कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अमेरिका से लौटने के बाद गुजरात के द्वारका में भगवान कृष्ण के दर्शन करने के बाद 25 सितंबर से अपने चुनावी अभियान की शुरूआत करेंगे. राहुल गांधी 3 दिनों की जनसंवाद यात्रा के दौरान गुजरात के कई जिलों का दौरा करेंगे.
कांग्रेस के लिए गुजरात अहम क्यों ?
इस बार राहुल गांधी के लिए गुजरात का विधानसभा चुनाव काफी अहम है. क्योंकि अभी हाल में ही सम्पन्न हुए गुजरात राज्यसभा चुनाव में कांग्रेसी नेता अहमद पटेल की जीत से पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा हुआ है. गुजरात भाजपा का अभेद्य दुर्ग बन चूका है. यहां कांग्रेस करीब 22 सालों से सत्ता से बाहर है. ऐसे में अगर कांग्रेस यहां बहुमत पाने में कामयाब होती है, तो कांग्रेस के लिए ये काफ़ी बड़ा उपलब्धि होगी. जो 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए संजीवनी का काम भी कर सकती है.
गुजरात में नरेंद्र मोदी के आने के बाद से भाजपा 'हिंदूवादी लहर' पर सवार होकर लगातार चुनाव जीतते आ रही है. खासकर गुजरात दंगों के बाद विधानसभा चुनावों में मतदाताओं का ध्रुवीकरण धार्मिक आधार होता आ रहा है. जिसका नुकसान कांग्रेस को झेलना पड़ा है. ऐसे में राहुल की यात्रा हिंदू धर्म की नगरी द्वारका से शुरू करने का मकसद साफ़ है. बहुसंख्यक समुदाय को एक संकेत देना क्योंकि कांग्रेस पर हमेशा अल्पसंख्यक समुदाय के तुष्टिकरण का आरोप लगता रहा है. शायद कांग्रेस को इस बार लग रहा है कि बहुसंख्यक समुदाय में संकेत देने और भाजपा के काट के लिहाज़ से द्वारका से बेहतर कोई दूसरी जगह नहीं हो सकती है.
भाजपा के पास करिश्माई नेताओं का अभाव
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बीजेपी की...
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अमेरिका से लौटने के बाद गुजरात के द्वारका में भगवान कृष्ण के दर्शन करने के बाद 25 सितंबर से अपने चुनावी अभियान की शुरूआत करेंगे. राहुल गांधी 3 दिनों की जनसंवाद यात्रा के दौरान गुजरात के कई जिलों का दौरा करेंगे.
कांग्रेस के लिए गुजरात अहम क्यों ?
इस बार राहुल गांधी के लिए गुजरात का विधानसभा चुनाव काफी अहम है. क्योंकि अभी हाल में ही सम्पन्न हुए गुजरात राज्यसभा चुनाव में कांग्रेसी नेता अहमद पटेल की जीत से पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा हुआ है. गुजरात भाजपा का अभेद्य दुर्ग बन चूका है. यहां कांग्रेस करीब 22 सालों से सत्ता से बाहर है. ऐसे में अगर कांग्रेस यहां बहुमत पाने में कामयाब होती है, तो कांग्रेस के लिए ये काफ़ी बड़ा उपलब्धि होगी. जो 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए संजीवनी का काम भी कर सकती है.
गुजरात में नरेंद्र मोदी के आने के बाद से भाजपा 'हिंदूवादी लहर' पर सवार होकर लगातार चुनाव जीतते आ रही है. खासकर गुजरात दंगों के बाद विधानसभा चुनावों में मतदाताओं का ध्रुवीकरण धार्मिक आधार होता आ रहा है. जिसका नुकसान कांग्रेस को झेलना पड़ा है. ऐसे में राहुल की यात्रा हिंदू धर्म की नगरी द्वारका से शुरू करने का मकसद साफ़ है. बहुसंख्यक समुदाय को एक संकेत देना क्योंकि कांग्रेस पर हमेशा अल्पसंख्यक समुदाय के तुष्टिकरण का आरोप लगता रहा है. शायद कांग्रेस को इस बार लग रहा है कि बहुसंख्यक समुदाय में संकेत देने और भाजपा के काट के लिहाज़ से द्वारका से बेहतर कोई दूसरी जगह नहीं हो सकती है.
भाजपा के पास करिश्माई नेताओं का अभाव
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बीजेपी की प्रयोगशाला के रूप में मशहूर गुजरात में 15 सालों में पहली बार ऐसा होगा जब मुख्यमंत्री पद का चेहरा नरेंद्र मोदी नहीं होंगे. वहीं अमित शाह के राज्यसभा में आ जाने के बाद वहां कोई करिश्माई चेहरा भाजपा के पास नहीं होगा. जो इनके रूतबे को बरकरार रख सके. हालात ये है कि जब से नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री का कार्यभार संभाला है तब से यानि तीन सालों में गुजरात के मुख्यमंत्री तीन बार बदल चुके हैं. फिलहाल विजय रुपाणी तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाल रहे हैं. इतने कम समय में लगातार मुख्यमंत्रियों का बदलना यह साफ़ संकेत देता है कि प्रदेश में भाजपा के पास कोई करिश्माई चेहरा नहीं है. ऐसे में कांग्रेस के पास वापसी करने का ये अच्छा मौका हो सकता है.
इस बार भाजपा का राह आसान नहीं दिख रहा. पिछले महीने हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर्वे के अनुसार भाजपा को 182 में से मात्र 60-65 सीटों पर ही जीत हासिल हो सकती है. इसके बाद ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने गुजरात के लिए मिशन 150+ का टारगेट रखा है. सीटों में कमी का मुख्य कारण गुजरात में पाटीदार आरक्षण का मुद्दा है. 2 साल पहले हार्दिक पटेल की अगुवाई में शुरू हुआ आंदोलन के कारण आनंदी बेन पटेल को अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक गंवानी पड़ गई थी.
दूसरा बड़ा कारण एंटी इंकबैंसी का है. यहां करीब 22 सालों से भाजपा का राज है. ऐसे में इतने लंबे समय से राज करने की वजह से इसके प्रति लोगों में नाराजगी बढ़ी है जो भाजपा के वापसी में मुसीबत खड़ा कर सकता है. इसके अलावा गाय को लेकर ऊना में जो दलितों के साथ हुई मारपीट हुई थी उसको दलित समुदाय कैसे भुला सकते हैं? ऐसे में अगर पटेल, दलित और अल्पसंख्यक भाजपा के खिलाफ एकजुट हो जाएं तो ....... अंदाज़ा लगाना आसान है.
अगर यही समीकरण इस साल के अंत तक यानि जब गुजरात में विधानसभा चुनाव होंगे तो क्या कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी 22 साल से गुजरात की सत्ता पर काबिज भाजपा को उखाड़ फेंकने में कामयाब होंगे? और क्या ये मोदी और अमित शाह के नेतृत्व पर सवालिया निशान नहीं लगा देगा? लेकिन फ़िलहाल तो आने वाला समय ही बताएगा कि कांग्रेस इसमें कितना कामयाब होती है और इससे पार्टी को आनेवाले 2019 के लोकसभा चुनाव में कितना फायदा पहुंचाएगा?
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