राहुल गांधी (Rahul Gandhi) नये सिरे से नेतृत्व के लिए तैयार हो गये हैं, लेकिन कांग्रेस नहीं बल्कि भारत जोड़ो यात्रा के नेतृत्व को लेकर. पहले भारत जोड़ो यात्रा में भी राहुल गांधी की भागीदारी को लेकर असमंजस बना हुआ था.
भारत जोड़ो यात्रा के साथ दिग्गज कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह (Digvijay singh) की भी वापसी हो गयी है - और पूरे यात्रा के दौरान वो राहुल गांधी के साये के तौर पर एक बार फिर से नजर आने वाले हैं. दरअसल, दिग्विजय सिंह को भारत जोड़ो यात्रा का संयोजक बनाया गया है. आपको याद होगा 2018 के मध्य प्रदेश चुनावों से पहले दिग्विजय सिंह नर्मदा परिक्रमा पदयात्रा किये थे - और मध्य प्रदेश की राजनीति में उनकी प्रमुख भूमिका उसी की बदौलत बन सकी थी. देखना होगा भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को वो कितना फायदा दिला पाते हैं.
150 दिनों में साढ़े तीन हजार किलोमीटर का सफर पूरा करने वाली यात्रा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सिविल सोसाइटी के लोगों से भी संपर्क किया है - योगेंद्र यादव और अरुणा रॉय से राहुल गांधी की मुलाकात के बाद ये सिलसिला भी आगे बढ़ चुका है.
और कांग्रेस के हिस्से की अब तक की सबसे अच्छी खबर है कि जल्द ही उसे नया अध्यक्ष भी मिलने जा रहा है - और कांग्रेस के नये अध्यक्ष के रूप में अशोक गहलोत का नाम करीब करीब तय माना जा रहा है.
कुल मिला कर खास बात ये है कि अब राहुल गांधी की जगह कांग्रेस ही इस बार नये अवतार में नजर आने वाली है. दिग्विजय सिंह तो मोर्चे पर आ ही डटे हैं, सोनिया गांधी का ग्रीन सिग्नल मिल जाने के बाद समझा जाता है कि अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) भी मोर्चे पर नजर आने वाले है.
1. गांधी परिवार से अध्यक्ष न बनने की संभावना
कांग्रेस को लेकर एक आम समझ यही बनी हुई है कि बगैर किसी...
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) नये सिरे से नेतृत्व के लिए तैयार हो गये हैं, लेकिन कांग्रेस नहीं बल्कि भारत जोड़ो यात्रा के नेतृत्व को लेकर. पहले भारत जोड़ो यात्रा में भी राहुल गांधी की भागीदारी को लेकर असमंजस बना हुआ था.
भारत जोड़ो यात्रा के साथ दिग्गज कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह (Digvijay singh) की भी वापसी हो गयी है - और पूरे यात्रा के दौरान वो राहुल गांधी के साये के तौर पर एक बार फिर से नजर आने वाले हैं. दरअसल, दिग्विजय सिंह को भारत जोड़ो यात्रा का संयोजक बनाया गया है. आपको याद होगा 2018 के मध्य प्रदेश चुनावों से पहले दिग्विजय सिंह नर्मदा परिक्रमा पदयात्रा किये थे - और मध्य प्रदेश की राजनीति में उनकी प्रमुख भूमिका उसी की बदौलत बन सकी थी. देखना होगा भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को वो कितना फायदा दिला पाते हैं.
150 दिनों में साढ़े तीन हजार किलोमीटर का सफर पूरा करने वाली यात्रा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सिविल सोसाइटी के लोगों से भी संपर्क किया है - योगेंद्र यादव और अरुणा रॉय से राहुल गांधी की मुलाकात के बाद ये सिलसिला भी आगे बढ़ चुका है.
और कांग्रेस के हिस्से की अब तक की सबसे अच्छी खबर है कि जल्द ही उसे नया अध्यक्ष भी मिलने जा रहा है - और कांग्रेस के नये अध्यक्ष के रूप में अशोक गहलोत का नाम करीब करीब तय माना जा रहा है.
कुल मिला कर खास बात ये है कि अब राहुल गांधी की जगह कांग्रेस ही इस बार नये अवतार में नजर आने वाली है. दिग्विजय सिंह तो मोर्चे पर आ ही डटे हैं, सोनिया गांधी का ग्रीन सिग्नल मिल जाने के बाद समझा जाता है कि अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) भी मोर्चे पर नजर आने वाले है.
1. गांधी परिवार से अध्यक्ष न बनने की संभावना
कांग्रेस को लेकर एक आम समझ यही बनी हुई है कि बगैर किसी घोषित जिम्मेदारी के भी, राहुल गांधी ही कांग्रेस के रिंग मास्टर बने हुए हैं. और कांग्रेस में उनकी भूमिका में तब भी कोई तब्दीली नहीं आयी थी जब 2017 के आखिर से 2019 के मध्य तक ऑफिशियली कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान रहे.
जब राहुल गांधी आधिकारिक तौर पर कांग्रेस बने थे तब भी उनकी कम ही बातें सुनी जाती रहीं, और इस्तीफा दे देने के बाद भी उनके आगे किसी और की नहीं सुनी जाती है - G-23 का अस्तित्व अब भले ही खत्म हो चुका हो, लेकिन बगावत की नींव पड़ने की वजह भी राहुल गांधी की कार्यशैली ही बतायी गयी.
असल में शिकायत तो राहुल गांधी से सीधे सीधे किसी को नहीं रही, लेकिन उनका अघोषित अध्यक्ष बने रहना और दूसरे की दस्तखत से में अपने फैसले ठूंसना किसी को हजम नहीं हो रहा था - बहरहाल, अब ये खबर आ रही है कि कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिलने वाला है और वो जी-23 की इच्छानुसार काम करते हुए देखने को भी मिल सकता है क्योंकि वो गांधी परिवार से नहीं होगा, ऐसी संभावना जतायी जा रही है.
अंग्रेजी अखबार द हिंदू की एक रिपोर्ट से साफ है कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष फिर से नहीं बनने जा रहे हैं - और काफी हद तक संभावना है कि 21 सितंबर से पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाल सकते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, अभी 23 अगस्त को ही सोनिया गांधी और अशोक गहलोत के बीच एक मीटिंग हुई है - और ऐसा समझा जा रहा है कि सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत को आगे से जिम्मेदारी संभाल लेने की बात बोल दी है.
ये स्थिति इसलिए भी बन गयी है क्योंकि राहुल गांधी ने साफ साफ बोल दिया है कि वो तो दोबारा कांग्रेस की आधिकारिक तौर पर कमान संभालने से रहे. ऊपर से सोनिया गांधी की सेहत भी ठीक नहीं है. कोविड से संक्रमित होने के बाद अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था. प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ के बाद उनके दोबारा कोविड पॉजिटिव होने की भी जानकारी दी गयी. फिलहाल सोनिया गांधी के बेटे राहुल गांधी और बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ मेडिकल चेक अप के लिए विदेश दौरे पर जाने का कार्यक्रम बना है.
20 अगस्त से शुरू हुई कांग्रेस अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया 21 अगस्त तक खत्म होने वाली है - और तब तक नये कांग्रेस अध्यक्ष का नाम आधिकारिक तौर पर घोषित हो जाने की संभावना जतायी जा रही है.
एक बात तो अब तय लगने लगी है कि कांग्रेस अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का होने वाला है. प्रियंका गांधी को अध्यक्ष न बनाये जाने की एक वजह तो राहुल गांधी का परिवार से बाहर के अध्यक्ष होने की जिद है, दूसरी वजह ये भी है कि प्रियंका गांधी वाड्रा जब से कांग्रेस महासचिव बनी हैं, लगातार असफल देखी गयी हैं.
खबर ये भी है कि अशोक गहलोत भी राहुल गांधी की ही तरह अभी तैयार नजर नहीं आ रहे हैं. हाल में अशोक गहलोत कुछ ऐसे ही समझा रहे थे कि वो राजस्थान में ही खुश हैं - और कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए राहुल गांधी ही बेस्ट हैं. सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद भी वो राहुल गांधी का ही नाम जप रहे हैं.
सोनिया गांधी से मिलने के बाद दिल्ली से जाते हुए एयरपोर्ट पर अशोक गहलोत ने कहा भी, 'मैं बार बार यही कह रहा हूं कि कांग्रेस तभी खड़ी हो सकती है जब राहुल गांधी जी कमान संभाल लेते हैं... उनके बगैर लोग निराश होंगे... और अगर निराश होकर लोग घर बैठ गये तो पार्टी कमजोर हो जाएगी... आखिरकार राहुल गांधी जी को लोगों की भावनाओं की कद्र करते हुए सब संभालना ही होगा.'
अशोक गहलोत ने ये भी कहा कि राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष फिर से बनने के लिए वो लोग दबाव बनाने की पूरी कोशिश करेंगे. हालांकि, CWC सदस्य और सीनियर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह अशोक गहलोत की बात से इत्तेफाक नहीं रखते. कहते हैं, अगर राहुल गांधी ने अध्यक्ष न बनने का फैसला कर लिया है तो किसी पर कोई दबाव नहीं बनाया जा सकता.
2. जनता से कनेक्ट होने की मुहिम
कांग्रेस के उदयपुर चिंतन शिविर में तय हुई चीजें धीरे धीरे मूर्त रूप लेने लगी हैं. भारत जोड़ो यात्रा की रूपरेखा भी भी चिंतन शिविर में ही बनायी गयी थी - और अब ये कांग्रेस के देश के लोगों से नये सिरे से कनेक्ट होने की मजबूत माध्यम बनने जा रही है.
पहले तो राहुल गांधी के यात्रा में शामिल होने को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई थी, लेकिन अब काफी हद तक साफ हो गया है कि वो यात्रा के दौरान पूरे समय बने रहने की कोशिश करेंगे. 12 राज्यों से होकर गुजरने वाली भारत जोड़ो यात्रा के रूट में जगह जगह पब्लिक मीटिंग और नुक्कड़ सभाएं होंगी.
लेकिन ये भी अजीब है कि कांग्रेस ने ट्विटर पर भारत जोड़ो यात्रा का जो पोस्टर जारी किया है, नया विवाद शुरू हो गया है. आम आदमी पार्टी का दावा है कि पोस्टर में उनके नेताओं की तस्वीर लगा दी गयी है.
3. सोनिया पहुंची सिविल सोसाइटी के पास
कांग्रेस एक बार फिर सिविल सोसाइटी की मदद लेने जा रही है. यूपीए सरकार के दौरान सिविल सोसाइटी के कई लोग राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य बनाये गये थे - और सोनिया गांधी सलाहकार परिषद की चेयरपर्सन रहीं.
ये परिषद सरकार को तमाम मुद्दों पर सलाह दिया करती थी - केंद्र में यूपीए की सरकार बनने के बाद जून, 2004 अस्तित्व में आयी सलाहकार परिषद को 2014 की चुनावी हार के बाद खत्म कर दिया गया था.
सलाहकार परिषद के होने के बावजूद अन्ना हजारे के नेतृत्व में आंदोलन चलाने वाले भी सिविल सोसाइटी के ही लोग रहे, जो लोकपाल की मांग कर रहे थे. देखा जाये तो ये सिविल सोसाइटी के लोगों की सक्रियता ही रही कि आंदोलन की वजह से कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा.
अरसा बाद कांग्रेस को एक बार फिर सिविल सोसाइटी की अहमियत समझ में आ रही है और जिन दो प्रमुख लोगों से मिल कर राहुल गांधी ने यात्रा से जोड़ा है, वे हैं - अरुणा रॉय और योगेंद्र यादव. अरुणा रॉय, सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली NAC की सदस्य रही हैं.
4. मीडिया और आईटी सेल एक्टिव है
ये भी देखने को मिल रहा है कि जब से कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश और पवन खेड़ा ने कमान संभाली है, कांग्रेस का मीडिया विभाग काफी सक्रिय नजर आ रहा है. जयराम रमेश खुद को एक्टिव रहते ही हैं, कांग्रेस का आईटी सेल भी बीजेपी से दो-दो हाथ करने पर आमादा नजर आ रहा है.
जयराम रमेश ने एक साथ कई शहरों में प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर बीजेपी को घेरने की कोशिश की थी. तब उदयपुर हत्या के आरोपियों और जम्मू-कश्मीर में पकड़े गये एक आतंकवादी का नाम लेकर कांग्रेस ने बीजेपी के आतंकवादियों से संबंध साबित करने की कोशिश की थी.
5 अगस्त को कांग्रेस का ब्लैक फ्राइडे प्रोटेस्ट भी अपने मकसद में काफी हद तक कामयाब माना जाएगा. जिस तरीके से पहले बीजेपी नेता अमित शाह और योगी आदित्यनाथ ने कांग्रेस के विरोध को अयोध्या से जोड़ कर पेश करते हुए हमला बोला, बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर काला जादू करने और अंधविश्वास को प्रचारित करने का आरोप लगाया - आखिर ये कांग्रेस की सफलता नहीं तो क्या है?
5. मोर्चे पर दिग्गजों की वापसी
जैसे रणदीप सिंह सुरजेवाला को हटाकर कांग्रेस के मीडिया विभाग की जिम्मेदारी जयराम रमेश को दी गयी, भारत जोड़ो यात्रा के लिए दिग्विजय सिंह को मोर्चे पर लगाया गया है. यात्रा के संयोजक के रूप में दिग्विजय सिंह की ये वापसी ही लग रही है.
अप्रैल. 2022 में दिग्विजय सिंह को तब भी खासा एक्टिव देखा गया जब प्रशांत किशोर और सोनिया गांधी की कई दौर की मीटिंग हुई थी. करीब हर मीटिंग में दिग्विजय सिंह को मौजूद देखा गया था - और ये भी है कि भारत जोड़ो यात्रा का कंसेप्ट भी प्रशांत किशोर का ही सुझाया हुआ है. कांग्रेस की तरफ से तब भी बताया गया था कि प्रशांत किशोर से बातचीत टूट जाने के बावजूद उनके कुछ सुझावों को अमल में लाने की कोशिश होगी.
दिग्विजय सिंह को एक तरह से काफी दिन हाशिये पर बिताना पड़ा है. पांच साल पहले गोवा और मणिपुर में अच्छे प्रदर्शन के बावजूद कांग्रेस सरकार बनाने से चूक गयी - और उसके बाद से ही दिग्विजय सिंह की पूछ घटने लगी. पहले दिग्विजय सिंह की राह में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया रोड़ा बने हुए थे, सिंधिया के बीजेपी में जाने और कमलनाथ के हाथ से मध्य प्रदेश में सत्ता की कमान चली जाने के बाद दिग्विजय सिंह का एकछत्र राज हो गया है, ऐसा महसूस होता है.
कपिल सिब्बल तो वैसे भी सत्ता में रहने पर मंत्री के अलावा सिर्फ कांग्रेस और गांधी परिवार के मुकदमों तक सीमित रहे. कपिल सिब्बल के कांग्रेस छोड़ देने, गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा जैसे नेताओं के करीब करीब साथ छोड़ देने के बाद कांग्रेस नेतृत्व की मजबूरी भी है कि वो दिग्विजय सिंह के अनुभवों का फायदा उठाये.
राजनीति की थ्योरी तो राहुल गांधी बचपन से ही समझने लगे थे, लेकिन ये दिग्विजय सिंह ही हैं जो यूपी के मैदान में राहुल गांधी को काफी कुछ सिखाये और पढ़ाये थे - अब जबकि राहुल गांधी फिर से कांग्रेस का करीब करीब नेतृत्व करने लगे हैं, दिग्विजय सिंह वापस आ चुके हैं. मजबूरी भी दोनों की है, फायदा भी दोनों को है. अशोक गहलोत के कांग्रेस के कमान संभालने की सूरत में राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को जो भी नफा नुकसान हो, लेकिन राजस्थान में कलह तो खत्न नहीं होने वाली है. अब तो ऐसा लगता है, जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया की परवाह नहीं हुई सचिन पायलट का भी वही हाल होने वाला है.
अगर कांग्रेस अशोक गहलोत को लेकर गंभीरता से जो रही है, तो आइडिया बुरा भी नहीं है. और करीब करीब बीजेपी जैसा ही इंतजाम लगता है - जैसे बीजेपी में सारे फैसले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंजूरी से अमित शाह लेते हैं - और जेपी नड्डा बाकी रस्में निभाते हैं, सोनिया गांधी ने राहुल गांधी के लिए करीब करीब वैसा ही इंतजाम करने का फैसला किया है.
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