प्रशांत किशोर और राहुल गांधी की मुलाकात के फौरन बाद ही उनके कांग्रेस (Congress) ज्वाइन करने की भी चर्चा शुरू हो गयी थी. अब तो ये मामला आगे बढ़ चुका बताया जा रहा है - और प्रशांत किशोर को लेकर राहुल गांधी पहली बार काफी गंभीर भी लग रहे हैं.
प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) को लेकर राहुल गांधी के फ्यूचर प्लान से जुड़ी जो खबर आयी है, उसमें एक बात तो पक्की है कांग्रेस नेतृत्व ने भी ममता बनर्जी की तरह I-PAC को लंबे समय तक के लिए चुनाव कैंपेन का ठेका देने का मन बना लिया है - और अब ऐसी संभावनाओं पर भी विचार विमर्श होने लगा है कि नये रिश्ते को कोई स्थाई शक्ल भी दी जा सकती है क्या?
जाने माने चुनाव रणनीति विशेषज्ञ प्रशांत किशोर ने हाल ही में राहुल गांधी से उनके आवास पर मुलाकात की थी. मुलाकात के दौरान प्रियंका गांधी वाड्रा भी मौजूद थीं और वर्चुअल तौर पर सोनिया गांधी भी मीटिंग में शामिल हुईं.
मीटिंग के बाद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कांग्रेस के पसंदीदा सीनियर नेताओं से वर्चुअल संवाद के जरिये ये जानने और समझने की कोशिश की है कि प्रशांत किशोर के मामले में कांग्रेस को कहां तक बढ़ कर सोचना चाहिये. कांग्रेस में हाल के बरसों में ऐसे संवाद शायद ही हुए हों. किसी भी राजनीतिक दल से गठबंधन करने या न करने को लेकर भी. चूंकि ये कोई साधारण मामला नहीं है - वो भी नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू में उनके ज्वाइन करने और निकाल दिये जाने के बाद की परिस्थितियों को देखते हुए, लिहाजा अंतिम निर्णय पर पहुंचने से पहले ऐसा जरूरी भी लगता है.
प्रशांत किशोर का कांग्रेस ज्वाइन करना फायदेमंद कोई एकतरफा नहीं है, लेकिन किसी भी पार्टी या नेता को चुनाव जिताने के लिए उनकी जो क्राइटेरिया है - क्या राहुल गांधी उसमें फिट बैठते हैं?
ऐसे में जबकि प्रशांत किशोर की कंपनी आईपैक और ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के बीच कॉन्ट्रैक्ट बढ़ाया जा चुका है, क्या कामकाज में टकराव की नौबत नहीं आएगी - वैसी सूरत में जब ममता बनर्जी और राहुल गांधी के इंटरेस्ट टकराने लगें?
है तो एक दूसरे की सख्त जरूरत
राहुल गांधी को तो प्रशांत किशोर की सेवाएं बहुत पहले ही लेनी चाहिये थीं, भले ही अब भी वो उनको कांग्रेस ज्वाइन कराने का फैसला टाल दें - बात पते की ये है कि दोनों ही को मौजूदा हालात में एक दूसरे की सख्त जरूरत है.
एक तरफ प्रशांत किशोर को किसी स्थायी ठिकाने की तलाश है और दूसरी तरफ राहुल गांधी को किसी ऐसे मांझी या मसीहा की जरूरत है जो चुनावी वैतरणी पार करा दे. राहुल गांधी की चुनावी वैतरणी तो प्रशांत किशोर अपनी सेवाएं देकर भी पार करा सकता है, लेकिन अगर राहुल गांधी कांग्रेस में कोई मजबूत ठीहा दे दें तो उनका भी काम बन जाएगा - और बीते अनुभवों के जो थोड़े बहुत मलाल शेष रह गये हैं, वे भी छू मंतर हो जाएंगे.
ये राहुल गांधी का ही पांच साल पुराना यूपी चुनाव कैंपेन है जो प्रशांत किशोर के कामयाबी के किस्सों में चांद पर दाग जैसा नजर आता है. वैसे तो प्रशांत किशोर यूपी कैंपेन को विशेष परिस्थितियों के शिकार के तौर पर पेश करते हैं, लेकिन नतीजे के हिसाब से देखें तो हार होती है या जीत - बीच का तो कुछ भी नहीं होता.
बाकी बीते वाकयों को भी याद करें तो प्रशांत किशोर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी पहले राहुल गांधी से मुलाकात कर अपने पॉलिटिकल प्रोजेक्ट के बारे में समझाया था, लेकिन सच तो ये है कि मोदी ने ही सबसे पहले प्रशांत किशोर को भारत में वो काम करने का मौका दिया जिसके बाद अपनी फील्ड में वो अलग ही हस्ती बन चुके हैं - मालूम नहीं देर कर देते हैं या देर वास्तव में हो जाती है.
प्रशांत किशोर के लिए कांग्रेस ज्वाइन करना एक म्युचुअल कॉन्ट्रैकट होगा - और राहुल गांधी के लिए भी!
अव्वल तो प्रशांत किशोर 2014 के कैंपेन के बाद ही ये काम नहीं करना चाहते थे, लेकिन उनके बीजेपी ज्वाइन करने में अड़ंगा आ जाने के कारण आगे बढ़ कर सफर जारी रखना पड़ा. बीच में जेडीयू में उपाध्यक्ष बन कर काम करने का मौका तो मिला लेकिन, नीतीश के करीबी नेताओं ने बीच में आने ही नहीं दिया - और तब तक दम नहीं लिये जब तक नीतीश ने ही मौका खोज कर बाहर नहीं कर दिया.
पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद प्रशांत किशोर ने कहा था कि आगे वो चुनाव कैंपेन का काम नहीं करना चाहते और अभी अभी बीबीसी से कहा है कि हो सकता है वो कोई ऐसा काम करें जो राजनीति से दूर हो.
राहुल गांधी के लिए अगर राजनीति छोड़ कर कुछ और नहीं करना है तो अस्तित्व का संकट ही खड़ा हो गया है. प्रशांत किशोर तो राजनीति से कुछ अलग हट कर करने की भी सोचने लगे हैं, लेकिन राहुल गांधी पर विरासत संभालने की जिम्मेदारी के साथ साथ पारिवारिक दबाव भी है. मां सोनिया गांधी और बहन प्रियंका गांधी वाड्रा से इतर हट कर देखें तो कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालने को लेकर वे सारे नेता दबाव बनाते हैं जो गांधी परिवार के करीबी हैं या उसे मेंटेन करने की कोशिश में रहते हैं. ये दबाव का ही असर लगता है कि कांग्रेस की कमान संभालने को लेकर राहुल गांधी अब तक कोई फैसला नहीं कर सकें हैं, लिहाजा जब भी दबाव ज्यादा हो जाता कोई एक सटीक तरकीब खोज कर टाल देते हैं.
15 जुलाई को प्रशांत किशोर गांधी परिवार से मिले थे और हफ्ते भर बाद ही 22 जुलाई को राहुल गांधी ने एक मीटिंग बुलायी थी. बाकी बातों के अलावा मीटिंग में एक जरूरी मसला प्रशांत किशोर को लेकर सीनियर नेताओं से फीडबैक लेना भी रहा - और ज्यादातर की राय यही रही कि आइडिया बुरा नहीं है. इस वर्चुअल मीटिंग में एके एंटनी, मल्लिकार्जुन खड़गे, केसी वेणुगोपाल, कमलनाथ और अंबिका सोनी के अलावा भी कई नेताओं की शिरकत की बात बतायी जा रही है.
प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के लिए अपनी सेवाएं देने का विकल्प भले ही खुला रखा हो, लेकिन कुछ दिनों से मीडिया से उनकी बातचीत सुन कर लगता तो ऐसा ही है कि वो अपने मौजूदा काम को एक कामयाब मोड़ पर विराम देना चाहते हैं.
अगर प्रशांत किशोर को कांग्रेस ज्वाइन करने से कोई परहेज नहीं है और राहुल गांधी भी मन बना चुके हैं, फिर तो समझो काम हो ही गया. जैसे इंदिरा गांधी के शासन में राहुल गांधी के चाचा संजय गांधी के कई मामलों में फाइनल अथॉरिटी होने के बात समझी जाती थी, एक आम सांसद होते हुए और कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद भी राहुल गांधी बिलकुल वैसे ही काम करते चले आ रहे हैं.
अगर प्रशांत किशोर और राहुल गांधी के बीच सहमति बनती है और कांग्रेस ज्वाइन करने तक बात आ पहुंचती है तो चुनौतियां भी उसी समय से शुरू हो जाएंगी - पहला चैलेंज तो यही होगा कि प्रशांत किशोर को कांग्रेस में काम करने के लिए कितना स्पेस मिलेगा? और दूसरा ये कि अगर प्रशांत किशोर उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाये तो क्या होगा?
प्रशांत किशोर से किसे दिक्कत हो सकती है
फर्ज कीजिये प्रशांत किशोर कांग्रेस ज्वाइन कर लेते हैं. मान लीजिये प्रशांत किशोर को कांग्रेस में उनके मान-सम्मान के मुताबिक और मनमाफिक कोई बड़ा पद दे भी दिया जाता है - और ये भी मान लीजिये कि वो नया कामकाज संभाल भी लेते हैं!
पहली चुनौती तो यही होगी कि ममता बनर्जी के साथ हुए उनकी कंपनी आईपैक के कॉन्ट्रैक्ट का क्या होगा? प्रशांत किशोर जेडीयू में रहते हुए भी जगनमोहन रेड्डी के लिए काम करते रहे और पार्टी से निकाले जाने के वक्त पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के साथ साथ दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का इलेक्शन कैंपेन संभाल रहे थे - और ये तीनों ही काम सफलतापूर्वक संपन्न भी हो चुके हैं.
सवाल ये है कि कांग्रेस नेतृत्व को क्या ये सब मंजूर होगा?
सबसे बड़ा चैलेंज तो तब सामने आएगा जब प्रशांत किशोर को ये फैसला करना होगा कि वो ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए आगे बढे़ं या राहुल गांधी के लिए - ममता बनर्जी का दिल्ली दौरा शुरू होते ही राहुल गांधी को हाई एक्टिव मोड में देख कर तो यही लगता है कि प्रधानमंत्री बनने में उनकी दिलचस्पी पहले के मुकाबले ज्यादा ही बढ़ी हुई है. विपक्ष का नेतृत्व करने का मौका तो वो किसी को नहीं देना चाहते, ये तो उनकी पश्चिम बंगाल चुनाव की एकमात्र रैली से भी मालूम हो गया था, लेकिन अब तो तस्वीर भी पूरी तरह साफ हो चुकी है.
ममता बनर्जी के बयानों पर जायें तो संभव है वो प्रधानमंत्री पद की रेस से खुद को वास्तव में अलग कर लें क्योंकि पहला मकसद तो उनका भी केंद्र से मोदी सरकार को बेदखल करना ही है - और राहुल गांधी का भी ये कॉमन एजेंडा है. ऐसे में ये भी संभव है कि दोनों पक्ष मिलकर कोई नया मनमोहन सिंह ही तलाश लें - वैसे भी बॉलीवुड गीतकार जावेद अख्तर विपक्षी नेताओं की मीटिंग में भी शामिल हो रहे हैं और ममता बनर्जी के साथ होने वाली मुलाकात सूची में उनका भी नाम दर्ज है.
राहुल गांधी के साथ अपने पुराने अनुभव को देखते हुए प्रशांत किशोर चुनाव कैंपेन भर के लिए शायद ही हामी भरें - क्योंकि उनके काम करने की छूट देने की बजाये उनके कामकाज को ही मीडिया मैनेजमेंट तक सीमित कर दिया जाता है.
कहीं फिर से ऐसा तो नहीं होगा कि प्रशांत किशोर से कहा जाये कि उनको यूपी के मामलों में दखल देने की जरूरत नहीं है क्योंकि वो जिम्मेदारी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा निभाती हैं. 2017 में यूपी चुनाव कैंपेन के दौरान प्रशांत किशोर को अमेठी, सुल्तानपुर और रायबरेली संसदीय क्षेत्रों के लिए ऐसी ही हदबंदी कर दी गयी थी - हो सकता है प्रियंका गांधी की जी तोड़ कोशिश के बावजूद अमेठी हार जाने के बाद प्रशांत किशोर के सामने ऐसी अड़चन न आये.
तमाम मुश्किलात के दरम्यान हर मामले में कोई न कोई ब्राइट साइड भी होता है. प्रशांत किशोर और राहुल गांधी के मामले में भी उनका कोई कॉमन मिनिमम प्रोग्राम हो सकता है - हो सकता है राहुल गांधी के आगे का राजनीतिक भाग्योदय प्रशांत किशोर के हाथों ही लिखा हो!
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