कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लंदन में दिए गए बयान पर पिछले हफ्ते से एक दिन भी संसद नहीं चल पाई. भारत में 'लोकतंत्र पर क्रूर हमले' के राहुल के बयान पर भाजपा हमलावर है. वह राहुल गांधी से बिना शर्त माफी की मांग कर रही है. भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने संसद में राहुल गांधी के खिलाफ विशेष समिति बनाकर उनकी सदस्यता खत्म करने की मांग की है. प्रश्न यह उठता है कि क्या ऐसे में किसी सांसद की सदस्यता जा सकती है? क्या है सांसद की सदस्यता खत्म करने का नियम? भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम 223 के तहत लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को पत्र लिखा है. क्या राहुल गांधी की सदस्यता खत्म की जा सकती है यह जानने के पहले यह जानना जरुर है कि पहले कब-कब आए ऐसे मामले जिसमें संसद सदस्य की सदस्यता जा सकती हैं? इसके आलावा राहुल की सदस्यता खत्म करने में भाजपा की चिंता क्या है? इसके लिए हमें विस्तार से जानना होगा .
सबसे पहले कि राहुल गांधी ने ब्रिटेन दौरे पर ऐसा क्या बोला, जिस पर हंगामा मचा है के जवाब में बताया जा रहा हैं कि राहुल गांधी इस साल फरवरी और मार्च में जब ब्रिटेन के दौरे पर गए थे तब राहुल ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में ‘लर्निंग टू लिसेन इन द 21st सेंचुरी’ कार्यक्रम में कहा था कि भारत में सभी स्वतंत्र एजेंसियों पर कब्जा हो गया है और इसी के चलते देश में लोकतंत्र खतरे में हैं.उन्होंने कहा था कि भारत में विपक्ष के साथ लोगों की आवाज दबाई जा रही है. चाहे संसद, न्यायालय, प्रेस या चुनाव आयोग हो, सभी पर किसी न किसी प्रकार से नियंत्रण किया जा चुका है.राहुल गांधी लंदन में ब्रिटिश सांसदों को संबोधित करते हुए कहा था कि संसद में काम कर रहे माइक्रोफोन को अक्सर विपक्ष के बोलने पर बंद कर दिया जाता है. यह सब उस समय कहा गया था जब राहुल गांधी कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में विजिटिंग फेलो के तौर पर पहुंचे थे. उन्होंने यहां से डेवलपमेंट स्टडी में 1995 में एमफिल किया था.
दूसरा सवाल यह है कि राहुल के बयान पर भाजपा को क्या आपत्ति है और उसकी मांग क्या है? के जवाब में बताया जाता है कि संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण 14 मार्च से शुरू हुआ था. सत्र के शुरू होते ही भाजपा ने कहा कि चूँकि राहुल गांधी ने यूरोप और अमेरिका में अपने बयानों से लगातार संसद और देश की गरिमा को धूमिल किया है.इसलिए भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह और पीयूष गोयल ने राहुल को देश से माफी मांगने को कहा. नड्डा ने कहा कि दुर्भाग्य की बात यह है कि कांग्रेस देश विरोधी गतिविधियों में शामिल हो गई है. जनता के बार-बार नकारे जाने के बाद राहुल गांधी इस देश विरोधी टूलकिट का एक परमानेंट हिस्सा बन गए हैं.
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा स्पीकर पत्र लिखा है कि ‘राहुल गांधी के आचरण को या तो विशेषाधिकार कमेटी या विशेष कमेटी की ओर से जांचे जाने की जरूरत है. इसके बाद सदन को विचार करना चाहिए कि क्या ऐसे सदस्य की सदस्यता खत्म कर देनी चाहिए ताकि संसद और अन्य लोकतांत्रिक संस्थानों की रक्षा की जा सके. उन्होंने लिखा कि यह स्पष्ट संदेश दिए जाने की जरूरत है कि आगे से कोई भी उच्च संस्थानों के गौरव और सम्मान से खिलवाड़ नहीं कर सके.’
अब सवाल यह उठता है कि आज तक सांसदों को सत्र से सस्पेंड के बारे में तो सुना था, क्या किसी सांसद की सदस्यता भी खत्म की जा सकती है? के बारे में जानकारों का कहना है कि सांसदों की सदस्यता भी खत्म की जा सकती है. संविधान में सदस्यता खत्म करने का कोई नियम नहीं है, लेकिन सदन प्रस्ताव करके किसी भी सदस्य की सदस्यता समाप्त कर सकता है. आजाद भारत के इतिहास में इसके 4 उदाहरण भी मिलते हैं. पहला आजादी के बाद अस्थाई संसद के सदस्य कांग्रेस नेता एचजी मुद्गल पर 1951 में संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने का आरोप लगा था. उस वक्त प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने मामले की जांच के लिए संसद में एक कमेटी बनाने का प्रस्ताव पारित कराया.कमेटी ने मुद्गल को दोषी पाया और उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई. हालांकि, संसद में प्रस्ताव आने से पहले ही मुद्गल ने इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद भी प्रस्ताव लाया गया था.
दूसरा साल 1976 में आपातकाल के दौरान सुब्रमण्यम स्वामी जन संघ के नेता थे और राज्यसभा सांसद थे. उस वक्त स्वामी पर देश-विरोधी प्रोपेगैंडा में शामिल होने और संसद और देश के महत्वपूर्ण संस्थानों को बदनाम करने के आरोप लगा.इसके बाद संसद में 10 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई. जांच के बाद कमेटी ने 15 नवंबर 1976 को स्वामी को दोषी बताते हुए राज्यसभा से निष्कासित कर दिया था. तीसरा साल 1978 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना का आरोप लगाया गया था. उन पर काम में बाधा डालने, कुछ अधिकारियों को धमकाने, शोषण करने और झूठे मुकदमे में फंसाने का आरोप था.इसके बाद संसद में साधारण प्रस्ताव के जरिए 20 दिसंबर 1978 को उनकी संसद सदस्यता खत्म कर दी गई थी. साथ ही सत्र चलने तक जेल भेजने का आदेश दिया गया था. हालांकि एक महीने बाद लोकसभा ने उनका निष्कासन वापस ले लिया था.व 26 दिसंबर 1978 को इंदिरा गांधी को जेल से रिहा किया गया था.
चौथा दिसंबर 2005 में एजजी मुद्गल जैसा मामला दोबारा सामने आया. एक टीवी चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में कई पार्टियों के 11 सांसद संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेते नजर आए. इसमें 10 लोकसभा और 1 राज्यसभा सांसद थे. सांसदों के काम को भ्रष्ट और अनैतिक बताया गया.लोकसभा ने कांग्रेस सांसद पवन कुमार बंसल के नेतृत्व में 5 सदस्यीय विशेष कमेटी बनाई. कमेटी में भाजपा के वी के मल्होत्रा, सपा के राम गोपाल यादव, सीपीआई-एम के मोहम्मद सलीम और डीएमके सी कुप्पुसामी शामिल थे. राज्यसभा में जांच सदन की एथिक्स कमेटी ने की.इसके बाद कमेटी ने लोकसभा में 38 पेज की रिपोर्ट पेश की. इसमें सांसदों को दोषी पाया गया. इसके बाद संसद में एक प्रस्ताव के जरिए इन 11 सांसदों की सदस्यता खत्म कर दी गई.
अब घूम फिर कर वही सवाल उठता है कि क्या मौजूदा मामले में राहुल की सदस्यता खत्म की जा सकती है? इसके जवाब में बताया जाता है कि अब तक जैसे उदाहरण सामने आए हैं उनसे ये साफ है कि अगर भाजपा की मांग पर लोकसभा अध्यक्ष विशेष कमेटी बनाकर जांच कराएं और यह कमेटी राहुल पर लगे आरोपों को सही पाती है तो सदन में एक प्रस्ताव पारित करके उनकी सदस्यता खत्म की जा सकती है.भाजपा का लोकसभा में बहुमत है इसलिए यह पार्टी के लिए कठिन काम नहीं है. हालांकि भाजपा के लिए इस मामले को आगे बढ़ाना एक राजनीतिक फैसला होगा. आगे के सवाल में हम इस राजनीतिक फैसले से भाजपा को होने वाले नुकसान और फायदे भी बताएंगे. एक संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि सदन सर्वोच्च है. सदन के पास विशेष कमेटी बनाने और उसके काम करने की शर्तें तय करने का पूरा अधिकार है.वहीं लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य का कहना है कि सदन एक प्रस्ताव के जरिए कमेटी बना सकती है. ये कमेटी आरोपों की जांच करके सजा की सिफारिश कर सकती है.
तो सस्पेंड करने का क्या कानून है के जवाब में बताया जाता है कि संसद और विधानसभा में जानबूझकर हंगामा और कमेंट करने या किसी कार्य में बाधा डालने वाले सांसदों को सस्पेंड किया जा सकता है. लोकसभा की रूल बुक 373 के तहत यदि लोकसभा स्पीकर को ऐसा लगता है कि कोई सांसद लगातार सदन की कार्रवाई बाधित कर रहा है तो वह उसे उस दिन के लिए सदन से बाहर कर सकता है. या बाकी बचे पूरे सेशन के लिए भी सस्पेंड कर सकते हैं. इसी तरह के प्रावधान विधानसभाओं की रूल बुक में भी है.विशेषाधिकार हनन के मामले में सदस्यों को निलंबित किया जा सकता है. इसमें सदन के अध्यक्ष की अनुमति से आरोपी सदस्य या सदस्यों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस लाया जाता है. उसके बाद आरोपी सदस्य को जवाब देने का मौका मिलता है. यदि कमेटी अपनी जांच में सदस्य को दोषी मानती है तो उसे अधिकतम पूरे सत्र के लिए निलंबित किया जा सकता है.
अब यह भी जानना होगा कि आखिर विशेषाधिकार है क्या है ?उसके जवाब में बताया जाता है कि आम लोगों से अलग सांसदों और विधायकों को कुछ विशेष अधिकार दिए जाते हैं ताकि वे बतौर सांसद या विधायक अपना काम कर सकें.सरकार, कोई व्यक्ति या संस्था और उनके साथी सांसद या विधायक भी काम में अड़चन पैदा न कर सके. जैसे संसद या विधानसभा परिसर से किसी सदस्य को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है. अगर किसी संसद सदस्य या बाहरी व्यक्ति या संस्था द्वारा इन अधिकारों का हनन किया जाता है तो वह सदन की अवमानना और विशेषाधिकार हनन के दायरे में आता है.
तो क्या राहुल के खिलाफ क्या विशेषाधिकार हनन का भी मामला है? के जवाब में बताया जाता है कि संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी और भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने राहुल को अडाणी मामले में विशेषाधिकार हनन नोटिस भेजा था. दरअसल, केरल के वायनाड से सांसद राहुल गांधी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री के अरबपति गौतम अडाणी के साथ संबंध हैं. राहुल गांधी पर लोकसभा के कामकाज के नियम 353 और 369 के उल्लंघन का आरोप है. नियम 353 के तहत जो सदन में मौजूद नहीं हो, उसके खिलाफ आरोप नहीं लगाए जा सकते, क्योंकि वह अपना बचाव नहीं कर सकता है.नियम 353 ही कहता है कि किसी सदस्य को किसी अन्य सदस्य के खिलाफ आरोप मढ़ने से पहले लोकसभा सचिवालय को बताना होता है और लोकसभा अध्यक्ष से अनुमति लेनी होती है.
वहीं नियम 369 के तहत कोई सदस्य सदन में कोई कागज दिखाए तो उसे उसकी सत्यता का प्रमाण पेश करना होता है.इस मामले में यदि कमेटी अपनी जांच में सदस्य को दोषी मानती है तो उसे अधिकतम पूरे सत्र के लिए निलंबित किया जा सकता है.सुभाष कश्यप कहते हैं कि किसी सदस्य ने विशेषाधिकार का हनन किया है या सदन की अवमानना हुई है या नहीं यह तय करने का अधिकार भी सदन को ही है. इसका राजनीतिक असर जो कुछ होगा, क्या भाजपा इसके लिए तैयार है? के बारे में जानकारों का कहना है कि सबसे बड़ा सवाल है कि क्या भाजपा वायनाड से सांसद राहुल की सदस्यता खत्म करवाना चाहती है. इस पर राजनीतिक जानकार कहते हैं कि पार्टी ऐसा करके राहुल पर दबाव बनाए रखना चाहती है.वहीं पार्टी के कई नेताओं को डर है कि सदस्यता खत्म होने से राहुल को जनता की सहानुभूति मिल सकती है. अभी लोकसभा चुनाव होने में सालभर का समय है. ऐसे में उप चुनाव में यदि राहुल वायनाड से दोबारा जीत जाते हैं तो यह भाजपा के लिए झटका होगा और लोगों में एक गलत राजनीतिक संदेश जाएगा.
पॉलिटिकल एक्सपर्ट राशिद किदवई कहते हैं कि मुझे लगता है कि कहीं न कहीं राजनीतिक रूप से भाजपा के रणनीतिकार राहुल गांधी को लार्जन दैन लाइफ इमेज बनाना चाहते हैं. ताकि 2024 का लोकसभा चुनाव मोदी बनाम राहुल गांधी हो. उसमें प्रथमदृष्टतया राहुल कमजोर नजर आते हैं. दूसरी बड़ी बात इससे विपक्ष की एकजुटता और एकता भी खतरे में आती है. क्योंकि विपक्षी दल जैसे तृणमूल कांग्रेस, जदयू और आप जैसी पार्टियां राहुल को अपना लीडर नहीं मानेंगे. ये भाजपा की मुराद पूरा होने जैसा होगा. ऐसे में भाजपा राहुल की लोकसभा सदस्यता खत्म करवाने का प्रयास कर सकती है.
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