नेशनल हेराल्ड केस के मद्देनजर सोनिया गांधी दूसरी बार प्रवर्तन निदेशालय (ED) के सम्मुख पेश हुई थीं. मामले क्योंकि पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया से जुड़ा है. तो राहुल गांधी समेत कांग्रेस पार्टी के नेताओं का आहत होना स्वाभाविक था. कांग्रेस इसे बदले की राजनीति कह कर सड़क पर है और विरोध प्रदर्शन कर रही है. सोनिया पर कांग्रेस के नेताओं का ये रुख, शांति व्यवस्था को प्रभावित न करे. इसलिए दिल्ली के विजय चौक पर राहुल गांधी को हिरासत में लिया गया. ध्यान रहे दिल्ली में कांग्रेस सांसदों ने प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ के विरोध में संसद परिसर से विजय चौक की ओर मार्च निकाला था. बात चूंकि राहुल गांधी की गिरफ़्तारी से जुडी है. तो इस पूरे मामले में जो चीज हमारा ध्यान आकषित करती है, वो है इंटरनेट पर वायरल राहुल गांधी की तस्वीर.
भले ही सड़क पर धरने पर बैठे राहुल गांधी की इस तस्वीर ने राजनीति के गलियारों में एक नयी बहस को पंख दे दिए हों. मगर सवाल ये है कि आखिर इस तस्वीर में खास क्या है? क्यों इस तस्वीर पर बात करना जरूरी है? तमाम प्रश्नों का उत्तर बस इतना है कि वायरल तस्वीर में जैसा अंदाज राहुल गांधी का वो दादी इंदिरा गांधी सरीखा है.
वायरल तस्वीर को देखकर एक सवाल और मन में आता है कि, क्या राहुल गांधी के लिए दादी जैसे पोज मार देना काफी है? इस सवाल का जवाब हम जरूर देंगे लेकिन उससे पहले हम जिक्र करेंगे 1977 की इंदिरा गांधी की उस तस्वीर का जिसके दम पर दिल्ली के विजय चौक पर राहुल गांधी ने अपनी राजनीति...
नेशनल हेराल्ड केस के मद्देनजर सोनिया गांधी दूसरी बार प्रवर्तन निदेशालय (ED) के सम्मुख पेश हुई थीं. मामले क्योंकि पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया से जुड़ा है. तो राहुल गांधी समेत कांग्रेस पार्टी के नेताओं का आहत होना स्वाभाविक था. कांग्रेस इसे बदले की राजनीति कह कर सड़क पर है और विरोध प्रदर्शन कर रही है. सोनिया पर कांग्रेस के नेताओं का ये रुख, शांति व्यवस्था को प्रभावित न करे. इसलिए दिल्ली के विजय चौक पर राहुल गांधी को हिरासत में लिया गया. ध्यान रहे दिल्ली में कांग्रेस सांसदों ने प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ के विरोध में संसद परिसर से विजय चौक की ओर मार्च निकाला था. बात चूंकि राहुल गांधी की गिरफ़्तारी से जुडी है. तो इस पूरे मामले में जो चीज हमारा ध्यान आकषित करती है, वो है इंटरनेट पर वायरल राहुल गांधी की तस्वीर.
भले ही सड़क पर धरने पर बैठे राहुल गांधी की इस तस्वीर ने राजनीति के गलियारों में एक नयी बहस को पंख दे दिए हों. मगर सवाल ये है कि आखिर इस तस्वीर में खास क्या है? क्यों इस तस्वीर पर बात करना जरूरी है? तमाम प्रश्नों का उत्तर बस इतना है कि वायरल तस्वीर में जैसा अंदाज राहुल गांधी का वो दादी इंदिरा गांधी सरीखा है.
वायरल तस्वीर को देखकर एक सवाल और मन में आता है कि, क्या राहुल गांधी के लिए दादी जैसे पोज मार देना काफी है? इस सवाल का जवाब हम जरूर देंगे लेकिन उससे पहले हम जिक्र करेंगे 1977 की इंदिरा गांधी की उस तस्वीर का जिसके दम पर दिल्ली के विजय चौक पर राहुल गांधी ने अपनी राजनीति चमकाने की नाकाम कोशिश की है.
1977 में करीब 11 सालों तक देश की प्रधानमंत्री रहने के बाद इंदिरा गांधी चुनाव हार गयीं. बाद में उन्हें सत्ता का दुरुपयोग करने के आरोप में सीबीआई द्वारा उनके घर से गिरफ्तार किया गया था. इंदिरा गांधी पर अपने आधिकारिक पद के दुरुपयोग के माध्यम से 104 वाहन प्राप्त करने का आरोप लगाया गया था.
जिक्र इंदिरा की उस तस्वीर का हुआ है तो बता दें कि इंदिरा विरोध में अपने घर के लॉन में बैठी थीं. लेकिन हमें इस बात को बखूबी समझना होगा कि इंदिरा के लॉन में बैठने और राहुल के विजय चौक पर बैठने में फर्क है.
अपने दौर में इंदिरा जहां गंभीर राजनीति करने के लिए जानी जाती थीं. तो वहीं राहुल गांधी का शुमार हालिया दौर के उन नेताओं में है जो राजनीति सिर्फ इस लिए कर रहे हैं क्योंकि वो उन्हें विरासत में मिली है. बतौर राजनेता राहुल गांधी को इस बात को समझना होगा कि धरने के नाम पर पोज देते हुए कहीं बैठ जाना वक़्त की जरूरत नहीं है.
कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इस बात को भी गांठ बांध लें कि हिंदुस्तान जैसे देश में राजनीति सिर्फ ढोने की चीज नहीं है. अगर वो वाक़ई राजनीति के नामपर देश सेवा के लिए गंभीर हैं तो दादी इंदिरा की तरह पोज देने भर से काम नहीं चलने वाला. उन्हें भी मुद्दों पर वैसे ही चोट करनी चाहिए जाइए अपने दौर में पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया.
बहरहाल जिस तरह देश की जनता ने राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी की नीतियों को सिरे से ख़ारिज किया है. राहुल कितना भी धरना दे दें. कितना भी इंदिरा गांधी बनने का स्वांग क्यों न रचा लें सच्चाई क्या है उसे देश जानता है. देखन दिलचस्प रहेगा कि अपनी गतिविधियों से राहुल गांधी लोगों की राय बदल पाते हैं या फिर उनका ये तमाशा आगे भी बदस्तूर जारी रहेगा?
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