि के रेवंत रेड्डी और नाना पटोले जैसे नेता भी हैं जो 2014 के बाद कांग्रेस के सत्ता से बाहर होते हुए भी पार्टी ज्वाइन किये हैं - और ऐसे नेता राहुल गांधी के करीबी भी माने जाते हैं. रेवंत रेड्डी स्थानीय नेताओं के कड़े विरोध के बावजूद तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बनाये गये हैं और विरोध के स्वर अब तक नरम नहीं पड़े हैं.
ठीक वैसे ही नाना पटोले का एनसीपी और शिवसेना के खिलाफ स्टैंड महाराष्ट्र कांग्रेस के बाकी नेताओं को जरा भी रास नहीं आ रहा है. मौजूदा सरकार में ही महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके नाना पटोले को राहुल गांधी की अनुशंसा पर सूबे में कांग्रेस की कमान सौंपी गयी है. अब वो एनसीपी पर कांग्रेस के साथ धोखा देने के आरोप लगा रहे हैं और आगे के चुनाव अकेले लड़ने की बात कर रहे हैं.
2014 में लोक सभा सांसद रहे नाना पटोले ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बगावत कर डाली थी, ये कहते हुए की मोदी के साथ मीटिंग में किसी को बोलने नहीं दिया जाता और अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो चुप करा दिया जाता है.
बीजेपी में नाना पटोले से इत्तेफाक रखने वाले नेता तो बहुतेरे होंगे, लेकिन भला कांग्रेस में कोई क्यों आना चाहेगा?
बीबीसी से बातचीत में राजनीतिक टिप्पणीकार रशीद किदवई कहते हैं, 'राहुल और सोनिया के काम करने की शैली में एक बुनियादी फर्क ये भी है कि कोई पार्टी छोड़ कर जाना चाहता है, तो राहुल उसे मनाते नहीं हैं. जो जाना चाहता है, उसे खुशी से जाने देते हैं - लेकिन सोनिया गांधी हमेशा सबको जोड़ कर रखने की पूरी कोशिश करती हैं.'
फिर क्या माना जाये - राहुल गांधी का ताजा बयान कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उनकी वापसी के संकेत दे रहा है?
सोनिया गांधी और राहुल गांधी में एक बड़ा फर्क ये भी है कि विपक्षी खेमा सोनिया गांधी को तो पूरी तवज्जो देता है, लेकिन ममता बनर्जी जैसी नेता भी हैं जो राहुल गांधी से मिलना तक जरूरी नहीं समझतीं.
और शरद पवार जैसे नेता भी हैं जो गलवान घाटी संघर्ष के बाद चीन के मुद्दे पर राहुल गांधी के स्टैंड का विरोध और मोदी सरकार का सपोर्ट करते हैं. पूर्व रक्षा मंत्री होने के नाते शरद पवार की बातों को अहमियत भी ज्यादा दी जाती है - क्या राहुल गांधी की नजर में शरद पवार जैसे नेता भी डरने वाली कैटेगरी में रखे जाएंगे?
शरद पवार से राहुल गांधी की नाराजगी की एक बड़ी वजह ये भी हो सकती है कि वो ममता बनर्जी के नाम पर विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिशों में कांग्रेस को किनारे रखे हुए थे. जब कमलनाथ ने जाकर मुलाकात की तभी उनका बयान आया कि कांग्रेस के बगैर विपक्ष की एकजुटता की कोई भी कोशिश पूरी हो ही नहीं सकती?
एक तरफ शरद पवार जैसे नेता हैं जो राहुल गांधी और सोनिया गांधी के चीन पर स्टैंड का विरोध करते हैं और दूसरी तरफ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे जैसे नेता हैं जो डरने की जगह लड़ने को तरजीह देते हैं.
सोनिया गांधी ने ही पिछले साल गैर-बीजेपी पार्टियों के मुख्यमंत्रियों की एक बैठक बुलायी थी, जिसमें उद्धव ठाकरे पहली बार शामिल हुए थे और ममता बनर्जी भी मौजूद थीं. तभी उद्धव ठाकरे ने ममता बनर्जी से सवाल किया - 'दीदी, आप ही बताइये कि डरना है या लड़ना है?'
ऐसे देखें तो राहुल गांधी को शरद पवार के मुकाबले उद्धव ठाकरे ही ज्यादा पसंद आएंगे क्योंकि वो तो सीधे सीधे निडर नेताओं की कैटेगरी में फिट हो जाते हैं - क्या राहुल गांधी कांग्रेस नेताओं के बहाने विपक्षी खेमे में भी निडर और डरपोक की कोई लाइन खींचना चाहते हैं?
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.