राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पर लगता है लॉकडॉउन का असर अब हो रहा है. हाल फिलहाल राहुल गांधी जो भी बोल रहे हैं वे बातें लंबे आत्ममंथन का नतीजा लगती हैं. हालांकि, ऐसा ठीक ठीक समझने के लिए अगले साल होने जा रहे पंजाब चुनाव तक इंतजार करना पड़ सकता है.
अभी अभी की ही तो बात है. राहुल गांधी ने अपनी दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के देश में इमरजेंसी लागू करने के फैसले को गलत बताया था. क्या मालूम पंजाब में चुनावी माहौल तैयार होते होते राहुल गांधी 1984 के दिल्ली में हुए सिख दंगे और ऑपरेशन ब्लू स्टार को लेकर भी कुछ कहने का मन बना चुके हों. वैसे अब तक तो वो पूछे जाने पर भी ऐसे सवालों को ये कहते हुए टाल जाते हैं कि कांग्रेस की तरफ से पक्ष रखा जा चुका है.
अब तो राहुल गांधी कांग्रेस में यूथ पर फोकस करने के फैसले पर भी अफसोस जताने लगे हैं. राहुल गांधी के मुंह से ये सुनने के बाद उनके करीबी साथियों पर क्या गुजर रही होगी, आसानी से समझा जा सकता है - लेकिन राहुल गांधी के ऐसा बयान देने राजनीतिक संदेश भी समझना आवश्यक होगा.
एकबारगी तो लगता है ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम पर राहुल गांधी ने बुजुर्ग कांग्रेसियों के साथ साथ पार्टी छोड़ चुके नेताओं से कुछ कहना चाह रहे हैं. राहुल गांधी को सिंधिया ने तो जवाब दे ही दिया था, सीनियर कांग्रेस नेता पीसी चाको (PC Chacko) ने तो जवाबी मैसेज भी भेज दिया है - सीधे कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपने इस्तीफे के रूप में. वो भी तब जबकि राहुल गांधी केरल में कांग्रेस को सत्ता दिलाने के लिए मछुआरों के साथ पानी में छलांग लगाने से लेकर अमेठी के बहाने देश में उत्तर और दक्षिण के लोगों की समझ पर अपनी सोच शेयर करने का जोखिम तक उठा चुके हैं.
बीजेपी के मुकाबले सिंधिया के कांग्रेस में बेहतर स्थिति में होने और मुख्यमंत्री तक बन जाने को लेकर राहुल गांधी के बयान पर बीजेपी नेता नरोत्तम मिश्र ने सचिन पायलट का नाम याद दिलाया है. मध्य प्रदेश के गृह मंत्री ने राहुल गांधी को ये समझाने की कोशिश की है कि...
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पर लगता है लॉकडॉउन का असर अब हो रहा है. हाल फिलहाल राहुल गांधी जो भी बोल रहे हैं वे बातें लंबे आत्ममंथन का नतीजा लगती हैं. हालांकि, ऐसा ठीक ठीक समझने के लिए अगले साल होने जा रहे पंजाब चुनाव तक इंतजार करना पड़ सकता है.
अभी अभी की ही तो बात है. राहुल गांधी ने अपनी दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के देश में इमरजेंसी लागू करने के फैसले को गलत बताया था. क्या मालूम पंजाब में चुनावी माहौल तैयार होते होते राहुल गांधी 1984 के दिल्ली में हुए सिख दंगे और ऑपरेशन ब्लू स्टार को लेकर भी कुछ कहने का मन बना चुके हों. वैसे अब तक तो वो पूछे जाने पर भी ऐसे सवालों को ये कहते हुए टाल जाते हैं कि कांग्रेस की तरफ से पक्ष रखा जा चुका है.
अब तो राहुल गांधी कांग्रेस में यूथ पर फोकस करने के फैसले पर भी अफसोस जताने लगे हैं. राहुल गांधी के मुंह से ये सुनने के बाद उनके करीबी साथियों पर क्या गुजर रही होगी, आसानी से समझा जा सकता है - लेकिन राहुल गांधी के ऐसा बयान देने राजनीतिक संदेश भी समझना आवश्यक होगा.
एकबारगी तो लगता है ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम पर राहुल गांधी ने बुजुर्ग कांग्रेसियों के साथ साथ पार्टी छोड़ चुके नेताओं से कुछ कहना चाह रहे हैं. राहुल गांधी को सिंधिया ने तो जवाब दे ही दिया था, सीनियर कांग्रेस नेता पीसी चाको (PC Chacko) ने तो जवाबी मैसेज भी भेज दिया है - सीधे कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपने इस्तीफे के रूप में. वो भी तब जबकि राहुल गांधी केरल में कांग्रेस को सत्ता दिलाने के लिए मछुआरों के साथ पानी में छलांग लगाने से लेकर अमेठी के बहाने देश में उत्तर और दक्षिण के लोगों की समझ पर अपनी सोच शेयर करने का जोखिम तक उठा चुके हैं.
बीजेपी के मुकाबले सिंधिया के कांग्रेस में बेहतर स्थिति में होने और मुख्यमंत्री तक बन जाने को लेकर राहुल गांधी के बयान पर बीजेपी नेता नरोत्तम मिश्र ने सचिन पायलट का नाम याद दिलाया है. मध्य प्रदेश के गृह मंत्री ने राहुल गांधी को ये समझाने की कोशिश की है कि वो चाहें तो अशोक गहलोत की जगह सचिन पायलट को राजस्थान का मुख्यमंत्री बना कर भूल सुधार कर सकते हैं?
सवाल है कि क्या राहुल गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) का नाम लेकर वास्तव में सचिन पायलट को ही कोई मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं?
ऐसा तो नहीं कि राहुल गांधी किसी और को नहीं बल्कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही कोई खास संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं? या फिर सिंधिया और सचिन के नाम भर उछाले जा रहे हैं - ये संदेश गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल जैसे नेताओं के लिए है?
ये मैसेज सिर्फ सिंधिया के लिए तो नहीं लगता
राहुल गांधी हर फोरम का अलग अलग इस्तेमाल करते हैं. नियमित तौर पर कुछ न कुछ कहने के लिए वो अक्सर ट्विटर का ही इस्तेमाल करते हैं. बीच बीचे में मीडिया से मुखातिब होकर भी अपनी बातें शेयर करते रहते हैं. कुछ खास बात करनी हो तो रिकॉर्डेड या लाइव वीडियो की मदद लेते हैं - लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बातें कहने के लिए वो हमेशा ही युवा मंचों का ही इस्तेमाल करते हैं.
बीजेपी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर राहुल गांधी ने कोई पहली बार रिएक्ट नहीं किया है. सिंधिया के कांग्रेस छोड़ देने के बाद राहुल गांधी ने कहा था कि वो उनके कॉलेज के दिनों के सबसे क्लोज फ्रेंड थे - और इतना अधिकार रखते थे कि वो कभी भी उनके पास पहुंच सकते थे. बगैर किसी पूर्व अनुमति लिये भी.
जैसे राहुल गांधी ने अभी सिंधिया का नाम लेकर यूथ कांग्रेस को संदेश दिया है - और यूथ के बहाने बाकी कांग्रेसियों तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं, ठीक वैसे ही NSI की एक मीटिंग के जरिये सचिन पायलट को भी संदेश देने की कोशिश की थी. जुलाई, 2020 में राहुल गांधी को लेकर NSI की एक बैठक के अंदर से जो खबर आयी, साफ साफ लग रहा था कि कह रहे हों - जिसे जाना हे वो चला जाये, किसी को रोका नहीं जाएगा.
राहुल गांधी को लेकर उस खबर का NSI नेताओं की तरफ से आधिकारिक तौर खंडन भी किया गया था - और इस बार यूथ कांग्रेस की बातों को भी ऐसे ही झुठलाने की कोशिश चल रही है. असल बात जो भी हो, एक बात तो साफ है कि राहुल गांधी युवाओं के बीच काफी सहज महसूस करते हैं. और कुछ नहीं दे चेन्नई के स्टेला कॉलेज और हाल में उनके केरल के एक स्कूल का वीडियो देख सकते हैं. विदेशों में जब सैम पित्रोदा राहुल गांधी लिए ऐसे कार्यक्रम आयोजित करते हैं तो भी वो बेहद खुश देखे जा सकते हैं. माहौल देख कर तो ऐसा ही लगता जैसे न तो उनको कभी गुस्सा आता है, और न ही कभी वो अपने बयानों से भूकंप लाने जैसी बातें भी सोचते होंगे.
राहुल गांधी के बयान पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बड़ा ही नपा तुला बयान दिया है. सामान्य तौर पर सिंधिया जब भी बोलते हैं ज्यादा आक्रामक कांग्रेस नेता कमलनाथ पर ही रहते हैं और वैसे ही दिग्विजय सिंह पर भी. हालांकि, हाल ही में राज्य सभा में दोनों को एक दूसरे के प्रति बड़े ही आदर भाव व्यक्त करते देखने को मिला था.
दरअसल, राहुल गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी ज्वाइन करने के फैसले को गलत ठहराने की कोशिश की है. साथ ही, ऐसा भी लगता है जैसे राहुल गांधी खुद तो भूल सुधार की कोशिश कर ही रहे हैं, पुराने दोस्त सिंधिया से भी वैसी ही अपेक्षा है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, यूथ कांग्रेस की मीटिंग में राहुल गांधी ने पार्टी के प्रति युवा नेताओं को मोटिवेट करते हुए कहा था, ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में होते तो निश्चित रूप से मुख्यमंत्री बन सकते थे, लेकिन बीजेपी में जाकर वो बैकबेंचर बन कर रह गये हैं. अक्सर देखा गया है कि मध्य प्रदेश के कांग्रेस नेता ऐसा कोई भी मौका नहीं छोड़ते जब वो सिंधिया को बीजेपी नेताओं के साथ कहीं बैठे देखते हैं. कभी बताते हैं कि सिंधिया को मंच की जगह सामने ऑडिएंस में बिठाया जा रहा है तो कभी कुछ और आखिर में कटाक्ष जैसी भी कोई लाइन होती ही है - 'ये क्या हो गया महाराज?'
राहुल गांधी के बयान की खबर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा है, "जितनी चिंता राहुल गांधी को अब है, काश उतनी चिंता तब होती जब मैं कांग्रेस में था. इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं कहना है."
बात राहुल गांधी की है, इसलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इतना ही कहा है. अगर ऐसी बातें दिग्विजय सिंह या कमलनाथ की तरफ से कही गयी होतीं तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के शब्द ही नहीं भाव भी बिलकुल अलग होते.
खबरों के मुताबिक राहुल गांधी युवा कांग्रेसियों को समझाते हुए बताया कि वो उनसे कहे थे कि एक दिन वो मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन वो दूसरा रास्ता चुन लिये.
करीब साल भर पहले जब सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी तो राहुल गांधी ने कई बार दोहराया था कि उनको अपने फैसले पर अफसोस होगा. एक बार राहुल गांधी ने ये समझाने की भी कोशिश की कि उनका वहां मन नहीं लगेगा और इसकी वजह भी बतायी थी - मैं जानता हूं उनको.
एक बार फिर राहुल गांधी वैसी ही बातें करने लगे हैं. यूथ कांग्रेस के संबोधन से आयी खबर से ही मालूम होता है कि राहुल गांधी को पक्का यकीन है कि एक न एक दिन सिंधिया कांग्रेस में जरूर लौटेंगे.
राहुल गांधी को ये कहते भी सुना गया, 'आप लिख लीजिए... वो वहां कभी भी मुख्यमंत्री नहीं बन सकते - इसके लिए उन्हें यहां आना होगा.' बीजेपी में मुख्यमंत्री पद को लेकर जो पॉलिटिकल रिजर्वेशन कोटा है, उसके हिसाब से देखें तो राहुल गांधी काफी हद तक सही भी हैं. बाद में कोई अपवाद भले ही देखने सुनने को मिले, लेकिन अभी की तो यही हालत है.
ऐसा भी नहीं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को राहुल गांधी की तरफ से ऐसी कोई नयी जानकारी मिल रही हो, ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी ज्वाइन करने से पहले से ही ये बात जानते होंगे - कुछ कुछ वैसे ही जैसे फिलहाल ऐसी बातें पश्चिम बंगाल के नये बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी के मन में चल रहा होगा.
सिंधिया और शुभेंदु के ऐसा सोचने की बड़ी वजह तो असम वाले हिमंता बिस्व सरमा की मिसाल ही काफी रही होगी. देखा जाये तो बीजेपी ने हिमंता और सिंधिया दोनों का ही पूरा फायदा उठाने में कामयाब रही है - ये दोनों ही नेता हैं जिनकी बदौलत बीजेपी की असम और मध्य प्रदेश में सरकार बन सकी है. अब ऐसी ही उम्मीद बीजेपी नेतृत्व को पश्चिम बंगाल में शुभेंदु अधिकारी से भी है.
ये सब अभी चल ही रहा है कि विधानसभा चुनावी सरगर्मियों के बीच केरल से आने वाले कांग्रेस नेता पीसी चाको ने सोनिया गांधी के पास अपना इस्तीफा भेज दिया है. केरल में 6 अप्रैल को विधानसभा के लिए वोट डाले जाने वाले हैं और 2 मई को रिजल्ट आना है. हाल ही में खबर आयी थी कि एक महिला नेता सहित वायनाड के चार नेताओं ने इस्तीफा दे दिया था. राहुल गांधी फिलहाल केरल के वायनाड से ही सांसद हैं.
क्या ये घरवापसी का संदेश है
2019 के आम चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस नेता टॉम वडक्कन ने भी ऐसे ही इस्तीफा दे दिया था. तब उनको टिकट मिलने की उम्मीद भी रही लेकिन नहीं मिला और वो थोड़े नाराज भी हुए, लेकिन फिलहाल वो बीजेपी के प्रवक्ता हैं और केरल में RSS की मदद के लिए क्रिश्चियन फेस बने हुए हैं.
राहुल गांधी जिस तरह का संदेश, सिंधिया या फिर सचिन पायलट ही सही, के बहाने देने की कोशिश कर रहे हैं - क्या वो कर्नाटक में एसएम कृष्णा और यूपी में रीता बहुगुणा जोशी जैसे नेताओं तक पहुंच पा रहा होगा. यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार बनी तो रीता बहुगुणा को मंत्री भी बनाया गया था, लेकिन फिर 2019 में संसद पहुंचा कर पैदल ही कर दिया गया. अब जबकि सिंधिया को बीजेपी के लिए इतना सब करने के बाद भी मंत्री बनने के लिए इंतजार करना पड़ रहा है, रीता बहुगुणा क्या उम्मीद कर सकती हैं भला?
सिर्फ सिंधिया की बात ही नहीं, यूथ कांग्रेस के कार्यक्रम में राहुल गांधी ने एक और बड़ी बात कही है. अब तक तो यही समझा जाता रहा है कि राहुल गांधी युवा चेहरों को पार्टी में प्रमोट करने के पक्षधर रहे हैं, लेकिन अब तो वो इमरजेंसी की तरह ही अपनी सोच या उसके हिसाब से किये गये कामों को ही गलत बनाने लगे हैं.
यूथ कांग्रेस के ही कार्यक्रम में, ऐसी भी मीडिया रिपोर्ट हैं, राहुल गांधी ने माना है कि युवा चेहरों पर बहुत ज्यादा फोकस करना या उनको ज्यादा तवज्जो देना उनकी गलती थी.
राहुल गांधी ने 2017 में कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालते वक्त कहा था कि वो युवाओं के जोश और सीनियर कांग्रेस नेताओं के अनुभव को मिला कर इस्तेमाल करना चाहेंगे. हुआ ठीक उलटा. राहुल गांधी के करीबी युवा नेताओं की एक मजबूत ब्रिकेड ऐसी तैयार हो गयी कि कांग्रेस में सीनियर नेता उपेक्षित महसूस करने लगे. राजीव सातव जैसे नेता तो सोनिया गांधी की मौजूदगी में मनमोहन सिंह सरकार की खामियों की तरफ ध्यान दिलाने लगे थे.
कांग्रेस के G-23 नेताओं की नाराजगी भी राहुल गांधी के युवा ब्रिगेड से ही ज्यादा समझी जाती है, लेकिन राहुल गांधी का युवाओं को लेकर ऐसे पलटी मार जाना कांग्रेस में नया संघर्ष शुरू कर सकता है.
हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे तमाम राज्यों में गुटबाजी की वजह भी राहुल गांधी की युवा फोकस नीति ही रही है. जब तक अशोक तंवर हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, भूपेंद्र सिंह हुड्डा कभी चैन से नहीं बैठे. पंजाब में तो कैप्टन अमरिंदर सिंह राहुल गांधी के पसंदीदा प्रताप सिंह बाजवा से अध्यक्ष की कुर्सी छीन कर ही दम लिये. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी कांग्रेस इसीलिए छोड़ी. मुख्यमंत्री पद की कौन कहे, अगर उनके मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष भी बना दिया गया होता तो वो कांग्रेस में ही बने रहते और कमलनाथ सरकार भी नहीं गिरी होती. हिमंता बिस्व सरमा के कांग्रेस छोड़ने की वजह भी तो असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई का बढ़ता दबदबा ही रहा.
सवाल ये है कि आखिर राहुल गांधी ये सब कर क्यों रहे हैं?
2021 की शुरुआत में ही राहुल गांधी को फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने की खबरें आने लगी थीं. ऐसी भी खबर आयी कि कांग्रेस के बागी सीनियर नेता राहुल गांधी की दोबारा ताजपोशी में खलल डाल सकते हैं, लिहाजा कमलनाथ की सलाह पर G-23 नेताओं के साथ पैच-अप के मकसद से एक मीटिंग भी बुलायी गयी - वो मीटिंग कितनी असरदार रही अभी अभी जम्मू में गुलाम नबी आजाद की अगुवाई में पहुंचे नेताओं ने भगवा साफा बांध कर इशारा तो कर ही दिया है.
तो क्या राहुल गांधी अब बुजुर्ग कांग्रेसियों को खुश करने के लिए युवाओं को नाराज करने का जोखिम उठाने को तैयार हो गये हैं. जैसे दक्षिण भारत में वोट हासिल करने के लिए उत्तर भारती की नाराजगी मोल चुके हैं?
इन्हें भी पढ़ें :
Emergency के बाद कांग्रेस के किन-किन गुनाहों की माफी मांगेंगे राहुल गांधी?
राहुल गांधी का इमरजेंसी पर बयान बेवक्त की शहनाई बजाने जैसा
2020 में जोखिम उठाने वाले इन 5 नेताओं की उम्मीदें नये साल पर ही टिकी हैं
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.