आलिया भट्ट फिल्म ब्रह्मास्त्र अलग वजहों से अभी चर्चा में है. रणदीप हुड्डा के साथ आलिया भट्ट की एक फिल्म आयी थी - हाइवे, और दोनों फिल्म के प्रमोशन के लिए कपिल शर्मा शो में पहुंचे हुए थे. आलिया के सिंगर वाले टैलेंट की बात कर कपिल शर्मा ने साथ में एक गाना तो गाया ही, रणदीप हुड्डा मजाकिया अंदाज का जिक्र कर कपिल शर्मा ने कोई हरियाणवी चुटकुला सुनाने को कहा.
कपिल शर्मा की फरमाइश पर रणदीप हुड्डा सुनाने लगे... एक बार, जंगल में एक शेर होता है. तो किसी को भी उठा कर खा जाता है. तो जंगल वाले बगावत कर देते हैं... हमें डेमोक्रेसी चाहिये. ये राजा नहीं चलेगा हमको. ये करप्ट राजा है. तो वोटिंग होती है... एक बंदर जीत जाता है.
एक बार शेर एक मेमने को उठा ले जाता है... बकरी बोलती है मेरे मेमने को शेर उठा ले गया क्या करें? तो जानवर बोलते हैं राजा तो है. तो राजा के पास जाती है. राजा पेड़ पर बैठा होता है... बकरी बोलती है राजाजी मेरे मेमने को शेर उठा ले गया. फिर बंदर एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर. दूसरे पेड़ से तीसरे पेड़ पर. कभी जमीन पर, कभी पेड़ पर लगातार उछलता रहता है. तो बकरी बोली राजाजी 10-15 मिनट ऐसे ही करते रहे तो मेरा तो जाएगा मेमना. तो बंदर बोलता है... देख तेरे मेमने की कोई गारंटी नहीं, पर मेरी भाग दौड़ में कुछ कमी हो तो बता!
दरअसल, ये कहानी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को देख कर याद आ गयी. खास तौर पर यात्रा के रूट मैप के प्रसंग में. जंगल बुक की कहानियों में ये आपने भी सुनी ही होगी. यहां ये कहानी यात्रा के मकसद और उसके रास्ते में आड़े आ रही सहूलियत की राजनीति की तरफ इशारा करती है - थोड़े सख्त लहजे में समझें तो जिम्मेदारियों से भागने की राजनीति से भी जोड़ कर देख सकते हैं.
7 सितंबर, 2022 को कन्याकुमारी से शुरू हुई राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की भारत जोड़ो यात्रा अभी तक केरल में ही है. करीब दो हफ्ते बीते हैं और एक के बाद एक करके कई विवाद भी सामने आ चुके हैं. ये भी है कि यात्रा के दौरान ही राहुल गांधी कांग्रेस के झगड़ों को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं.
भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) अभी राजस्थान नहीं पहुंची है, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव को लेकर अशोक गहलोत दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद सीधे कोच्चि पहुंच जाते हैं. अशोक गहलोत कोई खेल करें, उससे पहले सचिन पायलट भी पहुंचे होते हैं. राजस्थान का झगड़ा भी केरल में ही सुलझाने की कोशिश हो रही है. मालूम नहीं राजस्थान पहुंचते पहुंचते क्या हाल होगा.
खबर ये भी आ रही है कि कर्नाटक में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी राहुल गांधी को ज्वाइन कर सकते हैं. इससे पहले सोनिया गांधी यात्रियों को अपना संदेश भेजती रही हैं.
लेकिन इसी बीच एक जोर का झटका लगने की भी चर्चा है. ये चर्चा है महाराष्ट्र के कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण को लेकर. कुछ दिन पहले की बात है महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे अशोक चव्हाण और महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस गणेश दर्शन के लिए गये हुए थे. तभी दोनों की मुलाकात आशीष कुलकर्णी के घर पर हो गयी. आशीष कुलकर्णी कोई और नहीं बल्कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के ओएसडी हैं.
देखते ही देखते अशोक चव्हाण के बीजेपी ज्वाइन करने की चर्चा शुरू हो गयी और उनको सफाई तक देनी पड़ी. इंडिया टुडे से बातचीत में अशोक चव्हाण ने ऐसी चर्चाओं के सिरे से खारिज करते हुए बताया कि वो तो भारत जोड़ो यात्रा में हिस्सा लेने जा रहे हैं.
अशोक चव्हाण का कहना रहा, 'मेरे बीजेपी ज्वाइन करने के सारे कयास बेबुनियाद हैं. मैं आशीष कुलकर्णी के यहां गणेश दर्शन के लिए गया हुआ था और देवेंद्र फडणवीस भी वहां आ गये थे. तमाम मेहमानों के बीच हमारी अच्छे माहौल में बातचीत भी हुई. ऐसी बातें गलत हैं.'
और इसी बीच एक धड़े में ये भी चर्चा रही कि अशोक चव्हाण को महाराष्ट्र कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जा सकता है. हालांकि, साथ ही ये भी समझाया जा रहा है कि ये सब होगा भी तभी जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव (Congress President Election) हो जाएगा. चर्चाओं की बात अलग है, लेकिन लगता नहीं कि नाना पटोले को हटाकर कर अशोक चव्हाण को कमान सौंपी जाएगी. नाना पटोले भी राहुल गांधी के मोस्ट फेवरेट नेताओं की लिस्ट में आते हैं.
क्या भारत जोड़ो यात्रा राहुल गांधी की सहूलियत के हिसाब से प्लान की गयी है?
एक बार फिर ये चर्चा जोर पकड़ चुकी है कि जिस दिन राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के साथ महाराष्ट्र में प्रवेश करेंगे, बीजेपी की तरफ से देवेंद्र फडणवीस तोहफा तैयार रखे बैठे हैं - और उसी दिन अशोक चव्हाण बीजेपी ज्वाइन कर सकते हैं. अगर अशोक चव्हाण के समर्थकों का उनको महाराष्ट्र की कमान सौंपने के लिए दबाव बनाने का ये कोई प्रयास है तो अलग बात है, लेकिन ऐसी कम ही संभावना है कि नाना पटोले जैसे नेता को नाराज करके राहुल गांधी ऐसा कुछ होने देंगे.
क्या ये कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव से दूर रहने की कवायद है?
भारत जोड़ो यात्रा शुरू होने से ठीक पहले कांग्रेस गुलाम नबी आजाद ने जोरदार झटका दिया था. सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी में गुलाम नबी आजाद ने ये सुझाव भी दिया था कि राहुल गांधी को पहले कांग्रेस जोड़ो यात्रा शुरू करनी चाहिये थी - और लक्षण भी वैसे ही दिखायी दे रहे हैं. अशोक चव्हाण को लेकर चल रही चर्चा भले ही गलत साबित हो जाये, लेकिन ये तो सच है ना कि गोवा के 11 विधायकों में से 8 छोड़कर बीजेपी चले गये.
गुलाम नबी आजाद को एक और भी सलाह देनी चाहिये थी. राहुल गांधी को भारत जोड़ो यात्रा से पहले सिर्फ कांग्रेस जोड़ो ही नहीं, सहयोगी या मित्र दलों को जोड़ने के लिए भी एक यात्रा करनी चाहिये थी - लेकिन ये तो ऐसा लगता है जैसे बीजेपी के खिलाफ बता कर राहुल गांधी ने सहयोगी दलों को ही नुकसान पहुंचाने के इरादे से ये यात्रा शुरू की है - क्योंकि इसका रूट प्लान तो ऐसा ही लगता है.
शाहरुख खान का एक शो आया था - 'क्या आप पांचवीं पास से तेज हैं?'
राहुल गांधी तो बड़े नेता हैं, लेकिन उनके रणनीतिकारों से ये सवाल पूछा जाना तो बनता ही है. ऐसा लगता है जैसे भारत जोड़ो यात्रा का प्लान पांचवी क्लास के ही किसी पाठ से लिया गया है. क्योंकि वहां भारत के बारे में बताया जाता है कि ये कश्मीर से कन्याकुमारी तक है. कांग्रेस के रणनीतिकारों ने बस सिक्वेंस बदल दिया - कन्याकुमारी से कश्मीर तक.
ये ठीक है. राहुल गांधी कहते हैं कि वो राजनीति से ज्यादा भारत को जानने में दिलचस्पी लेते हैं. भला इससे अच्छी बात क्या हो सकती है, कोई अपने देश के बारे में ऐसे जानना चाहता हो. राहुल गांधी ही ये भी समझाते हैं कि ये यात्रा भारत के लोगों को जोड़ने के लिए है. भारत के लोगों से जुड़ने के लिए है. लोगों से जुड़ना तो ठीक है - लेकिन भारत या उसके लोग टूटे हुए हैं क्या कि जोड़ने की जरूरत आ पड़ी है?
भारत के लोगों को जोड़ने की बात करते हुए राहुल गांधी सीधे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी पर बरस पड़ते हैं - नफरत फैलाने की तोहमत मढ़ते हैं और भी न जाने क्या क्या? भारत जोड़ो यात्रा के संयोजक दिग्विजय सिंह ने भी शुरू में समझाने की कोशिश की कि यात्रा के जरिये सबको जोड़ने की कोशिश है. सबको से मतलब, सभी क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को. सिविल सोसाइटी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं को छोड़ दें तो बाकी दलों के कितने लोग भारत जोड़ो यात्रा से जुड़ रहे हैं?
और जुड़ें भी तो क्यों? कहने को तो ये यात्रा संघ और बीजेपी के खिलाफ है, लेकिन ये तो सहयोगी दलों की ही जड़ काटने पर तुली हुई है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा बीजेपी से ज्यादा तो सहयोगी राजनीतिक दलों को ही टारगेट करती है - और ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस नेता के सहूलियत के हिसाब से ही रूट भी प्लान किया गया है.
क्या भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव से राहुल गांधी के दूर रहने के लिए एक सुविधाजनक आयोजन है? अगर कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव से दूरी बनाये रखने के नाम पर राहुल गांधी विदेश दौरे पर चले गये होते तो उनके राजनीतिक विरोधी कोई और ही मुहिम शुरू कर सकते थे. भारत जोड़ो यात्रा के चलते ये तो है कि वो भारत में ही हैं और चर्चा में भी बने हुए हैं.
क्या ये यात्रा वाकई संघ और बीजेपी के खिलाफ है?
अगर भारत जोड़ो यात्रा संघ और बीजेपी के खिलाफ है तो तमिलनाडु और केरल में ये सब करने की क्या जरूरत थी? और अगर वास्तव में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या अमित शाह के खिलाफ है तो गुजरात, हिमाचल प्रदेश जैसे चुनाव क्षेत्रों से दूर क्यों रखा गया - और यूपी जैसे महत्वपूर्ण राज्य में सिर्फ रस्मअदायगी के इंतजाम भर क्यों प्लान किया गया?
तमिलनाडु में तो कांग्रेस की गठबंधन सहयोगी डीएमके की सरकार है. ऐसा भी नहीं कि राहुल गांधी कोई ऐसा करिश्मा करने जा रहे हैं जिसकी बदौलत डीएमके की जगह कांग्रेस नेतृत्व की भूमिका में आ जाएगी?
और केरल? केरल में 18 दिन गुजारने की आखिर क्या जरूरत रही? रणनीतिक हिसाब से सोचें तो केरल में लेफ्टका मजबूत रहना बीजेपी को रोकने में ही काम आएगा. वैसे भी ये यात्रा कोई केरल के 2026 के विधानसभा चुनावों के लिए तो हो नहीं रही - ये तो 2024 के आम चुनाव के मकसद से प्लान की गयी है.
2021 के विधानसभा चुनाव में तो राहुल गांधी ने मछुआरों के साथ नदी में नाव से छलांग लगाकर और अपनी फिटनेस का प्रदर्शन कर सारे शौक पूरे कर ही लिये थे. अगर नाव चलाने का शौक ही पूरा करना था तो बाद में भी थोड़ा समय निकाल कर घूमने जा सकते थे.
केरल में सत्ताधारी सीपीएम की तरफ से सवाल उठाया जाना तो वाजिब ही था. केरल में ही 18 दिन की यात्रा क्यों आयोजित की गयी? आपत्ति तो राहुल गांधी के मित्र समझे जाने वाले सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने भी सवाल उठाये थे. बाद में भले ही वो कुछ सोच समझ कर चुप रह गये हों.
गुजरात का मैदान किसके लिए छोड़ दिया गया?
ये सवाल भी शुरू से ही उठाये जा रहे हैं कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे चुनाव वाले राज्यों को भारत जोड़ो यात्रा के रूट से बाहर क्यों रखा गया? और ऐसे में ये समझाया जाये कि कर्नाटक में भी तो चुनाव होने ही हैं, लेकिन जब तक कर्नाटक में चुनाव होंगे, भारत जोड़ो यात्रा कश्मीर पहुंच कर खत्म हो चुकी होगी.
कर्नाटक का भी हाल यही है कि सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार भी अशोक गहलोत और सचिन पायलट की ही तरह लड़े जा रहे हैं. 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद तो वैसे भी कांग्रेस से बेहतर स्थिति में जेडीएस ही है. 2023 के लिए जेडीस का साथ कांग्रेस के लिए मददगार भी साबित हो सकता है.
देखा जाये तो हिमाचल प्रदेश से भी कांग्रेस के लिए मुफीद मैदान गुजरात का है. गुजरात से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी आते हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के एक सोशल मीडिया कैंपेन 'विकास पागल है' ने बीजेपी के छक्के छुड़ा दिये थे - और उस पर रोक लगवाने के लिए अमित शाह को सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मोर्चे पर उतारना पड़ा था.
क्या कांग्रेस के रणनीतिकारों को जरा भी एहसास नहीं हुआ कि अगर राहुल गांधी गुजरात में ज्यादा वक्त गुजारते तो कितना ज्यादा असर हो सकता था?
गुजरात को भारत जोड़ो यात्रा से बाहर रखने के मुद्दे पर जयराम रमेश के पास रेडीमेड जवाब पहले से तैयार होता है, '7 सितंबर को कन्याकुमारी से यात्रा शुरू करने के बाद गुजरात पहुंचते पहुंचते 90-95 दिन लग जाते - और तब तक गुजरात चुनाव खत्म भी हो जाते. चुनावों से पहले वहां पहुंचने का कोई रास्ता भी नहीं था. ठीक ऐसी ही वजह हिमाचल प्रदेश को लेकर भी रही.'
जयराम रमेश को कुछ न कुछ तो समझाना ही पड़ेगा - लेकिन जरूरत ही क्या थी भारत जोड़ो यात्रा कन्याकुमारी से शुरू करने की? क्या ये यात्रा गुजरात से ही नहीं शुरू की जा सकती थी?
ऐसा भी तो हो सकता था कि भारत जोड़ो यात्रा कई चरणों में पूरी की जाती - और पहला चरण गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे चुनावी राज्यों पर फोकस होता. फिर राजनीतिक महत्व के हिसाब से आने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए यात्रा चलती रहती. कोई जरूरी थोड़े ही है कि हर यात्रा में राहुल गांधी भी शामिल रहें ही. चुनावी राज्यों में वो हिस्सा लेते और दूसरे इलाकों में वहां के क्षेत्रीय नेताओं को नेतृत्व करने देते - आखिर में ये यात्रा उत्तर प्रदेश में आयोजित की जाती और ये सिलसिला 2024 तक यूं ही चलता रहता.
अब इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि जिस गुजरात में राहुल गांधी के कैंपेन से बीजेपी की हालत खराब हो गयी थी और आम आदमी पार्टी के सभी 29 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी थी. आम आदमी पार्टी का वैसा ही हाल कांग्रेस ने दिल्ली भी में भी किया था 2019 के आम चुनाव में. आज वही आम आदमी पार्टी कांग्रेस को किनारे कर बीजेपी को चैलेंज करने की कोशिश कर रही है - और राहुल गांधी पहले ही मैदान छोड़ कर भाग खड़े हुए हैं.
अव्वल तो ये होना चाहिये था कि ट्विटर पर और मीडिया के जरिये संघ, बीजेपी और मोदी-शाह से राहुल गांधी भी फील्ड में उतर कर वैसे ही लड़ते जैसे पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी योद्धा के रूप में नजर आ रही थीं. हर हथकंडा अपनाते हुए. हर जोखिम उठाते हुए.
ये तो सहूलियत की राजनीति ही लगती है
ये भी पांचवी क्लास में ही पढ़ा और समझा दिया जाता है कि ज्यादा मेहनत करने से, ज्यादा पसीना बहाने से फल अच्छा मिलता है. जाहिर है गुजरात में राहुल गांधी ज्यादा मेहनत करते और ज्यादा पसीना बहाते तो वैसे ही अच्छे और मीठे फल मिल सकते थे.
लेकिन ये तो लगता है वो केरल के अच्छे मौसम के मोहपाश में बहक गये. जब भारत जोड़ो यात्रा शुरू हुई उस वक्त वास्तव में गुजरात का मौसम गर्मी और उमस भरा होता, बनिस्बत केरल के मुकाबले.
ये तो मोदी के टाइम से ही कहा जाता रहा है कि कुछ दिन तो गुजारिये गुजरात में, लेकिन राहुल गांधी उसकी जगह सहूलियत भरा केरल चुन लेते हैं. केरल का मौसम गुजरात से तो अच्छा होगा ही. कुदरती माहौल भी बेहतरीन होगा.
अब कोई अगर एसी रूम वाली सुविधा फील्ड में भी ढूंढे तो उसे गुजरात छोड़ कर राजनीति तो केरल में ही करनी होगी. अच्छा है. वायनाड भी तो केरल में ही है. कुछ दिन और गुजार लेते केरल में ही.
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