कांग्रेस नेतृत्व बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Election 2020) को भी 2017 के गुजरात चुनाव की तरह ले रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष (Congress President) की कुर्सी संभालने से पहले गुजरात चुनाव में राहुल गांधी की सक्रियता को उनके लांच के तौर पर देखा गया था - और अब बिहार चुनाव उनके लिए री-लांच-पैड साबित हो सकता है.
कांग्रेस के भीतर एक बार फिर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के पक्ष में पहले की तरह ही माहौल तैयार करने की कोशिश हो रही है. तीन साल पहले ऐसा सैम पित्रोदा ने विदेशों में किया था - और राहुल गांधी गुजरात के मैदान में उतरे थे. सोनिया गांधी के संरक्षण और प्रियंका गांधी वाड्रा की निगरानी में बिहार चुनाव को लेकर भी वैसी ही रणनीति तैयार की गयी लगती है.
एक किताब में प्रियंका गांधी के इंटरव्यू के जरिये कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर राहुल गांधी के विचार से सहमति जताने के बाद इसमें तेजी आयी है. प्रियंका गांधी के इंटरव्यू पर बनी खबरों के बीच कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने राहुल गांधी की तुलना 2004 में सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद ठुकराने के फैसले से की थी. सुरजेवाला ने समझाने की कोशिश की कि 2019 में आम चुनाव के नतीजे आने के बाद राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ना भी करीब करीब वैसा ही फैसला रहा.
गुजरात से आने वाले कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्तिसिंह गोहिल भी उसे आगे बढ़ाते दिखे हैं. एक ऑनलाइन प्रेस कांफ्रेंस में शक्तिसिंह गोहिल ने दावा किया कि नेहरू-गांधी परिवार ने हमेशा बड़प्पन दिखाया है और निजी हितों से ऊपर पार्टी और देशहित को रखा है. सुरजेवाला ने तो अध्यक्ष पद ठुकराने में ही सोनिया से तुलना कर डाली है, जबकि गोहिल ने तो प्रधानमंत्री पद ठुकराने का किस्सा भी सुना डाला है. शक्तिसिंह गोहिल ने बताया है कि यूपीए 2 शासन के दौरान डॉक्टर मनमोहन सिंह ने स्वास्थ्य कारणों से राहुल गांधी के लिए प्रधानमंत्री पद छोड़ने की पेशकश की थी, लेकिन राहुल गांधी ऑफर ये कहते हुए ठुकरा दिया कि मनमोहन सिंह को अपना कार्यकाल पूरा करना...
कांग्रेस नेतृत्व बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Election 2020) को भी 2017 के गुजरात चुनाव की तरह ले रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष (Congress President) की कुर्सी संभालने से पहले गुजरात चुनाव में राहुल गांधी की सक्रियता को उनके लांच के तौर पर देखा गया था - और अब बिहार चुनाव उनके लिए री-लांच-पैड साबित हो सकता है.
कांग्रेस के भीतर एक बार फिर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के पक्ष में पहले की तरह ही माहौल तैयार करने की कोशिश हो रही है. तीन साल पहले ऐसा सैम पित्रोदा ने विदेशों में किया था - और राहुल गांधी गुजरात के मैदान में उतरे थे. सोनिया गांधी के संरक्षण और प्रियंका गांधी वाड्रा की निगरानी में बिहार चुनाव को लेकर भी वैसी ही रणनीति तैयार की गयी लगती है.
एक किताब में प्रियंका गांधी के इंटरव्यू के जरिये कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर राहुल गांधी के विचार से सहमति जताने के बाद इसमें तेजी आयी है. प्रियंका गांधी के इंटरव्यू पर बनी खबरों के बीच कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने राहुल गांधी की तुलना 2004 में सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद ठुकराने के फैसले से की थी. सुरजेवाला ने समझाने की कोशिश की कि 2019 में आम चुनाव के नतीजे आने के बाद राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ना भी करीब करीब वैसा ही फैसला रहा.
गुजरात से आने वाले कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्तिसिंह गोहिल भी उसे आगे बढ़ाते दिखे हैं. एक ऑनलाइन प्रेस कांफ्रेंस में शक्तिसिंह गोहिल ने दावा किया कि नेहरू-गांधी परिवार ने हमेशा बड़प्पन दिखाया है और निजी हितों से ऊपर पार्टी और देशहित को रखा है. सुरजेवाला ने तो अध्यक्ष पद ठुकराने में ही सोनिया से तुलना कर डाली है, जबकि गोहिल ने तो प्रधानमंत्री पद ठुकराने का किस्सा भी सुना डाला है. शक्तिसिंह गोहिल ने बताया है कि यूपीए 2 शासन के दौरान डॉक्टर मनमोहन सिंह ने स्वास्थ्य कारणों से राहुल गांधी के लिए प्रधानमंत्री पद छोड़ने की पेशकश की थी, लेकिन राहुल गांधी ऑफर ये कहते हुए ठुकरा दिया कि मनमोहन सिंह को अपना कार्यकाल पूरा करना चाहिये.
अब तक तो राहुल गांधी का स्टैंड यही रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर गांधी परिवार से बाहर का कोई व्यक्ति बैठना चाहिये, लेकिन राहुल गांधी ने भी अगर गांधी परिवार की इच्छा को देखते हुए मन बदल लिया है देखना है कि वो 2017 की तरह चुनाव प्रक्रिया पूरा होने के बाद ताजपोशी का कार्यक्रम रखते हैं या चुनाव की तारीखें घोषित होने से पहले ही?
बिहार चुनाव में राहुल गांधी की दिलचस्पी
ऐसे में जबकि चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा के लिए गाइडलाइन जारी की है, राहुल गांधी की सक्रियता बढ़ी हुई नजर आ रही है. राहुल गांधी की टीम बिहार के हर जिले में पहुंच चुकी है और सर्वे का काम शुरू हो चुका है. टीम के सदस्यों को पॉलिटिकल रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी गयी है जो सीधे राहुल गांधी को सौंपी जाएगी.
बताते हैं कि सर्वे के काम के लिए प्रोफेशनल लोगों को हायर किया गया है. माना जा रहा है कि सर्वे टीम की रिपोर्ट के आधार पर ही किसी भी पार्टी से चुनावी गठबंधन पर फैसला लिया जाएगा. अभी तक की स्थिति तो यही है कि कांग्रेस भी महागठबंधन में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के साथ बनी हुई है. जीतनराम मांझी तो अपनी पार्टी लेकर निकल चुके हैं लेकिन उपेंद्र कुशवाहा की तरफ से अभी ऐसी कोई अधिकृत जानकारी नहीं दी गयी है. बिहार कांग्रेस के नेताओं से राहुल गांधी ये भी कह चुके हैं कि महागठबंधन में सम्मानजनक सीटें मिलने पर ही चुनावी गठबंधन होगा, नहीं तो कांग्रेस अकेले मैदान में उतरने के बारे में सोचेगी. उधर, एनडीए में भी लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान भी ऐसे ही इशारे कर रहे हैं.
बिहार चुनाव को लेकर राहुल गांधी की दिलचस्पी पहले से ही देखी जा रही है, लेकिन ऐसा भी नहीं कि अमित शाह की डिजिटल रैली से भी पहले से. अमित शाह ने बिहार रैली जून में की थी और राहुल गांधी ने अगस्त की शुरुआत में. एक और फर्क रहा - अमित शाह ने बिहार के सभी विधानसभा क्षेत्रों के 72 हजार बूथ लेवल कार्यकर्ताओं से सार्वजनिक रूप से कनेक्ट हुए थे - और राहुल गांधी करीब 1 हजार कांग्रेस कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों से, लेकिन सार्वजनिक तौर पर नहीं.
शक्तिसिंह गोहिल ने ही राहुल गांधी के भाषण की जानकारी दी थी. शक्तिसिंह गोहिल के मुताबिक, राहुल गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कहा था कि वो सकारात्मक एजेंडे के साथ चुनाव में उतरना चाहते हैं. चूंकि बिहार की जनता बदलाव चाहती है, इसलिए कांग्रेस को विकल्प के तौर पर लोगों की बीच जाना है. हालांकि, तारीक अनवर जैसे नेताओें ने राहुल गांधी का ध्यान संगठन की स्थिति की तरफ भी दिलाया था. मकसद, ये अहसास कराना रहा कि आखिर किस बूते चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी हो रही है.
अब अगर 2019 के आम चुनाव के बाद से देश में हुए विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी की शिरकत की बात करें तो एक नयी तस्वीर तो सामने आ ही रही है. जो दिलचस्पी राहुल गांधी बिहार चुनाव को लेकर दिखाते लगते हैं, ऐसा इससे ठीक पहले के चार विधानसभा चुनावों में तो नहीं ही देखने को मिला है.
चुनाव प्रचार तो राहुल गांधी ने महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के लिए भी किया था, लेकिन फैसले सभी सोनिया गांधी ने लिये थे. महाराष्ट्र को लेकर तो शरद पवार की बातों से लगा कि न सिर्फ शिवसेना के साथ सत्ता को लेकर गठबंधन के मामले में बल्कि एनसीपी के साथ हुए चुनावी गठबंधन से भी राहुल गांधी दूर ही रहे थे.
झारखंड और दिल्ली चुनाव में भी राहुल गांधी ने रोड शो और रैली के लिए अपनी उपलब्धता के हिसाब से कार्यक्रम तय करने को कहा था. हां - जब चुनाव प्रचार करने पहुंचे तो विवादों से सुर्खियां खूब बटोरी. झारखंड में 'रेप इन इंडिया' और दिल्ली में मोदी के लिए 'डंडा मार' बयान को लेकर. झारखंड में तो कांग्रेस और हेमंत सोरेन के बीच चुनावी गठबंधन रहा, लेकिन दिल्ली में तो कांग्रेस अकेले मैदान में उतरी थी.
बिहार से आगे की भी तैयारी लगती है
अब समझने वाली बात ये है कि अगर राहुल गांधी बिहार विधानसभा चुनाव को भी गुजरात की तरह ही फील्ड एक्सपेरिमेंट के तौर पर ले रहे हैं तो उसके आगे पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि गुजरात के बाद भी ऐसा ही हुआ था. 2018 में पहले तो पूर्वोत्तर के राज्यों और कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हुए थे, लेकिन राहुल गांधी ने ज्यादा दिलचस्पी साल के आखिर में हुए विधानसभा चुनावों में ली थी. तब मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ सहित पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए थे और तीन राज्यों में कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब रही थी. हालांकि, तीनों में से ही मध्य प्रदेश में कांग्रेस ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ साथ बीजेपी के हाथों सत्ता गंवा भी चुकी है. मध्य प्रदेश की ही तरह राजनीतिक उथल पुथल तो हाल में राजस्थान में भी मची थी, लेकिन कांग्रेस की किस्मत से बीजेपी ने अंदरूनी गुटबाजी की वजह से हाथ खींच लिये.
बिहार के बाद 2021 में देश के 5 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और खास बात ये है कि उनमें केरल भी शामिल है. बीजेपी का ज्यादा जोर तो पश्चिम बंगाल पर है, लेकिन वायनाड से सांसद होने के चलते राहुल गांधी की केरल विधानसभा चुनाव में निश्चित तौर पर गहरी रुचि होगी. साथ ही, असम में राहुल गांधी के पास बीजेपी से बदला लेने का मौका भी रहेगा. 2016 में बीजेपी के सर्बानंद सोनवाल ने कांग्रेस से बगावत कर साथ आये हिमंता बिस्वा सरमा की मदद से बरसों से सत्ता पर काबिज तरुण गोगोई को शिकस्त दे डाली थी. फिलहाल तरुण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई भी राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाये जाने की मांग करने वाले कांग्रेस नेताओं में आगे आगे चल रहे हैं.
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