ये तो नहीं कहा जा सकता कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अपने 'मन की बात' नहीं कह पाते. . अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रेडियो पर मन की बात करते हैं तो राहुल गांधी भी ट्विटर-यूट्यूब पर वैसा कर ही लेते हैं - और वे चीजें बाकी सोशल मीडिया पर भी शेयर होती ही हैं. ये जरूर कहा जा सकता है कि राहुल गांधी अपने मन की बात कम ही कर पाते हैं. मन की बात कहने का मतलब हुआ जो मन में है उसे साझा करना, लेकिन मन की बात करने से तो मनमानी करना ही समझा जाएगा - और ऐसा अतिरेक ही होगा. ऐसे मन की बात के मामले में अभिव्यक्ति की आजादी वाला फॉर्मूला लागू होगा - सभी को अभिव्यक्ति की आजादी वहीं तक है जहां के बाद दूसरे की अभिव्यक्ति की आजादी प्रभावित होती है.
लेकिन क्या राहुल गांधी को अपने मन के मुताबिक राजनीति करने की आजादी करने की भी छूट नहीं मिलनी चाहिये?
ये जरूरी है क्या कि राहुल गांधी अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे रहने पर ही कांग्रेस के लीडर माने जाएंगे?
बहरहाल, अब तो ये खबर भी आ रही है कि काफी संभावना है कि कांग्रेस अध्यक्ष का पद हमेशा के लिए सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के पास ही रहे - और जैसा कि G-23 नेता अध्यक्ष को काम करते हुए देखना चाहते हैं तो उनको निराश भी होना पड़ सकता है - क्योंकि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष (Congress President) पद अस्वीकार कर देने की स्थिति में कांग्रेस ने जो प्लान बी बनाया है वो ऐसा ही है.
स्थापना दिवस पर राहुल की मौजूदगी से कितना फर्क पड़ता?
कांग्रेस के 136वें स्थापना दिवस कार्यक्रम से ठीक पहले राहुल गांधी का विदेश दौरे पर रवाना हो जाना बहुतों को नागवार गुजरा है. बल्कि, कहें तो बेहद नागवार गुजरा है. बीजेपी की ही तरह हंस तो कांग्रेस के नेता भी रहे होंगे, लेकिन वे बीजेपी की तरह कुछ कह भी तो नहीं सकते. काम करते हुए देखे जा सकने वाले एक पूर्णकालिक अध्यक्ष की मांग को लेकर अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख भर देने से तो CWC में ही जैसे कोहराम ही मच गया था - गिनती भर की दो-चार आवाजों...
ये तो नहीं कहा जा सकता कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अपने 'मन की बात' नहीं कह पाते. . अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रेडियो पर मन की बात करते हैं तो राहुल गांधी भी ट्विटर-यूट्यूब पर वैसा कर ही लेते हैं - और वे चीजें बाकी सोशल मीडिया पर भी शेयर होती ही हैं. ये जरूर कहा जा सकता है कि राहुल गांधी अपने मन की बात कम ही कर पाते हैं. मन की बात कहने का मतलब हुआ जो मन में है उसे साझा करना, लेकिन मन की बात करने से तो मनमानी करना ही समझा जाएगा - और ऐसा अतिरेक ही होगा. ऐसे मन की बात के मामले में अभिव्यक्ति की आजादी वाला फॉर्मूला लागू होगा - सभी को अभिव्यक्ति की आजादी वहीं तक है जहां के बाद दूसरे की अभिव्यक्ति की आजादी प्रभावित होती है.
लेकिन क्या राहुल गांधी को अपने मन के मुताबिक राजनीति करने की आजादी करने की भी छूट नहीं मिलनी चाहिये?
ये जरूरी है क्या कि राहुल गांधी अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे रहने पर ही कांग्रेस के लीडर माने जाएंगे?
बहरहाल, अब तो ये खबर भी आ रही है कि काफी संभावना है कि कांग्रेस अध्यक्ष का पद हमेशा के लिए सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के पास ही रहे - और जैसा कि G-23 नेता अध्यक्ष को काम करते हुए देखना चाहते हैं तो उनको निराश भी होना पड़ सकता है - क्योंकि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष (Congress President) पद अस्वीकार कर देने की स्थिति में कांग्रेस ने जो प्लान बी बनाया है वो ऐसा ही है.
स्थापना दिवस पर राहुल की मौजूदगी से कितना फर्क पड़ता?
कांग्रेस के 136वें स्थापना दिवस कार्यक्रम से ठीक पहले राहुल गांधी का विदेश दौरे पर रवाना हो जाना बहुतों को नागवार गुजरा है. बल्कि, कहें तो बेहद नागवार गुजरा है. बीजेपी की ही तरह हंस तो कांग्रेस के नेता भी रहे होंगे, लेकिन वे बीजेपी की तरह कुछ कह भी तो नहीं सकते. काम करते हुए देखे जा सकने वाले एक पूर्णकालिक अध्यक्ष की मांग को लेकर अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख भर देने से तो CWC में ही जैसे कोहराम ही मच गया था - गिनती भर की दो-चार आवाजों ने चिट्ठी लिखने वालों के खिलाफ एक्शन के लिए इतना शोर मचाया कि बेचारे खामोश रहना ही बेहतर समझ लिये.
राहुल गांधी के छुट्टी पर चले जाने को लेकर ऐसे शोर मचाया जा रहा है, जैसे सब कुछ थम गया हो - और राहुल गांधी के बगैर कुछ हो ही नहीं रहा है. एक एक करके गिनाया भी जा रहा है. सबसे ज्यादा तो कांग्रेस के स्थापना दिवस कार्यक्रम की दुहाई दी जा रही है. फिर ये भी याद दिलाया जा रहा है कि किसानों का आंदोलन चल रहा है और राहुल गांधी हैं कि छोड़ कर छुट्ठी पर चले गये.
स्थापना दिवस तो कांग्रेस पदाधिकारियों के लिए महत्वपूर्ण होता है, कार्यकर्ताओं को तो इतनी छूट मिल ही जाती है कि वो किसी जरूरी काम में फंस गये तो कोई आफत नहीं आ जाती. अगर राहुल गांधी की जगह या उनके साथ साथ प्रियंका गांधी वाड्रा भी चली गयी होतीं तो पूछना बनता भी था. प्रियंका गांधी वाड्रा तो कांग्रेस महासचिव भी हैं, राहुल गांधी क्या हैं - सिर्फ वायनाड से सांसद. यही ना. तो क्या हर सांसद का स्थापना दिवस कार्यक्रम में रहना जरूरी होगा ऐसा कोई सर्कुलर जारी किया गया था क्या? कांग्रेस का स्थापना दिवस वैसे भी कोई संसद की कार्यवाही जैसा थोड़े ही है. अगर CWC की बात होती तो एक बार लगता भी.
जैसे स्थापना दिवस के मौके पर सोनिया गांधी ने वीडियो मैसेज जारी किया था, राहुल गांधी ने भी एक ट्वीट तो कर ही दिया - और कोरोना पैंडेमिक के चलते वर्क फ्रॉम होम में ऐसा करना क्या बुराई है?
ऐसा भी तो नहीं कि राहुल गांधी कोई काम अधूरा छोड़ कर गये हों. और जब इतना सारा काम कर दिया तो भला क्यों न जायें छुट्टी पर - और वैसे भी राहुल गांधी स्थापना दिवस के कार्यक्रम में होते भी तो और क्या क्या होता?
जब बिहार चुनाव में होने से फर्क नहीं पड़ा. जब दिल्ली चुनाव में होने से फर्क नहीं पड़ा. झारखंड चुनाव में फर्क जरूर पड़ा जब चुनावी रैली छोड़ कर ही निकल लिये. बची हुई रैली में प्रियंका गांधी ने जाकर स्थिति को संभाला था - क्योंकि उसके ठीक पहले वाली रैली में राहुल गांधी ने बड़ा ही विस्फोटक भाषण दिया था - रेप इन इंडिया.
विदेश दौरे से पहले राहुल गांधी हाथरस नहीं गये थे क्या? पंजाब में किसानों के सपोर्ट में ट्रैक्टर रैली में नहीं गये थे क्या? रैली में ट्रैक्टर नहीं चलाये थे क्या? किसानों की आवाज पहुंचाने राष्ट्रपति से मिलने नहीं गये थे क्या? 'निरंतरता की कमी' बताने के बावजूद एक बार शरद पवार के साथ और दूसरी बार सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने के बाद. दूसरी बार तो ट्रक पर किसानों के हस्ताक्षर वाले ज्ञापन भी लेते गये थे.
कांग्रेस के और कितने सांसदों ने ये सब किया है? कांग्रेस के पदाधिकारियों ने भी कौन तीर मार लिया है? प्रियंका गांधी को भी हिरासत में जो लिया गया वो भी राहुल गांधी के राष्ट्रपति भवन तक मार्च का हिस्सा ही रहा.
विदेश न जाकर अगर राहुल गांधी स्थापना दिवस के कार्यक्रम के लिए दिल्ली में रहते भी तो और ज्यादा क्या हो जाता?
दिल्ली जैसा ही लगता है कांग्रेस का प्लान B
सोनिया गांधी ने हाल ही में चिट्ठी लिखने वाले G-23 नेताओं को ध्यान में रख कर एक मीटिंग बुलायी थी. बाकी बातें हो रही थीं, तभी मौका पाते ही कुछ नेताओं ने राहुल गांधी से फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने की गुहार शुरू कर दी. राहुल गांधी ने ये कहते हुए बात टालने की कोशिश की कि अध्यक्ष पद की प्रक्रिया चल रही है इसलिए उस पर ज्यादा बातचीत ठीक नहीं है, लेकिन कांग्रेस नेता मानने वाले कहां - उनको तो ऐसा करने का एक मौका भर चाहिये. अगर ऐसी चर्चा का मौका न भी हो तो बोलने का मौका मिलते ही वो ऐसी बातें शुरू कर देते हैं. राहुल गांधी ने शायद इसीलिए बोल दिया था वो कोई भी जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं, लेकिन अध्यक्ष वाली ही जिम्मेदारी हो ऐसा तो वो बोले भी नहीं.
अब अगर राहुल गांधी का मन नहीं कर रहा है कि वो फिर से अध्यक्ष बनें - फिर जरूरत क्या दबाव बनाने की. ये भी तो हो सकता है बगैर अध्यक्ष बने ही वो अपने मन की बात सहजता के साथ कर पा रहे हों. बीजेपी और मोदी सरकार को काउंटर करने के लिए राहुल गांधी को अध्यक्ष पद कमजोरी जैसा लग रहा होगा. राहुल गांधी के अध्यक्ष पद ठुकरा देने के बाद तो बीजेपी ने ये आरोप लगाना तो छोड़ ही दिया है कि कांग्रेस में जब भी अध्यक्ष होगा गांधी परिवार से ही होगा.
आखिर पार्टी का नेता होने के लिए अध्यक्ष बनना ही क्यों जरूरी है? नीतीश कुमार ने अभी अभी अध्यक्ष पद छोड़ ही दिया है. कुछ दिन पहले अमित शाह ने भी छोड़ दिया था - और क्या बीजेपी में उनकी मंजूरी के बगैर कोई फैसला हो सकता है? अगर किसी ने ऐसा दुस्साहस दिखाया भी तो अघोषित वीटो पावर तो वो अपने पास ही रखते हैं.
अगर नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार को पार्टी का नेता बनने के लिए अध्यक्ष होना जरूरी नहीं है तो ऐसी कांग्रेस में क्या मजबूरी है - आखिर राहुल गांधी बगैर अध्यक्ष हुए कांग्रेस पार्टी के नेता क्यों नहीं हो सकते?
कांग्रेस ऐसी कोई व्यवस्था क्यों नहीं निकाल लेती कि उसके सदाबहार नेता राहुल गांधी ही हों और अध्यक्ष कोई और हो जाये जो रिमोट कंट्रोल से काम कर सके - और राहुल गांधी के लिए कभी कोई खतरा न बने. वैसे भी राहुल गांधी के अलावा कांग्रेस के नेता एकजुट हो भी तो नहीं सकते.
अगर राहुल गांधी में इतनी ही पदलोलुपता होती तो क्या वे 2014 से पहले ही प्रधानमंत्री नहीं बन चुके होते. तब तो कांग्रेस में कोई चिट्ठी भी नहीं लिखता था. जो शख्स प्रधानमंत्री में भी कभी दिलचस्पी नहीं दिखाया हो - अध्यक्ष पद में उसके लिए क्या रखा है?
ये सारी बातें और चर्चा इसलिए राहुल गांधी के इर्द गिर्द घूम रही है - क्योंकि अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स ने एक रिपोर्ट छापी है और बताया है कि राहुल गांधी अब भी अध्यक्ष बनने में इंटरेस्ट नहीं ले रहे हैं. ये रिपोर्ट कई सारे कांग्रेस नेताओं से बात कर तैयार की गयी है - और कुछ गुमनाम नेताओं ने तो साफ तौर पर कह दिया है कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी दोबारा नहीं संभालने वाले हैं.
अखबार ने रिपोर्ट में ये भी बताया है कि राहुल गांधी के ऐन वक्त पर कांग्रेस अध्यक्ष पद ठुकरा देने की स्थिति में कांग्रेस ने प्लान बी भी तैयार कर रखा है. ये प्लान कुछ कुछ वैसे ही लगता है जैसे आम चुनाव के वक्त दिल्ली में इंतजाम किया गया था. तब शीला दीक्षित को कमान सौंपे जाने के बाद कुछ कार्यकारी अध्यक्ष और दूसरे पदाधिकारी काम में मदद के लिए नियुक्त किये गये थे.
रिपोर्ट के मुताबिक, राहुल गांधी के दोबारा अध्यक्ष न बनने की स्थिति में अलग अलग जोन के हिसाब से चार उपाध्यक्ष बनाये जा सकते हैं जो सोनिया गांधी के अधीन काम करेंगे. सोनिया गांधी के पास सर्वाधिकार सुरक्षित होगा, लेकिन चारों अध्यक्ष सामूहिक रूप से सारे निर्णय लेते रहेंगे और उनके साथ महासचिव भी काम में हाथ बंटाते रहेंगे.
ये भी बढ़िया ही है. कमान गांधी परिवार के हाथ में ही रहेगी और ठीकरा फोड़ने के लिए बहुविकल्पीय व्यवस्था भी बनी रहेगी - हो सकता है ऐसा होने पर राहुल गांधी अपने मन की बात कह भी सकें और कर भी सकें.
इन्हें भी पढ़ें :
कांग्रेस स्थापना दिवस को छोड़ इटली गये राहुल गांधी पर सवाल क्यों न खड़े हों?
PA और राहुल गांधी को निशाना बनाते शिवसेना की सियासत के मायने
राहुल गांधी किसान आंदोलन के सपोर्ट में शॉर्ट कट क्यों खोज रहे हैं?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.