मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) भी अब मधुसूदन मिस्त्री और मणि शंकर अय्यर जैसे नेताओं की जमात में शामिल हो चुके हैं, जिनके मन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के प्रति घोर नफरत भरी पड़ी है. अव्वल तो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) या सोनिया गांधी को भी अलग नहीं किया जा सकता.
कांग्रेस नेता मधुसूदन मिस्त्री ने हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी को लेकर 'औकात' की बात की थी - और 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान ही कांग्रेस नेता मणि शंकर अय्यर ने भी प्रधानमंत्री मोदी को 'नीच' बताया था.
ये क्या कोई M-फैक्टर है क्या? मतलब, तीनों ही नेताओं का नाम एम यानी म से शुरू होता है. काफी दिलचस्प है ना. वैसे तो सभी नियमों के अपवाद होते हैं - और राहुल गांधी और सोनिया गांधी इस कैटेगरी में अपवाद ही माने जाएंगे.
ये कोई जबान फिसलने जैसी घटना तो नहीं ही लगती. तो क्या मल्लिकार्जुन खड़गे ने चापलूस नेताओं की तरह राहुल गांधी को खुश करने के लिए ऐसा कहा होगा? या फिर खुद को निडर साबित करने के लिए? क्योंकि राहुल गांधी, संघ से प्रभावित रहने वाले या बीजेपी में चले जाने वाले और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ सख्त लहजा नहीं अपनाने वाले कांग्रेस नेताओं को डरपोक मानते हैं.
मणि शंकर अय्यर के खिलाफ तो राहुल गांधी की सिफारिश पर एक्शन भी लिया जा चुका है. छह साल के लिए कांग्रेस से बाहर निकाल कर. और अय्यर से माफी मंगवा कर. राहुल गांधी ने ये कहते हुए कि अय्यर से माफी मंगवायी थी कि वो हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री हैं, इसलिए वो मोदी के खिलाफ ऐसी वैसी बातें बर्दाश्त नहीं करेंगे, लेकिन कालांतर में ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं जब राहुल गांधी खुद ही आपा खो बैठे हों.
गुजरात की एक चुनावी रैली में मल्लिकार्जुन खड़गे कहते हैं, 'प्रधानमंत्री मोदी हर वक्त अपनी...
मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) भी अब मधुसूदन मिस्त्री और मणि शंकर अय्यर जैसे नेताओं की जमात में शामिल हो चुके हैं, जिनके मन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के प्रति घोर नफरत भरी पड़ी है. अव्वल तो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) या सोनिया गांधी को भी अलग नहीं किया जा सकता.
कांग्रेस नेता मधुसूदन मिस्त्री ने हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी को लेकर 'औकात' की बात की थी - और 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान ही कांग्रेस नेता मणि शंकर अय्यर ने भी प्रधानमंत्री मोदी को 'नीच' बताया था.
ये क्या कोई M-फैक्टर है क्या? मतलब, तीनों ही नेताओं का नाम एम यानी म से शुरू होता है. काफी दिलचस्प है ना. वैसे तो सभी नियमों के अपवाद होते हैं - और राहुल गांधी और सोनिया गांधी इस कैटेगरी में अपवाद ही माने जाएंगे.
ये कोई जबान फिसलने जैसी घटना तो नहीं ही लगती. तो क्या मल्लिकार्जुन खड़गे ने चापलूस नेताओं की तरह राहुल गांधी को खुश करने के लिए ऐसा कहा होगा? या फिर खुद को निडर साबित करने के लिए? क्योंकि राहुल गांधी, संघ से प्रभावित रहने वाले या बीजेपी में चले जाने वाले और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ सख्त लहजा नहीं अपनाने वाले कांग्रेस नेताओं को डरपोक मानते हैं.
मणि शंकर अय्यर के खिलाफ तो राहुल गांधी की सिफारिश पर एक्शन भी लिया जा चुका है. छह साल के लिए कांग्रेस से बाहर निकाल कर. और अय्यर से माफी मंगवा कर. राहुल गांधी ने ये कहते हुए कि अय्यर से माफी मंगवायी थी कि वो हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री हैं, इसलिए वो मोदी के खिलाफ ऐसी वैसी बातें बर्दाश्त नहीं करेंगे, लेकिन कालांतर में ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं जब राहुल गांधी खुद ही आपा खो बैठे हों.
गुजरात की एक चुनावी रैली में मल्लिकार्जुन खड़गे कहते हैं, 'प्रधानमंत्री मोदी हर वक्त अपनी बात करते हैं... हर मुद्दे पर कहते हैं कि मोदी की सूरत को देखकर वोट दें... तुम्हारी सूरत कितनी बार देखें?'
और फिर पूछने लगे, "पार्षद चुनाव में तुम्हारी सूरत देखें... एमएलए चुनाव में भी तुम्हारी सूरत देखें... एमपी चुनाव में भी तुम्हारी सूरत देखें... हर जगह आपका ही चेहरा देखें... कितने चेहरे हैं आपके? आपके रावण की तरह सौ मुख हैं क्या?"
पिछले चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता मणि शंकर अय्यर ने कहा था, "मुझको ये आदमी बहुत नीच किस्म का लगता है... इसमें कोई सभ्यता नहीं है..." बाद में बवाल मचने पर मणि शंकर अय्यर ने अपनी खराब हिंदी की दुहाई देकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की थी.
प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात की चुनावी रैली में ही एक एक करके सोनिया गांधी सहित सभी कांग्रेस नेताओं को निशाने पर लिया. दरअसल, 2007 के गुजरात चुनाव में मोदी को सोनिया गांधी ने 'मौत का सौदागर' बता डाला था.
सभी को एक ही साथ जवाब देते हुए एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री मोदी बोले, 'तुमने मुझे नीच कहा, नीची जाति का कहा... तुमने मौत का सौदागर कहा, गंदी नाली का कीड़ा कहा... तुम औकात बताने की बात कह रहे हो... हमारी कोई औकात नहीं है... मेहरबानी करके विकास के मुद्दे की चर्चा करो... विकसित गुजरात बनाने के लिए मैदान में आओ... औकात बनाने का खेल छोड़ दो भाई.'
रेणुका का ठहाका, मोदी की टिप्पणी: ये ठीक है कि कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी के जख्म फिर से हरे हो गये हैं. रेणुका चौधरी को संसद का वो वाकया याद आ गया है. 2018 में प्रधानमंत्री मोदी का राज्य सभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण का जवाब दे रहे थे, तभी रेणुका चौधरी जोर जोर से हंसने लगीं. जब सभापति एम. वेंकैया नायडू ने नाराजगी जतायी तो मोदी बोले, सभापति जी, आप रेणुका जी को कुछ न कहिये... रामायण सीरियल के बाद ऐसी हंसी अब सुनाई दी है.'
सबको समझ में आ गया था, मोदी ने सीधे सीधे न बोल कर रेणुका की हंसी की तुलना शूर्पनखा से कर डाली थी. फिर तो जो होना था, हुआ ही. मोदी के बयान से बीजेपी को तो कोई नुकसान नहीं हुआ, लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे का असर काफी बुरा हो रहा है.
हर हाल में मोदी का मान रखेंगे गुजराती लोग: मोदी को लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे की ये टिप्पणी गुजरात के लोगों को बहुत बुरी लगी है. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में काठपुर गांव की चंपाबेन खींच कर पल्लू संभालते हुए कहती हैं, 'हमारे पास घर नहीं है. आवास योजना के तहत हर बार हम प्रयास करते हैं, लेकिन सरपंच हमारी अर्जी खारिज कर अपने आदमियों को दे देता है. हमारे गांव में अस्पताल नहीं है, न ही पांचवीं क्लास के बाद बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल ही है.'
लाख शिकायतें हैं लेकिन, बात मोदी की आती है तो सब किनारे चला जाता है, चंपाबेन को ही सुनिये, कहती हैं, 'पन अमे मोदी साहेब नू मान राक्शू!' मतलब, लेकिन हम मोदी साहब का मान नहीं कम होने देंगे.
मोदी से इतनी नफरत क्यों?
एक सवाल है. जब मल्लिकार्जुन खड़गे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना रावण से कर रहे होंगे तो उनके मन में क्या चल रहा होगा?
एक और सवाल है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का बयान सुन कर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के मन में क्या आया होगा?
क्या मल्लिकार्जुन खड़गे की बात सुन कर राहुल गांधी को खुशी हुई होगी?
या फिर, एक बार फिर भारत के प्रधानमंत्री की रावण से तुलना सुन कर गुस्सा आया होगा?
अगर राहुल गांधी ने मल्लिकार्जुन खड़गे का बयान लाइव नहीं सुना होगा - और बाद में मोबाइल पर वीडियो देखा होगा तो कैसा लगा होगा?
मोबाइल तो वो हर हाल में देखते ही हैं. कोई भी महत्वपूर्ण कार्यक्रम क्यों न चल रहा हो, राहुल गांधी की नजर मोबाइल पर ही अक्सर देखी जाती है, सिवा तब के जब वो भाषण न दे रहे हों या फिर प्रेस कांफ्रेंस कर रहे हों. अगर किसी ने टीवी पर लाइव न देखा हो तो थोड़ा सा गूगल करके तस्वीरें देख सकता है. ऐसी तस्वीरें बड़े आराम से मिल जाएंगी.
और सवाल ये भी कि क्या जो मल्लिकार्जुन खड़गे के मन में प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोलते वक्त आया होगा या राहुल गांधी के मन में कोई विचार आया होगा - क्या वैसा ही कांग्रेस के बाकी नेताओं के मन में भी चलता रहता होगा?
क्या सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी के मन में कुछ और चल रहा होगा? क्या मणि शंकर अय्यर और मधुसूदन मिस्त्री के मन में भी बिलकुल वही भावना रही होगी, जो मोदी की रावण से तुलना करते वक्त मल्लिकार्जुन खड़गे के मन में रही होगी?
शुरुआत तो इसकी सोनिया गांधी ने ही की थी, 2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी को 'मौत का सौदागर' बोल कर.
मुद्दे पर थोड़ा और विचार करें, तो कल्पना कीजिये कांग्रेस की मीटिंग में जब भी मोदी का नाम लिया जाता होगा. प्रसंग चाहे जो भी हो, तो किन शब्दों में संबोधन किया जाता होगा? जब सार्वजनिक तौर पर ये हाल है तो अंदर क्या माहौल रहता होगा?
बंद कमरे में होने वाली कांग्रेस की बैठकों में जब भी मोदी का जिक्र आता होगा, सोनिया राहुल और प्रियंका के चेहरे के भाव कैसे होते होंगे?
मोदी के प्रति कांग्रेस नेतृत्व और बाकी नेताओं के मन में जो भाव है, वो तो काफी पहले से ही रहा है, लेकिन इजाफा तो तब हुआ होगा जब गांधी परिवार के दामाद रॉबर्ट वाड्रा शिकार हुए. पहले तो वो बेरोक टोक एयरपोर्ट पर आया जाया करते थे. धीरे धीरे राहुल गांधी और सोनिया गांधी से भी केंद्र की बीजेपी सरकार ने एसपीजी सुरक्षा वापस ले ली. गुस्सा तो मन में रहता ही होगा. रह रह कर जोर से उठता भी होगा. मनुष्य का स्वभाव तो ऐसा ही है.
मोदी की वजह से सत्ता गांधी परिवार और कांग्रेस हाथ से निकल कर काफी दूर जा चुकी है. कांग्रेस के लिए देश की राजनीति में ठीक से खड़ा होना भी मुश्किल हो रहा है. राहुल गांधी ही नहीं, सोनिया गांधी को भी प्रवर्तन निदेशालय की जांच पड़ताल के लिए दफ्तर जाकर पेशी देनी पड़ रही है.
नरेंद्र मोदी भी जब गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, कहा करते थे कि उनके खिलाफ चुनाव सीबीआई लड़ती है. अमित शाह भी जब जेल भेजे जा रहे होंगे तो मन में वैसे ही ख्यालात आ रहे होंगे, जैसे पी. चिदबंरम को सीबीआई की उस इमारत में गिरफ्तारी के बाद रखे जाने पर आ रहे होंगे जिस इमारत के उद्घाटन के मौके पर वो केंद्रीय मंत्री के तौर वहां मौजूद थे.
ये सब स्वाभाविक है. आखिरकार, पद और प्रतिष्ठा कुछ भी हासिल हो जाये, इंसान तो इंसान ही रहता है. देश का प्रधानमंत्री भी और मुख्य न्यायाधीश भी. सब इंसान है.
फिर भी अगर राहुल गांधी कहते हैं कि संघ और बीजेपी नफरत फैलाते हैं - और वो या उनके कांग्रेसी साथी प्यार और मोहब्बत का पैगाम देते तो बहुत अच्छा लगता. लेकिन ऐन उसी वक्त अगर कोई कांग्रेसी ऐसी-वैसी हरकत कर देता है - या फिर राहुल गांधी खुद ही कमिटमेंट कर भूल जाते हैं तो समझना मुश्किल होने लगता है - दूसरों को नसीहत देने से पहले एक बार अपने गिरेबान में हर किसी को झांक कर देख ही लेना चाहिये.
एक सवाल ये भी है. रावण की जगह, मल्लिकार्जुन खड़गे मोदी की तुलना राम से भी तो कर सकते थे!
'घट घट व्यापे राम.'
ये भी तो कहा ही जाता है. जैसे राम हर जगह होते हैं - रावण के तो बस दस सिर ही होते हैं. लेकिन कहा तो ये भी गया है - जाकी रही भावना जैसी!
निजी हमले इतने जरूरी क्यों हैं
बाहर की कौन कहे, बीच बीच में कांग्रेस के भीतर से भी ऐसी आवाजें उठती रहती हैं कि हर हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी हमलों से बचना चाहिये. ऐसी सलाह देने वालों में अभिषेक मनु सिंघवी से लेकर शशि थरूर जैसे कांग्रेस नेताओं के नाम शामिल हैं.
अब अगर शशि थरूर जैसा नेता प्रधानमंत्री मोदी को लेकर ये विचार रखता है, तो राजनीतिक तौर पर उनके दुरूस्त होने के साथ साथ उनकी निजी भावनाओं को भी समझने की कोशिश करनी चाहिये. ये शशि थरूर ही हैं, जिनको लेकर 2014 की एक चुनावी रैली में नरेंद्र मोदी भाषण दे रहे थे, '50 करोड़ की गर्लफ्रेंड देखी है आप सभी ने कभी?'
फिर भी शशि थरूर की राहुल गांधी के लिए सलाहियत रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ निजी हमलों से परहेज किया जाना चाहिये. ऐसे सभी नेताओं की सलाह रही है कि मोदी सरकार की नीतियों की चाहे जितनी भी आलोचना हो, चाहे जितने भी गंभीर तरीके से हमले हों, लेकिन निजी टिप्पणियों से बचने की कोशिश होनी चाहिये.
हालांकि, अब तक ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है जिससे लगे कि राहुल गांधी को ये सलाह जरा भी अच्छी लगती होगी. अभिषेक मनु सिंघवी तो अपनी कानूनी काबिलयत की बदौलत बख्श दिये जाते हैं, लेकिन शशि थरूर का क्या हाल हो रखा है - किसी से छिपा नहीं है.
पहल तो राहुल गांधी को ही करनी होगी
राहुल गांधी की तरफ से एक स्थायी आरोप है - संघ और बीजेपी पूरे देश में सिर्फ नफरत फैलाते हैं. कोई भी चुनाव हो. या संसद में राहुल गांधी का भाषण हो, वो हमेशा ये बात दोहराते हैं. और लगे हाथ दावा करते हैं कि कांग्रेस हमेशा ही प्यार बांटती रहेगी, चाहे कोई कुछ भी करे.
भारत जोड़ो यात्रा का मकसद भी यही बताया जा रहा है. राहुल गांधी जब तब भाषणों में और प्रेस कांफ्रेंस भी भारत जोड़ो यात्रा का मकसद समझाते हुए समझाते भी हैं कि संघ और बीजेपी की तरफ से फैलाये जा रही घृणा को न्यूट्रलाइज करने लिए ही कांग्रेस के लोग इंतनी लंबी यात्रा कर रहे है. यहां तक कि लंदन के एक कार्यक्रम में भी राहुल गांधी का कहना रहा कि देश में ऐसी हालत हो चली है, जैसे हर तरफ केरोसिन छिड़क दी गयी हो.
2019 के आम चुनाव से पहले राहुल गांधी ने एक नारा दिया था - चौकीदार चोर है. ये तो आप सभी जानते हैं कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कैंपेन का काउंटर किया था. चुनावी हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हुए भी राहुल गांधी ने दोहराया था कि वो अपनी राय पर पूरी तरह कायम हैं.
2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ रोड शो करते हुए, राहुल गांधी ने मोदी को लेकर कहा था - 'छह महीने बाद... युवा डंडे मारेंगे!'
संसद का वो वाकया तो आपको याद होगा ही जब विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था. राहुल गांधी ने ये बताते हुए कि उनको 'पप्पू' समझा जाता है, लेकिन वो जरा भी परवाह नहीं करते, वो प्यार ही बांटते रहेंगे. उसके बाद राहुल गांधी का मोदी के गले मिलना और उसके बाद वाली हरकत भी आपको भूली नहीं ही होगी.
चुनाव के वक्त महाकाल के दर पर साष्टांग दंडवत करने से हो सकता है, निजी तौर पर कल्याण हो - लेकिन कांग्रेस का कल्याण नहीं होने वाला है. जब तक राहुल गांधी संघ और बीजेपी को नसीहत देने के बजाये, खुद और कांग्रेस नेताओं को नफरत-मुक्त नहीं बनाते सारी कवायद बेकार है.
इन्हें भी पढ़ें :
मोदी को लपेटने के चक्कर में खड़गे कांग्रेस की छीछालेदर क्यों कर रहे हैं?
भाजपा के लिए हमेशा फायदेमंद रही है पीएम मोदी को अपशब्द कहने की परंपरा
क्या राहुल गांधी 'किक' फिल्म के सलमान खान बनने की चाहत रखते हैं?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.