केरल के वायनाड के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेठी संसदीय सीट से भी नामांकन दाखिल कर दिया है. राहुल गांधी पहली बार दो-दो लोक सभा सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं और वायनाड से पहले ही नामांकन कर चुके हैं. अमेठी से राहुल गांधी ने चौथी बार नामांकन किया है. इससे पहले 2004, 2009 और 2014 के आम चुनाव राहुल गांधी जीत चुके हैं.
राहुल गांधी के लोक सभा चुनाव लड़ने को लेकर चर्चाएं तो बहुत पहले से ही रहीं, दो-दो सीटों से नामांकन के बाद सस्पेंस भी बढ़ने लगा है. राहुल गांधी के वायनाड जाने को लेकर बीजेपी, खासकर स्मृति ईरानी कुछ ज्यादा ही आक्रामक नजर आ रही हैं जो उनका हक भी है.
राहुल गांधी के लिए जितना मुश्किल बीजेपी नेताओं या स्मृति ईरानी का आक्रामक होना नहीं है, उससे कहीं ज्यादा अमेठी के लोगों के मन में उठ रहे सवाल हैं - आखिर क्या कमी रह गयी जो राहुल गांधी को वायनाड जाना पड़ा?
हम सब एक और साथ हैं
राहुल गांधी के नामांकन का मुहूर्त तो सोच समझ कर ही तय किया गया होगा. ग्रहों की चाल, ज्योतिषीय गणना और राहु काल से पर्याप्त दूरी को लेकर निश्चित तौर पर विचार हुआ ही होगा. सियासी समीकरण और तमाम देश-काल-परिस्थितियां भी मुहूर्त गणना का हिस्सा रहे ही होंगे. अगर ये सब न हुआ हो तो भी मुहूर्त इसलिए भी अच्छा माना जाना चाहिये क्योंकि राहुल गांधी के पसंदीदा टॉपिक राफेल डील को लेकर खबर सुप्रीम कोर्ट से उसी दौरान आयी. खबर में तत्व की बात जितनी भी रही, राहुल गांधी को भाषण देने और मोदी सरकार पर हमले का मसाला तो मिल ही गया. ये बात अलग है कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने खबर को विस्तार से समझाया और सलाह दी कि राहुल गांधी को कोर्ट के फैसले का पहला पैरा तो ठीक से पढ़ना ही चाहिये थे.
राहुल गांधी के अमेठी से नामांकन के बाद 11 अप्रैल को जब देश के कई हिस्सों में लोग वोट डाल रहे होंगे सोनिया गांधी भी रायबरेली से नामांकन करेंगी. उसी आस पास अमेठी में स्मृति ईरानी भी बीजेपी की ओर से नॉमिनेशन फाइल करेंगी. कुल मिलाकर अमेठी और रायबरेली काफी...
केरल के वायनाड के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेठी संसदीय सीट से भी नामांकन दाखिल कर दिया है. राहुल गांधी पहली बार दो-दो लोक सभा सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं और वायनाड से पहले ही नामांकन कर चुके हैं. अमेठी से राहुल गांधी ने चौथी बार नामांकन किया है. इससे पहले 2004, 2009 और 2014 के आम चुनाव राहुल गांधी जीत चुके हैं.
राहुल गांधी के लोक सभा चुनाव लड़ने को लेकर चर्चाएं तो बहुत पहले से ही रहीं, दो-दो सीटों से नामांकन के बाद सस्पेंस भी बढ़ने लगा है. राहुल गांधी के वायनाड जाने को लेकर बीजेपी, खासकर स्मृति ईरानी कुछ ज्यादा ही आक्रामक नजर आ रही हैं जो उनका हक भी है.
राहुल गांधी के लिए जितना मुश्किल बीजेपी नेताओं या स्मृति ईरानी का आक्रामक होना नहीं है, उससे कहीं ज्यादा अमेठी के लोगों के मन में उठ रहे सवाल हैं - आखिर क्या कमी रह गयी जो राहुल गांधी को वायनाड जाना पड़ा?
हम सब एक और साथ हैं
राहुल गांधी के नामांकन का मुहूर्त तो सोच समझ कर ही तय किया गया होगा. ग्रहों की चाल, ज्योतिषीय गणना और राहु काल से पर्याप्त दूरी को लेकर निश्चित तौर पर विचार हुआ ही होगा. सियासी समीकरण और तमाम देश-काल-परिस्थितियां भी मुहूर्त गणना का हिस्सा रहे ही होंगे. अगर ये सब न हुआ हो तो भी मुहूर्त इसलिए भी अच्छा माना जाना चाहिये क्योंकि राहुल गांधी के पसंदीदा टॉपिक राफेल डील को लेकर खबर सुप्रीम कोर्ट से उसी दौरान आयी. खबर में तत्व की बात जितनी भी रही, राहुल गांधी को भाषण देने और मोदी सरकार पर हमले का मसाला तो मिल ही गया. ये बात अलग है कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने खबर को विस्तार से समझाया और सलाह दी कि राहुल गांधी को कोर्ट के फैसले का पहला पैरा तो ठीक से पढ़ना ही चाहिये थे.
राहुल गांधी के अमेठी से नामांकन के बाद 11 अप्रैल को जब देश के कई हिस्सों में लोग वोट डाल रहे होंगे सोनिया गांधी भी रायबरेली से नामांकन करेंगी. उसी आस पास अमेठी में स्मृति ईरानी भी बीजेपी की ओर से नॉमिनेशन फाइल करेंगी. कुल मिलाकर अमेठी और रायबरेली काफी गुलजार रहने वाले हैं.
अमेठी की जमीन से राहुल गांधी ने राजनीतिक विरोधियों को कई तरह के मैसेज देने की भी कोशिश की. मसलन, पूरा परिवार साथ है. प्रियंका, रॉबर्ट वाड्रा और उनके दोनों बच्चे रेहान और मिराया भी राहुल गांधी के साथ साथ रोड शो में शामिल हुए. जब प्रवर्तन निदेशालय ने रॉबर्ट वाड्रा को पूछताछ के लिए बुलाया था तो दफ्तर तक उन्हें छोड़ने प्रियंका गांधी वाड्रा भी गयी थीं - और बाद कहा भी कि वो अपने पति और परिवार के साथ खड़ी हैं. रोड शो में भी ये संदेश समझा जा सकता है.
प्रियंका गांधी वाड्रा ने राहुल गांधी के सपोर्ट में एक ट्वीट भी किया. प्रियंका ने राहुल के वायनाड से नामांकन के दौरान भी एक ट्वीट किया था और बताया था कि जहां तक वो जानती हैं राहुल गांधी सबसे ज्यादा साहसी शख्सियत हैं.
प्रियंका गांधी ने इस ट्वीट के जरिये हर चीज को दिल के रिश्ते से जोड़ने का प्रयास किया. भाई और पूरे परिवार का रिश्ता. पति के साथ रिश्ता. मां और बच्चों का रिश्ता. पिता की कर्मभूमि से बच्चों का रिश्ता. एक छोटे से ट्वीट में प्रियंका ने वो सारी बातें समेटने की कोशिश की जो अमेठी से गांधी परिवार को जोड़े हुए है और लोग भी खुद को गांधी परिवार से जुड़ा हुआ पाते हैं.
वायनाड वाले ट्वीट में प्रियंका वाड्रा ने राहुल गांधी को लेकर एक और बात भी कही थी - 'मेरे भाई कभी निराश नहीं करेंगे.'
मुद्दे की बात ये है कि अमेठी के लोग फिलहाल इसी जद्दोजहद से जूझ रहे हैं - आखिर उनसे कहां कमी रह गयी कि राहुल गांधी उन्हें निराश करने
वाली स्थिति में खुद भी पहुंचे और उन्हें भी ला दिये. अमेठी के लोगों के मन में फिलहाल ये सबसे बड़ा सवाल है और ये भी सच है कि राहुल गांधी को इस सवाल का का जवाब देना ही होगा.
पक्का बताइये - अमेठी या वायनाड?
राहुल गांधी का कहना है कि वो उत्तर भारत और दक्षिण भारत दोनों को बराबरी का दर्जा देते हैं और उसी संदेश के साथ वायनाड का रूख किया है. अगर बीजेपी नेता स्मृति ईरानी ये कहती हैं कि राहुल गांधी हार के डर से अमेठी से भाग गये तो ये कहने का उन्हें हक हासिल है. हक इसलिए भी कि 2014 में स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को कड़ी टक्कर दी थी और हार का अंतर करीब एक लाख वोट ही रहे. अगर 2014 के चुनाव को लेकर मोदी लहर की दलील दी जाएगी तो, अब भी बीजेपी का कोई बुरा वक्त तो आया नहीं है. जिस तरह से महागठबंधन बिखरा हुआ या विपक्षी दल आपसी राजनीतिक लड़ाई में उलझे हुए हैं - बीजेपी मजबूत ही नजर आ रही है.
बाकी सवाल अपनी जगह है, असली मुद्दा ये है कि दोनों सीटों पर जीत की स्थिति में राहुल गांधी किसे छोड़ेंगे - अमेठी को या वाडनाड को? ये तो तकनीकी तौर पर मुमकिन नहीं है कि कोई दोनों सीटें जीते और दोनों का प्रतिनिधित्व कर सके. एक तो छोड़ना ही होगा. प्रियंका के ट्वीटर संदेश के बावजूद अमेठी के लोग EVM का बटन दबाने तक द्वंद्व के दौर से जरूर गुजरेंगे - अगर राहुल गांधी ने कांग्रेस को मजबूत करने के लिए दक्षिण भारत का रूख पक्का कर लिया तो?
स्मृति ईरानी लोगों को यही तो समझाना चाहती हैं. पांच साल से अमेठी का बार बार दौरा कर स्मृति ईरानी अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही हैं. राजनीतिक स्वार्थ और लड़ाई अपनी जगह है और लोगों के बीच किसी नेता की मौजूदगी अलग बात है. ऐसे दौर में जब नेता चुनाव जीतने के बाद इलाके में नजर नहीं आते, स्मृति ईरानी हार के बावजूद अमेठी से दूर नहीं हुईं. कभी संसद में राहुल गांधी के आक्रामक होने पर तो कभी दिल्ली की सड़क पर कांग्रेस नेतृत्व के हमलावार होने पर - स्मृति ईरानी फौरन अमेठी जाकर राहुल गांधी के खिलाफ मोर्चा संभाल लेती रहीं.
2014 में अमेठी तो कुमार विश्वास भी गये थे - और बनारस अरविंद केजरीवाल भी, लेकिन जो रिश्ता स्मृति ईरानी ने गांधी परिवार के इलाके के लोगों से निभाया है उसका कोई सानी है भी क्या?
निश्चित तौर पर राहुल गांधी, उनके परिवार के लोग, राजनीतिक सलाहकार और चुनावी रणनीतिकार भी ऐसी बातों पर गौर कर रहे होंगे. जरूरत इसी बात की है कि राहुल गांधी अमेठी के लोगों को एक बार मन की बात बता दें - अमेठी के लोगों के प्यार, दुलार, आशीर्वाद और सम्मान में कहां कमी रह गयी. यही राहुल गांधी के जीत का नुस्खा भी है और ताबीज भी.
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