कांग्रेस की चुनावों में लगातार हो रही हार को चाहे जैसे लिया जाता हो, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पर कोई असर नजर नहीं आता. पहले गुजरात और अभी अभी कर्नाटक दौरे पर गये राहुल गांधी की बातें सुन कर तो ऐसा ही लगता है.
G-23 कांग्रेस (Congress) नेता भले ही निराश हो चुके हों. भले ही ऐसे नेताओं को लगता है कि बगैर एक पर्मानेंट कांग्रेस अध्यक्ष के कुछ नहीं हो सकता. भले ही G-23 नेता राहुल गांधी के अध्यक्ष रहते ये धारणा बना चुके हों कि वो कभी काम करते हुए दिखे नहीं, लेकिन राहुल गांधी को ऐसी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ा है.
2014 के बाद 2019 ही नहीं, 2020 और 2021 में हुए चुनाव ही नहीं, भले ही कांग्रेस 2022 में हुए विधानसभा चुनाव भी हार चुकी हो, लेकिन राहुल गांधी की ताजा सक्रियता ऐसी लग रही है जैसे कुछ हुआ ही न हो - हो सकता है राहुल गांधी के मन में हार की टीस हो, लेकिन जिस तरीके से कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हौसलाअफजाई कर रहे हैं वो ध्यान खींचने वाला है.
यूपी चुनावों से पहले राहुल गांधी के गुजरात दौरे में इसकी पहली झलक देखने को मिली थी - और अब कर्नाटक में भी कांग्रेस नेता की वही स्टाइल देखने को मिली है. जैसे गुजरात के कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ाने की कोशिश की गयी, राहुल गांधी को कर्नाटक चुनावों की तैयारी के लिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं को करीब करीब उसी अंदाज में मोटिवेट करते महसूस किजा जा रहा है.
बेशक कांग्रेस पूरे देश में फिर से खड़े होने की लड़ाई लड़ रही है. बेशक बीजेपी के प्रभाव में कांग्रेस को लोग सीरियसली न ले रहे हों. बेशक कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के नेतृत्व के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा हो, लेकिन इसमें तो कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए गांधी परिवार का प्रभाव पहले...
कांग्रेस की चुनावों में लगातार हो रही हार को चाहे जैसे लिया जाता हो, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पर कोई असर नजर नहीं आता. पहले गुजरात और अभी अभी कर्नाटक दौरे पर गये राहुल गांधी की बातें सुन कर तो ऐसा ही लगता है.
G-23 कांग्रेस (Congress) नेता भले ही निराश हो चुके हों. भले ही ऐसे नेताओं को लगता है कि बगैर एक पर्मानेंट कांग्रेस अध्यक्ष के कुछ नहीं हो सकता. भले ही G-23 नेता राहुल गांधी के अध्यक्ष रहते ये धारणा बना चुके हों कि वो कभी काम करते हुए दिखे नहीं, लेकिन राहुल गांधी को ऐसी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ा है.
2014 के बाद 2019 ही नहीं, 2020 और 2021 में हुए चुनाव ही नहीं, भले ही कांग्रेस 2022 में हुए विधानसभा चुनाव भी हार चुकी हो, लेकिन राहुल गांधी की ताजा सक्रियता ऐसी लग रही है जैसे कुछ हुआ ही न हो - हो सकता है राहुल गांधी के मन में हार की टीस हो, लेकिन जिस तरीके से कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हौसलाअफजाई कर रहे हैं वो ध्यान खींचने वाला है.
यूपी चुनावों से पहले राहुल गांधी के गुजरात दौरे में इसकी पहली झलक देखने को मिली थी - और अब कर्नाटक में भी कांग्रेस नेता की वही स्टाइल देखने को मिली है. जैसे गुजरात के कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ाने की कोशिश की गयी, राहुल गांधी को कर्नाटक चुनावों की तैयारी के लिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं को करीब करीब उसी अंदाज में मोटिवेट करते महसूस किजा जा रहा है.
बेशक कांग्रेस पूरे देश में फिर से खड़े होने की लड़ाई लड़ रही है. बेशक बीजेपी के प्रभाव में कांग्रेस को लोग सीरियसली न ले रहे हों. बेशक कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के नेतृत्व के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा हो, लेकिन इसमें तो कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए गांधी परिवार का प्रभाव पहले जैसा ही है.
वैसे भी बदले राजनीतिक हालात और बीजेपी के मौजूदा स्वरूप से मुकाबला करना किसी भी नेता के लिए मुश्किल होता. भले ही वो राजीव गांधी होते या इंदिरा गांधी ही क्यों न होतीं, लेकिन ये भी है कि ऐसे मुश्किल हालात में भी राहुल गांधी कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने में कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं.
पांच साल पहले गुजरात चुनाव में राहुल गांधी के नये अवतार की खूब चर्चा रही. 84 के सिख दंगों को लेकर 'हुआ तो हुआ' जैसे डायलॉग बोलने वाले सैम पित्रोदा ने तब राहुल गांधी के लिए देश से बाहर कई इवेंट आयोजित कराये थे. राहुल गांधी को 2017 के गुजरात चुनाव (Gujarat Election) में मेहनत का फल भी मिला था. वैसे भी बीते कई साल में राहुल गांधी के अलग अलग चुनावों में नये नये अवतार देखने को मिले हैं - क्या गुजरात चुनाव से एक बार फिर राहुल गांधी का नया अवतार नजर आने वाला है?
नये अवतार में आ रहे हैं राहुल गांधी
राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाने वालों को राहुल गांधी का मोटिवेशनल स्पीच जरूर सुनना चाहिये. लेकिन शर्तें भी लागू होंगी. राहुल गांधी की स्पीच किसी एक्सपर्ट के तौर पर नहीं सुनने की जरूरत है, बल्कि एक कांग्रेस कार्यकर्ता के नजरिये और श्रद्धा भाव से सुनना होगा.
नेतृत्व क्षमता की बात करें तो पंजाब में कांग्रेस की हार और यूपी चुनाव में प्रदर्शन की समीक्षा अलग अलग पैमानों पर की जा सकती है. पंजाब में कांग्रेस नेतृत्व के गलत फैसलों का शिकार हुई, लेकिन यूपी में प्रियंका गांधी वाड्रा की सक्रियता की वजह से सभी स्थानीय नेता और कार्यकर्ता एक्टिव दिखे. जो उत्साह प्रियंका गांधी ने यूपी चुनाव के दौरान कार्यकर्ताओं में अपने एक्शन से भरने की कोशिश की थी, राहुल गांधी फिलहाल अपनी मोटिवेशनल स्पीच से जगह जगह वैसा ही कर रहे हैं.
पंजाब में कांग्रेस सत्ता में थी - और सबसे बड़ी बात कि वहां बीजेपी मुकाबले में कहीं भी नजर नहीं आ रही थी. सर्वे और एग्जिट पोल जैसे ही पंजाब में चुनाव नतीजे भी देखने को मिले. पंजाब की हार नेतृत्व के सही फैसले न ले पाने का रिजल्ट रही.
अगले एक साल में जहां कहीं भी चुनाव होने हैं कांग्रेस को अपने पैरों पर सीधे खड़े होने के लिए संघर्ष करना है. न तो पंजाब जैसे फैसले लेने हैं, न यूपी जैसे एक्सपेरिमेंट की जरूरत है. इसी साल के आखिर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में और अगले साल कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं - और राहुल गांधी अभी से इलेक्शन मोड में आ चुके हैं.
कर्नाटक चुनाव के लिए 3 सिद्धांत: राहुल गांधी ने कर्नाटक दौरे में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए 150 सीटें जीतने का लक्ष्य भी पहले ही तय कर दिया है - और पूरा एक्शन प्लान भी समझा चुके हैं.
हालात तो यही बताते हैं कि राहुल गांधी के भाषण में हवाई किले ही बनाने की कोशिश ही समझायी जा रही होती है, लेकिन हर मोटिवेशलन स्पीकर की कोशिश भी तो ऐसी ही होती है. जो लोग भी निराश और हताश हो चुक होते हैं, हौसला अफजाई के जो तरीके अपनाये जाते हैं उसमें सबसे पहले भरोसा दिलाने की कोशिश होती है - राहुल गांधी को भी तो जन्नत की हकीकत मालूम है ही, फिर भी बड़े बड़े सपने दिखा रहे हैं.
राहुल गांधी ने कर्नाटक के कांग्रेस कार्यकर्ताओं को कई बातें समझाने की कोशिश की है - जिनमें महिलाओं और युवाओं पर फोकस करने की भी बात है. ध्यान रहे, प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने यूपी चुनाव में भी ऐसा ही प्रयोग किया था - पहले वो बातें जान लेते हैं जो राहुल गांधी ने कर्नाटक के कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कही है.
1. 'हमें 150 से अधिक सीटों के लिए चुनाव लड़ना है.'
2. 'हमें अपना निर्णय योग्यता के आधार पर लेना है.'
3. 'जिन्होंने काम किया है, हमें उन लोगों को सम्मान देना है.'
4. 'चुनाव में हमें दो चीजों पर फोकस करना है - युवा और महिला.'
5. 'हम युवाओं और महिलाओं को आगे ला सकते हैं, चाहे वो टिकट डिसीजन में हों या संगठन में हो - हमें अपनी पूरी शक्ति के साथ इन्हें आगे लाना है.'
ये कहना कि काम करने वालों को सम्मान देना है, ये समझना भी महत्वपूर्ण है. मतलब, कर्नाटक में पंजाब जैसा हाल नहीं होने देना है. जैसे नवजोत सिंह सिद्धू के लिए पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुनील जाखड़ जैसे नेताओं को नजरअंदाज किया गया कर्नाटक में ऐसी गलती नहीं दोहरायी जाएगी. आखिर कर्नाटक में भी तो दो गुट हैं ही. एक पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का गुट और दूसरा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार का खेमा.
फिर राहुल गांधी समझाते हैं कि कैसे कर्नाटक में बड़े आराम से 150 सीटें जीती जा सकती हैं. कर्नाटक विधानसभा में 224 सीटें हैं. सत्ताधारी बीजेपी के पास फिलहाल 121 विधायक हैं और एक निर्दल विधायक का समर्थन हासिल है. बहुमत का आंकड़ा 113 है.
150 सीटें जीतने का मंत्र: राहुल गांधी कहते हैं, 'आपके लिए मेरा संदेश यही है कि 150 सीटों से कम एक भी सीट नहीं लानी है.'
दोहराते भी हैं, 'सबसे अहम संदेश ये है कि आपको एकजुट होकर लड़ने की जरूरत है. आपको इसमें और अधिक प्रयास करने की जरूरत है' - और कहते हैं, 'मैं यही कहना चाहता हूं कि आप सभी को एक साथ लड़ना पड़ेगा, अपनी जिम्मेदारी गहराई से पूरी करनी पड़ेगी.'
और फिर आश्वस्त भी करते हैं, 'जब भी आपको मेरी जरूरत होगी... मैं आप सभी के लिए हूं... मैं किसी भी लड़ाई के लिए तैयार हूं... कर्नाटक में हम 150 सीटें जीतेंगे... मुझे विश्वास है कि हम यहां सरकार बनाएंगे.'
लगे हाथ ये भी समझा देते हैं कि अब कांग्रेस के पुराने अंदाज से काम नहीं चलने वाला, मुकाबला बीजेपी से जो है. राहुल गांधी कहते हैं, 'कर्नाटक को हमें एक नयी कांग्रेस पार्टी दिखानी है जो मुद्दों के लिए लड़े... लोगों को एक साथ लाने का काम करे और भाजपा के झूठ को जनता के सामने स्पष्टता के साथ रखे.'
गुजरात दौरे में राहुल गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से ये भी कहा था कि लड़ाई खत्म होने से पहले हार कभी नहीं माननी चाहिये - और हार न मान लेने को लेकर एक डेडलाइन भी दी थी, "10 दिसंबर से पहले कोई भी कांग्रेस का नेता या कार्यकर्ता हार नहीं मानेगा."
और चुनाव जीतने का अपनी तरफ से जो सबसे बड़ा मंत्र दिया था, वो रहा - "ये चुनाव आप जीत गये हो, बस अब इस बात को स्वीकार करना है."
बस जीत की एडवांस बधाई नहीं दिये थे!
गुजरात जैसी ही कर्नाटक की तैयारी
हाल में हुए विधानसभा चुनावों के अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात पहुंच गये थे - और रोड शो कर रहे थे. तब अखिलेश यादव और राहुल गांधी जैसे नेताओं को लोग सबक लेने की सलाह दे रहे थे. मोदी के रोड शो के समानांतर संघ की भी मीटिंग की तैयारी चल रही थी जिसमें बड़े नेताओं का जमावड़ा रहा. अब खबर है कि मोदी का अगला दौरा 21 अप्रैल से हो सकता है.
रही बात कर्नाटक और गुजरात चुनाव की तो दोनों में करीब छह महीने का फासला होगा. देखा जाये तो राहुल गांधी समय रहते ही तैयारी शुरू कर चुके हैं, लेकिन मोदी की तरह भला वो रोड शो किस बात के लिए करें. जश्न तो जीत का मनाया जाता है, हार के लिए तो अकेले में मातम किया जाता है. तकनीकी तौर पर उसे समीक्षा बैठक भी कह लेते हैं. एक ऐसी बैठक जिसमें कुछ निष्ठावान नेता अपने पार्टी नेतृत्व के बचाव में हार की सामूहिक जिम्मेदारी ले लेते हैं.
गुजरात चुनाव में राहुल गांधी के मोटिवेशनल स्पीच के बाद, अब गांधी संदेश यात्रा की तैयारी है. ये गांधी संदेश यात्रा ऐतिहासिक दांडी मार्च के आखिरी दिन यानी 6 अप्रैल को शुरू होने वाली है. राहुल गांधी ही इस यात्रा को साबरमती आश्रम से शुरू कराएंगे. फिर ये यात्रा कांग्रेस सेवादल के कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में आगे बढ़ेगी.
कांग्रेस की ये गांधी संदेश यात्रा गुजरात के सभी जिलों से गुजरने वाली है. गुजरात के बाद राजस्थान और हरियाणा होते हुए ये यात्रा दिल्ली पहुंचेगी और राजीव गांधी की समाधि वीर भूमि पर खत्म होगी - मतलब, ये गांधी से गांधी को जोड़ने की नयी कवायद है. महात्मा गांधी से राजीव गांधी तक.
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