राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी का मकसद अगर रमजान के पाक महीने में आपसी भाईचारा और प्रेम का संदेश देना रहा तो निश्चित रूप से सफल मानी जाएगी. मगर, पूरी पार्टी में ऐसा कोई भाव नजर तो नहीं आया.
अगर सियासी नजरिये से देखें और विपक्षी एकता का जो स्वरूप कर्नाटक से कैराना तक दिखा, उस पैमाने पर तो राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी पूरी तरह फ्लॉप लगती है.
इफ्तार पार्टी से एक बात और भी साफ हो चली है, विपक्ष सोनिया गांधी को तो तवज्जो देता है, लेकिन राहुल गांधी को अब भी गंभीरता से नहीं लेता.
कांग्रेस की इफ्तार पार्टी
कांग्रेस की ये इफ्तार पार्टी तीन साल बाद हुई. 2016 और 2017 में कांग्रेस की ओर से ऐसा कोई आयोजन नहीं हुआ. इससे पहले 2015 में इफ्तार पार्टी हुई थी.
यूपीए के सत्ता में रहते इफ्तार पार्टी तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से दी जाती रही. सत्ता से बाहर होने और बीजेपी की सरकार बनने के बाद सोनिया गांधी ने पार्टी दी थी. फिर दो साल के गैप और कांग्रेस की कमान संभालने के बाद राहुल गांधी ने इफ्तार पार्टी देने का फैसला किया. सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते ही नहीं, बल्कि इलाज के लिए सोनिया गांधी के देश से बाहर होने के कारण इफ्तार पार्टी के होस्ट राहुल गांधी रहे. राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी में जिन दो बातों की सबसे ज्यादा चर्चा रही वो थी - एक, प्रणब मुखर्जी को न्योता, उनका इंतजार और शामिल होना और दूसरा, विपक्षी खेमे के ज्यादातर बड़े नेताओं का दूरी बना लेना.
ऐसा हाल तो सोनिया गांधी के किसी भी भोज में नहीं दिखा. यहां तक कि जेडीयू से बेदखल शरद यादव के दिल्ली समागम में भी इससे ज्यादा रौनक देखने को मिली थी.
फोटो भर टोपी भी पहन...
राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी का मकसद अगर रमजान के पाक महीने में आपसी भाईचारा और प्रेम का संदेश देना रहा तो निश्चित रूप से सफल मानी जाएगी. मगर, पूरी पार्टी में ऐसा कोई भाव नजर तो नहीं आया.
अगर सियासी नजरिये से देखें और विपक्षी एकता का जो स्वरूप कर्नाटक से कैराना तक दिखा, उस पैमाने पर तो राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी पूरी तरह फ्लॉप लगती है.
इफ्तार पार्टी से एक बात और भी साफ हो चली है, विपक्ष सोनिया गांधी को तो तवज्जो देता है, लेकिन राहुल गांधी को अब भी गंभीरता से नहीं लेता.
कांग्रेस की इफ्तार पार्टी
कांग्रेस की ये इफ्तार पार्टी तीन साल बाद हुई. 2016 और 2017 में कांग्रेस की ओर से ऐसा कोई आयोजन नहीं हुआ. इससे पहले 2015 में इफ्तार पार्टी हुई थी.
यूपीए के सत्ता में रहते इफ्तार पार्टी तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से दी जाती रही. सत्ता से बाहर होने और बीजेपी की सरकार बनने के बाद सोनिया गांधी ने पार्टी दी थी. फिर दो साल के गैप और कांग्रेस की कमान संभालने के बाद राहुल गांधी ने इफ्तार पार्टी देने का फैसला किया. सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते ही नहीं, बल्कि इलाज के लिए सोनिया गांधी के देश से बाहर होने के कारण इफ्तार पार्टी के होस्ट राहुल गांधी रहे. राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी में जिन दो बातों की सबसे ज्यादा चर्चा रही वो थी - एक, प्रणब मुखर्जी को न्योता, उनका इंतजार और शामिल होना और दूसरा, विपक्षी खेमे के ज्यादातर बड़े नेताओं का दूरी बना लेना.
ऐसा हाल तो सोनिया गांधी के किसी भी भोज में नहीं दिखा. यहां तक कि जेडीयू से बेदखल शरद यादव के दिल्ली समागम में भी इससे ज्यादा रौनक देखने को मिली थी.
फोटो भर टोपी भी पहन ली...
टोपी पहनने के मामले में अब तक सबसे चर्चित वाकया गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी का ही रहा. हालांकि, सिंगापुर पहुंचकर मोदी ने उस वाकये को भी अपवाद नहीं रहने दिया. प्रधानमंत्री मोदी मस्जिद भी गये और हंसते हंसते टोपी पहनी - और ट्विटर पर फोटो भी शेयर किये.
राहुल गांधी से कम से कम इस मामले में ऐसे किसी विवादित कदम की उम्मीद तो नहीं रही, लेकिन टोपी के साथ राहुल गांधी का रिश्ता फोटो तक ही रहा. कुछ नेताओं के मन में टोपी को लेकर संकोच जरूर रहा होगा - क्योंकि गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी को मंदिरों में तो खूब देखा गया लेकिन दूसरे धार्मिक स्थलों ने उन्होंने जैसे दूरी बना रखी थी. कर्नाटक पहुंचकर ये बदल गया और राहुल गांधी मंदिर और मठों के साथ साथ चर्च, दरगाह और गुरद्वारा भी गये.
अगर कोई अंदर दिखा तो प्रधानमंत्री मोदी के कार्यक्रम में. पूरे चुनाव मोदी किसी भी मंदिर में नहीं गये. सिर्फ वोटिंग के दिन उन्हें नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में दर्शन करते देखा गया था.
कांग्रेस और विपक्षी नेताओं के साथ साथ मशहूर शायर वसीम बरेलवी, नफीसा अली और शहला राशिद भी राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी में शामिल हुईं.
विपक्ष को राहुल पर भरोसा क्यों नहीं?
कांग्रेस के प्रचार प्रसार के मुताबिक इफ्तार पार्टी में 18 विपक्षी दलों के नेताओं को न्योता भेजा गया था - और ज्यादातर के आने की अपेक्षा रही. सीपीएम के सीताराम येचुरी, झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन और जाने पहचाने चेहरे शरद यादव को छोड़ दें तो किसी भी दल का कोई भी कद्दावर नेता इफ्तार पार्टी में नहीं पहुंचा था.
ताज्जुब तो तब हुआ जब न तेजस्वी यादव दिखे और न ही नये नये दोस्त बने कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी. बाकियों ने तो अपने प्रतिनिधि भी भेजे थे लेकिन अखिलेश यादव की कौन कहे, समाजवादी पार्टी की ओर से तो कोई नेता नजर तक न आया. झटके में आकर कोई आकर निकल लिया हो या फिर किसी कोने में छुप कर कानाफूसी कर रहा हो तो बात और है.
कर्नाटक में जिस तरह की जमघट विपक्ष ने दिखायी थी और कैराना उपचुनाव में जो एकजुटता देखने को मिली उसके हिसाब से तो कांग्रेस नेताओं को इफ्तार में सोनिया के भोज से भी ज्यादा फुटफॉल की अपेक्षा थी. ये जरूर है कि कर्नाटक में न्योता कुमारस्वामी की ओर से भेजा गया था - और ऐसे तमाम आयोजनों से दूर रहने वाले अरविंद केजरीवाल भी पहुंचे थे.
सोनिया गांधी और मायावती के उस फोटो का तो कहना ही क्या - जिसमें दोनों बरसों पहले बिछुड़ी बहनों की तरह गले मिलते देखी गयीं. एक-दूसरे का हाथ थामे विपक्ष के सारे नेता मंच पर ऐसे खड़े पोज देते रहे कि बीजेपी के कमजोर दिल वाले नेताओं की तो तबीयत ही नासाज हो जाये. इफ्तार पार्टी में तो ऐसा कुछ हुआ ही नहीं.
तेजस्वी यादव ने मनोज झा को भेज दिया. कुमारस्वामी ने दानिश अली को भेज दिया. मायावती के प्रतिनिधि के रूप में सतीशचंद्र मिश्रा मौजूद रहे. एनसीपी से डीपी त्रिपाठी ने नुमाइंदगी की रस्म निभायी.
कांग्रेस के हिसाब से इफ्तार पार्टी में शिरकत में कहीं कोई कमी नहीं कही जाएगी. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अलावा पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पूरी तरह मौजूद रहे. बाकी कांग्रेस के नौजवानों के साथ साथ बुजुर्गों ने भी पूरी शिद्दत से हाजिरी लगायी. तो क्या मान कर चला जाय कि विपक्षी नेताओं ने सोनिया गांधी की गैरमौजूदगी के चलते पार्टी को अहमियत नहीं दी? अगर वास्तव में ऐसा है तो राहुल गांधी के लिए ये चिंता की बात होनी चाहिये.
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