ट्विटर पर पहले भी इस्तीफे हुए हैं, लेकिन काफी कम. राहुल गांधी का भी औपचारिक इस्तीफा ट्विटर पर ही आया है. ऐसा भी नहीं कि ये इस्तीफा महज 140 कैरेक्टर में सिमटा हुआ हो - पूरे साढ़े तीन पृष्ठों में राहुल गांधी ने अपने मन की बात कह डाली है. राहुल गांधी लगातार जताने की कोशिश कर रहे थे कि वो कांग्रेस अध्यक्ष नहीं रहे, लेकिन कोई सुनने को तैयार ही न था. पूरा इस्तीफा ट्विटर पर आने के बाद कम से कम अब किसी के मन में भी शंका नहीं होनी चाहिये कि राहुल गांधी अपने कमिटमेंट से पीछे हटते हैं.
सरेआम हुए इस्तीफे के साथ ही राहुल गांधी ने अपना ट्विटर प्रोफाइल भी अपडेट किया है - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सदस्य और सांसद. ट्विटर अकाउंट को आधिकारिक बताते हुए सिर्फ इतना ही लिखा गया है - यहां तक कि पूर्व अध्यक्ष जैसा भी कुछ नहीं लिखा है.
राहुल गांधी के इस्तीफे में मुख्य तौर पर चार बातें साफ साफ नजर आ रही हैं - एक तो ये कि वो 'चौकीदार चोर है' के अपने पुराने रूख पर अब भी कायम हैं, दूसरी ये कि लोक सभा चुनाव 2019 को वो निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव नहीं मानते. इसके पीछे राहुल गांधी की अपनी दलीलें भी हैं.
राहुल गांधी ने एक महत्वपूर्ण बात फिर से दोहरायी है कि वो अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया से दूर रहेंगे लेकिन कांग्रेस के लिए काम करते रहेंगे? सवाल ये उठ रहा है कि ऐसा वो कब तक कर पाएंगे?
कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ना पीछे हटना नहीं
राहुल गांधी के इस्तीफे वाले ड्राफ्ट में कुछ नयी बातें भी हैं, बाकी सारी वही हैं जो रोज कहीं न कहीं, किसी न किसी बहाने सुनने को मिलती रही हैं - और उनमें से एक है कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते 2019 की चुनावी हार की जिम्मेदारी लेना.
राहुल गांधी का कहना है, 'हमने प्रतिष्ठित चुनाव लड़ा. हमारा चुनाव प्रचार देश के सभी लोगों, धर्म और समुदायों के लिए भाईचारे, सहिष्णुता और सम्मान के लिए था.'
राहुल गांधी ने ऐसा क्यों किया या करना पड़ा, ये भी कांग्रेस नेता ने खुद ही हर बात समझाने की कोशिश की...
ट्विटर पर पहले भी इस्तीफे हुए हैं, लेकिन काफी कम. राहुल गांधी का भी औपचारिक इस्तीफा ट्विटर पर ही आया है. ऐसा भी नहीं कि ये इस्तीफा महज 140 कैरेक्टर में सिमटा हुआ हो - पूरे साढ़े तीन पृष्ठों में राहुल गांधी ने अपने मन की बात कह डाली है. राहुल गांधी लगातार जताने की कोशिश कर रहे थे कि वो कांग्रेस अध्यक्ष नहीं रहे, लेकिन कोई सुनने को तैयार ही न था. पूरा इस्तीफा ट्विटर पर आने के बाद कम से कम अब किसी के मन में भी शंका नहीं होनी चाहिये कि राहुल गांधी अपने कमिटमेंट से पीछे हटते हैं.
सरेआम हुए इस्तीफे के साथ ही राहुल गांधी ने अपना ट्विटर प्रोफाइल भी अपडेट किया है - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सदस्य और सांसद. ट्विटर अकाउंट को आधिकारिक बताते हुए सिर्फ इतना ही लिखा गया है - यहां तक कि पूर्व अध्यक्ष जैसा भी कुछ नहीं लिखा है.
राहुल गांधी के इस्तीफे में मुख्य तौर पर चार बातें साफ साफ नजर आ रही हैं - एक तो ये कि वो 'चौकीदार चोर है' के अपने पुराने रूख पर अब भी कायम हैं, दूसरी ये कि लोक सभा चुनाव 2019 को वो निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव नहीं मानते. इसके पीछे राहुल गांधी की अपनी दलीलें भी हैं.
राहुल गांधी ने एक महत्वपूर्ण बात फिर से दोहरायी है कि वो अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया से दूर रहेंगे लेकिन कांग्रेस के लिए काम करते रहेंगे? सवाल ये उठ रहा है कि ऐसा वो कब तक कर पाएंगे?
कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ना पीछे हटना नहीं
राहुल गांधी के इस्तीफे वाले ड्राफ्ट में कुछ नयी बातें भी हैं, बाकी सारी वही हैं जो रोज कहीं न कहीं, किसी न किसी बहाने सुनने को मिलती रही हैं - और उनमें से एक है कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते 2019 की चुनावी हार की जिम्मेदारी लेना.
राहुल गांधी का कहना है, 'हमने प्रतिष्ठित चुनाव लड़ा. हमारा चुनाव प्रचार देश के सभी लोगों, धर्म और समुदायों के लिए भाईचारे, सहिष्णुता और सम्मान के लिए था.'
राहुल गांधी ने ऐसा क्यों किया या करना पड़ा, ये भी कांग्रेस नेता ने खुद ही हर बात समझाने की कोशिश की है.
1. राहुल गांधी ने साफ करने की कोशिश की है कि जो लड़ाई वो लड़ रहे हैं उसके पीछे कतई नहीं हट रहे हैं और उनके इस्तीफे को भी इसी रूप में देखा जाना चाहिये.
2. राहुल गांधी की नजर में ऐसा करना भविष्य के लिए कांग्रेस की जवाबदेही के लिए बेहद जरूरी है - और कांग्रेस अध्यक्ष पद से उनके इस्तीफे की विशेष वजह भी.
3. कांग्रेस को फिर से खड़ा करने के लिए कठोर फैसलों और 2019 की हार के लिए बहुतों को जिम्मेदार ठहराने की जरूरत है.
4. राहुल गांधी की नजर में दूसरों को हार के लिए जिम्मेदार ठहरा कर अपनी जवाबदेही को नजरअंदाज करना बिल्कुल भी न्यायोचित नहीं है.
5. राहुल गांधी का दावा है कि पूरी ताकत से उन्होंने निजी तौर प्रधानमंत्री, आरएसएस और उन सभी संस्थाओं से लड़ाई लड़ी है जिन पर उनका कब्जा है.
6. राहुल गांधी ने अपनी लड़ाई की वजह 'भारत से प्यार' और उन आदर्शों को बचाने के लिए बतायी है जिनकी बुनियाद पर भारत खड़ा है.
7. राहुल गांधी का कहना है कि लड़ाई में अकेले डटे रहने पर उन्हें गर्व है और कार्यकर्ताओं के प्रति आभार जताया है जिन्होंने उन्हें प्यार दिया और विनम्रता सिखाई है.
8. राहुल गांधी मानते हैं कि देश में कोई भी सत्ता का त्याग नहीं कर पाता क्योंकि शक्तिशाली लोगों की सत्ता से चिपके रहने की आदत पड़ चुकी है. दूसरी तरफ, राहुल गांधी को लगता है कि सत्ता का मोह छोड़े बिना विरोधियों को शिकस्त देना मुश्किल है.
9. राहुल गांधी ने कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि जब भी कांग्रेस को उनकी सेवा की जरूरत होगी वो हमेशा मौजूद रहेंगे.
10. बकौल राहुल गांधी, 'मैं एक कांग्रेसी पैदा हुआ. ये पार्टी हमेशा मेरे साथ रही है. ये मेरी लाइफलाइन है - और मेरे लिए ये हमेशा ऐसी ही बनी रहेगी.'
कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जरूरी क्यों?
राहुल गांधी चाहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष का बाकायदा चुनाव हो. जो भी अध्यक्ष चुना जाये वो पूरी प्रक्रिया से हो कर गुजरे. सबकी भागीदारी और बहुमत की सहमति हो.
सवाल ये उठता है कि राहुल गांधी के चुनाव और नये अध्यक्ष के चुनाव में किस तरह का फर्क होगा? राहुल गांधी ने भी चुनाव की हर प्रक्रिया का पालन किया था - क्योंकि वो कांग्रेस के संविधान और नियमों का पालन करना चाहते थे.
एक फर्क ये जरूर रहा कि राहुल गांधी की ताजपोशी पहले से तय थी और उसके लिए सभी तकनीकी रस्म और रिवाजों से उन्हें गुजरना पड़ा - सिवा इस बात के कि कोई उनके विरोध में चुनाव नहीं लड़ा. जैसे कभी जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी को चैलेंज किया था.
तो ये समझा जाये कि इस बार चुनाव मैदान में अध्यक्ष पद के कई दावेदार खड़े हो सकते हैं?
अगर ऐसा है तो अभी से ये कयास कैसे लगाये जाने लगे हैं कि सुशील कुमार शिंदे कांग्रेस अध्यक्ष हो सकते हैं? ये जो सूत्र हैं वो तो कांग्रेस के भीतर ही होंगे और अंदरखाने की जो बातें होंगी उन्हें ऑफ द रिकॉर्ड शेयर कर रहे होंगे.
माना जा रहा है कि मोतीलाल वोरा कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष हो सकते हैं जो नये अध्यक्ष के कार्यभार ग्रहण करने तक पद पर बने रहेंगे. हालांकि, पत्रकारों के पूछने पर खुद मोतीलाल वोरा ने कहा है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है. वैसे वोरा के अंतरिम अध्यक्ष बनने की वजह उनका सबसे वरिष्ठ होना है. नियमों के अनुसार वो इसके लिए पूरी तरह योग्य हैं. फिलहाल मोतीलाल वोरा कांग्रेस महासचिव (प्रशासन) हैं - और सबसे बड़ी बात सोनिया गांधी के बेहद करीबी माने जाते हैं.
देखा जाये तो राहुल गांधी ये सब बीजेपी का मुंह बंद करने के लिए कर रहे हैं. एक विदेशी कार्यक्रम में तो राहुल गांधी ने माना था कि फेमिली पॉलिटिक्स भारत के मूल में समाहित है और इसी स्वीकार करना ही होगा. फिर भी बीजेपी इसे लगातार मुद्दा बनाती रही है.
अमित शाह कहते हैं कि बीजेपी में एक बूथ लेवल कार्यकर्ता भी पार्टी का अध्यक्ष हो सकता है - और वो खुद इस बात के सबसे बड़े उदाहरण हैं. उसी प्रकार नरेंद्र मोदी भी कहते हैं कि बीजेपी ही ऐसा मौका देती है कि एक चायवाला भी देश का प्रधानमंत्री हो सकता है, लेकिन कांग्रेस में गांधी परिवार का ही कोई सदस्य प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ सकता है. मनमोहन सिंह के मामले में बीजेपी नेता रिमोट कंट्रोल की बात करने लगते हैं.
राहुल गांधी जो भी कहें, ये तो साफ है कि बीजेपी के हमलों को काउंटर करने के लिए वो इतना बड़ा रिस्क लेने जा रहे हैं.
निष्पक्ष चुनाव नहीं हुआ!
राहुल गांधी ने एक बार फिर देश के संविधान पर हमले की बात कही है. राहुल गांधी समझाना चाह रहे हैं कि सत्ताधारी बीजेपी देश की बनावट और बुनावट को खत्म करने की कोशिश कर रही है. राहुल गांधी की नजर में देश की सभी संस्थाओं पर RSS का कब्जा हो चुका है और लोकतंत्र मौलिक तौर पर कमजोर हो गया है.
राहुल गांधी को जिस बात का सबसे ज्यादा डर है वो है - 'सबसे बड़ा खतरा ये है कि अब तक जो चुनाव भारत का भविष्य निर्धारित करते रहे हैं आगे से वो सिर्फ रस्मअदायगी भर रह जाएंगे.'
राहुल गांधी ने कहा है, 'पूरी तरह से स्वतंत्र और साफ-सुथरे चुनाव के लिए देश की संस्थाओं का निष्पक्ष रहना जरूरी है. कोई भी चुनाव स्वतंत्र प्रेस, स्वतंत्र न्यायपालिका और एक पारदर्शी चुनाव आयोग, जो निष्पक्ष हो, के बगैर ठीक से नहीं हो सकता. कोई चुनाव स्वतंत्र तब भी नहीं हो सकता है जब तक देश के सभी वित्तीय संसाधनों पर एक ही पार्टी का कब्जा हो.'
राहुल गांधी ने बहुत बड़ी बात कही है. उनके कहने के जो भी मायने रहे हों, लेकिन जो मतलब निकल रहा है वो बेहद चौंकाने वाला है. ऐसा लगता है जैसे राहुल गांधी लोक सभा चुनाव 2019 पर सवालिया निशान लगा रहे हों.
अपनी बात के सपोर्ट में राहुल गांधी का तर्क है - 'हमने 2019 के चुनाव में एक राजनीतिक पार्टी का सामना नहीं किया बल्कि, हमने भारत सरकार की पूरी मशीनरी के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी, हर संस्था को विपक्ष के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था. ये बात अब बिल्कुल साफ है कि भारत की संस्थाओं की जिस निष्पक्षता की हम अब तक सराहना करते रहे थे, वो निष्पक्षता अब नहीं रही.'
बड़ा सवाल ये है कि भला कैसे मुमकिन है कि कोई शख्स जनादेश का सम्मान भी करे और जिस प्रक्रिया से गुजर कर जनादेश आया है वही सवालों के घेरे में हो.
'चौकीदार चोर है'
राहुल गांधी ने अपने पसंदीदा स्लोगन 'चौकीदार चोर है' में सुप्रीम कोर्ट ने नाम के इस्तेमाल के लिए माफी मांगी थी, लगे हाथ साफ भी किया था कि वो बीजेपी से कतई माफी नहीं मांग रहे.
चुनाव नतीजों के बाद भी राहुल गांधी ने जनादेश के आदर की बात की, लेकिन दोहराया कि वो अपनी बात पर पूरी तरह कायम हैं कि 'चौकीदार चोर है'.
राहुल गांधी कहते हैं, 'प्रधानमंत्री की इस जीत का मतलब ये नहीं है कि वो भ्रष्टाचार के आरोप से मुक्त हो गये हैं. कोई कितना भी पैसा खर्च कर ले या कितना ही प्रोपेगैंडा कर ले, सच्चाई की रोशनी को नहीं छिपाया जा सकता.'
साथ साथ एक डिस्क्लेमर भी है - बीजेपी के खिलाफ मेरे मन में कोई नफरत नहीं है, लेकिन भारत के बारे में उनकी विचारधारा का मेरा रोम-रोम विरोध करता है.'
राहुल गांधी के इस फैसले को हर कोई अपने अपने तरीके से समझ और समझा सकता है, लेकिन इसके कई पहलू ऐसे भी हैं जो कांग्रेस के पक्ष में जाते हैं. अगर अंदर से भी सब कुछ वैसा ही जैसा ऊपर से नजर आ रहा है तो राहुल गांधी ने जो किया है वो नेहरू के बाद पहली बार हुआ है. इंदिरा गांधी से लेकर अब तक कांग्रेस पूरी तरह बीजेपी के आरोपों पर खरी उतरती लग रही थी - लेकिन राहुल गांधी ने कांग्रेस को एक बेहतरीन मौका उपलब्ध कराया है.
हो सकता है कांग्रेस के पास इसके अलावा कोई रास्ता भी न बचा हो. फिर भी कांग्रेस पार्टी चाहे तो नयी शुरुआत कर सकती है. जीरो से आगाज कर सकती है. वैसे भी जीरो पर तो पहुंच ही चुकी है. न उसके पास विपक्ष का नेता पद है, न राज्य सभा में बहुमत की हिस्सेदार ज्यादा दिन तक रहने वाली है. पंजाब को छोड़ कर बाकी सभी राज्यों में कांग्रेस सरकारों की स्थिति भी पूरी तरह डांवाडोल ही है.
बेशक राहुल गांधी सही बोल रहे हैं - 'मेरा संघर्ष महज सत्ता पाने के लिए नहीं रहा है.' दस साल तक उनके पास बेहतरीन मौका था. राहुल गांधी के इस दावे का सच भी वही जो सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद ठुकराने वाली बात में है.
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