भारत जोड़ो यात्रा के पहले और दूसरे फेज के बीच राहुल गांधी (Rahul Gandhi) लंदन दौरे पर हैं - और विदेशी धरती से भी वो करीब करीब वही सारी बातें कह रहे हैं, जो देश भर में घूम घूम कर पूरे साल कहते रहते हैं.
बीजेपी (BJP) भी वैसे ही हमलावर है, जैसे हमेशा ही हुआ करती है. कभी कोई बीजेपी प्रवक्ता तो कभी कोई बीजेपी नेता, कभी कोई केंद्रीय मंत्री राहुल गांधी को अपने अपने तरीके से घेर रहा है - और उसमें भी कोई नयी बात नजर आ रही हो, ऐसा नहीं लगता. सब कुछ करीब करीब रूटीन जैसा ही है.
भारत जोड़ो यात्रा और लंदन यात्रा में एक भौगोलिक फर्क है. एक तरफ देश की धरती से की गयी बातें हैं, देश की संसद में कही गयी बातें - और दूसरी तरफ विदेशी धरती से कही जा रही बातें हैं.
बीजेपी के हमले को विदेशी जमीन होने से थोड़ी धार मिल जा रही है - देश से बाहर देश की बुराई को लेकर राहुल गांधी लगातार निशाने पर हैं. कांग्रेस को फायदा तो हो रहा है, लेकिन नुकसान भी हो रहा है. क्या ज्यादा है, और क्या कम - ये आकलन तो कांग्रेस को ही करना होगा.
कभी राहुल गांधी को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विदेशी मीडिया के सवाल पर जवाब की याद दिला कर नसीहत दी जा रही है. कभी सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के देश से बाहर भारत को एक ही नजरिये से पेश करने को लेकर, लेकिन राहुल गांधी को ऐसी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है - वो अपने तरीके से बेरोक-टोक बढ़ते चले जा रहे हैं.
फर्क तो राहुल गांधी पर तब भी नहीं पड़ रहा है, जब उनको भारतीय मीडिया रिपोर्ट का जिक्र करते हुए ध्यान दिलाया जा रहा है. जाहिर है, राहुल गांधी की टीम उनको ऐसी चीजों को लेकर फीडबैक तो देती ही होगी.
वैसे राहुल गांधी के ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करने वाले सैम पित्रोदा ही इस बार भी वैसी सी तन्मयता से जुटे हुए हैं. हो सकता...
भारत जोड़ो यात्रा के पहले और दूसरे फेज के बीच राहुल गांधी (Rahul Gandhi) लंदन दौरे पर हैं - और विदेशी धरती से भी वो करीब करीब वही सारी बातें कह रहे हैं, जो देश भर में घूम घूम कर पूरे साल कहते रहते हैं.
बीजेपी (BJP) भी वैसे ही हमलावर है, जैसे हमेशा ही हुआ करती है. कभी कोई बीजेपी प्रवक्ता तो कभी कोई बीजेपी नेता, कभी कोई केंद्रीय मंत्री राहुल गांधी को अपने अपने तरीके से घेर रहा है - और उसमें भी कोई नयी बात नजर आ रही हो, ऐसा नहीं लगता. सब कुछ करीब करीब रूटीन जैसा ही है.
भारत जोड़ो यात्रा और लंदन यात्रा में एक भौगोलिक फर्क है. एक तरफ देश की धरती से की गयी बातें हैं, देश की संसद में कही गयी बातें - और दूसरी तरफ विदेशी धरती से कही जा रही बातें हैं.
बीजेपी के हमले को विदेशी जमीन होने से थोड़ी धार मिल जा रही है - देश से बाहर देश की बुराई को लेकर राहुल गांधी लगातार निशाने पर हैं. कांग्रेस को फायदा तो हो रहा है, लेकिन नुकसान भी हो रहा है. क्या ज्यादा है, और क्या कम - ये आकलन तो कांग्रेस को ही करना होगा.
कभी राहुल गांधी को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विदेशी मीडिया के सवाल पर जवाब की याद दिला कर नसीहत दी जा रही है. कभी सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के देश से बाहर भारत को एक ही नजरिये से पेश करने को लेकर, लेकिन राहुल गांधी को ऐसी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है - वो अपने तरीके से बेरोक-टोक बढ़ते चले जा रहे हैं.
फर्क तो राहुल गांधी पर तब भी नहीं पड़ रहा है, जब उनको भारतीय मीडिया रिपोर्ट का जिक्र करते हुए ध्यान दिलाया जा रहा है. जाहिर है, राहुल गांधी की टीम उनको ऐसी चीजों को लेकर फीडबैक तो देती ही होगी.
वैसे राहुल गांधी के ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करने वाले सैम पित्रोदा ही इस बार भी वैसी सी तन्मयता से जुटे हुए हैं. हो सकता है, सैम पित्रोदा को मीडिया रिपोर्ट की परवाह न हो, जब वो 1984 के दिल्ली के सिख दंगों को लेकर कह सकते हैं, "हुआ तो हुआ" - फिर ये भी समझ लेना चाहिये कि राहुल गांधी को वो किस तरह का फीडबैक दे होंगे?
अब तो तो कभी लगा भी नहीं कि राहुल गांधी को नफे नुकसान की कोई परवाह भी रही हो. एक बार जब वो कमिटमेंट कर लेते हैं तो किसी की सुनते ही कहां हैं?
कैम्ब्रिज लेक्चर को लेकर सैम पित्रोदा की तरफ से काफी सतर्कता बरती गयी थी. पूरा कार्यक्रम हो गया उसके बाद ही सैम पित्रोदा ने राहुल गांधी का लेक्चर सोशल मीडिया पर जारी किया. माना जा रहा था कि ये एहतियाती उपाय इसलिए किया गया था ताकि राजनीतिक विरोधी कोई छोटी सी वीडियो क्लिप शेयर कर नये सिरे से बवाल न मचायें, लेकिन जो घात लगा कर बैठा हो वो शिकार तो कर ही लेता है.
और राहुल गांधी भी तो इंसान ही हैं. गलती से मिस्टेक हो जाती है. पूरी बातचीत का अपना अर्थ होता है, लेकिन बीच से ली गयी एक छोटी सी क्लिप में असली मंशा साफ तौर पर समझ में नहीं आती. ऐसे कुछ वीडियो एक बार फिर बीजेपी के हाथ लग गये हैं.
बीजेपी प्रवक्ता एक छोटी सी क्लिप शेयर कर कह रहे हैं कि राहुल गांधी न तो किसी की सुनते हैं, न समझते हैं और न ही समझने की कोशिश करते हैं - वीडियो में राहुल गांधी शहरी और ग्रामीण भारत की तुलना करते हुए अपनी राय जाहिर कर रहे हैं - जबकि सवाल विदेश नीति को लेकर पूछा गया होता है.
बाद में बात करते करते राहुल गांधी विदेश नीति की भी बात करते हैं, लेकिन बाकी बातें सवाल से अलग लगती हैं. राहुल गांधी से भारत की तरफ से गुटनिरपेक्ष आंदोलन की पहल वाली विदेश नीति से जुड़ा सवाल पूछा गया होता है, लेकिन ऐसा लगता है वो कुछ और ही समझाने लगते हैं.
राहुल गांधी को लेकर सोशल मीडिया पर हाल फिलहाल कई वीडियो शेयर किये जा रहे हैं. मसलन, एक वीडियो है जिसमें एक महिला खुद को एक आरएसएस कार्यकर्ता की बेटी बताते हुए भारत के मौजूदा हालात पर चिंता जताती है, और राहुल गांधी उसे शुक्रिया कहते हैं - लेकिन तब भी बीजेपी उनको टारगेट करने का बहाना ढूंढ लेती है.
एक और वीडियो है जिसमें राहुल गांधी को ऑडिएंस में बैठा एक व्यक्ति उनकी दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का हवाला देते हुए देश से बाहर देश की बुराई करने से बाज आने की नसीहत पेश करता है - और ये बीजेपी को राहुल गांधी पर हमला बोल देने का बहाना दे देता है.
ऐसे दो वीडियो एक साथ शेयर कर केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू राहुल गांधी को देश की एकता के लिए खतरनाक तक बता डालते हैं - ये जरूर है कि कांग्रेस की पूरी टीम भी सोशिल मीडिया पर दिन भर हमलावर देखी जा सकती है, लेकिन महत्वपूर्ण बात तो ये है कि आम लोगों तक अपना मैसेज पहुंचा पाने में कौन सफल हो पाता है?
ये सब ऐसे वक्त हो रहा है जब कांग्रेस राहुल गांधी के लिए भारत जोड़ो यात्रा 2.0 की तैयारी कर रही है. यात्रा का नया दौर पूरब से पश्चिम की तरफ प्लान किया जा रहा है. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने बताया था कि भारत जोड़ो यात्रा का दूसरा दौर अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट से शुरू होकर गुजरात के पोरबंदर तक का सफर तय करेगा. ये तो पहले ही बताया जा चुका है कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक चली भारत जोड़ो यात्रा के बाद भी ऐसी यात्राएं होंगी, लेकिन वे छोटी हो सकती हैं. फिर तो यात्रियों की संख्या भी कम हो सकती है.
सारे ही राजनीतक दल मुख्य रूप से 2024 के आम चुनाव (General Election 2024) की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन उससे पहले राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव भी हैं. त्रिपुरा सहित तीन राज्यों के चुनाव नतीजे बीजेपी के लिए तो जोश बढ़ाने वाले हैं, लेकिन ऐसा तो नहीं लगता जैसे कांग्रेस को कोई फर्क भी पड़ा हो. ये बात अलग है कि मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी की नॉर्थ ईस्ट की चुनावी रैलियों से ही मालूम हुआ है कि आम चुनाव में ममता बनर्जी और बाकी विपक्षी दलों को लेकर कांग्रेस का रुख क्या रहने वाला है? बहुत कुछ तो कांग्रेस ने अपने राष्ट्रीय अधिवेशन के जरिये भी बता दिया है.
कांग्रेस को क्या फायदा हो रहा है
राहुल गांधी के हाल के बयानों से तो ऐसा लगता है, जैसे कांग्रेस के रणनीतिकारों को भी हर मुद्दे पर पॉलिटिकली करेक्ट होने की परवाह नहीं रह गयी है. अब वे चाहे जैसे भी संभव हो बीजेपी के खिलाफ उसी की भाषा में जवाबी हमला कर रहे हैं - और ये लड़ाई ऐसे हो रही है जिसमें सच और झूठ जैसी कहीं कोई बात बिलकुल भी महत्व नहीं रखती, ऐसा लगने लगा है.
जिस तरह से चीजें चल रही हैं, यही लग रहा है कि उसी में कांग्रेस और उसके रणनीतिकारों को फायदा समझ में आ रहा है - हो सकता है किसी दूरगामी सोच के तहत कांग्रेस को फायदा ही फायदा नजर आ रहा हो.
1. सुर्खियां बटोरना, और सुर्खियों में बने रहना: मसलन, एक फायदा तो ये है कि राहुल गांधी लगातार सुर्खियों में छाये हुए हैं. लंदन रवाना होने से पहले से ही, उनके हफ्ते भर के कार्यक्रम की चर्चा होती रही. फिर कैम्ब्रिज में उनके भाषण के वीडियो का इतंजार रहा.
विदेश दौरे में सबसे पहले उनके लुक की चर्चा रही. कैम्ब्रिज के बाद ड्रेस को लेकर राहुल गांधी ने ध्यान खींचा - और उसके बाद से लगातार बयानों को लेकर वो चर्चा हैं, और जाहिर है कांग्रेस को भी सुर्खियों में बनाये हुए हैं.
2. एजेंडा सेट करना तो मायने रखता ही है: फायदा ये भी है कि एक तरीके से एजेंडा भी राहुल गांधी ही सेट कर रहे हैं - बीजेपी की तरफ से अभी सिर्फ प्रतिक्रिया आ रही है. चुनावी सीजन में राहुल गांधी एजेंडा सेट करें और बीजेपी रिएक्ट करे, ये तो कांग्रेस के लिए फायदे की ही बात है.
3. अदानी केस का फायदा तो मिला ही: राहुल गांधी के लंदन जाने से पहले अदानी ग्रुप के कारोबार पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट आयी थी. राहुल गांधी ने संसद में भाषण तो जबर्दस्त दिया. मोदी सरकार के कड़े सवाल भी पूछे, लेकिन विपक्ष को साथ लेकर आगे नहीं बढ़ सके. बहरहाल, किस्मत ने कम से कम एक मामले में तो साथ दिया ही है. सुप्रीम कोर्ट ने जांच कमेटी तो बना ही दी है, ये बाद अलग है कि उसके लिए राहुल गांधी और कांग्रेस से बड़ी वजह आपसी टकराव है.
बीजेपी को क्या फायदा हो रहा है
1. राहुल गांधी को घेरने का मौका मिल गया है: राहुल गांधी के बयानों का हवाला देकर बीजेपी अपनी तरफ से समझाने की कोशिश कर रही है कि लुक भले बदल जाये वो तो बिलकुल नहीं बदलने वाले - बीजेपी नेताओं की तरफ से यहां तक कहा जा रहा है कि कम से कम अंतर्राष्ट्रीय मंच का तो वो ख्याल रखें क्योंकि वहां कोई उनको 'पप्पू' नहीं समझता. सियासी नसीहत तो ऐसे ही दी जाती है.
2. राष्ट्रवाद के मुद्दे पर बीजेपी को फायदा हो रहा है: राहुल गांधी को खतरनाक बता कर बीजेपी अपने समर्थकों को वैसा ही मैसेज दे रही है जैसा 2019 में देने की कोशिश रही - ये कह कर कि कांग्रेस और विपक्ष की बातों से पाकिस्तान में हेडलाइन बनती है. बीजेपी देश से बाहर, राहुल गांधी पर देश की छवि खराब करने का आरोप लगा रही है.
3. बीजेपी समझा रही है, कांग्रेस क्यों नहीं: राहुल गांधी की बातों को ही अपने तरीके से समझा कर बीजेपी लोगों को समझाने की कोशिश कर रही है कि क्यों बीजेपी ही देश की जरूरत है, और कांग्रेस क्यों नहीं?
4. नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी: राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना कर बीजेपी ये भी समझाने की कोशिश कर रही है कि क्यों मोदी ही देश के लिए सबसे अच्छे हैं - और राहुल गांधी 'खतरनाक' हैं?
5. कश्मीर पॉलिसी पर सही कौन गलत कौन: कश्मीर पर राहुल गांधी के बयानों को भी बीजेपी अपने हिसाब से भुना रही है. वैसे भी एक आतंकवादी से मुलाकात का जिक्र कर राहुल गांधी ने मोदी सरकार की कश्मीर नीति को सर्टिफिकेट तो दे ही दिया है.
क्या राहुल गांधी फिर चूक रहे हैं?
ये ठीक है कि राहुल गांधी लंदन जाकर भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को लेकर बने माहौल को बनाये रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस को अगर फिर से कुछ हासिल करना है तो उसे सिर्फ माहौल बनाने भर से काम नहीं चलने वाला है.
और माहौल भी कोई बहुत प्रभावी नहीं बन सका हो, अब तक ऐसा तो नहीं ही लगता है. माहौल इतना भर ही बन सका है कि कांग्रेस हेडलाइन से बाहर नहीं हुई है - लेकिन अगर बाउंसबैक की कोई छोटी सी भी ख्वाहिश है तो राहुल गांधी के ऐसे प्रयासों से भी कांग्रेस को बहुत कुछ नहीं मिलने वाला है.
कांग्रेस अब भी अपने बूते खड़ा हो पाने में सक्षम नहीं है. ऐसे में कांग्रेस को विपक्ष को साथ लेकर चलने में भी फायदा हो सकता है - लेकिन मुश्किल तो ये है कि वो कहीं भी ड्राइविंग सीट छोड़ने को तैयार ही नहीं है.
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