राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के सामने राजस्थान भी पंजाब जैसा ही चैलेंज है. पंजाब कांग्रेस में विवाद तो 2017 में सरकार बनने के बाद शुरू हुआ था, राजस्थान पहले से ही बवाल चल रहा था. जरा याद कीजिये कैसे अशोक गहलोत और सचिन पायलट (Sachin Pilot) के झगड़े से लोगों का ध्यान हटाने के लिए राहुल गांधी दोनों की बाइक की सवारी करा दी थी.
सचिन पायलट बाइक चला रहे थे और अशोक गहलोत पीछे बैठे हुए थे, बवाल से पीछा तो तब भी नहीं छूटा क्योंकि दोनों में से किसी ने भी हेलमेट नहीं पहना हुआ था. फिर भी राहुल गांधी का काम तो हो ही गया. वो तो बस लोगों के बीच पार्टी में एकता का संदेश देना चाहते थे - और लोगों ने 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट देकर सत्ता सौंप दी.
चुनाव नतीजे आने के बाद राजस्थान कांग्रेस में नया बवाल शुरू हो गया मुख्यमंत्री पद को लेकर, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी वैसी ही मुश्किलें आयीं. मध्य प्रदेश में तो पहले ही सत्ता हाथ से फिसल गयी, जबकि पंजाब में चुनावों के बाद. रही बात छत्तीसगढ़ की तो मामला बस खींचा जा रहा है.
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को टालने का बहाना भी मिल जाता है. कुछ दिन यूपी चुनाव में प्रियंका गांधी के मददगार बने रहे तो बाद में प्रवर्तन निदेशालय की कृपा से गांधी परिवार के बचाव में मोर्चा संभाले रहे. बेचारे टीएस सिंहदेव कभी इस्तीफे के बहाने तो कभी किसी और तरीके से राहुल गांधी को अपने वादे की याद दिलाते रहे, लेकिन भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने हुए हैं.
भूपेश बघेल के साथ साथ राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के दौरान कांग्रेस का बचाव करते हुए बीजेपी नेतृत्व पर हमला बोलते रहे - और इतने भर से ही दोनों का काम चलता...
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के सामने राजस्थान भी पंजाब जैसा ही चैलेंज है. पंजाब कांग्रेस में विवाद तो 2017 में सरकार बनने के बाद शुरू हुआ था, राजस्थान पहले से ही बवाल चल रहा था. जरा याद कीजिये कैसे अशोक गहलोत और सचिन पायलट (Sachin Pilot) के झगड़े से लोगों का ध्यान हटाने के लिए राहुल गांधी दोनों की बाइक की सवारी करा दी थी.
सचिन पायलट बाइक चला रहे थे और अशोक गहलोत पीछे बैठे हुए थे, बवाल से पीछा तो तब भी नहीं छूटा क्योंकि दोनों में से किसी ने भी हेलमेट नहीं पहना हुआ था. फिर भी राहुल गांधी का काम तो हो ही गया. वो तो बस लोगों के बीच पार्टी में एकता का संदेश देना चाहते थे - और लोगों ने 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट देकर सत्ता सौंप दी.
चुनाव नतीजे आने के बाद राजस्थान कांग्रेस में नया बवाल शुरू हो गया मुख्यमंत्री पद को लेकर, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी वैसी ही मुश्किलें आयीं. मध्य प्रदेश में तो पहले ही सत्ता हाथ से फिसल गयी, जबकि पंजाब में चुनावों के बाद. रही बात छत्तीसगढ़ की तो मामला बस खींचा जा रहा है.
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को टालने का बहाना भी मिल जाता है. कुछ दिन यूपी चुनाव में प्रियंका गांधी के मददगार बने रहे तो बाद में प्रवर्तन निदेशालय की कृपा से गांधी परिवार के बचाव में मोर्चा संभाले रहे. बेचारे टीएस सिंहदेव कभी इस्तीफे के बहाने तो कभी किसी और तरीके से राहुल गांधी को अपने वादे की याद दिलाते रहे, लेकिन भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने हुए हैं.
भूपेश बघेल के साथ साथ राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के दौरान कांग्रेस का बचाव करते हुए बीजेपी नेतृत्व पर हमला बोलते रहे - और इतने भर से ही दोनों का काम चलता रहा.
राजस्थान को लेकर जिस तरह राहुल गांधी एक्टिव हैं, लगता तो यही है कि छत्तीसगढ़ को लेकर भी वो कोई न कोई अच्छा रास्ता निकालने का प्रयास करेंगे ही. फिलहाल राजस्थान में अपनी टीम से एक सर्वे कराकर राहुल गांधी ने सचिन पायलट और उनके समर्थकों का हौसला कम नहीं होने दिया है.
राजस्थान के सर्वे से ये भी समझा जा सकता है कि पंजाब में जो कुछ हुआ राहुल गांधी को उससे सबक मिला है - और वो गहलोत या पायलट में से किसी एक को नवजोत सिंह सिद्धू बनाने के पक्ष में नहीं लगते. पंजाब चुनाव 2022 में कांग्रेस की हार के तो बहुत सारे कारण रहे, लेकिन सिद्धू के इशारों पर कांग्रेस की भाई-बहन की जोड़ी का नाचते रहना ताबूत की कील साबित हुआ.
राजस्थान के मामले में भी अब तक तो यही देखने को मिला था कि मुख्यमंत्री होने के साथ साथ सिद्धू वाली भूमिका में भी अशोक गहलोत ही रहे, लेकिन राहुल गांधी अब नहीं चाहते कि सचिन पायलट के साथ भी नाइंसाफी हो. सर्वे की बात से तो यही लगता है.
लेकिन ये सर्वे भी बेकार की कवायत साबित हो सकती है, अगर पंजाब जैसा ही हाल कर दिया गया. कहने को तो राहुल गांधी अपने स्तर पर पंजाब से भी तब फीडबैक ले ही रहे थे. सोनिया गांधी ने मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में एक कमेटी जरूर बनायी थी, लेकिन राहुल गांधी अपने स्तर पर विधायकों से अलग अलग बात कर जमीनी स्थिति को समझने की कोशिश कर रहे थे.
तब तो राहुल गांधी के लिए ये समझना जरूरी हो गया था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटा देने पर कांग्रेस को कोई बड़ा नुकसान तो नहीं होने वाला. तब जो भी समझ में आया हो, अगर राजस्थान में भी वैसी ही बातें समझने की कोशिश हो रही है और वैसा ही फैसला लेना है तो बंटाधार ही समझा जाना चाहिये.
राजस्थान में कांग्रेस का सर्वे
राजस्थान कांग्रेस को लेकर राहुल गांधी की पहल पर ताजातरीन सर्वे जुलाई, 2022 में कराया गया है. हालांकि, बताया ये भी जा रहा है कि कांग्रेस की तरफ से पिछले साल भी ऐसा ही सर्वे कराया गया था. अब अगर पिछले साल के सर्वे के बाद कोई फैसला नहीं लिया गया तो कैसे समझा जाये कि इस बार का सर्वे कोई निर्णायक भूमिका निभाने जा रहा है.
सर्वे में मुख्य रूप से तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के बारे में राय ली गयी है, लेकिन उन बातों पर भी जोर दिखता है जिसे लेकर सचिन पायलट बार बार सवाल उठाते रहे हैं.
सचिन पायलट और अशोक गहलोत के अपने अपने विधायकों के साथ होटलों में रहने के बाद राजस्थान विधानसभा में विश्वास मत कराया गया था. विश्वास मत के बाद अशोक गहलोत ताकतवर होते गये और सचिन पायलट हाशिये पर जा पहुंचे.
फिर सचिन पायलट ने याद दिलाना शुरू किया कि जनता से किये गये वादे पूरे क्यों नहीं किये जा रहे हैं? सचिन पायलट ने ये बातें तब भी उठायी थीं जब झगड़े के बाद बीच बचाव कर प्रियंका गांधी वाड्रा ने सचिन पायलट की राहुल गांधी से मुलाकात करायी थी. सचिन पायलट माने भी तभी जब राहुल गांधी ने लोगों से किये गये वादे पूरे करने को लेकर आश्वस्त किया.
लेकिन कभी कोविड के नाम पर तो कभी अपनी तबीयत ठीक न होने का बहाना लेकर अशोक गहलोत मामला टालते रहे. ये हाल तब रहा जब सचिन पायलट कोई नयी मांग नहीं बल्कि वे काम करने को कह रहे थे जो चुनावों में राहुल गांधी ने जनता से वादे किये थे. बहरहाल, बाद में अशोक गहलोत मान भी गये और नवंबर, 2021 में मंत्रिमंडल विस्तार कर असंतुष्टों को शांत कराने की कोशिश की गयी. सचिन पायलट का भी ख्याल रखा गया.
अब जबकि अगले विधानसभा चुनाव में करीब डेढ़ साल बचे हैं, राहुल गांधी का माथा ठनका है. वैसे भी ले देकर कांग्रेस की अपने बूते सिर्फ दो ही राज्यों में फिलहाल सरकार भी है. अभी तक यही देखा गया है कि एक अरसे से राजस्थान के लोग बारी बारी कांग्रेस और बीजेपी को आजमाते रहते हैं - राहुल गांधी चाहते हैं कि 2023 में ये परंपरा टूट जाये.
राहुल गांधी की टीम ने सर्वे के जरिये कांग्रेस सरकार के कामकाज, मंत्रियों-विधायकों के प्रति लोगों का नजरिया और उनका कनेक्ट कितना है ये सब जानने की कोशिश की है, लेकिन ज्यादा जोर अशोक गहलोत और सचिन पायलट पर ही है.
सर्वे के जरिये ये जानने की कोशिश हुई है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट में से कौन राजस्थान में ज्यादा लोकप्रिय है?
सर्वे नतीजे की खबर आने से पहले ही दोनों ही नेताओं के समर्थक अपने अपने दावे कर रहे हैं. अशोक गहलोत के समर्थक कह रहे हैं कि सर्वे की रिपोर्ट उनके हक में आने वाली है, जबकि सचिन पायलट के समर्थक नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री तक बदले जाने का दावा कर रहे हैं.
खास बात ये है कि राहुल गांधी ये जानने और समझने की कोशिश कर रहे हैं कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट में से कौन ऐसा है जो राजस्थान में कांग्रेस वापसी करा सकता है? ये भी तो जरूरी नहीं कि अशोक गहलोत या सचिन पायलट में से जो ज्यादा लोकप्रिय हो वो सत्ता में कांग्रेस की वापसी भी करा दे.
राजस्थान के सभी 200 विधानसभा क्षेत्रों में कराये गये सर्वे की रिपोर्ट राहुल गांधी के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी के कुछ चुनिंदा नेताओं को सौंपी जानी है.
सर्वे के बाद क्या संभावना है
बेशक राहुल गांधी ने राजस्थान का झगड़ा सुलझाने के लिए जमीनी स्तर पर सर्वे के जरिये करने का फैसला किया है, लेकिन ये तभी कारगर हो सकता है जब अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों के कार्यक्षेत्र और अधिकार क्षेत्र एक दूसरे से टकराये नहीं. वरना, सारी कवायद धरी की धरी रह जाएगी और मध्य प्रदेश नहीं तो पंजाब का हाल हो कर रहेगा.
हाल ही में एक दिन राहुल गांधी ने सचिन पायलट के पेशेंस की मिसाल दी थी. सुनने में तो ऊपर से तारीफ जैसा लगा, लेकिन असल में कटाक्ष था. राहुल गांधी की टिप्पणी सचिन पायलट के बीजेपी में जाने की संभावनाओं से जुड़ी हुई थी.
अशोक गहलोत तो कई मौके पर बता भी चुके हैं कि जब वो पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तभी अपना स्थाई इस्तीफा लिख कर सोनिया गांधी के पास रख दिया था. मतलब ये कि वो किसी और की कृपा पर नहीं बल्कि सोनिया गांधी की वजह से मुख्यमंत्री बने हैं - और बने हुए हैं. सोनिया गांधी जब चाहें उनको हटा सकती हैं, नहीं तो जब तक उनका मन करेगा बने रहेंगे. जब तक उनका कार्यकाल है. तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने अशोक गहलोत तीन बार ही राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे और तीन बार केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं.
बीच बीच में सचिन पायलट को दिल्ली बुलाये जाने की भी चर्चा हुआ करती थी, लेकिन सुनने में यही आया कि वो राजस्थान में ही रहना चाहते हैं. सचिन पायलट को लगता होगा कि उनकी मेहनत की कमाई पर कोई और ऐश कर रहा है. लिहाजा वो सब कुछ अपने कब्जे में लेना चाहते होंगे, ताकि राजस्थान में जिन लोगों की बदौलत वो पांव जमा सके उनकी उम्मीदों पर एक बार खरा उतर कर दिखा भी सकें.
ऐसे में एक ही उपाय बचता है कि सचिन पायलट को राजस्थान में ही रहने दिया जाये और अशोक गहलोत को दिल्ली बुलाया जाये. हाल फिलहाल कांग्रेस के नये अध्यक्ष के रूप में जिन प्रमुख नामों की चर्चा है, एक अशोक गहलोत का भी नाम है.
अगर ये समझा जाये कि अशोक गहलोत के दिल्ली बुलाने की सूरत में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बना दिया जाता है तो भी झगड़ा अस्थायी तौर पर ही खत्म होगा - कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते अशोक गहलोत पूरी मनमानी करेंगे. सचिन पायलट को अगर सीधे सीधे परेशान न कर पाये तो ऐसा प्रदेश अध्यक्ष ला देंगे कि वो सचिन पायलट की नयी मुसीबत बन जाये. और जब कुछ नहीं कर पाएंगे तो अपने समर्थक विधायकों से हल्ला मचाने को कह देंगे.
कोई उपाय है क्या: हर समस्या का समाधान होता है. हर मुश्किल से उबरने के उपाय होते हैं - और राजस्थान कांग्रेस में जारी झगड़े को लेकर भी ऐसा ही लगता है.
सर्वे और रिपोर्ट अच्छी बात है और अपनी जगह सही भी है, लेकिन ये सब बीच में लागू करना जोखिमभरा हो सकता है. अगर अशोक गहलोत ने कुछ ठीक नहीं किया तो सचिन पायलट साल भर में क्या कमाल दिखा देंगे? ले देकर पंजाब में कैप्टन की जगह चरणजीत सिंह चन्नी को लाने जैसा हो कर रह जाएगा.
अगर राहुल गांधी राजस्थान में कुछ कांग्रेस के हित में करना चाहते हैं तो पंजाब से सबक तो लें ही, बीजेपी के असम प्रयोग से भी नसीहत लें. बीजेपी ने 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले ही तय कर लिया था कि क्या करना है. हिमंत बिस्वा सरमा ने पहले ही इरादे जता दिये थे कि मुख्यमंत्री तो वही बनेंगे, बीजेपी के पास उनकी बात मानने का कोई रास्ता भी न था. हिमंत की वजह से बीजेपी को जितना फायदा हुआ, सब मिट्टी में तो मिलता ही अगर नाराज होकर वो कोई और कदम उठा लेते तो और भी नुकसान होता.
पहले से ही तय कार्यक्रम के मुताबिक, बीजेपी चुनाव में तो तत्कालीन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनवाल के नेतृत्व में ही उतरी, लेकिन चुनाव नतीजे आने के बाद हिमंत बिस्वा सरमा मुख्यमंत्री बना दिये गये. राहुल गांधी को भी ऐसा ही कोई उपाय खोजना चाहिये.
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