धुआं देख कर मामले की गंभीरता आंकी तो नहीं जा सकती, लेकिन अलर्ट हुआ जा सकता है. अफवाह भी धुएं जैसी ही होती है जो अक्सर अंदर आग होने जैसे संकेत देती हैं. कभी कभी उड़ती धूल भी दूर से देखने पर धुएं जैसी नजर आती है - प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ के बाद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को गिरफ्तार किये जाने की आशंका भी करीब करीब ऐसी ही लगती है.
ED के दफ्तर में अगली पेशी से ठीक एक दिन पहले 19 जून को राहुल गांधी का बर्थडे था - और इस बार भी वो अपना बर्थडे परिवार के साथ मना पाए. घर पर न सही, अस्पताल में ही सही. अगर तब तक सोनिया गांधी को डिस्चार्ज नही किया गया तो. असल में बीमार मां की देखभाल के लिए प्रवर्तन निदेशालय ने पेशी से थोड़ी सी छूट दी है.
राहुल गांधी को बुलाकर प्रवर्तन निदेशालय ऐसे दौर में पूछताछ (ED Questioning) कर रहा है जब देश में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद इसी साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं.
विधानसभा चुनाव तो अगले आम चुनाव से पहले अभी कई राज्यों में होने वाले हैं, लेकिन सारी लड़ाई फिलहाल 2024 के लिए ही चल रही है. वैसे तो राहुल गांधी के खिलाफ ईडी की पूछताछ अदालत के आदेश के बाद की प्रक्रिया के तहत हो रही है, लेकिन कांग्रेस का इल्जाम है कि ये सब राजनीतिक बदले की भावना से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इशारे पर हो रही है.
राहुल गांधी के बाद सोनिया गांधी से भी 23 जून को पूछताछ होनी है. हालांकि, ये सब सोनिया गांधी की सेहत और ईडी के कोई नयी तारीख मंजूर करने पर ही आगे बढ़ सकती है. कोविड से संक्रमण के बाद नाक से खून आ जाने की वजह से सोनिया गांधी को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
अव्वल तो राहुल गांधी और सोनिया गांधी से...
धुआं देख कर मामले की गंभीरता आंकी तो नहीं जा सकती, लेकिन अलर्ट हुआ जा सकता है. अफवाह भी धुएं जैसी ही होती है जो अक्सर अंदर आग होने जैसे संकेत देती हैं. कभी कभी उड़ती धूल भी दूर से देखने पर धुएं जैसी नजर आती है - प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ के बाद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को गिरफ्तार किये जाने की आशंका भी करीब करीब ऐसी ही लगती है.
ED के दफ्तर में अगली पेशी से ठीक एक दिन पहले 19 जून को राहुल गांधी का बर्थडे था - और इस बार भी वो अपना बर्थडे परिवार के साथ मना पाए. घर पर न सही, अस्पताल में ही सही. अगर तब तक सोनिया गांधी को डिस्चार्ज नही किया गया तो. असल में बीमार मां की देखभाल के लिए प्रवर्तन निदेशालय ने पेशी से थोड़ी सी छूट दी है.
राहुल गांधी को बुलाकर प्रवर्तन निदेशालय ऐसे दौर में पूछताछ (ED Questioning) कर रहा है जब देश में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद इसी साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं.
विधानसभा चुनाव तो अगले आम चुनाव से पहले अभी कई राज्यों में होने वाले हैं, लेकिन सारी लड़ाई फिलहाल 2024 के लिए ही चल रही है. वैसे तो राहुल गांधी के खिलाफ ईडी की पूछताछ अदालत के आदेश के बाद की प्रक्रिया के तहत हो रही है, लेकिन कांग्रेस का इल्जाम है कि ये सब राजनीतिक बदले की भावना से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इशारे पर हो रही है.
राहुल गांधी के बाद सोनिया गांधी से भी 23 जून को पूछताछ होनी है. हालांकि, ये सब सोनिया गांधी की सेहत और ईडी के कोई नयी तारीख मंजूर करने पर ही आगे बढ़ सकती है. कोविड से संक्रमण के बाद नाक से खून आ जाने की वजह से सोनिया गांधी को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
अव्वल तो राहुल गांधी और सोनिया गांधी से पूछताछ को लेकर गांधी परिवार को लोगों की सहानुभूति मिलनी चाहिये थी, लेकिन मुश्किल ये है कि कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के सड़क पर उतरने के बाद भी कहीं कोई फर्क नजर नहीं आ रहा है. ऊपर से कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन से कांग्रेस के भीतर ही असंतोष की खबरें आ रही हैं. सोनिया गांधी से तो नहीं लेकिन राहुल गांधी से कांग्रेस के कई नेता ही काफी खफा बताये जाते हैं.
और फिर कांग्रेस की एक मुश्किल ये भी है कि राहुल गांधी पर गिरफ्तारी का खतरा भी मंडराने लगा है - ऐसे में सवाल ये है कि अगर प्रवर्तन निदेशालय राहुल गांधी को गिरफ्तार कर लेता है तो क्या भारतीय जनता पार्टी (BJP) को इससे कोई फायदा हो सकता है?
1. गांधी परिवार के नेतृत्व की कमी खलेगी
कांग्रेस पर बीजेपी के परिवारवाद की राजनीति के आरोप अनायास भी नहीं हैं - क्योंकि कांग्रेस और गांधी परिवार एक दूसरे के पूरक बन कर रह गये हैं. अगर गांधी परिवार के हाथ में कांग्रेस की कमांड न हो तो पार्टी टूट कर बिखर सकती है. बर्बाद हो सकती है.
ये धारणा भी बनी हुई है कि अगर सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी वाड्रा में से कोई कांग्रेस का नेतृत्व नहीं करता तो पार्टी का मौजूदा हाल बनाये रखना भी मुश्किल हो सकता है. राहुल गांधी भले ही गांधी परिवार से इतर किसी नेता को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने की पहल कर चुके हों, लेकिन आपको याद होगा प्रशांत किशोर ने भी ऐसा कोई सुझाव नहीं दिया था. मीडिया में आये प्रशांत किशोर के प्रजेंटेशन में भी कमान गांधी परिवार के ही किसी न किसी सदस्य के हाथ में देखी गयी थी.
अभी तो सोनिया गांधी के अस्पताल और राहुल गांधी के ईडी दफ्तर चले जाने के बाद ये हाल है, राहुल गांधी की गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस का क्या हाल होगा देखने वाली बात होगी. अभी तो कांग्रेस के दो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और भूपेश बघेल के अलावा अधीर रंजन चौधरी और पी. चिदंबरम जैसे नेता मीडिया के जरिये कांग्रेस का पक्ष रख रहे हैं - लेकिन सड़क पर उतरे नेताओं और कार्यकर्ताओं को कोई मजबूत नेतृत्व नहीं मिल पा रहा है.
संभव है, राहुल गांधी की गिरफ्तारी के बाद सड़क पर उतरे कांग्रेस कार्यकर्ताओं का गुस्सा और भी भड़क सकता है, लेकिन कितने दिन तक? सही नेतृत्व के अभाव में वे भी धीरे धीरे थक कर घर बैठ जाएंगे.
प्रतिकूल परिस्थितियों में मुमकिन है प्रियंका गांधी वाड्रा मोर्चा संभाल लें. मजबूरी में संभालना ही पड़ेगा. जैसे अभी विपक्षी मोर्चा ममता बनर्जी संभाल रही हैं. प्रियंका गांधी को फिलहाल अस्पताल से लेकर थाने तक दौड़ भाग करनी पड़ रही है - और राहुल गांधी को ईडी दफ्तर तक छोड़ने भी जाती हैं.
अगर प्रियंका गांधी विशेष परिस्थितियों में कांग्रेस की कमान संभालती हैं तो देखना होगा - अभी तक तो प्रियंका गांधी की तरफ से कोई उल्लेखनीय योगदान दर्ज करने लायक तो हुआ नहीं है. न अमेठी में राहुल गांधी की हार रोक पायीं, न यूपी चुनाव 2022 में कांग्रेस को कहीं खड़ा ही कर पायीं या अब तक जहां जहां भी संकटमोचक की भूमिका निभायी हैं, झगड़ा बढ़ा ही है.
अब गांधी परिवार के कमजोर पड़ने की सूरत में कांग्रेस को होने वाला ये सारा नुकसान, बीजेपी के लिए तो फायदे के खाते में ही दर्ज किया जाएगा.
2. राज्यों में कांग्रेस का झगड़ा और बढ़ेगा
राज्यों में कांग्रेस की अंदरूनी कलह काफी पुरानी बीमारी है. इंदिरा गांधी की लीडरशिप में ये सब दब कर रह जाते थे, लेकिन सोनिया गांधी के बाद जब राहुल गांधी कामकाज देखने लगे - ज्यों ज्यों दवा की मर्ज बढ़ता ही गया.
मध्य प्रदेश और पंजाब का झगड़ा तो कांग्रेस के लिए इतना महंगा साबित हुआ कि अलग अलग समय पर सत्ता से हाथ धोना ही पड़ा. हरियाणा में तो 2019 में सत्ता हासिल होते होते रह गयी और अभी अभी राज्य सभा चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि यथास्थिति बरकरार है.
चाहे राहुल गांधी राजनीति में दिलचस्पी रखें या न रखें, लेकिन अभी तो ये है कि उनके दखल से मामला दब तो जाता ही है. पंजाब में जो कुछ हुआ वो गांधी परिवार के चलते ही हुआ. अगर छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल मुख्यमंत्री अपनी बदौलत बने हुए हैं तो टीएस सिंहदेव को शांत करने का काम गांधी परिवार ही तो करता है.
फर्ज कीजिये राहुल गांधी को जेल जाना पड़ता है तो अशोक गहलोत और सचिन पायलट एक दूसरे का क्या हाल करेंगे - आसानी से समझा जा सकता है.
...और ये सिर्फ राजस्थान का ही मामला नहीं है, जहां कहीं भी ऐसी स्थिति पैदा होगी सीधा फायदा तो बीजेपी ही उठाएगी.
3. राज्यों में कांग्रेस गठबंधन प्रभावित होगा
राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार होने के साथ ही कांग्रेस महाराष्ट्र, झारखंड और तमिलनाडु में सत्ता में साझीदार है. ये गठबंधन सोनिया गांधी और राहुल गांधी की बदौलत ही चल रहे हैं. महाराष्ट्र का गठबंधन तो सोनिय गांधी ने ही फाइनल किया था - क्योंकि वैचारिक मतभेदों को किनारे रख कांग्रेस के लिए शिवसेना के साथ सरकार बनाने का फैसला लेना काफी मुश्किल रहा.
महाराष्ट्र में नवजोत सिंह सिद्धू की तरह राहुल गांधी की पसंद के नाना पटोले कांग्रेस अध्यक्ष हैं. नाना पटोले को लगता है कि कांग्रेस चाहे तो गठबंधन तोड़ कर अपने बूते अगले चुनाव में सरकार बना सकती है. ऐसे बयान जब तब उनकी तरफ से आते रहते हैं. गठबंधन उद्धव ठाकरे, शरद पवार और सोनिया गांधी या राहुल गांधी की बदौलत चल रहा है - फर्ज कीजिये, राहुल गांधी की गैरहाजिरी में नाना पटोले के साथ कितने दिन तक निभाया जा सकेगा.
ऐसी समस्या झारखंड में तो आएगी ही, तमिलनाडु में भी आ ही सकती है. हालांकि, पूरे देश में गांधी परिवार के प्रति विपक्षी खेमे में सिर्फ एमके स्टालिन ही निष्ठावान नजर आते हैं. पहले लालू यादव भी हुआ करते थे, लेकिन कन्हैया कुमार के कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद से लालू परिवार का मन भी गांधी परिवार के प्रति डोलने लगा है.
गांधी परिवार का नेतृत्व ढीला पड़ जाने की स्थिति में कांग्रेस को ऐसे राज्यों में नुकसान तो होगा ही - और उसका परा फायदा बीजेपी को ही मिलेगा.
4. विपक्षी एकता पर भी असर होगा
चाहे वो 2024 की तैयारी हो या फिर अभी होने जा रहा राष्ट्रपति चुनाव या उपराष्ट्रपति का चुनाव, कांग्रेस कई विपक्षी दलों के नेताओं के तमाम ना-नुकुर के बावजूद विपक्षी एकती की धुरी बनी हुई है.
पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद ममता बनर्जी ने कांग्रेस को किनारे कर विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश जरूर की थी, लेकिन फेल हो गयीं. एनसीपी नेता शरद पवार की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका रही - और हालात ऐसे बने कि शरद पवार को बयान देना पड़ा कि बगैर कांग्रेस के विपक्ष के किसी भी फोरम के खड़ा करने का कोई मतलब ही नहीं है. शरद पवार की बात को प्रशांत किशोर भी एनडोर्स कर चुके हैं.
राहुल गांधी की गैरमौजूदगी में ममता बनर्जी को हो सकता है, अपनी राजनीति चमकाने का मौका भी मिल जाये, लेकिन सवाल ये है कि आखिर कितने राजनीतिक दल ममता बनर्जी के साथ चलने को खुशी खुशी तैयार होंगे.
पहले तो अरविंद केजरीवाल भी ममता बनर्जी के राजनीतिक दोस्त नजर आते थे, लेकिन राष्ट्रपति चुनाव को लेकर तृणमूल कांग्रेस नेता की बुलायी गयी मीटिंग में खुद तो जाना दूर, अरविंद केजरीवाल ने अपना प्रतिनिधि भी नहीं भेजा. वैसे भी हिंदुत्व के दबदबे वाले राजनीतिक दौर में ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दो छोर पर खड़े देखे जाने लगे हैं.
एक कांग्रेस ही है जिसका अखिल भारतीय स्तर पर संगठन है, बाकी सभी क्षेत्रीय पार्टियां हैं. क्षेत्रीय दलों के नेता राष्ट्रीय स्तर पर कोई मोर्चा कैसे खड़ा कर पाएंगे, समझना मुश्किल है - फिर तो कांग्रेस का नेतृत्व कमजोर होने का पूरा फायदा बीजेपी को ही मिलेगा, कोई संदेह नहीं होना चाहिये.
5. 'कांग्रेस मुक्त भारत' की पूर्णाहूति का मौका
एक पल के लिए मान लेते हैं कि प्रवर्तन निदेशालय राहुल गांधी को गिरफ्तार कर लेता है - और उसके बाद की कानूनी प्रक्रिया से जूझते हुए उबर पाने में छह महीने भी लग जाते हैं तो क्या क्या हो सकता है? अभी ये सबसे बड़ा सवाल है.
आज से छह महीने बाद का जो समय होगा, 2024 के आम चुनाव के लिए बेहद कम वक्त बचा होगा. तब तक गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव भी बीत चुके होंगे. जाहिर है दोनों ही चुनावों में नतीजों पर असर तो पड़ेगा ही - ऐसी सूरत में काफी दिन तो संभलने में ही लग जाएंगे और अगला आम चुनाव कांग्रेस और विपक्ष के हाथ निकल कर पूरी तरह बीजेपी के पकड़ में पहुंच चुका होगा.
2014 से पहले बीजेपी ने कांग्रेस मुक्त भारत अभियान शुरू किया था. अब तो ऐसा लगने लगा है जैसे 10 साल बाद 2024 में बीजेपी अपने मुहिम की पूर्णाहूति की तैयारी में होगी. वैसे कांग्रेस मुक्त भारत का मतलब पूरी तरह कांग्रेस का खत्म होना नहीं, बल्कि कांग्रेस का गांधी परिवार मुक्त होना ही समझा जाना चाहिये - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों पर गौर करें तो भी ऐसा ही लगता है.
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