कांग्रेस को लगता है फिर से गरीबों की फिक्र होने लगी है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के सलाहकारों ने लगता है गरीबी (Poverty) की राजनीति पर लौटने की बात समझाने लगे हैं - और राहुल गांधी ने गरीबों को जगाने की ठान ली है. राहुल गांधी परेशान इस बात से हैं कि आखिर देश का गरीब जग क्यों नहीं रहा है? कौन समझाये कि इंसान तब सोता है जब पेट भरा होता है - भूखे पेट नींद नहीं आती. और पहले से जगे हुए को जगाना मुश्किल नहीं नामुमकिन होता है. और राजनीति में कई बार दांव उलटा भी पड़ जाता है.
अभी तो राहुल गांधी को खुद ये समझना होगा कि भूख से जूझ रहे इंसान को चावल और सैनिटाइजर (Rice and Sanitiser) का फर्क समझना मुश्किल होता है.
सैनिटाइजर सिर्फ अमीरों के लिए कैसे?
राहुल गांधी ने कोरोना संकट में राशन और मास्क के सता 12 सैनिटाइजर अमेठी भेजा था. किसके लिए?
राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा है - 'आखिर हिंदुस्तान का गरीब कब जागेगा? आप भूखे मर रहे हैं और वो आपके हिस्से के चावल से सैनीटाइजर बनाकर अमीरों के हाथ की सफाई में लगे हैं.'
क्या राहुल गांधी ने 12 हजार सैनिटाइजर अमेठी के अमीरों के लिए भिजवाया था?
सैनिटाइजर, मास्क और दवाएं कब से अमीरों और गरीबों में बंटने लगी? क्वालिटी की बात और है, लेकिन इस्तेमाल के मामले में या इलाज के लिए तो ये सभी के लिए है. कोरोना वायरस को लेकर अमीरी-गरीबी की बहस सोशल मीडिया पर जरूर चल रही है - पासपोर्ट वालों ने बीमारी लायी और राशन कार्ड वाले खामियाजा भुगत रहे हैं. अगर राहुल गांधी के मन में भी ऐसी कोई बात आयी होगी तो ये मामला काफी पीछे छूट चुका है. अब कोरोना वायरस अमीरी और गरीबी नहीं देख रहा - उसके सामने हर शख्स महज एक शिकार है.
राहुल गांधी की नाराजगी, दरअसल, सरकार के चावल से सैनिटाइजर बनाने के फैसले को लेकर है. सरकार ने इथेनॉल बनाने में गोदामों में मौजूद अतिरिक्त चावल का इस्तेमाल करने का फैसला किया है. बताया गया कि चावल से इथेनॉल तैयार करने से सैनिटाइजर की उपलब्धता आसानी से सुनिश्चित...
कांग्रेस को लगता है फिर से गरीबों की फिक्र होने लगी है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के सलाहकारों ने लगता है गरीबी (Poverty) की राजनीति पर लौटने की बात समझाने लगे हैं - और राहुल गांधी ने गरीबों को जगाने की ठान ली है. राहुल गांधी परेशान इस बात से हैं कि आखिर देश का गरीब जग क्यों नहीं रहा है? कौन समझाये कि इंसान तब सोता है जब पेट भरा होता है - भूखे पेट नींद नहीं आती. और पहले से जगे हुए को जगाना मुश्किल नहीं नामुमकिन होता है. और राजनीति में कई बार दांव उलटा भी पड़ जाता है.
अभी तो राहुल गांधी को खुद ये समझना होगा कि भूख से जूझ रहे इंसान को चावल और सैनिटाइजर (Rice and Sanitiser) का फर्क समझना मुश्किल होता है.
सैनिटाइजर सिर्फ अमीरों के लिए कैसे?
राहुल गांधी ने कोरोना संकट में राशन और मास्क के सता 12 सैनिटाइजर अमेठी भेजा था. किसके लिए?
राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा है - 'आखिर हिंदुस्तान का गरीब कब जागेगा? आप भूखे मर रहे हैं और वो आपके हिस्से के चावल से सैनीटाइजर बनाकर अमीरों के हाथ की सफाई में लगे हैं.'
क्या राहुल गांधी ने 12 हजार सैनिटाइजर अमेठी के अमीरों के लिए भिजवाया था?
सैनिटाइजर, मास्क और दवाएं कब से अमीरों और गरीबों में बंटने लगी? क्वालिटी की बात और है, लेकिन इस्तेमाल के मामले में या इलाज के लिए तो ये सभी के लिए है. कोरोना वायरस को लेकर अमीरी-गरीबी की बहस सोशल मीडिया पर जरूर चल रही है - पासपोर्ट वालों ने बीमारी लायी और राशन कार्ड वाले खामियाजा भुगत रहे हैं. अगर राहुल गांधी के मन में भी ऐसी कोई बात आयी होगी तो ये मामला काफी पीछे छूट चुका है. अब कोरोना वायरस अमीरी और गरीबी नहीं देख रहा - उसके सामने हर शख्स महज एक शिकार है.
राहुल गांधी की नाराजगी, दरअसल, सरकार के चावल से सैनिटाइजर बनाने के फैसले को लेकर है. सरकार ने इथेनॉल बनाने में गोदामों में मौजूद अतिरिक्त चावल का इस्तेमाल करने का फैसला किया है. बताया गया कि चावल से इथेनॉल तैयार करने से सैनिटाइजर की उपलब्धता आसानी से सुनिश्चित हो सकेगी.
राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति, 2018 के मुताबिक, अगर एक फसल-वर्ष में सरकार के अनुमानित मात्रा से अधिक खाद्यान्न की आपूर्ति हो, तो ये नीति अनाज की अतिरिक्त मात्रा को राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति की मंजूरी के आधार पर इथेनॉल में बदलने की मंजूरी दे देगी.
अगर राहुल गांधी गरीबों को जगाना ही चाहते हैं तो बेशक जगायें, लेकिन उनके भले के लिए सिर्फ कांग्रेस की भलाई के लिए नहीं. सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने के लिए नहीं. सिर्फ गरीबी पर राजनीति करने के लिए नहीं.
1. जिंदगी की फिक्र समझायें: अच्छा होता अगर राहुल गांधी गरीबों की हौसलाअफजाई कर उनकों भूख से संघर्ष में हिम्मत न हारने के लिए जगाते. अच्छा होता राहुल गांधी गरीबों को भरोसा दिलाते कि मुश्किल घड़ी में वो उनके साथ खड़ें हैं और दूसरी मुश्किलों की तरह ये भी गुजर जाएगी - और फिर से अच्छे दिन आएंगे.
2. सड़क पर न निकलने के लिए समझायें: अगर राहुल गांधी को लगता है कि गरीब सोया हुआ है तो अच्छा ये होगा कि वो गरीबों को इस बात के लिए जगायें कि वे जहां हैं वहीं बने रहें - और आनंद विहार या बांद्रा की तरह सड़क पर निकल कर सोशल डिस्टैंसिंग न अपना कर अपना जीवन खतरे में न डालें.
3. लॉकडाउन का महत्व समझायें: राहुल गांधी और उनके कांग्रेस के साथी ही तो चाहते थे कि लॉकडाउन लगाया जाये - अच्छा तो यही होगा कि वो गरीबों को समझायें कि वे जिस राज्य में हैं वहां की सरकार की मदद लें. पलायन कर न तो अपनी जिंदगी खतरे में डालें न दूसरों की. अगर राहुल गांधी को लगे कि राज्य सरकारें ठीक से काम नहीं कर रही हैं तो वे आवाज उठा सकते हैं.
4. ट्विवटर पर नहीं, उनके बीच जायें: राहुल गांधी पहले तो ये पता लगायें कि ट्विटर पर कितने गरीब हैं. अगर थोड़े बहुत हैं तो उनके ट्वीट पढ़ ही लिये होंगे, लेकिन बाकियों की मदद के लिए वो उनके बीच जायें - चाहे वो वीडियो मैसेज के जरिये ही संभव क्यों न हो.
राहुल गांधी इसी के विरोध में आवाज उठा रहे हैं. सरकार के फैसले पर विवाद और बहस हो सकती है, लेकिन ये दलील कैसे हजम हो कि चावल गरीब खाता है और सैनिटाइजर अमीर लगाते हैं. ये तो हद हो गयी - सच तो ये है कि चावल गरीब भी खाता है और उसके बगैर अमीर भी भूखा ही रहेगा. ठीक वैसे ही सैनिटाइजर अमीर और गरीब दोनों के लिए बराबर उपयोगी है.
गरीबी को बेचना कांग्रेस खूब जानती है
गरीबी कांग्रेस की राजनीति को बहुत ही ज्यादा सूट करती है. राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी ने तो खुद को गरीबी से ऐसा जोड़ा कि झांसे में आकर देश भर के गरीबों में वोट देने की होड़ मच गयी और कांग्रेस मालामाल हो गयी - 'मैं कहती हूं कि गरीबी हटाओ और ये विरोधी कहते हैं इंदिरा को हटाओ.' फिर लोगों को विकल्प दिया गया - वे खुद तय करें कि वे गरीबी को हटाना चाहते हैं या इंदिरा को. जाहिर है इतने इमोशनल अत्याचार के बाद भला कौन गरीब इंदिरा को हटाना चाहेगा. गरीबों ने खुद की कुर्बानी दे दी.
राहुल गांधी भी शुरू से ही गरीबी से करीबी जताते रहे हैं - चाहे वो किसान परिवार की कलावती हो या किसी दलित परिवार का कोई और व्यक्ति. गरीबों से हमदर्दी जताने के लिए ही तो राहुल गांधी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को सूट बूट की सरकार कहते रहे हैं - ताजा हमले का तरीका बदल गया है, लेकिन जरिया पुराना ही है.
अब राहुल गांधी गरीबों को जगाना चाहते हैं. वो चाहते हैं कि गरीब उठे खड़ा हो और सरकार से लड़े. राहुल गांधी के मन में भी सवाल है और वही सवाल ट्विटर पर पूछते भी हैं - 'आखिर हिंदुस्तान का गरीब कब जागेगा?'
क्या राहुल गांधी चाहते हैं कि गरीब जागे और घरों से निकल कर सरकार के खिलाफ आंदोलन करे?
कुछ ही महीने पहले कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी भी रामलीला मैदान से लोगों को घरों से निकलने की अपील कर रही थीं - मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ. ज्यादा तो नहीं लेकिन कुछ लोग घरों से निकले जरूर. सड़कों पर धरना दिया. विरोध प्रदर्शन किया. पुलिस की लाठियां खायीं - और बेटी प्रियंका गांधी को अपने घर बुलाकर सहानुभूति जताने का मौका भी मुहैया कराया. अब वे सारे एक एक करके जेल भेजे जा रहे हैं. अब कांग्रेस को उनकी जरूरत शायद नहीं रही. अब कांग्रेस को नयी जरूरत पैदा हो रही है और राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में बता भी दिया है.
राहुल गांधी भी सोनिया गांधी वाले अंदाज में ही ललकार रहे हैं - आखिर गरीब कब जागेगा?
राहुल गांधी को क्या पता कि गरीब तो रात रात भर जगा रह रहा है. गरीब को तो यही चिंता खाये जा रही है कि सुबह होगी और बच्चा रोएगा तो उसे खाने को क्या देगा. बच्चा रोएगा तो उसे दूध कहां से पिलाएगा. उस महिला का वीडियो राहुल गांधी भी तो देखे ही होंगे जो बोल रही थी कि एक वक्त थोड़ा सा चावल खाये थे. वो भी एक दिन पहले - दूध उतर नहीं रहा कहां से बच्चे को पिलाएं? मुमकिन है राहुल गांधी अब ऐसे वीडियो न देख पाते हों क्योंकि ऐसी चीजें दिखाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया तो छोड़ कर सरकार के साथ हो लिये.
क्या राहुल गांधी को लगता है कि वो गरीब मां रात भर सोती होगी? जो पहले से ही जगा हो उसे जगाने की जरूरत नहीं है. जिस वजह से जगा हुआ है वो जरूरत पूरी करने का ये वक्त है. जिंदगी बची रही तो जगाने के मौके बहुत आएंगे.
राहुल गांधी की राजनीति चमकाने के लिए सोनिया गांधी ने 11 लोगों की एक टीम भी बनायी है. नये लोगों को भी शामिल किया है. अब तो राहुल गांधी को ये शिकायत भी नहीं होनी चाहिये कि वो अंकल टाइप नेताओं के चलते काम नहीं कर पाते - चाह कर भी सिस्टम को नहीं बदल पाते. दरअसल, राहुल गांधी पहले यही कहा करते थे कि वो प्रधानमंत्री तो कभी भी बन सकते हैं, लेकिन वो सिस्टम को बदलना चाहते हैं. सिस्टम बदल गया और प्रधानमंत्री की कुर्सी दूर हो गयी. पांच साल से ज्यादा हो गये कांग्रेस को गरीबी रेखा के ऊपर उठाना अब तक भारी पड़ रहा है. कोरोना वायरस की महामारी में MSME यानी सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों की मदद के लिए ट्विटर पर सुझाव मांग रहे हैं. एक साइट का लिंक भी दिया है जिसके नाम से ही लगता है कांग्रेस ऐसे उद्योगों की आवाज बनना चाह रही है - आवाज कैसे बने इसी बात को लेकर सुझाव मांगे जा रहे हैं.
वे तो ट्विटर पर मिल जाएंगे. उनके लिए सुझाव भी मिल जाएंगे - लेकिन कोरोना के दौर में भूख से संघर्ष कर रहा गरीब जागने या सोये रहने के लिए ट्विटर नहीं देखता. न तो ट्विटर के जरिये गरीबी मिटायी जा सकती है और न ही ट्वीट के जरिये गरीबों को जगाया जा सकता है.
आखिर अपनी लड़ाई नें कांग्रेस कब तक गरीबों को झोंकती रहेगी. कांग्रेस के ताजातरीन सलाहकारों की टीम को चाहिये कि राहुल गांधी को समझायें कि गरीबों को जगाने की नहीं उनके पेट भरने के इंतजाम की जरूरत है ताकि वे चैन से कुझ देर सो सकें.
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