देर से कहिये या बहुत देर से ही सही, लेकिन एक बात तो है कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) आखिरकार अपने आलोचकों के मुंह बंद कर ही देते हैं. पश्चिम बंगाल में राहुल गांधी का चुनावी दौरा तो किसी सरप्राइज से कम नहीं लगता.
राहुल गांधी जहां पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिले के गोलपोखर में चुनावी रैली किये वहीं उनकी चिर प्रतिद्वंद्वी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी वर्धमान दक्षिण में बीजेपी के एक रोड शो में हिस्सा ले रही थीं - और बाकी बातों के बीच कांग्रेस नेता पर भी कटाक्ष किया, 'सोया हुआ राजकुमार चुनाव खत्म होने के बाद ही तो जागेगा.'
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस नेतृत्व के चुनाव प्रचार को लेकर शुरू से ही सवाल उठ रहे थे. जाहिर है राहुल गांधी की रैली के बाद अब ऐसे सवाल उठने बंद हो जाएंगे. असल में राहुल गांधी तमिलनाडु, पुदुचेरी, केरल और असम में तो चुनाव प्रचार कर रहे थे, लेकिन पश्चिम बंगाल से दूरी बनाये हुए थे. यही हाल प्रियंका गांधी वाड्रा का रहा, जो असम में तो खूब चुनाव प्रचार कर रही थीं, लेकिन बंगाल की तरफ देखा तक नहीं.
अगर राहुल गांधी केरल, तमिलनाडु और असम चुनाव की वजह से पश्चिम बंगाल नहीं पहुंच पा रहे थे तो वहां तो चुनाव तीसरे चरण में 6 अप्रैल को ही खत्म हो गया. चौथे चरण का चुनाव पश्चिम बंगाल में 10 अप्रैल को हुआ था लेकिन उससे पहले भी राहुल गांधी का कोई कार्यक्रम नहीं बना.
कार्यक्रम बना भी तो पांचवें चरण के चुनाव प्रचार के आखिरी दिन. पश्चिम बंगाल में पांचवें चरण के लिए वोटिंग 17 अप्रैल को होनी है और सामान्य स्थिति में चुनाव प्रचार के लिए एक दिन और मौका मिलता, लेकिन चुनाव आयोग ने 48 घंटे की जगह 72 घंटे पहले ही चुनाव प्रचार रोक देने का फैसला लिया था.
राहुल गांधी का पश्चिम बंगाल में चुनाव कार्यक्रम हरिद्वार में कुंभ के शाही स्नान के दिन ही बन पाया - और कांग्रेस के लिए वो वोट भी वैसे ही मांग रहे थे जैसे कुंभ स्नान करने गये हों.
लेकिन पश्चिम बंगाल की रैली में राहुल गांधी ने जिस तरीके से ममता बनर्जी...
देर से कहिये या बहुत देर से ही सही, लेकिन एक बात तो है कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) आखिरकार अपने आलोचकों के मुंह बंद कर ही देते हैं. पश्चिम बंगाल में राहुल गांधी का चुनावी दौरा तो किसी सरप्राइज से कम नहीं लगता.
राहुल गांधी जहां पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिले के गोलपोखर में चुनावी रैली किये वहीं उनकी चिर प्रतिद्वंद्वी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी वर्धमान दक्षिण में बीजेपी के एक रोड शो में हिस्सा ले रही थीं - और बाकी बातों के बीच कांग्रेस नेता पर भी कटाक्ष किया, 'सोया हुआ राजकुमार चुनाव खत्म होने के बाद ही तो जागेगा.'
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस नेतृत्व के चुनाव प्रचार को लेकर शुरू से ही सवाल उठ रहे थे. जाहिर है राहुल गांधी की रैली के बाद अब ऐसे सवाल उठने बंद हो जाएंगे. असल में राहुल गांधी तमिलनाडु, पुदुचेरी, केरल और असम में तो चुनाव प्रचार कर रहे थे, लेकिन पश्चिम बंगाल से दूरी बनाये हुए थे. यही हाल प्रियंका गांधी वाड्रा का रहा, जो असम में तो खूब चुनाव प्रचार कर रही थीं, लेकिन बंगाल की तरफ देखा तक नहीं.
अगर राहुल गांधी केरल, तमिलनाडु और असम चुनाव की वजह से पश्चिम बंगाल नहीं पहुंच पा रहे थे तो वहां तो चुनाव तीसरे चरण में 6 अप्रैल को ही खत्म हो गया. चौथे चरण का चुनाव पश्चिम बंगाल में 10 अप्रैल को हुआ था लेकिन उससे पहले भी राहुल गांधी का कोई कार्यक्रम नहीं बना.
कार्यक्रम बना भी तो पांचवें चरण के चुनाव प्रचार के आखिरी दिन. पश्चिम बंगाल में पांचवें चरण के लिए वोटिंग 17 अप्रैल को होनी है और सामान्य स्थिति में चुनाव प्रचार के लिए एक दिन और मौका मिलता, लेकिन चुनाव आयोग ने 48 घंटे की जगह 72 घंटे पहले ही चुनाव प्रचार रोक देने का फैसला लिया था.
राहुल गांधी का पश्चिम बंगाल में चुनाव कार्यक्रम हरिद्वार में कुंभ के शाही स्नान के दिन ही बन पाया - और कांग्रेस के लिए वो वोट भी वैसे ही मांग रहे थे जैसे कुंभ स्नान करने गये हों.
लेकिन पश्चिम बंगाल की रैली में राहुल गांधी ने जिस तरीके से ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को निशाना बनाया - ऐसा लगता है जैसे वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ राष्ट्रीय राजनीति में ममता बनर्जी को अपना प्रतिद्वंद्वी मानने लगे हों.
बंगाल में राहुल गांधी का चुनाव अभियान
ये तो साफ हो गया कि राहुल गांधी ने केरल विधानसभा चुनाव को लेकर कोई जोखिम नहीं उठाया है. पश्चिम बंगाल चुनाव के प्रचार में राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ी समस्या यही समझी जा रही थी. आखिर वो कैसे समझाएंगे कि लेफ्ट की जिस विचारधारा के खिलाफ केरल में चुनाव लड़ रहे हैं, उसके साथ पश्चिम बंगाल में चुनावी गठबंधन क्यों किये हुए हैं.
पांचवें चरण की वोटिंग से पहले राहुल गांधी पश्चिम बंगाल पहुंचे और अपने जानी सियासी दुश्मन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को निशाना बनाया - और उसी प्रवाह में ममता बनर्जी को भी जितना हो सका लपेटने की कोशिश की.
राहुल गांधी के भाषण में कोई नयापन तो नहीं देखने को मिला, लेकिन मोदी-शाह के खिलाफ उनकी आक्रामक स्टाइल पश्चिम बंगाल को काफी सूट कर रही थी. राहुल गांधी के ज्यादातर निशाने पर तो प्रधानमंत्री मोदी और सीनियर बीजेपी नेता अमित शाह ही रहते हैं, चूंकि पश्चिम बंगाल की लड़ाई ममता बनाम मोदी-शाह हो चुकी है, इसलिए राहुल गांधी की अभिलाक्षणिक शैली कम से कम बंगाल में तो मिसफिट नहीं लगती. बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में किसी को भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाया है और प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ रही है. ऐसे में अगर राहुल गांधी ने मोदी-शाह को टारगेट किया तो भी ये नहीं कहा जा सकता कि वो विधानसभा चुनाव के हिसाब से राज्य से जुड़े मुद्दों की जगह राष्ट्रीय मसले पर ही फोकस रहे.
वैसे तो राहुल गांधी ने नोटबंदी और जीएसटी को लेकर भी प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोला ही - और आरएसएस और बीजेपी के खिलाफ अपने पुराने आरोप भी दोहराये, लेकिन उनका सबसे ज्यादा जोर बीजेपी नेतृत्व से खुद न डरने और बंगाल के लोगों को डराने पर ही रहा.
राहुल गांधी ने कहा कि अगर बंगाल में बीजेपी चुनाव जीती तो आग लगा देगी. बोले, 'बंगाल जलेगा, बंगाल की माताएं और बहनें रोएंगी - क्योंकि एक बार इन्होंने बंगाल को बांट दिया, फिर बंगाल में आग लगेगी उसको कोई नहीं रोक सकता है और ऐसी आग लगेगी कि बंगाल में उसको पहले किसी ने नहीं देखा होगा.'
राहुल गांधी ने अपनी बात मनवाने के लिए आरोप लगाया कि जैसे बीजेपी असम में तमिलनाडु में लोगों को बांटने का काम कर रही है, पश्चिम बंगाल में स्थिति वैसी ही भयावह हो सकती है.
बंगाल में राहुल गांधी ने ममता बनर्जी और मोदी-शाह को वैसे ही एक ही तराजू में तौलते हुए पेश किया जैसे बीएसपी नेता मायावती कांग्रेस और बीजेपी को पहले नागनाथ और सांपनाथ जैसे बताती रही हैं - ममता बनर्जी को लेकर राहुल गांधी ने जो बड़ी बात कही वो ये कि मोदी-शाह उनको तो नहीं लेकिन ममता बनर्जी को कंट्रोल कर सकते हैं.
ममता को लेकर राहुल गांधी के मन में क्या है?
राहुल गांधी और ममता बनर्जी एक दूसरे को कभी पसंद नहीं करते ये जगजाहिर है और बीते दिनों खास कर 2019 के आम चुनाव के वक्त के कई वाकये मिसाल हैं.
ममता बनर्जी की तरफ से भी कई बार ऐसे संकेत मिले हैं जिनसे मालूम होता है कि सोनिया गांधी से तो नहीं, लेकिन राहुल गांधी को वो अपने लेवल का नहीं मानती हैं. यहां तक कि प्रियंका गांधी को लेकर भी उनके मन में ऐसा कोई पूर्वाग्रह नहीं लगता. सोनभद्र के उभ्भा गांव में हुए नरसंहार के बाद जब प्रियंका गांधी वाड्रा पहुंची थीं तो ममता बनर्जी ने डेरेके ओ ब्रायन के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल भी भेजा था - और वापसी में प्रियंका गांधी वाड्रा और तृणमूल नेता की वाराणसी एयरपोर्ट पर जिस तरह से मुलाकात हुई, हाव-भाव भी यही बयां कर रहे थे.
राहुल गांधी को भी ममता बनर्जी के खिलाफ खुल कर बोलते कम ही सुना गया है. कभी कभार कुछ कहा भी है तो उतना ही जितने से राजनीतिक विरोध की रस्म अदा की जा सके, लेकिन पश्चिम बंगाल चुनाव में राहुल गांधी ने जिस तरह खुल कर बोला है, लगता है दिल की बात जबान पर आ गयी है.
राहुल गांधी ने कहा, 'हिंदुस्तान में नरेंद्र मोदी लोकतंत्र पर आक्रमण कर रहे हैं और यहां पर ममता जी कर रही हैं.'
अब तक लोकतंत्र पर हमले को लेकर राहुल गांधी के निशाने पर प्रधानमंत्री मोदी ही रहे हैं. कभी वो खुद को संसद तक में नहीं बोलने देने की बात करते हैं तो कभी संस्थाओं में संघ के लोगों को बिठाये जाने की बात करते हैं. संसद में न बोलने देने की बात राहुल गांधी ने बंगाल में भी दोहरायी.
राहुल गांधी ने ममता बनर्जी के साथ अपनी तुलना करते हुए जो बात कही वो ज्यादा महत्वपूर्ण लगती है - और उसके निहितार्थ दूर तक समझ आते हैं. अभी तक राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने किसी को अपनी बराबरी में खड़े होने की बात नहीं कही थी.
राहुल गांधी ने पूछा कि बीजेपी और मोदी हमेशा कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं, लेकिन कभी टीएमसी मुक्त भारत जैसी बातें सुनी है?
फिर राहुल गांधी ने समझाया कि तृणमूल कांग्रेस महज एक संगठन है और कांग्रेस एक संगठन होने के साथ साथ विचारधारा है. कांग्रेस की तुलना में राहुल गांधी ने बीजेपी और संघ को भी एक विचारधारा और उसी विचारधारा से अपनी लड़ाई बतायी, लेकिन ममता बनर्जी की पार्टी को कमतर करके पेश करने की पूरी कोशिश की.
क्या राहुल गांधी के इस बयान के पीछे ममता बनर्जी की कोई फ्यूचर पोजीशन हो सकती है?
राहुल गांधी और कांग्रेस में ये धारणा तो नहीं बन रही है कि पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद नतीजे जो भी हों, मोदी विरोध की प्रमुख आवाज ममता बनर्जी बन सकती हैं. अब तक ये अघोषित पोजीशन राहुल गांधी ने खुद अख्तियार कर रखी है.
राहुल गांधी ने ये भी बताया कि मोदी-शाह से वो क्यों नहीं डरते. राहुल गांधी ने इसकी वजह बतायी कि क्योंकि वो कभी कोई गलत काम नहीं किये इसलिए वो नहीं डरते.
राहुल गांधी का कहना रहा कि मोदी-शाह मिलकर ममता बनर्जी को तो कंट्रोल कर सकते हैं लेकिन उनको कभी नहीं - सवाल है कि राहुल गांधी के इस बयान के क्या मायने हो सकते हैं?
राहुल गांधी खुद को पाक साफ बताते हुए आखिर ममता बनर्जी को लेकर क्या इशारा करना चाहते हैं?
क्या इशारों इशारों में राहुल गांधी भी ममता बनर्जी पर बीजेपी के भ्रष्टाचार के आरोपों पर मुहर लगाने की कोशिश कर रहे हैं और इसीलिए आशंका जता रहे हैं कि मोदी-शाह मिल कर ममता बनर्जी को कंट्रोल कर सकते हैं.
ऐसा तो अभी तक मायावती और मुलायम सिंह यादव को लेकर ही माना जाता रहा है - और इस मामले में केंद्र में चाहे यूपीए का शासन हो या एनडीए का यूपी के दोनों कद्दावर नेताओं के प्रति एक जैसा ही रुख अख्तियार करते समझा जाता रहा है. मायावती और मुलायम पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उनके राजनीतिक विरोधी कहते आये हैं कि दोनों को केंद्र की सत्ताधारी पार्टी जांच एजेंसियों के जरिये इशारों पर नचाती रही है.
ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल को लेकर तो अब तक यही मान्यता रही है कि उनकी बड़ी ही मजबूत और इमानदार इमेज रही इसलिए सीधे सीधे वे कभी जांच एजेंसियों के रडार पर नहीं आ पाते, फिर भी राहुल गांधी को क्यों लगता है कि मोदी-शाह ममता बनर्जी को कंट्रोल कर लेंगे?
राहुल गांधी ने बीजेपी की तरह ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन ये जरूर कहा कि पश्चिम बंगाल इकलौता ऐसा राज्य है जहां आपको नौकरियां पाने के लिए ‘कट मनी’ देनी पड़ती है.
राहुल गांधी ने एक और फर्क बताया कि कांग्रेस का कभी बीजेपी से समझौता नहीं हो सकता जबकि अतीत में ममता बनर्जी ने ऐसा कर चुकी हैं. ममता बनर्जी ने अपनी राजनीतिक राह तो कांग्रेस छोड़ कर ही बनायी है, लेकिन यूपीए से पहले वो वाजपेयी सरकार के दौरान एनडीए का हिस्सा रही हैं - और केंद्रीय मंत्री भी. राहुल गांधी का इशारा इसी तरफ था और वो समझाने की कोशिश कर रहे थे कि हालात बदले तो ममता बनर्जी भी नीतीश कुमार की तरह घर वापसी जैसे फैसले ले सकती हैं, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ऐसा नहीं कर सकता.
लब्बोलुआब तो यही लगा कि राहुल गांधी खुद को संघ, बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ विरोध की लड़ाई में ममता बनर्जी से ऊपर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं - कहीं ऐसा तो नहीं कि ममता बनर्जी को राहुल गांधी विपक्ष की राजनीति में अपना प्रतिद्वंद्वी मानने लगे हैं?
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