ऐसा नहीं कि राहुल गांधी पहली बार लोकसभा में बोले हों. ऐसा भी नहीं कि राहुल गांधी ने पहली बार लोकसभा में अपनी बात रखी. लोगों ने न सिर्फ उनकी बात सुनी बल्कि उसका लुत्फ भी उठाया. और ऐसा भी बिलकुल नहीं है कि पहली बार लोगों ने राहुल गांधी को लोकसभा में इस तरह से सवालों के जरिए चिकोटी काटते देखा हो. लेकिन बुधवार को बजट सत्र के दौरान लोकसभा में एक बात ऐसी जरूर देखी गई जिसे अगर पहली बार का दर्जा न भी दिया जाए तब भी एक लंबे अरसे के बाद उसे लोकसभा में होते जरूर देखा गया.
जिस वक्त राहुल गांधी ने बोलना शुरू किया तो लोकसभा के भीतर जितने भी सांसद मौजूद थे वो गंभीर तो थे ही लेकिन सभी के चेहरों पर मुस्कान तैर रही थी. हो सकता है कि सबके चेहरों पर खिली मुस्कान के अपने अपने मतलब हों. मगर फिर भी ऐसा आमतौर पर बहुत कम ही देखा जाता है कि लोकसभा में किसी सांसद के बोलने पर लोग इस तरह मुस्कुराते हुए संजीदा मामलों पर गौर कर रहे हों.
लोकसभा चैनल देखने वाले तमाम टीवी के दर्शक उस वक्त चौंक उठे जब राहुल गांधी के भाषण के दौरान हर कोई रह-रहकर चहक रहा था. तर्क और वितर्क की कसौटी पर कसने की बजाए भाषण के चुटीले अंदाज और मुस्कुराकर अपनी बात कहने की राहुल गांधी की अदा को हर कोई सराह रहा था.
आमतौर पर लोकसभा की बहस में ऐसे पल बहुत कम देखने को मिलते हैं जब किसी सांसद के भाषण के दौरान पक्ष और प्रतिपक्ष के तमाम सांसद सदन में मौजूद हों और सांसद के कही गई बातों पर सिर्फ तवज्जो ही न दें बल्कि उसकी ली गई चुटकियों का खुद भी मजा उठाएं. फिर भले ही वो चुटकी क्यों न खुद उन पर या उनकी पार्टी पर कोई करारा हमला ही क्यों न हो.
हो सकता है कि राहुल गांधी के इस भाषण को सियासत करने वाले धुरंधर राजनीतिज्ञ और रणनीतिकार अपनी अपनी कसौटी पर कसें और उसकी खामियों और खूबियों की विवेचना करें. लेकिन एक बात तो तय है कि ये लोकसभा में बहुत समय बाद देखने को मिल रहा है जब संसद न सिर्फ अपनी आधार पर चलती दिखाई दे रही है बल्कि अपने असली काम यानी बहस को एक सर्वोच्च मंच भी फिर से देती...
ऐसा नहीं कि राहुल गांधी पहली बार लोकसभा में बोले हों. ऐसा भी नहीं कि राहुल गांधी ने पहली बार लोकसभा में अपनी बात रखी. लोगों ने न सिर्फ उनकी बात सुनी बल्कि उसका लुत्फ भी उठाया. और ऐसा भी बिलकुल नहीं है कि पहली बार लोगों ने राहुल गांधी को लोकसभा में इस तरह से सवालों के जरिए चिकोटी काटते देखा हो. लेकिन बुधवार को बजट सत्र के दौरान लोकसभा में एक बात ऐसी जरूर देखी गई जिसे अगर पहली बार का दर्जा न भी दिया जाए तब भी एक लंबे अरसे के बाद उसे लोकसभा में होते जरूर देखा गया.
जिस वक्त राहुल गांधी ने बोलना शुरू किया तो लोकसभा के भीतर जितने भी सांसद मौजूद थे वो गंभीर तो थे ही लेकिन सभी के चेहरों पर मुस्कान तैर रही थी. हो सकता है कि सबके चेहरों पर खिली मुस्कान के अपने अपने मतलब हों. मगर फिर भी ऐसा आमतौर पर बहुत कम ही देखा जाता है कि लोकसभा में किसी सांसद के बोलने पर लोग इस तरह मुस्कुराते हुए संजीदा मामलों पर गौर कर रहे हों.
लोकसभा चैनल देखने वाले तमाम टीवी के दर्शक उस वक्त चौंक उठे जब राहुल गांधी के भाषण के दौरान हर कोई रह-रहकर चहक रहा था. तर्क और वितर्क की कसौटी पर कसने की बजाए भाषण के चुटीले अंदाज और मुस्कुराकर अपनी बात कहने की राहुल गांधी की अदा को हर कोई सराह रहा था.
आमतौर पर लोकसभा की बहस में ऐसे पल बहुत कम देखने को मिलते हैं जब किसी सांसद के भाषण के दौरान पक्ष और प्रतिपक्ष के तमाम सांसद सदन में मौजूद हों और सांसद के कही गई बातों पर सिर्फ तवज्जो ही न दें बल्कि उसकी ली गई चुटकियों का खुद भी मजा उठाएं. फिर भले ही वो चुटकी क्यों न खुद उन पर या उनकी पार्टी पर कोई करारा हमला ही क्यों न हो.
हो सकता है कि राहुल गांधी के इस भाषण को सियासत करने वाले धुरंधर राजनीतिज्ञ और रणनीतिकार अपनी अपनी कसौटी पर कसें और उसकी खामियों और खूबियों की विवेचना करें. लेकिन एक बात तो तय है कि ये लोकसभा में बहुत समय बाद देखने को मिल रहा है जब संसद न सिर्फ अपनी आधार पर चलती दिखाई दे रही है बल्कि अपने असली काम यानी बहस को एक सर्वोच्च मंच भी फिर से देती दिखाई दे रही है.
शायद सभी इस बात से सहमत होंगे कि जिस तरह से राहुल गांधी के भाषण के दौरान सत्ता पक्ष के सदस्य हंस रहे थे, मुस्कुरा रहे थे. ऐसा उन्होंने सदन में तब होते देखा था जब लालू प्रसाद यादव अपने चुटीले अंदाज में न सिर्फ विषय को हल्का फुल्का बना देते थे बल्कि अपने ही अंदाज में वो संसद के अपने विपक्षियों का अच्छा खासा मजाक भी बना दिया करते थे. लेकिन राहुल गांधी के भाषण की जो सबसे अच्छी बात नजर आई वो ये कि उन्होंने अपने विपक्षियों पर करारे हमले तो किए लेकिन तीखे शब्दों का इस्तेमाल करने से बचे. उन्होंने संसद के बाहर उठने वाले मुद्दों को सदन का रास्ता तो दिखाया लेकिन अपने विरोधियों को धता नहीं बताया. सदन के अपने भाषण के दौरान उन्होंने खालिस राजनीति भी की और दलगत राजनीति का चेहरा भी दिखाया लेकिन उस चेहरे पर किसी भी तरह की ऐसी धूल नहीं जमने दी, जिसे लोग राजनीति से इतर हटकर देखने की कोशिश में लग जाते हैं और फिर बात बातों की हद लांघकर बतंगड़ के दायरे में जा पहुंचती है.
लिहाजा यहां ये कहा जा सकता है कि लोकसभा में एक बात होती दिख रही है और वो ये कि यहां फिर से बहस को बहस ही रहने दिया जा रहा है उसे कोई और नाम देने की कोई कोशिश नहीं की जा रही. लोकतंत्र की यही खूबसूरती है.
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