मायावती (Mayawati) को निशाना बनाते हुए राहुल गांधी ने जिस तरह से दलितों का मुद्दा उठाया है, वो तो शरद यादव से मुलाकात का ही असर लगता है. भले ही राहुल गांधी ने शरद यादव के बगल में खड़े होकर नफरत की राजनीति की बात की हो - और देश की अर्थव्यवस्था की हालत श्रीलंका जैसी बता डाली हो या रूस से हमले की आशंका चीन को लेकर भी जतायी हो.
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने मायावती के बहाने दलितों का मुद्दा उठाते हुए गुजरात के ऊना की घटना का भी जिक्र किया - क्या ऐसा करने के पीछे गुजरात चुनाव हो सकता है? गुजरात और हिमाचल प्रदेश में 2022 के आखिर में विधानसभा के चुनाव होने हैं.
जुलाई, 2016 में गुजरात के ऊना में कुछ गोरक्षकों ने दलित युवकों की पिटाई कर दी थी, जिसके विरोध में करीब डेढ़ दर्जन 17 युवकों ने आत्महत्या का प्रयास किया था. घटना के विरोध में तब जिग्नेश मेवाणी ने ऊना मार्च निकाला था और घटनास्थल पर पहुंच कर अलग से स्वतंत्रता दिवस समारोह आयोजित किया था. बाद में जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस के समर्थन से विधायक भी बने. फिलहाल वो हार्दिक पटेल के साथ कांग्रेस के सपोर्ट में खड़े नजर आते हैं.
बड़े दिनों बाद राहुल गांधी ने मायावती पर जोरदार हमला बोला है - और बड़ा इल्जाम ये लगाया है कि केंद्र सरकार के दबाव में बीएसपी नेता दलित समुदाय (Dalit Politics) के हितों के साथ समझौता कर रही हैं. राहुल गांधी अपने हिसाब से ये कहने की कोशिश कर रहे हैं कि मायावती दलितों की आवाज को नजरअंदाज करने लगी हैं?
क्या राहुल गांधी वास्तव में कमजोर वर्गों को कांग्रेस से जोड़ने की कोशिश में जुट गये हैं?
क्या ये शरद यादव की राहुल गांधी को दी गयी सलाह का असर है? या फिर राहुल गांधी शरद यादव से इसी सिलसिले में पहले से मन बना कर ही मिले थे?
यूपी चुनाव में कांग्रेस के गठबंधन प्रस्ताव...
मायावती (Mayawati) को निशाना बनाते हुए राहुल गांधी ने जिस तरह से दलितों का मुद्दा उठाया है, वो तो शरद यादव से मुलाकात का ही असर लगता है. भले ही राहुल गांधी ने शरद यादव के बगल में खड़े होकर नफरत की राजनीति की बात की हो - और देश की अर्थव्यवस्था की हालत श्रीलंका जैसी बता डाली हो या रूस से हमले की आशंका चीन को लेकर भी जतायी हो.
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने मायावती के बहाने दलितों का मुद्दा उठाते हुए गुजरात के ऊना की घटना का भी जिक्र किया - क्या ऐसा करने के पीछे गुजरात चुनाव हो सकता है? गुजरात और हिमाचल प्रदेश में 2022 के आखिर में विधानसभा के चुनाव होने हैं.
जुलाई, 2016 में गुजरात के ऊना में कुछ गोरक्षकों ने दलित युवकों की पिटाई कर दी थी, जिसके विरोध में करीब डेढ़ दर्जन 17 युवकों ने आत्महत्या का प्रयास किया था. घटना के विरोध में तब जिग्नेश मेवाणी ने ऊना मार्च निकाला था और घटनास्थल पर पहुंच कर अलग से स्वतंत्रता दिवस समारोह आयोजित किया था. बाद में जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस के समर्थन से विधायक भी बने. फिलहाल वो हार्दिक पटेल के साथ कांग्रेस के सपोर्ट में खड़े नजर आते हैं.
बड़े दिनों बाद राहुल गांधी ने मायावती पर जोरदार हमला बोला है - और बड़ा इल्जाम ये लगाया है कि केंद्र सरकार के दबाव में बीएसपी नेता दलित समुदाय (Dalit Politics) के हितों के साथ समझौता कर रही हैं. राहुल गांधी अपने हिसाब से ये कहने की कोशिश कर रहे हैं कि मायावती दलितों की आवाज को नजरअंदाज करने लगी हैं?
क्या राहुल गांधी वास्तव में कमजोर वर्गों को कांग्रेस से जोड़ने की कोशिश में जुट गये हैं?
क्या ये शरद यादव की राहुल गांधी को दी गयी सलाह का असर है? या फिर राहुल गांधी शरद यादव से इसी सिलसिले में पहले से मन बना कर ही मिले थे?
यूपी चुनाव में कांग्रेस के गठबंधन प्रस्ताव को मायावती की तरफ से ठुकरा दिये जाने का दावा कर राहुल गांधी आखिर क्या हासिल करना चाहते हैं?
राहुल गांधी बीएसपी से गठबंधन क्यों चाहते थे?
यूपी चुनाव 2022 में 'लड़की हूं... लड़ सकती हूं' मुहिम शुरू करने के काफी पहले कांग्रेस की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा चुनाव पूर्व गठबंधन की हिमायती लग रही थीं. कई मौकों पर गठबंधन के समर्थन में प्रियंका गांधी के बयान गंभीरता से लिये गये.
ऐसे कुछ मौके भी आये जब गठबंधन की चर्चाएं दमदार लगने लगी थीं. एक बार तब जब प्रियंका गांधी और समाजवादी नेता अखिलेश यादव की एक फ्लाइट में आमने-सामने की तस्वीरें लीक होकर सोशल मीडिया पर पहुंच गयीं. तस्वीरों का लीक होना भी चुनावी माहौल के हिसाब से प्रायोजित ही लगा था.
गठबंधन की चर्चा का एक मौका तब भी समझ में आया जब एयरपोर्ट पर ही एक दिन प्रियंका गांधी और आरएलडी नेता जयंत चौधरी की मुलाकात की खबर आयी, लेकिन ये सब शायद एक दूसरे को तौलने या फिर अपने अपने हिसाब से कोई खास मैसेज देने की कोशिश ही लगी. हो सकता है ये सब यूपी में सत्ताधारी बीजेपी को अपने तरीके से गुमराह करने की कोशिश भी रही हो.
चुनावों से काफी पहले ही जब असदुद्दीन ओवैसी और बीएसपी के बीच चुनावी गठबंधन की खबर आयी तो मायावती ने सामने आकर साफ साफ बोल दिया कि उनकी पार्टी सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी - और किसी भी राजनीतिक दल के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा, सिवा पंजाब के. असल में पंजाब चुनाव में बीएसपी ने बादल परिवार की पार्टी अकाली दल के साथ चुनावी गठबंधन किया था.
राहुल गांधी का दावा: दलितों पर लिखी एक किताब के रिलीज के मौके पर दिल्ली के जवाहर भवन में राहुल गांधी ने कहा कि वो मायावती को मुख्यमंत्री बनाने को तैयार थे और इस सिलसिले में अपना मैसेज भी भिजवाया था, लेकिन केंद्रीय एजेंसियों के डर के मारे मायावती ने उनके मैसेज का जवाब तक नहीं दिया.
मायावती को लेकर राहुल गांधी का दावा है 'हमने मायावती को मेसेज दिया कि गठबंधन करिये... मुख्यमंत्री बनिये... लेकिन वो बात तक नहीं कीं...सीबीआई और ईडी से डरती हैं वो... '
राहुल गांधी ने कहा, 'जिन लोगों ने अपना खून-पसीना देकर उत्तर प्रदेश में दलितों की आवाज को जगाया... कांशीराम जी थे, जिन्होंने दलितों की आवाज उठाई. भले ही इससे कांग्रेस को नुकसान पहुंचा... आज मायावती कहती हैं कि मैं उस आवाज के लिए नहीं लडूंगी - क्योंकि उनको ईडी, सीबीआई और पेगासस का डर था.'
चुनाव नतीजों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को दो सीटें मिली जबकि बीएसपी का सिर्फ एक उम्मीदवार ही विधानसभा पहुंच सका है. ऊपर से बीएसपी के वोट शेयर में ही काफी गिरावट दर्ज की गयी है.
सवाल ये है कि अगर मायावती, राहुल गांधी का प्रस्ताव स्वीकार कर ही लेतीं तो क्या मुख्यमंत्री बन जातीं. राहुल गांधी के नजरिये से देखें तो वो महज मुख्यमंत्री पद का प्रस्ताव रखे थे, अखिलेश यादव ने तो मायावती को 2019 में प्रधानमंत्री बनाने का ही वादा कर डाला था, फिर भी बीएसपी नेता ने चुनाव नतीजे आने के बाद ही गठबंधन तोड़ दिया था.
देखा जाये तो मायावती के लिए सपा-बसपा गठबंधन से ज्यादा फायदेमंद तो कुछ हो ही नहीं सकता था. 2007 के दलित-ब्राह्मण गठजोड़ वाली सोशल इंजीनियरिंग को छोड़ दें तो मायावती के हिस्से में कभी आया ही क्या है. जब भी मायावती को राजनीति चमकी है, गठबंधन के भरोसे ही संभव हो पाया है.
अगर 2014 और 2019 की तुलना करें तो सपा-बसपा गठबंधन की बदौलत ही तो मायावती शून्य से 10 लोक सभा सीटों पर जीत हासिल कर पायीं. बावजूद इतने बड़े फायदे के मायावती ने अखिलेश यादव के साथ गठबंधन तोड़ने में जरा भी देर नहीं लगायी.
क्या मायावती को किसी बात का डर है?
राहुल गांधी के दावे पर मायावती की तरफ से रिएक्शन का इंतजार रहेगा. फिलहाल सवाल ये है कि राहुल गांधी का संदेश लेकर मायावती के पास कौन गया होगा? पूरे यूपी चुनाव में अमेठी के अलावा राहुल गांधी की कोई दिलचस्पी नहीं देखने को मिली और कभी ऐसा भी नहीं लगा कि राहुल गांधी यूपी चुनाव में किसी तरह का दखल दे रहे हों.
महिला उम्मीदवारों को 40 फीसदी टिकट दिये जाने के सवाल पर कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत का कहना रहा कि वो फैसला यूपी की कांग्रेस प्रभारी प्रियंका गांधी का रहा. सुप्रिया से ये जानने की तब कोशिश हो रही थी कि क्या कांग्रेस का महिलाओं को उसी हिसाब से टिकट देने का आगे भी इरादा है क्या?
मायावती को एक बार बीजेपी का अघोषित प्रवक्ता बता चुकीं प्रियंका गांधी चुनावों से पहले मायावती से मिलने उनके घर भी गयी थीं. 14 नवंबर, 2021 को प्रियंका गांधी, मायावती की मां रामरती देवी के निधन पर शोक जताने पहुंची थीं. तब तो नहीं, लेकिन क्या बाद में कभी प्रियंका गांधी ने मायावती से चुनावी गठबंधन को लेकर बात की होगी? क्या प्रियंका गांधी ने ही राहुल गांधी की तरफ से गठबंधन का प्रस्ताव लेकर मायावती से संपर्क किया था? ऐसे सभी सवालों के जवाब मायावती के रिएक्शन से थोड़े आसान हो सकते हैं.
राहुल गांधी ने मायावती पर केंद्रीय एजेंसियों के डर से ठीक से चुनाव नहीं लड़ने का आरोप लगाया है. मायावती ने मतदान की तारीख नजदीक आने के बाद ही यूपी में चुनाव प्रचार शुरू किया था. पहले बीएसपी की तरफ से सिर्फ जगह जगह ब्राह्मणों को लुभाने के लिए प्रुबुद्ध वर्ग सम्मेलन कराये गये थे.
चुनाव की तारीख नजदीक आने के बावजूद सक्रियता न दिखाने को लेकर बीजेपी नेता अमित शाह और प्रियंका गांधी दोनों ही मायावती को कठघरे में खड़ा करते रहे. हालांकि, बाद में अमित शाह ने एक बयान जरूर दिया था कि मायावती और बीएसपी की प्रासंगिकता अभी खत्म नहीं होने वाली है. अमित शाह के बयान को अखिलेश यादव के खाते में जा रहे मुस्लिम वोटों को रोकने की कोशिश के तौर पर देखा गया था.
वैसे करहल में अखिलेश यादव के खिलाफ बीएसपी उम्मीदवार को छोड़ दें तो मायावती ने जगह जगह ऐसे ही नेताओं को बीएसपी के टिकट दिये थे जो बीजेपी की जीत में मददगार साबित हों. पूर्वांचल के मुकाबले पश्चिम यूपी में तो ये कुछ ज्यादा ही महसूस किया गया क्योंकि किसान आंदोलन की वजह से बीजेपी काफी डरी हुई थी. नतीजे भी बताते हैं कि सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीत दर्ज करने वाले बीजेपी के 5 उम्मीदवार पश्चिम यूपी से ही रहे.
यूपी चुनाव में बीएसपी का प्रदर्शन, मायावती की रणनीति और गंभीर दिलचस्पी न होना तो यही बताता है कि राहुल गांधी के आरोप राजनीतिक होते हुए भी गलत नहीं लगते. असल बात तो मायावती ही जानती होंगी.
कांग्रेस को मायावती ने भाव ही कब दिया है?
2019 के आम चुनाव में मायावती ने यूपी में अखिलेश यादव के साथ हाथ मिलाकर सपा-बसपा गठबंधन बनाया था. मायावती ने मुलायम सिंह यादव से ढाई दशक पुरानी दुश्मनी भुलाकर मैनपुरी जाकर वोट तक मांगा था, लेकिन कांग्रेस को पास तक नहीं फटकने दे रही थीं.
फिर भी राहुल गांधी न तो मायावती के खिलाफ और न ही अखिलेश यादव के खिलाफ कुछ बोल रहे थे. भाई की राह चलते हुए प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी वैसा ही किया और यूपी कांग्रेस के नेतां को भी वैसी ही हिदायत दी गयी थी. तब भी जबकि मायावती कांग्रेस के खिलाफ लगातार हमलावर बनी रहीं.
एक मौका तो ऐसा भी आया जब मायावती गुस्से में आपे से बाहर हो गयी थीं. ये तब की बात है जब अचानक प्रियंका गांधी मेरठ के अस्पताल में भर्ती भीम आर्मी नेता चंद्रशेखर आजाद से मिलने पहुंच गयीं. कांग्रेस को गठबंधन से दूर रखने के बावजूद मायावती ने अमेठी और रायबरेली अपना कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया था, लेकिन प्रियंका गांधी के कदम से नाराज होकर अमेठी और रायबरेली में भी गठबंधन का उम्मीदवार उतारने पर आमादा हो गयी थीं. बड़ी मेहनत के बाद जैसे तैसे अखिलेश यादव बीएसपी नेता को ऐसा न करने के लिए मना पाये थे.
2018 के आखिर में जब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे थे, कांग्रेस नेताओं ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीएसपी के साथ गठबंधन के लिए मायावती से संपर्क किया. एक दिन अचानक अजीत जोगी के साथ मायावती ने बीएसपी के चुनावी गठबंधन की घोषणा कर दी थी - किसी और राज्य में भी कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं किया. बाद में दिग्विजय सिंह ने भी मायावती पर राहुल गांधी की ही तरह जांच एजेंसियों से डर जाने का आरोप लगाया था.
इन्हें भी पढ़ें :
Rahul Gandhi कुशल राजनेता न सही, 'मोटिवेशनल स्पीकर' तो हैं ही
योगी को चैलेंज कर रहे चंद्रशेखर आजाद को मायावती ने पहले ही न्यूट्रलाइज कर दिया!
बीजेपी की कसौटी पर शरद पवार और नीतीश कुमार में से कौन ज्यादा खरा है?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.