दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में जीती तो आम आदमी पार्टी है, लेकिन खुशी की मात्रा कांग्रेस में भी कम नहीं है. अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को कांग्रेस नेता ताबड़तोड़ बधाई देते जा रहे हैं. राहुल गांधी के ट्वीट के बाद सोनिया गांधी (Rahul Gandhi and Sonia Gandhi) ने फोन कर अरविंद केजरीवाल को बधायी दी है.
ये अरविंद केजरीवाल ही हैं जिन्होंने दिल्ली से कांग्रेस का पत्ता साफ कर लगाातार दूसरी बार खाता तक नहीं खोलने दिया है. ये अरविंद केजरीवाल ही हैं जो राजनीति में आते ही कांग्रेस की 15 साल से मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को उनके इलाके में चुनाव लड़ कर हरा दिया. फिर भी कांग्रेस की खुशी छुपाये नहीं छुप रही है - क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और गृह मंत्री अमित शाह के जुटे रहने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में दोबारा हार गयी है.
वैसे ये कांग्रेस ही रही जिसने 2013 में महज सीटों पर सिमट जाने के बावजूद सरकार बनाने में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का सपोर्ट किया था. ये बात अलग है कि अरविंद केजरीवाल की सरकार की उम्र सिर्फ 49 दिनों में ही पूरी हो गयी और इस्तीफा देकर केजरीवाल चलते बने थे.
बाकी बातें अपनी जगह, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व को लगता है ये समझ में नहीं आ रहा है कि आप नेता अरविंद केजरीवाल की भारी जीत राहुल गांधी के लिए नये सिरे से मुसीबत खड़ी करने वाली है.
मोदी से पहले केजरीवाल से भिड़ना होगा!
दिल्ली चुनाव के लिए तबीयत खराब होने के चलते सोनिया गांधी तो कांग्रेस के लिए प्रचार नहीं कर पायीं, लेकिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा साझा कैंपन जरूर किये. दोनों भाई बहन चुनाव प्रचार तो दिल्ली के लिए कर रहे थे, लेकिन राहुल गांधी जहां अपने पसंदीदा मोदी अटैक में मशगूल दिखे, वहीं प्रियंका गांधी के निशाने पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रहे. ऐसे समझें कि दिल्ली में आप सरकार के खिलाफ चुनाव प्रचार की जगह कांग्रेस के दोनों नेता अपने अपने काम में लगे थे. राहुल गांधी को...
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में जीती तो आम आदमी पार्टी है, लेकिन खुशी की मात्रा कांग्रेस में भी कम नहीं है. अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को कांग्रेस नेता ताबड़तोड़ बधाई देते जा रहे हैं. राहुल गांधी के ट्वीट के बाद सोनिया गांधी (Rahul Gandhi and Sonia Gandhi) ने फोन कर अरविंद केजरीवाल को बधायी दी है.
ये अरविंद केजरीवाल ही हैं जिन्होंने दिल्ली से कांग्रेस का पत्ता साफ कर लगाातार दूसरी बार खाता तक नहीं खोलने दिया है. ये अरविंद केजरीवाल ही हैं जो राजनीति में आते ही कांग्रेस की 15 साल से मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को उनके इलाके में चुनाव लड़ कर हरा दिया. फिर भी कांग्रेस की खुशी छुपाये नहीं छुप रही है - क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और गृह मंत्री अमित शाह के जुटे रहने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में दोबारा हार गयी है.
वैसे ये कांग्रेस ही रही जिसने 2013 में महज सीटों पर सिमट जाने के बावजूद सरकार बनाने में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का सपोर्ट किया था. ये बात अलग है कि अरविंद केजरीवाल की सरकार की उम्र सिर्फ 49 दिनों में ही पूरी हो गयी और इस्तीफा देकर केजरीवाल चलते बने थे.
बाकी बातें अपनी जगह, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व को लगता है ये समझ में नहीं आ रहा है कि आप नेता अरविंद केजरीवाल की भारी जीत राहुल गांधी के लिए नये सिरे से मुसीबत खड़ी करने वाली है.
मोदी से पहले केजरीवाल से भिड़ना होगा!
दिल्ली चुनाव के लिए तबीयत खराब होने के चलते सोनिया गांधी तो कांग्रेस के लिए प्रचार नहीं कर पायीं, लेकिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा साझा कैंपन जरूर किये. दोनों भाई बहन चुनाव प्रचार तो दिल्ली के लिए कर रहे थे, लेकिन राहुल गांधी जहां अपने पसंदीदा मोदी अटैक में मशगूल दिखे, वहीं प्रियंका गांधी के निशाने पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रहे. ऐसे समझें कि दिल्ली में आप सरकार के खिलाफ चुनाव प्रचार की जगह कांग्रेस के दोनों नेता अपने अपने काम में लगे थे. राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनना है इसलिए PM मोदी पर फोकस रहे और प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता दिलानी है इसलिए योगी आदित्यनाथ की सरकार पर हमलावर रहीं.
प्रधानमंत्री मोदी को लेकर दिल्ली की सड़कों पर दिया गया राहुल गांधी का 'डंडा मार' बयान संसद में भी दो दिन तक गूंजता रहा. संसद के बाद खुद मोदी ने असम दौरे में भी राहुल गांधी की बातों का जोर शोर से जिक्र किया - और लोगों को बार बार यही समझाने की कोशिश की कि राहुल गांधी की सोच कैसी है? संसद में जब राहुल गांधी ने अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड से जुड़े मेडिकल कॉलेज पर सवाल किया तो स्वास्थ्य मंत्री राहुल गांधी पर टिप्पणी करने लगे और कांग्रेस-बीजेपी सांसदों में खासी झड़प हुई.
राहुल गांधी के सामने जो ताजा चुनौती खड़ी हो गयी है, उसके आगे दिल्ली विधानसभा में दोबारा खाता न खुलना बहुत ही छोटी मुश्किल है. राहुल गांधी अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही अपना प्रतिद्वंद्वी मानते रहे हैं, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के नतीजों ने सारे समीकरण बदल दिये हैं.
अब तो स्थिति ये हो गयी है कि प्रधानमंत्री मोदी से मुकाबले के लिए तैयार होने से पहले राहुल गांधी को अरविंद केजरीवाल से ही जूझना होगा - क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने अपना राष्ट्रीय इरादा साफ कर दिया है. आम नेताओं की तरफ से भी अरविंद केजरीवाल के लिए 2024 में प्रधानमंत्री पद की तैयारी की अपील होने लगी है.
प्रधानमंत्री पद को लेकर विपक्षी खेमे से नीतीश कुमार के चले जाने के बाद भी राहुल गांधी के सामने ममता बनर्जी और मायावती जैसी नेताओं से टक्कर मिलती रही है. 2018 के आखिर में तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बन जाने के बाद 23 मई, 2019 तक राहुल गांधी विपक्षी गतिविधियों के केंद्र में हुआ करते थे, लेकिन अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद से तो जैसे सीन से ही बाहर हो चुके हैं.
महाराष्ट्र में बीजेपी के खिलाफ बने नये गठबंधन में कांग्रेस के शामिल होने में भी राहुल गांधी की कोई भूमिका नहीं रही. शरद पवार ने उस मामले में सीधे सोनिया गांधी से संपर्क साधा और सरकार बनवा डाली. महाराष्ट्र में बीजेपी को सत्ता से हटाने और झारखंड में पार्टी की हार के बाद से ही शरद पवार का जोश बढ़ा हुआ था, दिल्ली की जीत ने तो हौसलाअफजाई ही कर डाली है. अब शरद पवार नये सिरे से एक्टिव होने के संकेत दिये हैं.
अब तक विपक्षी नेताओं को एकजुट करने की कोशिशों में अरविंद केजरीवाल को खास तवज्जो नहीं मिलती रही - लेकिन दिल्ली में सत्ता में वापसी कर वो नये सिरे से ताकतवर बन कर उभरे हैं और यही राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन रही है.
अब तो केजरीवाल की ही चलेगी
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद से 2019 के आम चुनाव तक सोनिया गांधी ने या तो खुद विपक्ष को एकजुट करने की पहल की या फिर दूसरे नेताओं की कवायद का केंद्रबिंदु बनी रहीं. इसी दौरान राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव हुए और GST के लिए आधी रात को संसद बुलायी गयी - हर मामले में एक बात कॉमन यही देखी गयी कि अरविंद केजरीवाल को एंट्री नहीं दी गयी.
विपक्षी खेमे में अरविंद केजरीवाल को शामिल करने की सबसे ज्यादा वकालत ममता बनर्जी ने की - और लगातार कोशिशों की बदौलत आम चुनाव के ऐन पहले राहुल गांधी और अरविंद केजरीाल की दिल्ली में मुलाकात कराने में सफल हो पायीं. मुलाकात तो हुई लेकिन कोई बात नहीं बनी. ममता बनर्जी जो सलाह दे रही थीं, उस पर विपक्षी खेमे के ज्यादातर नेताओं की सहमति रही, लेकिन राहुल गांधी कार्यकर्ताओं से बात करने के बहाने टाल गये. तब ममता बनर्जी की सलाह थी कि कांग्रेस कर्नाटक जैसे जिन राज्यों में मजबूत है वहां तो वो खुद नेतृत्व करे, लेकिन बाकी जगह क्षेत्रीय दलों को ये मौका दे और उसी हिसाब से गठबंधन कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज किया जाये. यूपी में तो मायावती और अखिलेश यादव ने कांग्रेस को पहले ही दरकिनार कर रखा था लेकिन पश्चिम बंगाल, दिल्ली और आंध्र प्रदेश में इसकी पूरी गुंजाइश बन रही थी.
अरविंद केजरीवाल तो यहां तक कहने लगे थे कि कांग्रेस को बोल बोल कर थक गया कि गठबंधन कर लो लेकिन कोई सुनने को ही राजी नहीं है. तब शीला दीक्षित दिल्ली कांग्रेस की प्रमुख रहीं और आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को बिलकुल भी तैयार न थीं. यही हाल तब पश्चिम बंगाल में रहे अधीर रंजन चौधरी का रहा, वो ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस से गठबंधन को राजी न थे - और आंध्र प्रदेश के कांग्रेस नेताओं ने भी लगभग दो टूक ऐसा ही कह दिया था.
आम चुनाव में कांग्रेस और आप का गठबंधन तो नहीं हुआ, लेकिन माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मन से आम आदमी पार्टी के साथ रही. कांग्रेस नेताओं के बयान भी इसी तरफ इशारा कर रहे हैं. कांग्रेस का हर नेता यही बता रहा है कि बीजेपी हार गयी और आप की जीत में ही अपनी जीत जैसा महसूस करता हुआ नजर आ रहा है.
जिस तरह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और एनसीपी नेता शरद पवार ने अरविंद केजरीवाल की जीत पर रिएक्ट किया है, उससे साफ है कि अरविंद केजरीवाल अब विपक्षी खेमे में पंसदीदा चेहरा बनने वाले हैं. राहुल गांधी को लेकर वैसे भी ममता बनर्जी और मायावती जैसे नेताओं को परहेज रहा है. शरद पवार और चंद्रबाबू नायडू तो लगभग स्वीकार भी कर चुके थे, लेकिन अब तो ये देखा जाएगा कि विरोध की मजबूत आवाज बनने के साथ साथ बड़ी चुनौती कौन दे रहा है.
प्रधानमंत्री पद को लेकर पहले नीतीश कुमार इसीलिए टक्कर दे पाते थे क्योंकि उनके पास प्रशासनिक अनुभव होने के साथ वो हिंदी पट्टी से आते हैं. ममता बनर्जी इसी पैमाने पर छंट जाती रही हैं. मायावती की भी लिमिट उनकी जातीय राजनीति रही है. ये सब उस पैमाने से इतर की बातें हैं जब एचडी देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बन गये और लालू प्रसाद के पेंच फंसा देने से मुलायम सिंह यादव बनते बनते रह गये.
अरविंद केजरीवाल का कद इसलिए भी बढ़ गया है कि मोदी-शाह की जोड़ी को शिकस्त देकर सत्ता में पहले जैसी ही जोरदार वापसी की है. वो किसी जाति की राजनीति नहीं करते और हिंदी पट्टी में उनकी अपनी साख और लोकप्रियता है.
प्रधानमंत्री मोदी पर हमले के मामले में पहले भी राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल में होड़ रही है. मिसाल के तौर पर सर्जिकल स्ट्राइक को ही लें तो राहुल गांधी ने जहां 'खून की दलाली' बताया था वहीं अरविंद केजरीवाल वीडियो बयान जारी कर सबूत मांग रहे थे - ध्यान देने वाली बात ये है कि केजरीवाल तो बदल गये हैं लेकिन राहुल गांधी अपने स्टैंड पर कायम हैं.
अरविंद केजरीवाल में बड़ा बदलाव ये हुआ है कि अब वो प्रधानमंत्री मोदी के लिए कायर या मनोरोगी जैसी बातें नहीं करते, लेकिन राहुल गांधी डंडे मारे जाने की बात करते हैं. मेक इन इंडिया की तुलना में रेप इन इंडिया कहते हैं और ट्रोल हो जाते हैं.
एक तरफ अरविंद केजरीवाल की राजनीति में संजीदगी और परिपवक्वता नजर आने लगी है, लेकिन दूसरी तरफ राहुल गांधी गले मिल कर आंख मारने वाली मानसिकता से उबरने को तैयार नहीं हैं - साफ है नये मिजाज की राजनीति में राहुल गांधी को मोदी पर हमले से पहले अरविंद केजरीवाल से नये सिरे से टक्कर लेनी होगी.
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