दिल्ली की जनाक्रोश रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपना कैलाश मानसरोवर प्लान शेयर किया था. कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कर्नाटक चुनाव के बाद 15 दिन की छुट्टी मांगी थी. तब राहुल गांधी ने बताया था कि जब कर्नाटक के रास्ते में फ्लाइट में गड़बड़ी आई तो लगा - 'गाड़ी गयी'. बतौर मन्नत राहुल गांधी ने उसी वक्त कैलाश मानसरोवर का प्लान किया था.
चुनाव बीत चुके हैं - और राहुल गांधी दो दिन के लिए छत्तीसगढ़ का दौरा भी कर आये हैं. कर्नाटक में बीजेपी की सरकार बनाने की कोशिश भी फेल हो चुकी है. कांग्रेस के सपोर्ट से पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं.
कर्नाटक की जंग में मिली जीत से कांग्रेस में नीचे से ऊपर तक उत्साह का माहौल है. कर्नाटक के बाद कांग्रेस के सामने अगली चुनौती आने वाले विधानसभा चुनाव हैं. सवाल यही है कि क्या ये जोश यूं ही बरकरार रहेगा?
जंग-ए-कर्नाटक के नायक
कर्नाटक की लड़ाई बहुत मुश्किल थी. खासतौर पर राहुल गांधी के लिए तो और भी कठिन. तभी तो सोनिया गांधी को मैदान में कूदना पड़ा और आखिर तक वो मोर्चे पर डटी रहीं.
तो क्या कर्नाटक की जंग राहुल गांधी के अकेले के वश की बात नहीं थी? कहा जा सकता है - काफी हद तक.
असल में राहुल गांधी फील्ड में तो पहले के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करने लगे हैं, लेकिन रणनीति बनाने और शिकस्त की हालत में विरोधी के लिए शह खोजने और फिर चारों तरफ से घेर कर हार मान लेने को मजबूर करने में उन्हें अभी काफी सारी बारीकियां सीखनी होंगी.
कर्नाटक चुनाव में भी राहुल की कोर टीम गुजरात की तरह ही सक्रिय रही. असली इम्तिहान तब सामने आया जब चुनाव नतीजे आने के...
दिल्ली की जनाक्रोश रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपना कैलाश मानसरोवर प्लान शेयर किया था. कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कर्नाटक चुनाव के बाद 15 दिन की छुट्टी मांगी थी. तब राहुल गांधी ने बताया था कि जब कर्नाटक के रास्ते में फ्लाइट में गड़बड़ी आई तो लगा - 'गाड़ी गयी'. बतौर मन्नत राहुल गांधी ने उसी वक्त कैलाश मानसरोवर का प्लान किया था.
चुनाव बीत चुके हैं - और राहुल गांधी दो दिन के लिए छत्तीसगढ़ का दौरा भी कर आये हैं. कर्नाटक में बीजेपी की सरकार बनाने की कोशिश भी फेल हो चुकी है. कांग्रेस के सपोर्ट से पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं.
कर्नाटक की जंग में मिली जीत से कांग्रेस में नीचे से ऊपर तक उत्साह का माहौल है. कर्नाटक के बाद कांग्रेस के सामने अगली चुनौती आने वाले विधानसभा चुनाव हैं. सवाल यही है कि क्या ये जोश यूं ही बरकरार रहेगा?
जंग-ए-कर्नाटक के नायक
कर्नाटक की लड़ाई बहुत मुश्किल थी. खासतौर पर राहुल गांधी के लिए तो और भी कठिन. तभी तो सोनिया गांधी को मैदान में कूदना पड़ा और आखिर तक वो मोर्चे पर डटी रहीं.
तो क्या कर्नाटक की जंग राहुल गांधी के अकेले के वश की बात नहीं थी? कहा जा सकता है - काफी हद तक.
असल में राहुल गांधी फील्ड में तो पहले के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करने लगे हैं, लेकिन रणनीति बनाने और शिकस्त की हालत में विरोधी के लिए शह खोजने और फिर चारों तरफ से घेर कर हार मान लेने को मजबूर करने में उन्हें अभी काफी सारी बारीकियां सीखनी होंगी.
कर्नाटक चुनाव में भी राहुल की कोर टीम गुजरात की तरह ही सक्रिय रही. असली इम्तिहान तब सामने आया जब चुनाव नतीजे आने के बाद बीजेपी को सरकार बनाने से रोकने की बारी आयी. कांग्रेस नेताओं को पता था कि केंद्र में बीजेपी की सत्ता है इसलिए राजभवन में तो उनकी दाल गलने से रही. ये सब सोच समझ कर पहले से ही एक कोर टीम बन चुकी थी जिसने टास्क को अंजाम तक पहुंचाया.
कांग्रेस की क्राइसिस मैनेजमेंट टीम में वैसे तो कई लोग जी जान से जुटे नजर आये लेकिन सेना के तीन जनरलों की तरह कांग्रेस के तीन नेता मोर्चे पर मजबूती से डटे रहे - गुलाम नबी आजाद, अशोक गहलोत और अभिषेक मनु सिंघवी. तीनों के साथ बड़ा रिस्क ये था कि किसी एक की भी मामूली चूक पूरे मिशन पर पानी फेर देती.
फील्ड में गुलाम नबी आजाद डटे रहे और वो पर्सेप्शन मैनेजमेंट में लगे थे. गुलाम नबी आजाद बार बार मीडिया के सामने आते और बताते कि बीजेपी किस तरह गलत कर रही है - और कांग्रेस कैसे उसकी कोशिशें नाकाम करने में जुटी हुई है. अशोक गहलोत में पूरी मशीनरी को दुरूस्त रखने में लगे हुए थे. कानूनी मोर्चे पर अभिषेक मनु सिंघवी ने भी उम्दा प्रदर्शन किया.
जिस चीफ जस्टिस के खिलाफ कांग्रेस महाभियोग प्रस्ताव ला रही थी, उसी जस्टिस दीपक मिश्रा को अभिषेक मनु सिंघवी ने कर्नाटक केस की इमरजेंसी सुनवाई के लिए आधी रात को राजी कर लिया. अगर सुप्रीम कोर्ट का डंडा न चलता और येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए वक्त कम नहीं किया गया होता मामला कांग्रेस के हाथ से कब निकल जाता कौन कह सकता था.
तीनों नेताओं के अलावा एक शख्स और भी रहा जिसे दूसरी बार भी वैसे ही मुस्तैद देखा गया - डीके शिवकुमार. सिद्धारमैया सरकार में मंत्री रहे डीके ने कर्नाटक के कांग्रेस विधायकों को भी वैसे ही बीजेपी के हाथ नहीं लगने दिया जैसे गुजरात के विधायकों को राज्य सभा चुनाव के वक्त सुरक्षित रखा था. ये कांग्रेस की कोर टीम ही रही जिसने विधायकों को फटाफट कॉल रिकॉर्डिंग ऐप डाउनलोड करने को कहा और खरीद फरोख्त की सारी बातें रिकॉर्ड कर ली गयीं. कुछ ऑडियो क्लिप कांग्रेस की ओर से रिलीज किये गये हैं, लेकिन मीडिया से बातचीत में कांग्रेस नेताओं का कहना है कि वे तो दस फीसदी भी नहीं हैं.
गुजरात में 'झूठा' कर्नाटक में 'भ्रष्टाचार'
गुजरात चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राहुल गांधी जहां भी जाते 'झूठा' बताते और उसके सपोर्ट में कुछेक उदाहरण भी पेश करते. कहानियां भी सुनाया करते. दो-तीन बार हिमाचल प्रदेश चुनाव और कर्नाटक चुनाव के शुरुआती दौर में भी. चुनाव नतीजे आने के बाद तो राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर सबसे बड़ा हमला बोला है.
वैसे तो चुनाव होने और नतीजे आने के बाद राहुल गांधी सीन से ही गायब थे. कर्नाटक पर कुछ बोले भी तो दो दिन बाद जब वो छत्तीसगढ़ के दौरे पर थे. राहुल गांधी ने तब भारत में पाकिस्तान जैसे हालात की बात कही थी. कांग्रेस विधायकों की खरीद फरोख्त और येदियुरप्पा के मैदान छोड़ कर भाग जाने के बाद राहुल गांधी कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सूरजेवाला के साथ मीडिया के सामने आये.
अब तक का सबसे बड़ा हमला बोलते हुए राहुल गांधी ने इल्जाम लगाया, "प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार खत्म करने की बात करते हैं... प्रधानमंत्री खुद भ्रष्टाचार हैं."
कर्नाटक जैसा कमाल आगे भी दिखेगा क्या?
बमुश्किल छह महीने बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं. कांग्रेस के सामने एक तरफ गोवा, मणिपुर और मेघालय की मिसाल है और दूसरी तरफ ताजा ताजा कर्नाटक की हार में जीत.
यूपी चुनाव में भी राहुल गांधी ने खूब मेहनत की थी. किसान यात्रा और खाट सभा में वो गांव गांव घूमते रहे, लेकिन समाजवादी पार्टी के साथ समझौता हो जाने के बाद ढीले पड़ गये. अखिलेश के साथ भीड़ में खड़ा होना बहुत हद तक नुमाइशी ही लगता था. जब चुनाव के नतीजे आये तो पंजाब में बहुमत हासिल करने के साथ ही गोवा और मणिपुर में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी - लेकिन जरा सी गफलत हुई और बीजेपी सरकार बनाने के मामले में बाजी मार ले गयी.
मगर, कर्नाटक ने कांग्रेस को खुद को आजमाने का बेहतरीन मौका दिया. कांग्रेस ने कोशिश भी की और कामयाब रही. अब सवाल ये है कि क्या कामयाबी हासिल करने वाला ये जोश आगे भी कायम रहेगा?
गुजरात में कांग्रेस ने बीजेपी को 100 का नंबर नहीं पाने दिया. कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद भले ही उसके पास नहीं है, लेकिन सरकार में दबदबा कायम रहेगा इसमें कोई दो राय नहीं है. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की हालत तो गुजरात से भी कठिन है - और तीनों राज्य बीजेपी का अरसे से गढ़ भले रहे हों, लेकिन वहां प्रधानमंत्री मोदी का नाम वैसे नहीं जुड़ा जैसे गुजरात के साथ जुड़ा था.
कर्नाटक चुनाव बाद राहुल गांधी खुद छत्तीसगढ़ हो आये हैं. मध्य प्रदेश में राहुल गांधी की गुजरात में सक्रिय टीम भी हाल के दिनों में एक्टिव देखी गयी है. मध्य प्रदेश में गुटबाजी को खत्म करने की कोशिश में राहुल गांधी कमलनाथ को कमान भी सौंप चुके हैं और दिग्विजय सिंह को उनसे कोई आपत्ति नहीं है. रही बात माधवराव सिंधिया की तो वो मध्य प्रदेश की कमान चाहते जरूर थे लेकिन मान ही जाएंगे.
गुजरात के बाद कर्नाटक के इंतजामों में महती भूमिका निभाकर अशोक गहलोत ने भी अपने रोल का अहसास करा ही दिया है. राजस्थान में सचिन पायलट अपना काम आराम से कर सकते हैं, नेतृत्व की ओर से इसके पूरे इंतजाम भी कर दिये गये हैं.
जिस तरीके से कांग्रेस के रणबांकुरों ने कर्नाटक में बीजेपी के ऑपरेशन कमल को धूल चटाया है, आगे भी यही प्रदर्शन जारी रहेगा क्या? कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती यही है.
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