कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने अपनी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा सन 1975 में लगाई गई इमरजेंसी को अंततः गलत बताया है. पर उन्हें तो कांग्रेस के और नेहरु-गांधी खानदान के न जाने और भी कितने गुनाहों के लिए देश की जनता से माफी मांगनी होगी. काश, राहुल गांधी ने इमरजेंसी के साथ ही स्वर्ण मंदिर में टैंक चलाने की कार्रवाई को भी गलत करार दिया होता. तब देश की प्रधानमंत्री उनकी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी ही थीं. उन्होंने 5 जून 1984 को एक बेहद खतरनाक फैसला लिया. उनके फैसले से देश का एक राष्ट्र भक्त सिख समाज का एक बड़ा भाग हमेशा के लिए देश की मुख्यधारा से अलग हो गया. उन्होंने देश और दुनिया के करोड़ों सिखों की भावनाओं को आहत किया. उस मनहूस दिन भारतीय सेना अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में भेजी गई. वहां पर सेना के टैंक चलने लगे. उस एक्शन को ऑपरेशन ब्लू स्टार कहा गया. इस एक्शन से पूरा देश सन्न था. इंदिरा गांधी की ज़िद्द से सिख समाज को देश का शत्रु मान लिया गया था. उस एक्शन के दूरगामी नतीजे सामने आए. देशभर में हजारों सिख भाईयों, बहनों, बच्चों तक को दौड़ा-दौड़ा कर कत्लेआम किया गया. सिख इंदिरा गांधी से नाराज हो गए क्योंकि उन्होंने ही सैन्य कार्रवाई के आदेश दिए थे.
क्या स्वर्ण मंदिर में सैन्य कार्रवाई के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था? मुझे याद है, जब मैंने आकाशवाणी से महान समाचार वाचक देवकीनंदन पांडे को सुना कि भारतीय सेना स्वर्ण मंदिर में घुस गई है. तब ही मन में तरह-तरह के बुरे विचार आने लगे थे. वे आगे चलकर सही साबित हुए. क्या राहुल गांधी कभी कहेंगे-मानेंगे कि उनकी दादी ने स्वर्ण मंदिर में सेना को भेजकर गलत किया था. भारतीय सेना के...
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने अपनी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा सन 1975 में लगाई गई इमरजेंसी को अंततः गलत बताया है. पर उन्हें तो कांग्रेस के और नेहरु-गांधी खानदान के न जाने और भी कितने गुनाहों के लिए देश की जनता से माफी मांगनी होगी. काश, राहुल गांधी ने इमरजेंसी के साथ ही स्वर्ण मंदिर में टैंक चलाने की कार्रवाई को भी गलत करार दिया होता. तब देश की प्रधानमंत्री उनकी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी ही थीं. उन्होंने 5 जून 1984 को एक बेहद खतरनाक फैसला लिया. उनके फैसले से देश का एक राष्ट्र भक्त सिख समाज का एक बड़ा भाग हमेशा के लिए देश की मुख्यधारा से अलग हो गया. उन्होंने देश और दुनिया के करोड़ों सिखों की भावनाओं को आहत किया. उस मनहूस दिन भारतीय सेना अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में भेजी गई. वहां पर सेना के टैंक चलने लगे. उस एक्शन को ऑपरेशन ब्लू स्टार कहा गया. इस एक्शन से पूरा देश सन्न था. इंदिरा गांधी की ज़िद्द से सिख समाज को देश का शत्रु मान लिया गया था. उस एक्शन के दूरगामी नतीजे सामने आए. देशभर में हजारों सिख भाईयों, बहनों, बच्चों तक को दौड़ा-दौड़ा कर कत्लेआम किया गया. सिख इंदिरा गांधी से नाराज हो गए क्योंकि उन्होंने ही सैन्य कार्रवाई के आदेश दिए थे.
क्या स्वर्ण मंदिर में सैन्य कार्रवाई के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था? मुझे याद है, जब मैंने आकाशवाणी से महान समाचार वाचक देवकीनंदन पांडे को सुना कि भारतीय सेना स्वर्ण मंदिर में घुस गई है. तब ही मन में तरह-तरह के बुरे विचार आने लगे थे. वे आगे चलकर सही साबित हुए. क्या राहुल गांधी कभी कहेंगे-मानेंगे कि उनकी दादी ने स्वर्ण मंदिर में सेना को भेजकर गलत किया था. भारतीय सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल तत्कालीन वाइस चीफ एसके सिन्हा ने एक बार कहा था, 'काश ! मैडम गांधी ने मेरी बात को मान लिया होता तो स्वर्ण मंदिर में सेना की कार्रवाई की जरूरत ही नहीं पड़ती.'
उन्होंने कहा था 'श्रीमती गांधी ने सैनिक कार्रवाई से पहले उन्हें घर पर बुलाया. कहा कि भिंडरावाले का उत्पात बढ़ गया है. शांत करना ही होगा. वे ग़ुस्से में थीं. वे अपनी योजनायें बताती गई और मैं सुनता गया. कुछ मिनट बाद उन्होंने मेरी तरफ़ देखकर पूछा कि कुछ सुना आपने या नहीं? मैंनें कहा कि सबकुछ सुन लिया, लेकिन, आप यह बताइए कि आप चाहती क्या है? भिंडरावाले को ज़िन्दा या मुर्दा पकड़ना या सिखों के आस्था के केन्द्र अकाल तख़्त को ध्वस्त करना? उन्होंने कहा, कि मैं जो कह रही हूं वही करिए चौबीस घंटे के अन्दर.
मैंने कहा कि चौबीस घंटे तो नहीं एक सप्ताह दें तो मैं बिना अकाल तख़्त को क्षतिग्रस्त किये हुए ही यह कार्य एक सप्ताह में सम्पन्न करवा दूंगा. वह कैसे? मैंने कहा कि भिंडरावाले के गिरोह के पास खाने पीने का पर्याप्त सामान नहीं है. शौचालय के लिये भी वे बाहर ही के शौचालयों का प्रयोग करते हैं. यदि हम चारों तरफ़ से अकाल तख़्त को घेरकर बिजली, पानी बंद कर देंगें तो वे किसी भी हालात में एक सप्ताह से ज़्यादा टिक नहीं पायेंगें और बिना किसी ज़्यादा ख़ून खराबा के सभी समर्पण कर देंगे. जनरल सिन्हा की बात को सुनकर उन्होंने कहा, 'आप जा सकते है.'
सबको पता है कि उसके बाद उन्होंने जनरल वैद्य की निगरानी में ऑपरेशन करवाया और प्रतिक्रिया में जो कुछ भी हुआ उसमें श्रीमती गांधी और जनरल वैद्य दोनों की ही जान गई. क्या राहुल गांधी अपनी दादी के गुनाह के लिए भी देश से कभी माफी मांगेंगे? अफसोस कि उस एक्शन के बाद इंदिरा गांधी की 31 अक्तूबर 1984 को हत्या हुई. उससे अगर देश स्तब्ध था तो देश ने यह भी देखा था कि कांग्रेस के गुंडे मवाली किस तरह से इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों को मार या मरवा रहे हैं.
राहुल गांधी जिस कांग्रेस के नेता हैं उसी कांग्रेस के कई असरदार नेताओं की देखरेख में हजारों सिखों का कत्लेआम हुआ. दिल्ली में सज्जन कुमार, एचकेएल भगत, धर्मदास शास्त्री, कमलनाथ सरीखे नेता सिख विरोधी दंगों खुल्लमखुल्ला भड़का रहे थे. अब तो सज्जन कुमार दिल्ली की मंडोली जेल में उम्र कैद की सज़ा काट रहे हैं. राहुल गांधी बीच-बीच में भारत की विदेश नीति की मीनमेख निकालते हैं. वे बता दें कि क्या उनके पिता राजीव गांधी को देश के प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भारतीय सेना को श्रीलंका में भेजना चाहिए था?
क्या भारत का अपने किसी पड़ोसी देश में सेना भेजना सही माना जा सकता है? श्रीलंका में शांति की बहाली के लिए भेजी गई भारतीय सेना ने अपने मिशन में 1,157 जवान खोए थे. ये सब वीर राजीव गांधी की लचर विदेश नीति का शिकार हुए. उस मिशन के बाद भारत और श्रीलंका के तमिल भी राजीव गांधी के दुश्मन हो गए. इसी के चलते राजीव गांधी की 1991 में हत्या भी हुई. गुप्तचर रिपोर्ट थी कि राजीव गांधी को सलाह दी गई थी कि वे तमिलनाडु न जायें. उनपर आत्मघाती हमला हो सकता है.
तमिलनाडु के तत्कालीन राज्यपाल डा. भीष्मनारायण सिंह जी ने स्वयं राजीव गांधी जी को फोन कर कहा था कि वे तमिलनाडू न आएं. लेकिन, उनकी ज़िद उन्हें मौत के क़रीब ले गई. यही है राहुल जी के परिवार का चरित्र और इतिहास राहुल जी, अभी तो बात शुरू हुई है. क्या आपको पता है कि 2 और 3 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री में जहरीली गैस के रिसने के कारण हजारों मासूम लोग मारे गए थे. हजारों ही हमेशा के लिए अपंग भी हो गए थे. उस समय केन्द्र और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकारें थीं.
क्या आपको पता है कि यूनियन कार्बाइड के चेयरमेन वारेन एंडरसन 7 दिसंबर 1984 को भोपाल आए थे. उन्हें गिरफ्तार करने की जगह उन्हें देश से बाहर भेज दिया गया. यह काम मध्य प्रदेश के तब के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और केन्द्रीय गृह मंत्री पीवी नरसिंह राव की मिली भगत से राजीव गाँधी के स्पष्ट निर्देश पर ही हुआ होगा. इतनी त्रासद घटना के बाद भी पीड़ितों को दशकों गुजर जाने के बाद भी तारीखों पर तारीखें मिलती रही थीं कोर्ट से. तो यह है आपकी कांग्रेस के कुछ पाप. हैं तो सैकड़ों पर नेहरु के कारनामों पर तो एक पूरी पुस्तक ही लिखी जा सकती है.
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