नेपाल के नाइटक्लब से शुरू हुआ विवाद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का पीछा नहीं छोड़ रहा है. नेपाल से लौटते ही राहुल गांधी तेलंगाना के दौरे पर गये थे - और वहां भी कांग्रेस नेताओं के साथ मीटिंग का एक वीडियो बाहर आते ही राहुल गांधी निशाने पर आ गये. वीडियो में राहुल गांधी को ये पूछते सुना गया था कि 'बोलना क्या है?'
राहुल गांधी के गुजरात दौरे से भी बीजेपी ने एक ऐसा वाकया खोज निकाला है जिसकी वजह से राहुल गांधी को घेरा जा सके. बताते हैं कि गुजरात कांग्रेस प्रभारी रघु शर्मा ने राहुल गांधी को एक पहनने के लिए एक सूती धागा दिया था. कहते हैं कि राहुल गांधी ने धागा पहनने से मना तो किया ही, बाद में जब सीढ़ियो से उतर रहे थे रेलिंग पर छोड़ कर आगे बढ़ गये.
अब वीडियो को शेयर करके बीजेपी कहने लगी है कि राहुल गांधी और कांग्रेस दोनों ही महात्मा गांधी का अपमान कर रहे हैं. बीजेपी प्रवक्ता भरत डांगर का कहना है कि गांधी टाइटल का इस्तेमाल कर जिन लोगों ने बरसों देश पर राज किया, अब उनको बापू की खादी के धागे से भी दिक्कत होने लगी है.
कुछ दिन पहले राहुल गांधी जब कांग्रेस के चिंतन शिविर में हिस्सा लेने द्वारका पहुंचे थे तो कांग्रेस को ही महात्मा गांधी की धरोहर का असली वारिस बताया - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की राजनीति को गांधी के सिद्धांतों के खिलाफ बताया था.
राहुल गांधी का वीडियो ट्विटर पर शेयर करते हुए भरत डांगर ने कांग्रेस इस वाकये के लिए माफी मांगने को कहा है.
बीजेपी को जवाब देते हुए कांग्रेस प्रवक्ता मनीष दोशी कहते हैं कि जिन लोगों ने महात्मा गांधी को कभी माना ही नहीं, राजनीति के लिए उनका मान-अपमान नजर आने लगा है. कांग्रेस प्रवक्ता का दावा है कि आदिवासी सत्याग्रह में जो आदिवासी अपने जल, जमीन और जंगल के हक के लिए पहुंचे थे, देख कर बीजेपी के होश उड़ गये हैं.
और ये आदिवासी सत्याग्रह की राजनीति ही जिसमें हार्दिक पटेल जिग्नेश मेवाणी से पिछड़ते नजर आ रहे हैं. ये तो नहीं कह सकते कि राहुल गांधी ने गुजरात दौरे में हार्दिक पटेल को इग्नोर किया, लेकिन ये तो साफ साफ नजर आया कि हार्दिक पटेल के मुकाबले जिग्नेश मेवाणी (Jignesh Mevani) को ज्यादा पसंद करने लगे हैं - क्या हार्दिक पटेल (Hardik Patel) आउटडेटेड हो गये हैं या कोई और मामला है?
जिग्नेश को ज्यादा भाव मिलने लगा है
दाहोद की रैली आदिवासी वोट बैंक को ध्यान में रख कर बुलायी गयी थी - और एक सत्याग्रह पत्र भी जारी किया गया. ये सत्याग्रह पत्र कांग्रेस नेताओं में बांटा जाएगा. कांग्रेस की रैली में हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी दोनों मौजूद थे.
हार्दिक पटेल पर अपनी स्थिति तभी साफ हो पाएगी जब राहुल गांधी की तरफ से नरेश पटेल को लेकर स्टैंड जाहिर किया जाएगा
वडगाम से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी अभी तक कांग्रेस पार्टी के प्राथमिक सदस्य तक नहीं हैं, जबकि हार्दिक पटेल गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं - लेकिन राहुल गांधी की मौजूदगी में भी नजारा बिलकुल उलटा नजर आ रहा था. कुछ कुछ वैसा ही जैसी शिकायतें हार्दिक पटेल अपनी तरफ से मीडिया के सवालों के जवाब में दर्ज भी करा चुके हैं - 'एक ऐसा दूल्हा जिसकी शादी होती ही नसबंदी कर दी गयी हो.'
दाहोद में मंच पर बगल में बिठा कर राहुल गांधी काफी देर तक जिग्नेश मेवाणी से बात करते रहे - और हैरानी की बात ये रही कि कांग्रेस विधायकों की बैठक में भी जिग्नेश मेवाणी, राहुल गांधी के साथ रहे. ये तो दिल्ली में भी देखने को मिला था जब असम पुलिस की गिरफ्तारी के बाद छूट कर दिल्ली पहुंचे थे. कांग्रेस ने जिग्नेश मेवाणी को प्रेस कांफ्रेंस करने के लिए दफ्तर में जगह दी थी.
ये हाल तब है जब जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस के सदस्य भी नहीं: कुछ दिन पहले जब कन्हैया कुमार दिल्ली में ही कांग्रेस में शामिल हुए थे, जिग्नेश मेवाणी के भी कांग्रेस ज्वाइन करने की काफी चर्चा रही. ऐन वक्त पर बता दिया गया कि तकनीकी वजहों से जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस में औपचारिक तौर पर शामिल नहीं हुए.
असम से छूटने के बाद दिल्ली पहुंचे जिग्नेश मेवाणी निर्दलीय विधायक होते हुए भी बार बार कांग्रेस के समर्थन में ही अपनी बातें कह रहे थे. ये भी देखा गया कि गुजरात में हुई गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस ने जिग्नेश मेवाणी की मदद के लिए असम में एक लीगल टीम भी बनायी थी.
बातचीत तो राहुल गांधी ने हार्दिक पटेल से भी की, लेकिन जिग्नेश मेवाणी के मुकाबले काफी कम. हार्दिक पटेल मंच के सामने पहली ही कतार में बैठे हुए थे. राहुल गांधी ने अपने भाषण के दौरान हार्दिक पटेल का नाम भी लिया था. रैली के बाद मंच से नीचे उतरे तो भी हार्दिक पटेल से बात की. हालांकि, ये बातचीत काफी संक्षिप्त रही. जिग्नेश मेवाणी के साथ चले वार्तालाप के मुकाबले तो ऐसा ही समझा जाएगा.
राहुल गांधी ने मंच से भाषण में जिग्नेश मेवाणी से मुखातिब होकर नौजवानों से प्रेरणा लेने की अपील भी की. जिग्नेश मेवाणी को हाल ही में अदालत से मिली तीन महीने की सजा का मुद्दा भी राहुल गांधी ने अपने तरीके से उठाया. राहुल गांधी ने कहा कि गुजरात ही ऐसा राज्य है जहां हमें विरोध प्रदर्शन के लिए भी अनुमति लेनी पड़ती है. जिग्नेश मेवाणी को इसी के चलते जेल की सजा हुई है. जिग्नेश मेवाणी जमानत पर हैं. राहुल गांधी बोले, 'बिना अनुमति के विरोध प्रदर्शन के लिए उनको तीन महीने की जेली हुई, लेकिन वे अगर 10 साल के लिए भी जेल में डाल दें तो वो झुकने वाले नहीं हैं.'
रैली को संबोधित करने का मौका तो हार्दिक पटेल को भी दिया गया, लेकिन जिग्नेश मेवाणी से पहले. जिग्नेश मेवाणी का भाषण राहुल गांधी से पहले हुए था, लेकिन हार्दिक के बाद. अगर भाषणों के हिसाब से वरिष्ठता का क्रम देखा जाये तो राहुल गांधी के बाद जिग्नेश मेवाणी का ही नंबर रहा और उसके बाद हार्दिक पटेल का.
बराबर ट्रीटमेंट देने का संदेश: राहुल गांधी ने ये तो ध्यान रखा कि जिग्नेश मेवाणी को मिलने वाली तवज्जो का सीधा असर हार्दिक पटेल पर न पड़े. पड़े भी तो सार्वजनिक तौर पर कोई गलत मैसेज न जाये, लेकिन लगता हो वो चूक गये.
राहुल गांधी ने जिग्नेश मेवाणी के साथ रैली में सत्याग्रह पत्र लांच किया - और करीब करीब वैसे ही हार्दिक पटेल के साथ सत्याग्रह के लिए कांग्रेस का मोबाइल ऐप लांच किया. सत्याग्रह मोबाइल ऐप के जरिये आदिवासी परिवार अपना रजिस्ट्रेशन कराएंगे और उसके आधार पर कांग्रेस पार्टी आगे के कदम उठाएगी. हो सकता है चुनाव घोषणा पत्र तैयार करने में भी उस डाटा का इस्तेमाल किया जाये, लेकिन एक चीज तो पहले से ही समझ लेनी चाहिये इसी डाटा के जरिये वोट बैंक का विश्लेषण होगा और उम्मीदवारों के नाम फाइनल किये जाएंगे.
हार्दिक और जिग्नेश में फर्क
2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले ही हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी सहित तीन युवा नेता खासे चर्चित रहे. वैसे सबसे ज्यादा चर्चित हार्दिक पटेल ही रहे. पाटीदार आंदोलन के दौरान लोगों की भीड़ की वजह से हार्दिक पटेल का कद काफी बढ़ गया था.
चुनावों से पहले काफी दिनों तक राहुल गांधी ने तीनों ही नेताओं से अलग अलग बहुत बारगेन भी किया. हार्दिक पटेल की डिमांड पूरी करना शायद मुश्किल हो रही थी, लिहाजा अल्पेश ठाकोर को तो कांग्रेस में ले लिया गया और जिग्नेश मेवाणी को वडगाम विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने सपोर्ट किया था.
दाहोद की रैली में जिग्नेश मेवाणी ने अपने भाषण से खूब ताली भी बटोरी. जिग्नेश मेवाणी ने आदिवासियों से अपने अधिकारों के लिए लड़ने को लेकर काफी प्रोत्साहित किया. साथ ही, बीजेपी पर अपने हिसाब से ये आरोप भी लगाया कि पार्टी ने आदिवासियों के लिए कुछ भी नहीं किया.
अब एक बात समझना जरूरी हो गया है कि क्या हार्दिक पटेल में कांग्रेस नेतृत्व को अब पहले जैसी दिलचस्पी नहीं रही? और क्या हार्दिक पटेल के मुकाबले जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस में बड़े नेता बन कर उभरने लगे हैं?
कांग्रेस विधायकों के साथ राहुल गांधी की मीटिंग में पाटीदार नेता नरेश पटेल की भी चर्चा हुई. नरेश पटेल को लेकर ऊपर से तो हार्दिक पटेल यही कह रहे हैं कि उनको कांग्रेस में लेने को लेकर नेतृत्व को जल्दी फैसला लेना चाहिये. बातचीत में तो हार्दिक पटेल ऐसे पोज करते हैं जैसे वो खुद भी चाहते हों को नरेश पटेल को कांग्रेस में जल्दी लाया जाये, लेकिन माना ये जाता है कि अंदर से वो ऐसा बिलकुल नहीं चाहते क्योंकि ऐसा हुआ तो हार्दिक पटेल की पूछ कम हो जाएगी. पाटीदार समुदाय पर प्रभाव के हिसाब से देखा जाये तो नरेश पटेल का ज्यादा प्रभाव है, जबकि हार्दिक पटेल में अब पहले जैसा आकर्षण नहीं रहा.
हार्दिक पटेल बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रहे हैं, लेकिन हाल ही में उनके एक बयान की वजह से थोड़ा नरम पड़ते महसूस किया गया था. हार्दिक पटेल के कांग्रेस छोड़ने तक की चर्चा होने लगी थी.
क्या हार्दिक पटेल को भी राहुल गांधी डरपोक नेताओं की कैटेगरी में डाल चुके हैं? राहुल गांधी, और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी, ऐसे नेताओं को निडर नहीं मानते जो बीजेपी के खिलाफ नरम पड़ जाते हैं या कम आक्रामक हो जाते हैं?
विधायकों की बैठक में राहुल गांधी के सामने ही ये मांग भी उठी कि नरेश पटेल क लेकर कांग्रेस नेतृत्व पार्टी का रुख साफ कर दे, ताकि भ्रम की स्थिति से निजात मिल सके. विधायकों की तरफ से उदाहरण भी दिया गया कि जैसे प्रशांत किशोर को लेकर कांग्रेस ने अपना स्टैंड साफ कर दिया है, वैसा ही नरेश पटेल के मामले में भी जरूरी हो गया है.
ऐसा लगता है ये सवाल हार्दिक पटेल के समर्थकों की तरफ से ही उठाया गया होगा. असल में नरेश पटेल के कांग्रेस ज्वाइन करने या न करने से फर्क भी तो सबसे ज्यादा हार्दिक पटेल को भी पड़ने वाला है.
क्या मुद्दा मेवाणी को बड़ा बना रहा है? 2017 के चुनावों से पहले जिग्नेश मेवाणी ने भी दलितों का बड़ा आंदोलन चलाया था - ऊना मार्च. ये आंदोलन ऊना में दलित युवकों के उत्पीड़न के बाद हुआ था और गुजरात के बाहर भी इसकी चर्चा रही - और असर भी देखने को मिला था. पेशे से वकील जिग्नेश मेवाणी दलित एक्टिविस्ट के तौर पर ही राजनीति में आये थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक ट्वीट के लिए जिग्नेश मेवाणी को असम पुलिस के गिरफ्तार करने को लेकर गुजरात में काफी विरोध हुआ. बढ़ते समर्थन की बदौलत जिग्नेश मेवाणी का दायरा तो बढ़ने ही लगा, राहुल गांधी के पीठ पर हाथ रख देने के बाद से उनके कद में तेजी से इजाफा होने लगा है.
जेल तो हार्दिक पटेल भी गये थे और जिग्नेश मेवाणी के मुकाबले उनको सजा भी लंबी हुई है. ऐसी सजा जिसकी वजह से वो चुनाव लड़ने के योग्य नहीं रह गये थे. वो तो सुप्रीम कोर्ट के हाईकोर्ट की सजा सस्पेंड कर देने की वजह से हार्दिक पटेल के चुनाव लड़ने के रास्ते खुल गये हैं.
जहां तक मुद्दे का सवाल है, जिग्नेश जो मुद्दा उठा रहे हैं वो तो हार्दिक पटेल के मुकाबले बड़ा है ही. जिग्नेश मेवाणी का भले ही गुजरात के एक खास इलाके में प्रभाव है, लेकिन वो बात तो दलित समुदाय की ही करते हैं. पूरे दलित समुदाय की. वो आदिवासियों को मुद्दा उठाते हैं - जबकि हार्दिक पटेल सिर्फ पाटीदार समाज को आरक्षण दिये जाने के लिए आंदोलन चलाते रहे हैं. विरोध की आवाज बीजेपी के खिलाफ होने की वजह से जरूर हार्दिक पटेल को कांग्रेस में अहमियत मिली थी, लेकिन अब तो उनकी बातों से ही लगताहै कि ये सब बीते दिनों की बात हो चुकी है.
दलितों के साथ साथ जिग्नेश मेवाणी अब आदिवासियों के हक के लिए आवाज उठाने लगे हैं. कांग्रेस की दिलचस्पी भी यही है कि बीजेपी के खिलाफ आदिवासियों की नाराजगी को भुनाया जा सके - और जब पाटीदार समुदाय की जरूरत होगी नरेश पटेल को लान की कोशिश की जाएगी. ये भी हार्दिक पटेल के लिए एक मैसेज ही है.
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