राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को अलर्ट भेज कर सचिन पायलट ने बहुत बड़ी गलती कर दी है. गलती राहुल गांधी को अलर्ट भेजना नहीं, बल्कि उसके लिए अपनाया गया तरीका है. अब जबकि राजस्थान का बजट भी पेश कर दिया गया है और विधानसभा चुनाव में काफी कम वक्त बचा है, सचिन पायलट ने अपनी तरफ से आगाह किया है कि अगर अब देर हुई तो कुछ भी हाथ नहीं लगेगा.
सचिन पायलट से जो गलती हुई है, वो राहुल गांधी को समझाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मिसाल दिया जाना है. सचिन पायलट ने ये समझाने की कोशिश की है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राजस्थान में खुद आक्रामक ढंग से प्रचार कर रहे हैं, ऐसे में अगर वक्त रहते कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सक्रिय नहीं किया गया तो सत्ता में वापसी का सपना अधूरा रह जाएगा.
हाल ही में राजस्थान दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बजट भाषण में हुई गड़बड़ी को अपने तरीके से समझाया था. हुआ ये था कि अशोक गहलोत ने इस बार कुछ देर तक पिछले साल का बजट भाषण पढ़ दिया था. बाद में टोके जाने पर सुधार भी लिया था.
बजट भाषण में हुई उसी चूक का मुद्दा उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर हमला बोल दिया था. प्रधानमंत्री मोदी का कहना रहा, ये सरकार बजट घोषणाएं जमीन पर लागू नहीं कर सकती... पिछले साल वाला बजट डिब्बे में बंद था, इसलिए गहलोत से पुराना बजट पढ़ने की गलती हुई.
मोदी के इसी हमलावर रुख की तरफ ध्यान दिलाते हुए सचिन पायलट ने कांग्रेस नेतृत्व को पहले से ही सतर्क करने की कोशिश की है, लेकिन ऐसा लगता है जैसे राहुल गांधी को समझाने के लिए सचिन पायलट ने मोदी की मिसाल देकर गलती कर दी है. बल्कि ऐसा करके अपने पैर में कुल्हाड़ी ही मार ली है - वैसे भी सचिन पायलट भला मोदी का डर दिखाकर राहुल गांधी को समझा सकते हैं क्या?
हो सकता...
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को अलर्ट भेज कर सचिन पायलट ने बहुत बड़ी गलती कर दी है. गलती राहुल गांधी को अलर्ट भेजना नहीं, बल्कि उसके लिए अपनाया गया तरीका है. अब जबकि राजस्थान का बजट भी पेश कर दिया गया है और विधानसभा चुनाव में काफी कम वक्त बचा है, सचिन पायलट ने अपनी तरफ से आगाह किया है कि अगर अब देर हुई तो कुछ भी हाथ नहीं लगेगा.
सचिन पायलट से जो गलती हुई है, वो राहुल गांधी को समझाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मिसाल दिया जाना है. सचिन पायलट ने ये समझाने की कोशिश की है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राजस्थान में खुद आक्रामक ढंग से प्रचार कर रहे हैं, ऐसे में अगर वक्त रहते कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सक्रिय नहीं किया गया तो सत्ता में वापसी का सपना अधूरा रह जाएगा.
हाल ही में राजस्थान दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बजट भाषण में हुई गड़बड़ी को अपने तरीके से समझाया था. हुआ ये था कि अशोक गहलोत ने इस बार कुछ देर तक पिछले साल का बजट भाषण पढ़ दिया था. बाद में टोके जाने पर सुधार भी लिया था.
बजट भाषण में हुई उसी चूक का मुद्दा उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर हमला बोल दिया था. प्रधानमंत्री मोदी का कहना रहा, ये सरकार बजट घोषणाएं जमीन पर लागू नहीं कर सकती... पिछले साल वाला बजट डिब्बे में बंद था, इसलिए गहलोत से पुराना बजट पढ़ने की गलती हुई.
मोदी के इसी हमलावर रुख की तरफ ध्यान दिलाते हुए सचिन पायलट ने कांग्रेस नेतृत्व को पहले से ही सतर्क करने की कोशिश की है, लेकिन ऐसा लगता है जैसे राहुल गांधी को समझाने के लिए सचिन पायलट ने मोदी की मिसाल देकर गलती कर दी है. बल्कि ऐसा करके अपने पैर में कुल्हाड़ी ही मार ली है - वैसे भी सचिन पायलट भला मोदी का डर दिखाकर राहुल गांधी को समझा सकते हैं क्या?
हो सकता है, ऐसा करके सचिन पायलट अपनी तरफ से राहुल गांधी को आगाह कर रहे हों कि वो ज्यादा दिन तक उनके धैर्य की परीक्षा नहीं ले सकते. ये तो पहले से मालूम है कि इस साल होने वाले सभी विधानसभा चुनावों में मोदी का ऐसा ही रूप देखने को मिलने वाला है - क्योंकि बीजेपी मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ रही है.
ऐसे में जबकि बीजेपी पहले से ही राजस्थान में वसुंधरा राजे को लेकर परेशान है, सचिन पायलट अपने लिए मौका देख रहे होंगे. ये ठीक है कि समय रहते सचिन पायलट ऑपरेशन लोटस का हिस्सा बन कर ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह कांग्रेस की सरकार नहीं गिरा सके, लेकिन चुनाव से पहले अगर वो कांग्रेस को कमजोर भी कर देते हैं तो बीजेपी के लिए फायदे वाली ही बात होगी.
ये तो लगता है राहुल गांधी को समझाने की सचिन पायलट ने अपनी तरफ से आखिरी कोशिश की है. हो सकता है आखिरी कोशिश मान कर ही राहुल गांधी को समझाने के लिए मोदी के नाम को इस्तेमाल किया हो - अगर राहुल गांधी उनके लिए कुछ कर नहीं सकते तो जो बात हो वो बोल ही दें.
फिर भी सचिन पायलट को राहुल गांधी के सामने पहले साफ करना होगा कि वो वास्तव में कांग्रेस की सरकार बनवाना चाहते हैं या खुद राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने के लिए ये नया तरीका अपना रहे हैं?
लेकिन विशेषाधिकार का नोटिस (Breach of Privilege Notice) देने के बाद राहुल गांधी का जो रुख नजर आ रहा है, लगता नहीं कि सचिन पायलट को कोई फायदा होने वाला है. क्योंकि राहुल गांधी की राजनीति वैसे भी पुष्पा स्टाइल वाली होती है - झुकेगा नहीं. भले ही टूट जाएगा. पंजाब मिसाल है.
विशेषाधिकार हनन के नोटिस का जवाब देने के बाद राहुल गांधी वैसे ही आक्रामक हो गये हैं, जैसे आरएसएस के खिलाफ ट्रायल फेस करने का फैसला करने के बाद. आरएसएस पर टिप्पणी को लेकर राहुल गांधी मानहानि के एक केस में ट्रायल फेस कर रहे हैं. ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था, और अदालत ने राहुल गांधी को माफी मांग कर विवाद खत्म करने या ट्रायल का सामना करने की सलाह दी थी - राहुल गांधी ने माफी नहीं मांगने का फैसला किया.
तब से लेकर, भारत जोड़ो यात्रा के दौरान और उसके बाद भी राहुल गांधी संघ के खिलाफ वैसे ही आक्रामक रुख अपनाये हुए हैं - और विशेषाधिकार हनन के नोटिस का जवाब देने के बाद अदानी के बिजनेस को लेकर हमला तेज कर दिया है.
जवाब दाखिल, सवाल चालू
राहुल गांधी के संसद में भाषण की काफी चर्चा रही. भारत जोड़ो यात्रा के बाद संसद पहुंचे राहुल गांधी का भाषण अदानी ग्रुप के कारोबार (Adani Business Issue) पर ही फोकस रहा - अपने भाषण में राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अदानी ग्रुप के प्रमुख गौतम अदानी के संबंधों को लेकर सवाल खड़ा किया था.
राहुल गांधी ने संसद में प्रधानमंत्री मोदी के विदेश दौरों के वक्त और आस पास गौतम अदानी की मौजूदगी पर सवाल उठाये थे. राहुल गांधी ने ये भी पूछा था कि प्रधानमंत्री मोदी के विदेश दौरों के बाद उन देशों में अदानी ग्रुप को ठेके क्यों मिले?
राहुल गांधी के बाद राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने राहुल गांधी का नाम लिये बगैरे कांग्रेस को खूब खरी खोटी सुनायी थी, लेकिन अदानी के कारोबार को लेकर पूछे गये किसी भी सवाल पर ध्यान नहीं दिया.
हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद अदानी ग्रुप के कारोबार का मुद्दा उठाते हुए राहुल गांधी ने संसद में 7 फरवरी को भाषण दिया था और 10 फरवरी बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे और संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने लोक सभा स्पीकर को विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया था. फिर लोक सभा सचिवालय की तरफ से राहुल गांधी को स्पीकर के विचार करने के लिए राहुल गांधी को नोटिस का जवाब देने के लिए कहा गया.
विशेषाधिकार हनन को लेकर जवाब दाखिल करने के लिए राहुल गांधी को 15 फरवरी तक का वक्त दिया गया था - और बताते हैं कि राहुल गांधी ने निर्धारित समय सीमा के भीतर ही लोक सभा सचिवालय को अपना जवाब सौंप दिया है.
सूत्रों के हवाले से आयी खबर से मालूम होता है कि राहुल गांधी ने मोदी और अदानी को लेकर अपनी टिप्पणी को सही ठहराया है. बताते हैं कि राहुल गांधी ने पहले के कई वाकयों और कानूनों का हवाला देते हुए विस्तार से अपना पक्ष रखा है.
राहुल गांधी अदानी को लेकर अपने सवाल तो दोहरा ही रहे हैं, ये भी पूछ रहे हैं कि सदन की कार्यवाही से उनकी टिप्पणियों को क्या हटाया गया?
और अपनी टिप्पणियों सही ठहराने के पीछे उनकी दलील और इल्जाम है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी उनका अपमान किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में सवाल किया था, 'नेहरू की पीढ़ी का कोई व्यक्ति नेहरू सरनेम रखने से डरता क्यों है? क्या शर्मिंदगी है?'
प्रधानमंत्री मोदी के भाषण का जिक्र करते हुए राहुल गांधी का कहना है, 'मेरे नाम में गांधी क्यों है? नेहरू क्यों नहीं है? ये मेरा अपमान है... भारत में पिता का सरनेम लगाते हैं... शायद पीएम मोदी ये नहीं समझते हैं.'
अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड के दौरे पर पहुंचे राहुल गांधी ने लोगों के बीच अपना स्टैंड नये सिरे से साफ करने की कोशिश की, 'प्रधानमंत्री खुद को बहुत ताकतवर समझते हैं. उनको लगता है सब उनसे डर जाएंगे, लेकिन शायद पता नहीं कि वो आखिरी शख्स होंगे जिनसे मुझे डर होगा.'
और फिर ये भी बताया बीजेपी और मोदी सरकार कुछ भी कर ले, न तो वो डरते हैं न ही उनको कोई फर्क पड़ता है, "मैंने संसद में जो भी कहा, सच कहा था... और इसलिए मेरे मन में डर नहीं था... मेरे अपमान से कुछ नहीं होगा... सच तो सामने आ ही जाएगा.'
अदानी पर अपने रुख पर कायम
विशेषाधिकार हनन के नोटिस का जवाब देने के बाद राहुल गांधी ने फिर से अदानी ग्रुप को लेकर मोदी सरकार पर धावा बोल दिया है. राहुल गांधी ने ट्विटर पर एक रिपोर्ट टैग किया है और लिखा है, 'मित्र काल की कहानी'.
राहुल गांधी ट्विटर पर लिखते हैं, 76 प्रतिशत एमएसएमई को कोई मुनाफा नहीं... 72 प्रतिशत की आमदनी स्थिर रही, घटी या खत्म... 62 प्रतिशत को बजट से सिर्फ निराशा मिली.
कांग्रेस नेता ने न तो अदानी का ही नाम लिया है, न ही प्रधानमंत्री मोदी का लेकिन जो सवाल पूछा है उसमें निशाने पर दोनों ही हैं. सवाल है - 'जिस जादू से एक मित्र को दुनिया में दूसरा सबसे अमीर बनाया, वही जादू छोटे व्यापारों पर क्यों नहीं चलाया?'
ये तो लगता ही है कि भारत जोड़ो यात्रा पूरा करने के बाद राहुल गांधी का आत्मविश्वास बढ़ा है, लेकिन असली असर तब मालूम होगा जब चुनावी साल में नतीजे भी कांग्रेस के पक्ष में आने लगे - बीजेपी नेता अमित शाह का तो ऐसा ही कहना है.
केंद्रीय मंत्री से पूछा गया था कि क्या वो राहुल गांधी को आने वाले चुनाव में प्रधानमंत्री पद का दावेदार मानते हैं?
जवाब में अमित शाह कहते हैं, अभी तीन राज्यों में चुनाव आ रहे हैं... यह साफ हो जाएगा कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का क्या असर रहा है?
अमित शाह का जवाब अपनी जगह है, लेकिन ये भी है कि बीजेपी भले ही गुजरात चुनाव जीत गयी हो, हिमाचल प्रदेश चुनाव के नतीजे भी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान ही आये थे. अगर चुनावी जीत मायने रखती है तो हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार भारत जोड़ो यात्रा को सफल साबित करती है. ये बात अलग है कि हिमाचल प्रदेश की जनता ने भारत जोड़ो यात्रा नहीं बल्कि कांग्रेस को बीजेपी के अंदरूनी झगड़े का फायदा मिल गया.
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