जब मई 23 को लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस को मात्र 52 सीटें ही मिली थीं. उसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ने की मंशा जाहिर की थी. राहुल गांधी की निराशा तब खुलकर सामने आई थी, जब चुनावी हार का ज़िम्मा लेने के लिए कोई बड़ा कांग्रेसी नेता आगे नहीं आया था और राहुल गांधी ने अपना इस्तीफा दिया था. इसके बावजूद राष्ट्रीय स्तर के किसी नेता ने उनका अनुसरण नहीं किया. और तब से ही राहुल गांधी अपने फैसले पर अड़े हुए थे. लेकिन पार्टी के नेता और कार्यकर्ता पार्टी अध्यक्ष के पद पर बने रहने के लिए उनसे गुहार लगा रहे थे. यहां तक कि कांग्रेस शासित सभी पांच राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी उनसे अध्यक्ष पद पर बने रहने का आग्रह किया था, लेकिन वो अपने फैसले पर अडिग रहे. राहुल गांधी का कहना था कि इस पद पर कोई गैर-गांधी परिवार से चुना जाए. अब करीब डेढ़ महीने के मान - मनौवल के बाद इस्तीफा वापस लेने की अटकलों को खत्म करते हुए 4 पन्नों का बयान जारी करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालने से मना कर दिया. यानी इस सियासी ड्रामे का पटाक्षेप तो हुआ ही. साथ ही साथ अब यह भी तय हो गया है कि कोई गैर-गांधी ही कांग्रेस का अध्यक्ष होगा.
अगर वाकई कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष कोई गांधी परिवार के बाहर से बनता है तो यह दो दशकों के बाद ऐसा होगा. इससे पहले 1996 में सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष बने थे, जिन्हें 1998 में विवादास्पद परिस्थितियों में सोनिया गांधी के लिए पद त्याग करना पड़ा था. आजादी के बाद से कांग्रेस पार्टी में 18 अध्यक्ष हुए हैं, जिसमें 13 बार गांधी परिवार के बाहर के लोगों के हाथों में इसकी कमान रही है.
राहुल गांधी ने दिसम्बर 2017 में कांग्रेस अध्यक्ष पद का...
जब मई 23 को लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस को मात्र 52 सीटें ही मिली थीं. उसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ने की मंशा जाहिर की थी. राहुल गांधी की निराशा तब खुलकर सामने आई थी, जब चुनावी हार का ज़िम्मा लेने के लिए कोई बड़ा कांग्रेसी नेता आगे नहीं आया था और राहुल गांधी ने अपना इस्तीफा दिया था. इसके बावजूद राष्ट्रीय स्तर के किसी नेता ने उनका अनुसरण नहीं किया. और तब से ही राहुल गांधी अपने फैसले पर अड़े हुए थे. लेकिन पार्टी के नेता और कार्यकर्ता पार्टी अध्यक्ष के पद पर बने रहने के लिए उनसे गुहार लगा रहे थे. यहां तक कि कांग्रेस शासित सभी पांच राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी उनसे अध्यक्ष पद पर बने रहने का आग्रह किया था, लेकिन वो अपने फैसले पर अडिग रहे. राहुल गांधी का कहना था कि इस पद पर कोई गैर-गांधी परिवार से चुना जाए. अब करीब डेढ़ महीने के मान - मनौवल के बाद इस्तीफा वापस लेने की अटकलों को खत्म करते हुए 4 पन्नों का बयान जारी करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालने से मना कर दिया. यानी इस सियासी ड्रामे का पटाक्षेप तो हुआ ही. साथ ही साथ अब यह भी तय हो गया है कि कोई गैर-गांधी ही कांग्रेस का अध्यक्ष होगा.
अगर वाकई कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष कोई गांधी परिवार के बाहर से बनता है तो यह दो दशकों के बाद ऐसा होगा. इससे पहले 1996 में सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष बने थे, जिन्हें 1998 में विवादास्पद परिस्थितियों में सोनिया गांधी के लिए पद त्याग करना पड़ा था. आजादी के बाद से कांग्रेस पार्टी में 18 अध्यक्ष हुए हैं, जिसमें 13 बार गांधी परिवार के बाहर के लोगों के हाथों में इसकी कमान रही है.
राहुल गांधी ने दिसम्बर 2017 में कांग्रेस अध्यक्ष पद का कार्यभार संभाला था. इस तरह इनका करीब डेढ़ साल का कार्यकाल समाप्त हुआ, जो किसी भी गांधी परिवार द्वारा इस पद पर सबसे कम समय तक रहने का रिकॉर्ड है. इससे पहले सोनिया गांधी 19 साल, राजीव गांधी 6 साल, इंदिरा गांधी 7 साल और जवाहरलाल नेहरू 4 साल तक कांग्रेस अध्यक्ष का पद भार संभाल चुके हैं.
राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा तो दिया, लेकिन कांग्रेसियों के लिए कुछ अनुत्तरित सवाल भी छोड़ गए. मसलन राहुल गांधी ने लोकसभा हार की जिम्मेदारी ली या फिर जिम्मेदारी से बचे? जब कांग्रेस को मज़बूत करने का समय था, ऐसे वक़्त में इस्तीफ़ा देना कहां तक उचित है? क्या 'गैर-गांधी' अध्यक्ष पार्टी को हार के संकट से उबार पाएगा? क्या इसके बाद कांग्रेस के 'अच्छे दिन' आ जाएंगे? क्या राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस 'गांधी परिवार' टैग से मुक्ति पा लेगा? सवाल इस लिए भी, क्योंकि वो अध्यक्ष नहीं रहेंगे तो फिर कौन सी भूमिका में नजर आएंगे? फिर सोनिया गांधी या फिर प्रियंका गांधी कौन सी भूमिका अदा करेंगे?
अब चूंकि राहुल गांधी अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं और स्थिति साफ़ है कि अगला पार्टी अध्यक्ष 'गैर-गांधी परिवार' से ही होगा. ऐसे में इसका कितना फायदा या नुकसान कांग्रेस को होगा ये तो आने वाला समय ही बता पाएगा. लेकिन इतना तो तय है कि उस अध्यक्ष के लिए कांग्रेस पार्टी को अपने पुराने मुकाम तक पहुंचाना एक बड़ी चुनौती होगी.
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