पंजाब के मामले में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के फैसले का असर तो तात्कालिक तौर पर सामने आ ही गया था. नवजोत सिंह सिद्धू ने जिस जोश के साथ बताया कि वो दर्शानी घोड़ा नहीं, बल्कि ईंट से ईंट खड़काने वाले नेता हैं. बताते बताते सिद्धू ये भी बता गये कि अपने बारे में वो आलाकमान को पहले ही बता भी चुके हैं. राहुल गांधी के फैसले का दूरगामी असर क्या होगा - ये एबीपी न्यूज और सी-वोटर का सर्वे बता रहा है. राहुल गांधी के फैसले से ऐसे नतीजे आने की संभावना लग रही है जिससे कांग्रेस तो सत्ता से बाहर हो ही सकती है, पंजाब के लोगों को भी बहुमत की सरकार मिलती नजर नहीं आ रही है.
सर्वे में पंजाब चुनाव के बाद त्रिशंकु विधानसभा की संभावना लग रही है - और राहुल गांधी के लिए सोचने वाली बात ये है कि बहुमत के करीब कांग्रेस नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी पहुंचती लग रही है.
पंजाब में कुछ चीजें पहले से ही साफ साफ नजर आ रही हैं. बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन टूट जाने के कारण मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने चुनौती पेश करने वाला कोई बचा ही नहीं था. ले देकर एक मुश्किल किसान आंदोलन की आयी तो वो बड़ी चालाकी से पहले सपोर्ट किये. जब किसानों ने बंद की कॉल दी तो बोले कानून व्यवस्था को न बिगड़ने दें पुलिस कोई एक्शन नहीं लेगी. कोई केस दर्ज नहीं होगा - और फिर आहिस्ते से समझा बुझा कर दिल्ली बॉर्डर पर एक तरीके से भेज ही दिये. किसानों के गुस्से का पूरा फायदा उठाते आ रहे हैं. नतीजा ये हुआ कि किसानों के नाम पर मोदी कैबिनेट छोड़ने वाली हरसिमरत कौर और उनकी पार्टी अकाली दल को अभी तक कोई सही चुनावी रास्ता नहीं मिल सका है.
सर्वे को थोड़ा ध्यान से देखें तो चुनावी राज्यों में से कई जगह लोग प्रधानमंत्री पद के लिए पसंदीदा नेता के तौर पर राहुल गांधी के मुकाबले अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को तरजीह देते नजर आ रहे हैं. कुछ दिन पहले आये इंडिया टुडे कार्वी इनसाइट्स के सर्वे मूड ऑफ द नेशन से ये पैटर्न तो समझ में आ गया था कि अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी दोनों ही...
पंजाब के मामले में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के फैसले का असर तो तात्कालिक तौर पर सामने आ ही गया था. नवजोत सिंह सिद्धू ने जिस जोश के साथ बताया कि वो दर्शानी घोड़ा नहीं, बल्कि ईंट से ईंट खड़काने वाले नेता हैं. बताते बताते सिद्धू ये भी बता गये कि अपने बारे में वो आलाकमान को पहले ही बता भी चुके हैं. राहुल गांधी के फैसले का दूरगामी असर क्या होगा - ये एबीपी न्यूज और सी-वोटर का सर्वे बता रहा है. राहुल गांधी के फैसले से ऐसे नतीजे आने की संभावना लग रही है जिससे कांग्रेस तो सत्ता से बाहर हो ही सकती है, पंजाब के लोगों को भी बहुमत की सरकार मिलती नजर नहीं आ रही है.
सर्वे में पंजाब चुनाव के बाद त्रिशंकु विधानसभा की संभावना लग रही है - और राहुल गांधी के लिए सोचने वाली बात ये है कि बहुमत के करीब कांग्रेस नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी पहुंचती लग रही है.
पंजाब में कुछ चीजें पहले से ही साफ साफ नजर आ रही हैं. बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन टूट जाने के कारण मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने चुनौती पेश करने वाला कोई बचा ही नहीं था. ले देकर एक मुश्किल किसान आंदोलन की आयी तो वो बड़ी चालाकी से पहले सपोर्ट किये. जब किसानों ने बंद की कॉल दी तो बोले कानून व्यवस्था को न बिगड़ने दें पुलिस कोई एक्शन नहीं लेगी. कोई केस दर्ज नहीं होगा - और फिर आहिस्ते से समझा बुझा कर दिल्ली बॉर्डर पर एक तरीके से भेज ही दिये. किसानों के गुस्से का पूरा फायदा उठाते आ रहे हैं. नतीजा ये हुआ कि किसानों के नाम पर मोदी कैबिनेट छोड़ने वाली हरसिमरत कौर और उनकी पार्टी अकाली दल को अभी तक कोई सही चुनावी रास्ता नहीं मिल सका है.
सर्वे को थोड़ा ध्यान से देखें तो चुनावी राज्यों में से कई जगह लोग प्रधानमंत्री पद के लिए पसंदीदा नेता के तौर पर राहुल गांधी के मुकाबले अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को तरजीह देते नजर आ रहे हैं. कुछ दिन पहले आये इंडिया टुडे कार्वी इनसाइट्स के सर्वे मूड ऑफ द नेशन से ये पैटर्न तो समझ में आ गया था कि अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी दोनों ही राहुल गांधी के मुकाबले लोगों की पसंद के मामले में तेजी से ग्रो कर रहे हैं - ये बात अलग है कि ये सारे लोग आपस में भले ही होड़ लगा रहे हों, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आस पास भी नहीं पहुंच पा रहे हैं.
राहुल को पीछे छोड़ने वाले हैं केजरीवाल
सी-वोटर सर्वे के अनुसार पूरे भारत में प्रधानमंत्री पद के लिए लोगों की नंबर 1 पसंद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बने हुए हैं, लेकिन पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले लोग उनके मुकाबले अरविंद केजरीवाल को ज्यादा पसंद करते देखे गये हैं.
प्रधानमंत्री मोदी को पसंद करने वाले देश में 41 फीसदी लोग हैं - और अरविंद केजरीवाल को महज 7.5 फीसदी लोग ही अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री पद के लायक मान रहे हैं. पंजाब में इसका पूरा उलटा नजारा है और हो सकता है ये कृषि कानून को लेकर किसानों के गुस्से के चलते हो. पंजाब में नरेंद्र मोदी को जहां 12.4 फीसदी लोग प्रधानमंत्री के रूप में देखते रहना चाहते हैं, वहीं अरविंद केजरीवाल को पसंद करने वालों की तादाद, सर्वे के मुताबिक, 23.4 फीसदी बतायी जा रही है. मूड ऑफ द नेशन सर्वे में तो ये पाया गया कि साल भर में ही मोदी की लोकप्रियता 66 फीसदी से घट कर 24 फीसदी पर पहुंच गयी है. हालांकि, एक ताजा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति सहित दुनिया के तमाम नेताओं को पीछे छोड़ दिया है.
राहुल गांधी को भी राष्ट्रीय स्तर पर तो राहुल गांधी को भी अरविंद केजरीवाल के मुकाबले अब भी ज्यादा लोग पसंद कर रहे हैं. अरविंद केजरीवाल के के 7.5 फीसदी के मुकाबले राहुल गांधी 11.3 फीसदी लोगों की प्रधानमंत्री पद की पसंद बने हुए हैं - लेकिन पंजाब पहुंचते ही अरविंद केजरीवाल के 23.4 फीसदी के मुकाबले राहुल गांधी 4.9 फीसदी पर पहु्ंच जाते हैं.
मूड ऑफ द नेशन के ताजा सर्वे में भी थोड़ा सा ही सही लेकिन अरविंद केजरीवाल पर बढ़त बनाये देखे गये हैं. राहुल गांधी को जहां 10 फीसदी लोग अगले प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं वहीं अरविंद केजरीवाल को 8 फीसदी लोग ही अगले प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे देखना चाहते हैं.
अरविंद केजरीवाल और बराबरी में साथ साथ आगे बढ़ रहीं ममता बनर्जी को भी साल भर में चार गुणा लोकप्रियता हासिल करते पाया गया है. अगस्त, 2020 में केजरीवाल और ममता दोनों जहां 2 फीसदी लोगों की पसंद रहे, वहीं जनवरी, 2021 में 4 फीसदी और अभी अगस्त, 2021 में दोनों नेता 8 फीसदी लोगों की पसंद बन चुके हैं.
पंजाब की ही तरह उत्तराखंड में भी अरविंद केजरीवाल पंसद के मामले में राहुल गांधी को पीछे छोड़ते नजर आ रहे हैं - अरविंद केजरीवाल 14.9 फीसदी लोगों की पसंद बने हुए हुए जबकि राहुल गांधी 10.4 फीसदी पर पिछड़े हुए हैं. पंजाब और उत्तराखंड की ही तरह मणिपुर का भी वैसा ही हाल है - अरविंद केजरीवाल 14.1 फीसदी लोगों को भा रहे हैं, जबकि राहुल गांधी महज 7.9 फीसदी लोगों को. हालांकि, उत्तर प्रदेश में अरविंद केजरीवाल को राहुल गांधी थोड़े से ही अंतर से सही, लेकिन पीछे छोड़ रहे हैं.
और कांग्रेस को पछाड़ रही है AAP
उत्तर प्रदेश में भले ही, सर्वे के अनुसार, आम आदमी पार्टी का नामोनिशान नजर नहीं आ रहा हो, लेकिन पंजाब में बहुमत के करीब पहुंचने के साथ ही गोवा में को कांग्रेस को विपक्ष की नेता के पद से भी बेदखल करने की तैयारी में नजर आ रही है. सीटों के हिसाब से देखें तो अंतर मामूली ही लगता है, लेकिन एक सीट भी ज्यादा हो तो फर्क तो पड़ता ही है.
गोवा में आप को 4-8 सीटें मिलने की ही उम्मीद है, लेकिन कांग्रेस के हिस्से में 3-7 ही है - और ये फर्क ही आगे पीछे कर देता है. जैसे बिहार में आरजेडी और बीजेपी में फर्क दिखा - तेजस्वी यादव के नेतृत्व में 75 सीटें जीत कर आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी हो गयी और बीजेपी 74 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर फिसल गयी.
उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी के हिस्से में 0-4 सीटें ही बतायी जा रही हैं, लेकिन ये भी कांग्रेस को ही मिलतीं - और अगर चुनाव नतीजे आने पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों बहुमत के करीब पहुंचते हैं तो कांग्रेस की राह में रोड़ा तो अरविंद केजरीवाल ही बन रहे हैं.
अरविंद केजरीवाल के राजनीति में आने के शुरुआती दौर को छोड़ दिया जाये तो बाद के दिनों में कांग्रेस नेतृत्व हमेशा ही परहेज करता नजर आया है. यहां तक कि ममता बनर्जी के लगातार पैरवी करने के बाद भी - और हाल ही में जब सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों के नेताओं की वर्चुअल मीटिंग बुलायी थी तो भी ममता बनर्जी का जोर इसी बात पर रहा कि सबको साथ लेकर चला जाये.
सोनिया गांधी से पहले राहुल गांधी ने भी विपक्षी नेताओं की कई बार मीटिंग बुलायी थी और साथ में एक दिन जंतर मंतर और एक दिन विजय चौक तक मार्च भी किया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल की पार्टी दूरी बनाते ही नजर आयी. सोनिया गांधी की मीटिंग से पहले तो आप प्रवक्ता के कहने का अंदाज भी ऐसा ही रहा कि कांग्रेस हों या बीजेपी दोनों ही आम आदमी पार्टी के साथ अछूत जैसा व्यवहार करते हैं.
अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी से कांग्रेस नेतृत्व के परहेज की वजह भी पूरी तरह साफ है. ये अरविंद केजरीवाल ही हैं जो कांग्रेस को दिल्ली की सत्ता से बाहर किये - और 15 साल तक कांग्रेस की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को भी चुनावों में हरा डाले. ये 2014 से पहले की बात है. हालांकि, एक अपवाद ये भी है कि कांग्रेस ने ही पहली बार 2013 में अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने में सपोर्ट भी किया था. हो सकता है, तब बीजेपी को सरकार बनाने से रोकने के लिए कांग्रेस ने ऐसा किया हो, लेकिन तब तो दिल्ली में बीजेपी का नेतृत्व कर रहे डॉक्टर हर्षवर्धन ने ही साफ कर दिया था कि जोड़ तोड़ कर सरकार बनाने का उनका कोई इरादा नहीं है.
2019 के आम चुनाव के दौरान कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन की बात चली तो तत्कालीन दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित दीवार बन कर खड़ी हो गयीं. तब शीला दीक्षित की दलील थी कि चूंकि अरविंद केजरीवाल सत्ता विरोधी लहर के शिकार हो सकते हैं, कांग्रेस को भी गठबंधन की सूरत में नुकसान हो सकता है. आम चुनाव में तो शीला दीक्षित सही साबित हुईं क्योंकि कांग्रेस ने आप को तीसरे नबंर पर पहुंचा दिया था, लेकिन विधानसभा चुनाव में तो अरविंद केजरीवाल की जीत ने सारे अनुमान गलत साबित कर दिये.
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