राहुल गांधी के जन्मदिन पर 19 जून को अशोक गहलोत ने बधाई देते वक्त जनहित में कांग्रेस अध्यक्ष बने रहने की गुजारिश की थी - लेकिन राहुल गांधी ने एक बार कमिटमेंट कर दी है, फिर क्यों वो खुद की भी सुनें?
राहुल गांधी ने पहली बार साफ तौर पर कह दिया है कि अध्यक्ष पद छोड़ने का उनका फैसला नहीं बदलने वाला है. राहुल गांधी का ये भी कहना है कि वो नया अध्यक्ष चुने जाने की प्रक्रिया से भी दूर रहेंगे - कांग्रेस पार्टी ही तय करेगी कि अध्यक्ष बनाने के लिए क्या रास्ता चुना जाएगा और कमान किसे सौंपी जाएगी?
राहुल गांधी को किस बात का डर सता रहा है?
23 मई को लोक सभा चुनाव के नतीजे आये और दो दिन बाद ही CWC की बैठक में राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया. राहुल गांधी का प्रस्ताव तत्काल ठुकरा दिया गया - कुछ लोग फौरन ही मान मनौव्वल में भी जुट गये.
फिर एक दिन कांग्रेस की कोर कमेटी की बैठक हुई और उसके बाद प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा, 'राहुल गांधी अध्यक्ष थे, हैं और रहेंगे.'
तब राहुल गांधी की जगह रेस में कौन चल रहा है के सवाल को रणदीप सुरजेवाला ने ये कहते हुए खारिज कर दिया कि अब उसका कोई मतलब नहीं रहा. लोगों ने मान भी लिया - लेकिन न अफवाहें खत्म हुईं न सवाल बेमतलब हुआ!
संसद में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के बाद जब राहुल गांधी बाहर आये तो उनके सामने कांग्रेस अध्यक्ष पर सस्पेंस को लेकर सवाल रखे गये. राहुल गांधी ने इस बारे में मुख्य तौर पर तीन बातें कही -
1. "मैं प्रक्रिया में शामिल नहीं हूं. पार्टी अगले अध्यक्ष पर फैसला करेगी."
2. "प्रक्रिया में शामिल होकर मैं इसे जटिल नहीं बनाना चाहता."
3. "मैं पार्टी में बना रहूंगा और पार्टी के लिए...
राहुल गांधी के जन्मदिन पर 19 जून को अशोक गहलोत ने बधाई देते वक्त जनहित में कांग्रेस अध्यक्ष बने रहने की गुजारिश की थी - लेकिन राहुल गांधी ने एक बार कमिटमेंट कर दी है, फिर क्यों वो खुद की भी सुनें?
राहुल गांधी ने पहली बार साफ तौर पर कह दिया है कि अध्यक्ष पद छोड़ने का उनका फैसला नहीं बदलने वाला है. राहुल गांधी का ये भी कहना है कि वो नया अध्यक्ष चुने जाने की प्रक्रिया से भी दूर रहेंगे - कांग्रेस पार्टी ही तय करेगी कि अध्यक्ष बनाने के लिए क्या रास्ता चुना जाएगा और कमान किसे सौंपी जाएगी?
राहुल गांधी को किस बात का डर सता रहा है?
23 मई को लोक सभा चुनाव के नतीजे आये और दो दिन बाद ही CWC की बैठक में राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया. राहुल गांधी का प्रस्ताव तत्काल ठुकरा दिया गया - कुछ लोग फौरन ही मान मनौव्वल में भी जुट गये.
फिर एक दिन कांग्रेस की कोर कमेटी की बैठक हुई और उसके बाद प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा, 'राहुल गांधी अध्यक्ष थे, हैं और रहेंगे.'
तब राहुल गांधी की जगह रेस में कौन चल रहा है के सवाल को रणदीप सुरजेवाला ने ये कहते हुए खारिज कर दिया कि अब उसका कोई मतलब नहीं रहा. लोगों ने मान भी लिया - लेकिन न अफवाहें खत्म हुईं न सवाल बेमतलब हुआ!
संसद में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के बाद जब राहुल गांधी बाहर आये तो उनके सामने कांग्रेस अध्यक्ष पर सस्पेंस को लेकर सवाल रखे गये. राहुल गांधी ने इस बारे में मुख्य तौर पर तीन बातें कही -
1. "मैं प्रक्रिया में शामिल नहीं हूं. पार्टी अगले अध्यक्ष पर फैसला करेगी."
2. "प्रक्रिया में शामिल होकर मैं इसे जटिल नहीं बनाना चाहता."
3. "मैं पार्टी में बना रहूंगा और पार्टी के लिए काम करूंगा."
राहुल गांधी ये कहना कि वो नया कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने की प्रक्रिया में शामिल नहीं हैं. फिर ये कहना कि वो प्रक्रिया में शामिल होकर उसे और जटिल नहीं बनाना चाहते - आखिर इसे क्या समझा जाये?
राहुल गांधी अध्यक्ष नहीं बनेंगे ये बात तो समझ में आती है. हो सकता है उन्हें लगता हो वो खुद इस पद के काबिल नहीं हैं. हो सकता है राहुल गांधी को लगता हो ऐसा करके वो बीजेपी के हमलों से बच जाएंगे. हो सकता है नये नेता को कमान मिलने के बाद देखना चाहते हों कि रिएक्शन कैसा हो रहा है?
राहुल गांधी का ये कहना तो बड़ा अजीब लगता है कि वो प्रक्रिया में शामिल नहीं हैं - और ये भी कि अध्यक्ष चयन की प्रक्रिया में शामिल होकर वो उसे जटिल नहीं बनना चाहते. आखिर ये क्या बात हुई, जो कांग्रेस पार्टी का महासचिव रहा हो, उपाध्यक्ष और फिर अध्यक्ष बना हो - नये अध्यक्ष के चयन में उसकी कोई भूमिका क्यों नहीं होनी चाहिये?
आखिर राहुल गांधी को किस बात का डर है कि अध्यक्ष चयन की प्रक्रिया में वो शामिल होंगे तो मुश्किल हो जाएगी? क्या राहुल गांधी फैसलों से डरने लगे हैं? क्या राहुल गांधी ये कह कर सुझाव नहीं दे सकते कि वो सिर्फ सलाह दे रहे हैं जरूरी नहीं कि उन्हें माना ही जाये. कांग्रेस पार्टी में इतने वरिष्ठ नेता हैं वे अपने विवेक का इस्तेमाल करें और कार्यकर्ताओं के वोट से कांग्रेस का नया अध्यक्ष तय हो.
ऐसा क्यों लगता है जैसे राहुल गांधी ने हार की जिम्मेदारी तो ले ली है, लेकिन हर किसी से रूठे हुए हैं.
राहुल गांधी किससे रूठे हुए हैं?
क्या राहुल गांधी किसी से नाराज हैं? क्या राहुल गांधी को कोई बाद बुरी लगी है? जब राहुल गांधी नामांकन दाखिल करने वायनाड पहुंचे थे तो उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा ने ट्वीट कर बताया था कि वो जितने लोगों को भी जानती हैं राहुल गांधी उन सभी से में सबसे ज्यादा साहसी हैं. वैसे जो भी वो ट्वीट पढ़ता तत्काल उसके मन में रॉबर्ट वाड्रा की तस्वीर उभरती - क्योंकि जिस तरह के आरोप रॉबर्ट वाड्रा पर हैं उनसे तो वो दुस्साहसी लगते हैं. सिर्फ साहसी कौन कहे.
बहरहाल, सवाल ये है कि क्या राहुल गांधी किसी से रूठे हुए हैं? अगर रूठे हैं तो किससे?
ये तो समझ में आता है कि राहुल गांधी अमेठी के लोगों से बहुत ज्यादा नाराज हैं - तभी तो सबसे पहले वायनाड दौड़ पड़े और अमेठी की ओर झांका तक नहीं. कहने को तो यहां तक कह गये कि केरल आकर लगता है जैसे जन्म से रिश्ता हो. गजब. वैसे ये रिश्ता क्या कहलाता है? दिल्ली में जन्म के वक्त मौजूद नर्स से बरसों बाद मिलना तो समझ में आता है, लेकिन वायनाड के लोगों के वोट में इतनी ताकत कि अमेठी वालों की याद तक नहीं आती? नये कांग्रेस अध्यक्ष की चयन प्रक्रिया से दूर रहना तो यही जता रहा है कि राहुल गांधी किसी न किसी से रूठे हुए जरूर हैं. वैसे बात इतनी ही नहीं है. राहुल गांधी एक तरफ कह रहे हैं कि वो प्रक्रिया में शामिल नहीं हैं और दूसरी तरफ सुनने में आ रहा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा के अध्यक्ष बनने में वही रोड़ा भी बन रहे हैं.
ये क्या हुआ कि प्रक्रिया में शामिल भी नहीं हैं और प्रक्रिया को प्रभावित भी कर रहे हैं? राहुल गांधी का ये कहना कि प्रियंका वाड्रा भी अध्यक्ष नहीं बनेंगी - क्या प्रक्रिया को प्रभावित करना नहीं हैं? अगर कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता प्रियंका वाड्रा को ही नये अध्यक्ष के तौर पर देखना चाहते हैं तो राहुल गांधी रास्ते में कुंडली मार क्यों बैठने की कोशिश कर रहे हैं?
वेणुगोपाल या गहलोत या कोई और
18 जून को लोक सभा में कांग्रेस के नेता को लेकर फैसला होना था. राहुल गांधी का इंतजार था और वो लौट भी आये थे, लेकिन सदन में कांग्रेस का नेता बनने से मना कर दिया. फिर पश्चिम बंगाल से आने वाले अधीर रंजन चौधरी को वो जिम्मेदारी सौंप दी गयी - अपने ओपनिंग मैच में ही अधीर रंजन चौधरी पूरे फॉर्म में भी देखे गये. ये तो नहीं मालूम कि सदन में कांग्रेस के नेता के तौर पर राहुल गांधी कैसे रिएक्ट करते, लेकिन अधीर रंजन चौधरी ने साबित कर दिया कि आलाकमान की उम्मीदों पर वो आगे भी खरे ही उतरेंगे.
बात नये अध्यक्ष की प्रक्रिया की चल रही है तो केसी वेणुगोपाल और अशोक गहलोत के नाम पर चर्चाएं भी शुरू हो गयी हैं. अशोक गहलोत तो कार्यकारिणी की मीटिंग में राहुल गांधी के निशाने पर भी रहे जिन पर बेटे को जबरन टिकट दिलाने को लेकर. बेटा भी वो जो एड़ी चोटी का जोर लगाने के बाद भी हार गया. हार पर भी अशोक गहलोत चाहते थे कि सचिन पायलट सॉरी बोलें - क्योंकि सचिन पायलट ने जोर कभी देकर कहा था कि बेटा जीत जाएगा.
वैसे केसी वेणुगोपाल का नाम अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर चल रहा है. दलील ये है कि चूंकि दक्षिण भारत से कांग्रेस को करीब दो दर्जन सीटें मिली हैं इसलिए ये मुमकिन हो सकता है.
अपना इस्तीफा देने के बाद राहुल गांधी ने कुछ सुझाव जरूर दिये थे. मसलन - कोई अध्यक्ष मंडल बना लिया जाये या फिर अंतरिम अध्यक्ष के साथ उपाध्यक्षों की कोई टीम बना दी जाये. अध्यक्ष मंडल को समझना हो तो दिल्ली में कांग्रेस की मौजूदा व्यवस्था से समझा जा सकता है. शीला दीक्षित दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष हैं और उनकी मदद के लिए कार्यकारी अध्यक्ष हैं - माना जाता है कि दिल्ली में अध्यक्ष की भूमिका में कम से कम पांच लोग हैं.
कांग्रेस नेता तो तब भी परेशान हुआ करते थे जब पार्टी में दो-दो पावर सेंटर हुआ करते थे - एक, तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी और दो, तत्कालीन उपाध्यक्ष राहुल गांधी. अगर दिल्ली मॉडल पर पूरी पार्टी चलाना तय हुआ तो क्या हाल होगा?
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