राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की बातों से अभी तक ऐसा कोई संकेत तो नहीं मिला है कि वो भी जल्द ही अरविंद केजरीवाल की तरह 'जय श्रीराम' के नारे लगा सकते हैं - लेकिन जिस दिशा में और जिस रफ्तार से राहुल गांधी की राजनीति दौड़ रही है, ये नामुमकिन भी नहीं लग रहा है. जयपुर से अमेठी तक राहुल गांधी के भाषण में पुराने मुद्दे भी दोहराये जाते हैं, लेकिन ज्यादा जोर हिंदुत्व (Hindutva) पर ही रहता है. फर्क इस बात से भी नहीं पड़ता कि उनका भाषण आयोजन की थीम से मैच भी कर रहा है या नहीं?
निश्चित तौर पर वो महंगाई, बेरोजगारी से लेकर नफरत और चीन की बात भी करते हैं, लेकिन हिंदुत्व विमर्श में ज्यादा दिलचस्पी लेने लगे हैं - और फिर फौरन ही वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर ले लेते हैं. फिर छोटे छोटे डिटेल्स के साथ चुन चुन कर हमला बोलते हैं.
राहुल गांधी ने अरविंद केजरीवाल की तरह हिंदुत्व की राजनीतिक राह तो पकड़ ली है, लेकिन AAP नेता की तरह मोदी-शाह या बीजेपी पर हमले से परहेज नहीं कर रहे हैं. बल्कि, वो मोदी पर हमले के मामले में अभी ममता बनर्जी से होड़ ले रहे हैं और तृणमूल कांग्रेस नेता को पछाड़ने की लगातार कोशिश कर रहे हैं.
कांग्रेस की जयपुर रैली के बाद अमेठी पदयात्रा यूं ही तो नहीं लगती. ये किसी लंबी सोच और दूरगामी रणनीति का हिस्सा है. ध्यान दीजिये राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा दोनों साथ साथ इस रणनीति को आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन दोनों की बातों में अलग अलग चीजों पर जोर होता है. जयपुर पहुंच कर सोनिया गांधी बेटे-बेटी को तो बोलने का पूरा मौका देती हैं लेकिन खुद खामोश रहती हैं. जैसे हरी झंडी दिखाकर रवाना कर रही हों - जयपुर से अमेठी और अमेठी से आगे के लिए.
जयपुर की ही तरह अमेठी में भी राहुल गांधी हिंदुत्व और हिंदुत्ववादी का ही फर्क समझाते हैं, प्रियंका गांधी...
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की बातों से अभी तक ऐसा कोई संकेत तो नहीं मिला है कि वो भी जल्द ही अरविंद केजरीवाल की तरह 'जय श्रीराम' के नारे लगा सकते हैं - लेकिन जिस दिशा में और जिस रफ्तार से राहुल गांधी की राजनीति दौड़ रही है, ये नामुमकिन भी नहीं लग रहा है. जयपुर से अमेठी तक राहुल गांधी के भाषण में पुराने मुद्दे भी दोहराये जाते हैं, लेकिन ज्यादा जोर हिंदुत्व (Hindutva) पर ही रहता है. फर्क इस बात से भी नहीं पड़ता कि उनका भाषण आयोजन की थीम से मैच भी कर रहा है या नहीं?
निश्चित तौर पर वो महंगाई, बेरोजगारी से लेकर नफरत और चीन की बात भी करते हैं, लेकिन हिंदुत्व विमर्श में ज्यादा दिलचस्पी लेने लगे हैं - और फिर फौरन ही वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर ले लेते हैं. फिर छोटे छोटे डिटेल्स के साथ चुन चुन कर हमला बोलते हैं.
राहुल गांधी ने अरविंद केजरीवाल की तरह हिंदुत्व की राजनीतिक राह तो पकड़ ली है, लेकिन AAP नेता की तरह मोदी-शाह या बीजेपी पर हमले से परहेज नहीं कर रहे हैं. बल्कि, वो मोदी पर हमले के मामले में अभी ममता बनर्जी से होड़ ले रहे हैं और तृणमूल कांग्रेस नेता को पछाड़ने की लगातार कोशिश कर रहे हैं.
कांग्रेस की जयपुर रैली के बाद अमेठी पदयात्रा यूं ही तो नहीं लगती. ये किसी लंबी सोच और दूरगामी रणनीति का हिस्सा है. ध्यान दीजिये राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा दोनों साथ साथ इस रणनीति को आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन दोनों की बातों में अलग अलग चीजों पर जोर होता है. जयपुर पहुंच कर सोनिया गांधी बेटे-बेटी को तो बोलने का पूरा मौका देती हैं लेकिन खुद खामोश रहती हैं. जैसे हरी झंडी दिखाकर रवाना कर रही हों - जयपुर से अमेठी और अमेठी से आगे के लिए.
जयपुर की ही तरह अमेठी में भी राहुल गांधी हिंदुत्व और हिंदुत्ववादी का ही फर्क समझाते हैं, प्रियंका गांधी वाड्रा का फोकस अलग होता है. अगर हिंदुत्व की बात आती है तो बस इतना ही बोलती हैं कि लगे कि राहुल गांधी को उनका पूरा सपोर्ट है - कहीं कांग्रेस का इरादा अब धर्म निरपेक्षता की राजनीति (Politics of Secularism) से तौबा कर लेने का तो नहीं है?
कांग्रेस अब हिंदू पार्टी बनने की कोशिश में तो नहीं?
कांग्रेस के हाल के दो कार्यक्रम शुरू होने से पहले तक महंगाई के खिलाफ आवाज उठाने के मकसद वाले लगे, लेकिन शुरू होते ही मालूम हुआ कि राहुल गांधी का ज्यादा जोर तो हिंदुत्व पर ही है. जयपुर की कांग्रेस रैली भी महंगाई के ही खिलाफ थी और अमेठी में राहुल गांधी और प्रियंका की पदयात्रा भी.
हिंदू, हिंदुत्व और हिंदुत्वादी के बीच के फर्क समझाते समझाते राहुल गांधी तो अब यहां तक कहने लगे हैं कि भारत में हिंदुओं का राज होना चाहिये - क्या ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिंदू राष्ट्र की कल्पना से कोई अलग चीज लगती है?
अब तक तो संघ और बीजेपी पर कांग्रेस और राहुल गांधी सांप्रदायिकता की राजनीति के आरोप लगाते रहे - और पूरा जोर धर्मनिरपेक्षता पर हुआ करता था, लेकिन क्या मौजूदा राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए कांग्रेस ने पुराने स्टैंड से पल्ला झाड़ लेने का फैसला कर लिया है?
कांग्रेस का हिंदुत्व अभियान: कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह संघ, बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी या अमित शाह पर अपने हमले तो नहीं बंद किये हैं, लेकिन लहजा बदल गया है. शब्द बदल गये हैं.
पहले राहुल गांधी संघ और बीजेपी पर जो हमले कर रहे हैं उसमें मुस्लिमपरस्ती की झलक मिलती थी, लेकिन अब कांग्रेस नेता के बयानों में सिर्फ हिंदुत्व की बातें होती हैं. राहुल गांधी अब धर्म निरपेक्ष की जगह हिंदुत्व और सांप्रदायिकता की जगह हिंदुत्ववादी शब्द का इस्तेमाल करने लगे हैं.
जैसे जयपुर में राहुल गांधी ने गांधी और गोडसे का नाम लेकर एक तरीके से अच्छा हिंदू और बुरे हिंदू का फर्क समझाया था, अमेठी में भी वैसा ही किया. राहुल गांधी ने बनारस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गंगा में डुबकी लगाने में भी अपना ऐंगल खोज निकाला है.
राहुल गांधी अपनी बात समझाने की कोशिश करते हैं, 'हमने देखा कि प्रधानमंत्री जी ने गंगा में स्नान किया... पहली बार मैंने देखा कि एक आदमी स्वयं गंगा में स्नान कर रहा है... मैंने कभी देखा नहीं, इतिहास में कभी नहीं हुआ कि एक आदमी जाकर... बाकी सबको हटा दिया... योगी जी को हटा दिया, राजनाथ सिंह को बाहर फेंक दिया, नहीं भैया... पूरी दुनिया ने देखा कि एक आदमी अकेला गंगा में स्नान कर रहा है - और कोई नहीं कर सकता.'
राहुल गांधी ने मोदी के गंगा स्नान के बहाने अपनी थ्योरी को एक्सप्लेन किया, 'हिंदुत्ववादी अकेले गंगा स्नान करते हैं... लेकिन एक हिंदू करोड़ों लोगों के साथ ही गंगा स्नान करेगा.'
मतलब साफ है. राहुल गांधी सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिंदुत्व पर सवाल उठा रहे हैं. ये वक्त का तकाजा है. ये मौके की नजाकत है. ये मौजूदा राजनीतिक समीकरमों में फिट होने की बेचैनी है - लेकिन ये वैचारिक लड़ाई तो कतई नहीं लगती. राजनीतिक मौकापरस्ती कहें तो बेहतर होगा.
मोदी के हिंदुत्व पर हमले की कोशिश: 2018 के आखिर में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे थे. उदयपुर में एक चुनावी कार्यक्रम के दौरान राहुल गांधी समझा रहे थे, 'हिंदुत्व का सार क्या है? गीता क्या कहती है? वो ज्ञान हर किसी के साथ है... ज्ञान आपके चारों ओर है... हर जीवित चीज के पास ज्ञान है... हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं कि वो हिंदू हैं, लेकिन हिंदुत्व की नींव के बारे में नहीं जानते - वो किस प्रकार के हिंदू हैं?'
तब बीजेपी नेता सुषमा स्वराज ने मोदी की तरह से मोर्चा संभाला था, 'राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिंदू होने का मतलब नहीं पता है... ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वो और कांग्रेस अपने धर्म और जाति के बारे में कन्फ्यूज हैं... कई साल उन्हें सेक्युलर नेता के तौर पर पेश किया गया, लेकिन चुनाव के पास एहसास हुआ कि हिंदू बहुसंख्यक हैं... इसलिए अब ऐसी छवि बना रहे हैं.'
सुषमा स्वराज ने पूछा था क्या अब राहुल गांधी से हिंदू होने का मतलब समझना पड़ेगा? बोलीं, 'बयान आया कि वो जनेऊधारी ब्राह्मण हैं... मुझे नहीं मालूम था कि जनेऊधारी ब्राह्मण के ज्ञान में इतनी वृद्धि हो गई कि हिंदू होने का मतलब अब हमें उनसे समझना पड़ेगा... भगवान न करे कि वो दिन भी आये कि राहुल गांधी से हमें हिंदू होने का मतलब जानना पड़े.'
सुषमा स्वराज ने तभी राहुल गांधी के सेक्युरिज्म से तौबा करने की आशंका जतायी थी, राहुल गांधी अब उनको सही साबित करने की कोशिश में लगते हैं.
बड़ा सवाल ये है कि आखिर कांग्रेस नेतृत्व धर्मनिरपेक्षता से तौबा करने की क्यों सोच रहा है? क्या कांग्रेस को भी बदले हालात में सांप्रदायिकता की राजनीति अच्छी लगने लगी है?
मुद्दे की बात तो ये है कि बीजेपी ने हिंदुत्व के साथ राष्ट्रवाद को ही नहीं जोड़ा है, अयोध्या और वाराणसी भी विकास के मॉडल बन गये हैं - और मथुरा में मंदिर को लेकर छेड़ी गयी चर्चा भी उसी दिशा में आगे बढ़ायी जा रही है.
मुस्लिम पार्टी की छवि से निकलने की कोशिश: 2019 के आम चुनाव से पहले एक कार्यक्रम में सोनिया गांधी का कहना रहा कि संघ और बीजेपी वालों ने कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी के तौर पर प्रचारित किया और लोगों की वैसी ही धारणा भी बना दी. हाल ही में कांग्रेस के एक नेता ने भी इंटरव्यू में ऐसी ही बात कही थी.
केंद्रीय मंत्री रह चुके कांग्रेस नेता के. रहमान खान का कहना था, एंटनी समिति की रिपोर्ट आने के बाद कांग्रेस को लगा कि हमें मुस्लिम पार्टी माना जा रहा है, जिससे हिंदू हमसे दूर हट रहा है... अब मुसलमानों के बारे में खुलकर बात करने से पार्टी पीछे हट रही है... पार्टी की ये कमी है कि वो सिद्धांतों के मुताबिक नहीं जा रही है.'
ये सुन कर तो ऐसा ही लगता है जैसे कांग्रेस पार्टी ने मुस्लिम पार्टी हो जाने का ठप्पा धोने के लिए मुस्लिम समुदाय से मुंह मोड़ लेने और सेक्युलर पॉलिटिक्स की राह से हमेशा के लिए तौबा कर लेने का फैसला कर लिया है.
कहीं ये फिर से ताजपोशी की तैयारी तो नहीं?
पदयात्रा और रथयात्रा राजनीति में नये मिशन की तैयारी का इशारा करती हैं - पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से लेकर बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी तक कई नेताओं ने ऐसा किया है और ज्यादातर सफल रहे हैं.
राहुल गांधी भी पहले कई यात्राएं कर चुके हैं - लेकिन अमेठी की पदयात्रा कई मायने में अलग लगती है. पदयात्रा शुरू करने के लिए अमेठी लौटने का भी एक अलग संदेश है - और अमेठी के बाद प्रियंका गांधी का सीधे रायबरेली पहुंचना भी महत्वपूर्ण है. ये सिर्फ गांधी परिवार का गढ़ बचाने की कवायद भर नहीं है.
ये तो साफ नहीं है कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए होने वाले चुनाव में उम्मीदवार होंगे ही. ये भी साफ नहीं है कि नहीं ही होंगे - क्योंकि 16 अक्टूबर को जब इस सिलसिले में कांग्रेस की एक मीटिंग हुई थी तो राहुल गांधी ने कहा था - विचार करेंगे. राहुल गांधी का इतना कहना भर काफी था. वैसे बताया तो यही गया है कि अगले साल सितंबर में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव हो जाएगा.
लेकिन राहुल गांधी की ताजा सक्रियता को देखते हुए कुछ सवाल ऐसे जरूर हैं जो कांग्रेस की भविष्य की राजनीति को लेकर है - कम से कम अभी तो यही लगता है.
1. क्या राहुल गांधी केजरीवाल की तरह हिंदू की राजनीति में घुस कर ही बीजेपी से मुकाबले की तैयारी का फैसला कर चुके है. ऐसा तो नहीं कि राशिद अल्वी को भी एक दिन अपने बयान के लिए माफी मांगनी पड़ सकती है - 'जय श्रीराम बोलने वाले राक्षस होते हैं.'
2. क्या राहुल गांधी 2024 के आम चुनाव के हिसाब से तैयारी कर रहे हैं? और इसीलिए प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी एक ही जगह पर खड़े होकर अलग अलग बातें करते हैं.
3. क्या राहुल गांधी विपक्षी खेमे की लीडरशिप और यूपीए की ताकत दिखाने के लिए ऐसा कर रहे हैं?
4. क्या राहुल गांधी ये सब ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री पद के दावेदारों की रेस में पीछे छोड़ने के लिए कर रहे हैं?
5. क्या राहुल गांधी अब कांग्रेस की कमान संभालने का भी फैसला कर चुके हैं?
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