कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने इरादे जाहिर कर दिये हैं - ग्रैंड 'ओल्ड एंड यंग' पार्टी. ये कह कर राहुल गांधी ने साफ करने की कोशिश की है कि वो बुजुर्गों के अनुभव और नौजवानों के जोश को साथ लेकर आगे बढ़ेंगे. राहुल गांधी की इस बात के बाद कांग्रेस में बहस इस बात पर हो रही होगी कि किसका कद बढ़ेगा और किसका घटेगा.
कांग्रेस में सभी को साथ लेकर चलना राहुल के लिए चैलेंज तो होगा ही, कम से कम ऐसे तीन मोर्चे जरूर हैं जहां उन्हें फौरी तौर पर तो जूझना ही होगा, लगातार अलर्ट भी रहना होगा.
1. गुजरात नहीं, राहुल गांधी असम का हाल होने देंगे या पंजाब मॉडल बनाएंगे?
देखा जाये तो गुटबाजी कहां नहीं है? कौन सी ऐसी राजनीतिक पार्टी है जो इस समस्या से नहीं जूझ रही है. कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी की कौन कहे, सबसे ज्यादा गुटबाजी तो नयी नवेली आम आदमी पार्टी में देखने को मिल जाएगी.
कांग्रेस के केस में कम से कम एक बात अलग है कि केंद्रीय स्तर पर अगर गुटबाजी है तो भी बहुत हद तक नियंत्रित है. राज्यों की हालत बिलकुल अलग है. राज्यों में क्षेत्रीय नेताओं की कमी सी है. जो हैं वे भी आपस में ही मार काट पर उतरे रहते हैं, आपसी दुश्मनी इतनी इमानदारी से निभाते हैं कि पार्टी की शायद ही किसी को परवाह हो.
राहुल गांधी को अपने ही अनुभवों को समझने की जरूरत है. असम और पंजाब इस मामले में बेहतरीन उदाहरण नजर आते हैं. असम एक ऐसा राज्य है जिसे कांग्रेस ने गंवा दिया - और पंजाब जिसे नाजुक मोड़ पर पहुंच जाने के बाद समझदारी से बचाया ही नहीं, बल्कि सरकार तक बना ली. राहुल गांधी खुद सारी घटनाओं के गवाह हैं - वो चाहें तो बीती गलतियों को सुधार कर आगे की राह आसान बना सकते हैं.
असम कांग्रेस की सरकार थी और तरुण...
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने इरादे जाहिर कर दिये हैं - ग्रैंड 'ओल्ड एंड यंग' पार्टी. ये कह कर राहुल गांधी ने साफ करने की कोशिश की है कि वो बुजुर्गों के अनुभव और नौजवानों के जोश को साथ लेकर आगे बढ़ेंगे. राहुल गांधी की इस बात के बाद कांग्रेस में बहस इस बात पर हो रही होगी कि किसका कद बढ़ेगा और किसका घटेगा.
कांग्रेस में सभी को साथ लेकर चलना राहुल के लिए चैलेंज तो होगा ही, कम से कम ऐसे तीन मोर्चे जरूर हैं जहां उन्हें फौरी तौर पर तो जूझना ही होगा, लगातार अलर्ट भी रहना होगा.
1. गुजरात नहीं, राहुल गांधी असम का हाल होने देंगे या पंजाब मॉडल बनाएंगे?
देखा जाये तो गुटबाजी कहां नहीं है? कौन सी ऐसी राजनीतिक पार्टी है जो इस समस्या से नहीं जूझ रही है. कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी की कौन कहे, सबसे ज्यादा गुटबाजी तो नयी नवेली आम आदमी पार्टी में देखने को मिल जाएगी.
कांग्रेस के केस में कम से कम एक बात अलग है कि केंद्रीय स्तर पर अगर गुटबाजी है तो भी बहुत हद तक नियंत्रित है. राज्यों की हालत बिलकुल अलग है. राज्यों में क्षेत्रीय नेताओं की कमी सी है. जो हैं वे भी आपस में ही मार काट पर उतरे रहते हैं, आपसी दुश्मनी इतनी इमानदारी से निभाते हैं कि पार्टी की शायद ही किसी को परवाह हो.
राहुल गांधी को अपने ही अनुभवों को समझने की जरूरत है. असम और पंजाब इस मामले में बेहतरीन उदाहरण नजर आते हैं. असम एक ऐसा राज्य है जिसे कांग्रेस ने गंवा दिया - और पंजाब जिसे नाजुक मोड़ पर पहुंच जाने के बाद समझदारी से बचाया ही नहीं, बल्कि सरकार तक बना ली. राहुल गांधी खुद सारी घटनाओं के गवाह हैं - वो चाहें तो बीती गलतियों को सुधार कर आगे की राह आसान बना सकते हैं.
असम कांग्रेस की सरकार थी और तरुण गोगोई मुख्यमंत्री थे. गोगोई की टीम में ही तब हिमंत बिस्वा सरमा हुआ करते थे. तरुण गोगोई अपने बेटे गौरव गोगोई को स्थापित करने में लग गये और हिमंत बिस्वा सरमा को लगा कि कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ रहा है. सरमा ने दिल्ली में दस्तक दी और जरूरत के हिसाब से डेरा भी डाला. तब पार्टी में दो अघोषित पावर सेंटर हुआ करते थे - एक, सोनिया गांधी और दूसरे, राहुल गांधी. जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो सरमा बीजेपी में चले गये. बाद में एक इंटरव्यू में सरमा को कहते सुना गया कि मुलाकात के दौरान राहुल गांधी कार्यकर्ताओं और नेताओें से ज्यादा अपने पालतू कुत्तों में दिलचस्पी लेते थे. नतीजा ये रहा कि सरमा के सहारे बीजेपी ने असम में कांग्रेस से सत्ता छीन ली.
पंजाब में कांग्रेस अरसे से सत्ता से बाहर थी. तब वहां भी गुटबाजी वैसी ही थी जैसी फिलहाल हरियाणा, राजस्थान या मध्य प्रदेश में है. बाकी राज्यों की तरह राहुल गांधी ने अपने पसंदीदा प्रताप सिंह बाजवा को पंजाब कांग्रेस की कमान सौंप दी. ये बात कैप्टन अमरिंदर सिंह को हजम नहीं हुई. उन दिनों राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने के उनके विरोध के पीछे एक कारण ये भी रहा होगा. कैप्टन अमरिंदर ने हर तरीके से पार्टी नेतृत्व को समझाने की कोशिश की. जब बात नहीं बनती दिखी तो खबर लीक हुई कि वो अपनी नयी पार्टी बना सकते हैं. मजबूरी में पंजाब कांग्रेस की कमान कैप्टन अमरिंदर को सौंपनी पड़ी. नतीजा ये हुआ कि सूबे में कांग्रेस की सरकार बन गयी.
देश के ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस की कहानी असम जैसी ही है जिसे पंजाब की तरह बदली जा सकती है. गुजरात मॉडल नहीं, अब राहुल गांधी को खुद फैसला करना है कि असम मॉडल होने देते हैं या हर जगह पंजाब मॉडल को हकीकत में बदलने की कोशिश करते हैं.
2. यूपीए गठबंधन को बनाये रखने की चुनौती
राहुल गांधी को विरासत के साथ साथ चुनौतियां भी थोक भाव में मिली हुई हैं. जिन सहयोगी दलों के साथ सोनिया गांधी ने केंद्र में 10 साल तक यूपीए की सरकार चलायी अब वो जिम्मेदारी भी राहुल गांधी पर है. विदेशी मूल के मुद्दे पर शरद पवार जैसे कद्दावर नेता ने सोनिया का साथ छोड़ अलग पार्टी बना ली थी. बाद में सोनिया ने उन्हें गठबंधन में शामिल किया और सरकार में भागीदार भी. अच्छी बात ये है कि शरद पवार ने भी राहुल की काबिलियत की तारीफ की है. लालू प्रसाद ने भी ऐसा ही कहा है और राहुल गांधी को तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव का भी समर्थन हासिल है. लेकिन ममता बनर्जी और मायावती जैसे नेता भी हैं जिन्हें राहुल गांधी को साथ लेकर चलना होगा.
सीताराम येचुरी जैसे नेता भी हैं जो कह चुके हैं कि सोनिया गांधी के पार्टी अध्यक्ष नहीं रहने पर यूपीए टूट जाएगा. मौजूदा दौर में कांग्रेस जिस स्थिति में पहुंच चुकी है, उसके लिए अकेले दम पर सत्ता हासिल करना बेहद मुश्किल है.
3. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले 2019 में खड़े होकर टक्कर देना
राहुल गांधी की कुछ गतिविधियों पर गौर करें तो ऐसा लगा जैसे वो मोदी की नकल कर रहे हों. कुछ मामलों में आप नेता अरविंद केजरीवाल की भी. बाद में वो अपनी स्टाइल में भी आये - और बतौर अध्यक्ष अपने पहले भाषण में भी राहुल गांधी ने मैसेज देने की कोशिश की कि आगे भी वो जारी रखेंगे. जिस तरह की बातें राहुल गांधी गुजरात चुनाव में करते रहे, अध्यक्ष की कुर्सी संभालते हुए भी कही है. एक बार फिर राहुल गांधी के निशाने पर बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी ही रहे जहां उन्होंने दोहराया कि 'गुस्से की राजनीति से हम लड़ेंगे और उन्हें हराएंगे'. अपनी बात पर जोर देते हुए राहुल गांधी बोले, 'नफरत को नफरत नहीं, प्यार से हराएंगे.'
राहुल गांधी ने एक और महत्वपूर्ण बात कही - 'बीजेपी कांग्रेस मुक्त की बात करती है, लेकिन हम बीजेपी मुक्त भारत की बात नहीं करेंगे. वे हमारे लोग हैं, लेकिन हम उनसे सहमत नहीं है.'
राहुल ने पहले अंग्रेजी में भाषण दिया और फिर बोला कि वो हिंदी में बोलेंगे. कुछ बातें नोट से और कुछ अपने मन की बात - राहुल गांधी ने बड़ी ही संजीदगी से अपनी बातें कही है - और आगे भी उन्हें इसे बरकरार रखना होगा.
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