राहुल गांधी और सोनिया गांधी को पंजाब से अब तक जो भी हासिल हुआ है, काफी कम है. पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में सेंध की घटना के बाद तो लगा जैसे चन्नी (Charanjit Singh Channi) और सिद्धू अच्छे दोस्त बन चुके हैं. दोनों अलग अलग भी एक ही जबान में बात कर रहे थे. ये दोस्ती इसलिए दिखी क्योंकि दोनों के सामने टारगेट कॉमन था - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.
तमाम सख्त फैसलों के बावजूद पंजाब को लेकर गांधी परिवार की फजीहत कम नहीं हो रही है. बल्कि बढ़ती ही जा रही है. अब तो अक्सर लगता है जैसे चन्नी और सिद्धू में होड़ मची हो. मुश्किलों की धधकती आग में घी सबसे ज्यादा कौन डाल पाता है. पंजाब की सियासत की ये वही आग है जिसमें गांधी परिवार बार बार झुलसता रहा है.
पंजाब को लेकर देश के लिए कुर्बानी देने का दावेदार होने के बावजूद गांधी परिवार हमेशा निशाने पर आ जाता है. किसान आंदोलन के दौरान राहुल गांधी कृषि कानूनों को लेकर पंजाब के लोगों की तरफ से मोदी सरकार पर हमले बोलते तो अकाली नेता हरसिमरत कौर बादल मोर्चे पर डट जातीं. दिल्ली के सिख दंगों से लेकर ऑपरेशन ब्लू स्टार की याद दिलाने लगतीं.
पंजाब में सत्ता में वापसी को लेकर कांग्रेस नेतृत्व ने बड़ी ही जल्दी जल्दी दांवे खेले. कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने जैसा ही जोखिम सिद्धू के हाथ में पंजाब कांग्रेस की कमान सौंपना भी रहा. शुरू में ऐसा भले न लगा हो, लेकिन अब तो महसूस हो ही रहा होगा. अब तो ऐसा लगता है जैसे मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) का कॉमन एजेंडा फिर से...
राहुल गांधी और सोनिया गांधी को पंजाब से अब तक जो भी हासिल हुआ है, काफी कम है. पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में सेंध की घटना के बाद तो लगा जैसे चन्नी (Charanjit Singh Channi) और सिद्धू अच्छे दोस्त बन चुके हैं. दोनों अलग अलग भी एक ही जबान में बात कर रहे थे. ये दोस्ती इसलिए दिखी क्योंकि दोनों के सामने टारगेट कॉमन था - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.
तमाम सख्त फैसलों के बावजूद पंजाब को लेकर गांधी परिवार की फजीहत कम नहीं हो रही है. बल्कि बढ़ती ही जा रही है. अब तो अक्सर लगता है जैसे चन्नी और सिद्धू में होड़ मची हो. मुश्किलों की धधकती आग में घी सबसे ज्यादा कौन डाल पाता है. पंजाब की सियासत की ये वही आग है जिसमें गांधी परिवार बार बार झुलसता रहा है.
पंजाब को लेकर देश के लिए कुर्बानी देने का दावेदार होने के बावजूद गांधी परिवार हमेशा निशाने पर आ जाता है. किसान आंदोलन के दौरान राहुल गांधी कृषि कानूनों को लेकर पंजाब के लोगों की तरफ से मोदी सरकार पर हमले बोलते तो अकाली नेता हरसिमरत कौर बादल मोर्चे पर डट जातीं. दिल्ली के सिख दंगों से लेकर ऑपरेशन ब्लू स्टार की याद दिलाने लगतीं.
पंजाब में सत्ता में वापसी को लेकर कांग्रेस नेतृत्व ने बड़ी ही जल्दी जल्दी दांवे खेले. कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने जैसा ही जोखिम सिद्धू के हाथ में पंजाब कांग्रेस की कमान सौंपना भी रहा. शुरू में ऐसा भले न लगा हो, लेकिन अब तो महसूस हो ही रहा होगा. अब तो ऐसा लगता है जैसे मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) का कॉमन एजेंडा फिर से गांधी परिवार पर भारी पड़ने वाला है.
अब तक तो अकले सिद्धू ही पंजाब में कांग्रेस का मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने की मांग करते रहे, लेकिन अब तो चन्नी भी ऐसी ही डिमांड शुरू कर चुके हैं - ये तो ऐसा लग रहा है जैसे पंजाब के चुनाव नतीजों की एडवांस जिम्मेदारी गांधी परिवार (Gandhi Family) पर डाल देने की तैयारी चल रही हो!
चन्नी मुख्यमंत्री हैं, कांग्रेस का चेहरा नहीं
ऐसा भी नहीं कि कांग्रेस नेतृत्व पंजाब चुनाव को लेकर हाथ पर हाथ धरे बैठा हो. कमेटियां शिद्दत से बनायी जा रही हैं. कैंपेन कमेटी और मैनिफेस्टो कमेटी बन चुकी है. पंजाब में कांग्रेस की ज्यादातर गतिविधियों पर अक्सर उलटबांसी बोलने वाले सुनील जाखड़ को कैंपेन कमेटी की जिम्मेदारी दी गयी है. सुनील जाखड़, नवजोत सिंह सिद्धू से पहले पंजाब में कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे.
मैनिफेस्टो कमेटी का चीफ प्रताप सिंह बाजवा को बनाया गया है. बाजवा भी कभी राहुल गांधी के करीबियों में शुमार थे और वो भी पंजाब कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं. कैंपेन कमेटी में 25 सदस्य हैं, जबकि मैनिफेस्टो कमेटी में 20 सदस्य हैं.
सोनिया गांधी ने कुछ सोच समझ कर ही मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को ऐसी जिम्मेदारियों से अलग रखा होगा. अब टिकटों के बंटवारे में चारों में से किसकी कितनी चलती है, देखना होगा. पंजाब चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन का आखिरी आधार भी वही होगा.
चन्नी चेहरा क्यों नहीं हैं: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में सेंध के मामले में निशाने पर रहे चरणजीत सिंह चन्नी जांच पड़ताल के रफ्तार पकड़ लेने के बाद पंजाब में चुनावी माहौल की तरफ मुखातिब है. एक स्थानीय न्यूज चैनल प्रो पंजाब टीवी के साथ इंटरव्यू में चन्नी ने बताया है कि क्यों पंजाब में कांग्रेस के लिए मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया जाना जरूरी है.
चरणजीत सिंह चन्नी कहते हैं, 'जब भी पार्टी ने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है, हार का मुंह देखना पड़ा है. साथ ही चन्नी मांग करते हैं कि कांग्रेस को अपना सीएम फेस घोषित कर देना चाहिये. चन्नी ये भी याद दिलाते हैं कि कांग्रेस 2017 का चुनाव कैप्टन अमरिंदर सिंह के चेहरे पर लड़ा था. सही भी है, कांग्रेस ने चुनाव जीता भी और पांच साल का कार्यकाल भी पूरा किया, ये बात अलग है कि अगले चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री भी बदलना पड़ा.
चरणजीत सिंह चन्नी ने सीएम कैंडीडेट के सवाल पर कहा था कि कांग्रेस को अगर पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 जीतना है तो उन्हें सीएम का चेहरा घोषित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि 2017 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के चेहरे पर लड़ा था। जब कांग्रेस सीएम फेस के साथ लड़ती है तो चुनाव में जीतती है।
आलाकमान कौन होता है: पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू से मीडिया का सवाल होता है - 14 फरवरी को होने जा रही वोटिंग के बाद पंजाब में कांग्रेस का मुख्यमंत्री पद का चेहरा कौन होगा?
सवाल सुनते ही सिद्धू भड़क जाते हैं और कहते हैं, 'अपने मनो-मस्तिष्क में गलतफहमी न पालें... पंजाब के लोग ही विधायक चुनेंगे - और सूबे की जनता ही मुख्यमंत्री भी बनाएगी.'
और फिर पत्रकारों से ही पूछने लगते हैं, 'आप लोगों को किसने कह दिया कि पार्टी हाईकमान मुख्यमंत्री बनाएगा? किसने आपको कहा?'
थोड़ा संभलते हैं. फिर बताते हैं, 'मेरी बात सुनिये... पंजाब की जनता ने पांच साल पहले भी विधायकों का चयन किया था...' अपनी बात का मतलब भी साफ करने की कोशिश करते हैं, पंजाब की जनता ही फिर से मुख्यमंत्री बनाएगी.
कांग्रेस में उम्मीदवारों की सूची पर काम चल रहा है. हालांकि, नवजोत सिंह सिद्धू के चुनाव लड़ने पर अभी सस्पेंस बना हुआ है. पंजाब कांग्रेस में एक धड़ा ऐसा भी है जो चाहता है कि सिद्धू को कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ाया जाना चाहिये. कुछ मीडिया रिपोर्ट में भी ये जिक्र आया है.
मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के दो सीटों से चुनाव लड़ने की बात चल रही है. अपनी चमकौर साहब के साथ साथ वो आदमपुर सीट से भी चुनाव लड़ सकते हैं.
मैनिफेस्टो से पहले पंजाब मॉडल
न तो अभी उम्मीदवारों की सूची आयी है, न कांग्रेस का मैनिफेस्टो, लेकिन सिद्धू ने अपना पंजाब मॉडल पहले ही लॉन्च कर दिया है - लगे हाथ एक खास चेतावनी भी कि पंजाब मॉडल पर ही उनका भविष्य टिका हुआ है.
सिद्धू ने साफ कर दिया है कि वो पंजाब मॉडल पर कोई समझौता नहीं करेंगे. बताते हैं कि पार्टी महासचिव से बात करने के बाद वो ये सब बता रहे हैं. मतलब, ये कि जो सिद्धू का पंजाब मॉडल है, मैनिफेस्टो में उन बातों को पूरी तवज्जो मिलेगी - और ऐसा नहीं हुआ तो कांग्रेस हाईकमान जाने और समझे कि उसे क्या करना है. क्योंकि सिद्धू तो फैसला ले ही चुके होंगे कि क्या करना है.
1. सिद्धू का पंजाब मॉडल: नवजोत सिंह सिद्धू का पंजाब मॉडल काफी पुराना ड्राफ्ट है. वो अक्सर कहा भी करते हैं कि पंजाब मॉडल ही कांग्रेस को सूबे में फिर से जीत दिला सकता है - और कई बार तो यहां तक बोल चुके हैं कि ये दिल्ली मॉडल पर मुकाबले में भारी पड़ेगा.
ये वही पंजाब मॉडल है जिसके जरिये सिद्धू की कांग्रेस में वापसी का रास्ता खुला था. 2019 के आम चुनाव के बाद जब राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ दिया तो सिद्धू काफी निराश हो गये थे. फिर भी दिल्ली पहुंचे, तब ऐसे मामले बगैर सोचे समझे अहमद पटेल के पास भेज दिये जाते रहे. मुलाकात के बाद अहमद पटेल और प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ सिद्धू ने एक तस्वीर भी ट्विटर पर साझा किया था. फिर कुछ दिन बाद तब की कैप्टन कैबिनेट से इस्तीफे की कॉपी शेयर करते हुए अपडेट किया कि वो बंगला भी खाली कर देंगे.
करीब छह महीने शांत रहने के बाद सिद्धू फिर दिल्ली जा धमके और सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ मुलाकात की तस्वीर ट्विटर पर डाली - और उसी दौरान बताया भी कि आलाकमान के बुलावे पर वो पहुंचे और पंजाब मॉडल का प्रजेंटेशन दिया. साथ में ये भी दावा किया था कि सोनिया गांधी को उनका पंजाब मॉडल ड्राफ्ट काफी पसंद आया.
2. पंजाब मॉडल में चन्नी को जगह क्यों नहीं: सिद्धू के पंजाब मॉडल की जो सबसे बड़ी खासियत है, वो पोस्टर से चन्नी का चेहरा नदारद होना. गांधी परिवार के तीनों सदस्यों के साथ साथ पोस्टर पर एक बड़ा सा चेहरा सिद्धू का ही है.
ऐसा लगता है जैसे सिद्धू कांग्रेस के स्वघोषित चेहरे के तौर पर खुद को प्रोजेक्ट कर रहे हैं - और चन्नी को किनारे कर अपने दावे को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हों.
3. सिद्धू-चन्नी का फ्यूचर प्लान: पंजाब मॉडल पेश करने के साथ ही सिद्धू एक बार फिर 'ईंट से ईंट खड़का देने' वाले अंदाज में प्रकट होते हैं, अगर आलाकमान ने उनकी बात नहीं मानी. हालांकि, अब बात मानने से उनका मतलब चुनाव में अपने को कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने से ही है.
सिद्धू के समानांतर चन्नी भी इंटरव्यू में खुद को एक लोकप्रिय चेहरे के तौर पर पेश करते हैं. बताते हैं कि कैसे लोग बैरिकेड तोड़ कर उनसे मिलना चाहते हैं. आखिर में, ये बोलना नहीं भूलते कि पार्टी हाई कमान ही इस बारे में कोई फैसला लेगा.
कितनी अजीब बात है. जो कांग्रेस का मुख्यमंत्री है और वो चेहरा नहीं है. क्या वो नाइट वॉचमैन है? क्या दलितों के हिस्से में कांग्रेस के पास इतना ही है? फिर तो चुनावों में बीजेपी को कहने का आसानी से मौका मिल जाएगा कि कांग्रेस ने दलित मुख्यमंत्री बनाने के नाम पर दलितों की भावनाओं के साथ घटिया सलूक किया है. ये बीजेपी ही है जिसने पंजाब में दलित मुख्यमंत्री की पहल की थी.
अब अगर बीजेपी दलित वोटर को ये समझाने में सफल रहती है कि कांग्रेस चन्नी को सत्ता में वापसी के बाद मुख्यमंत्री नहीं बनाने वाली तो क्या असर होगा? चन्नी को मुख्य्मंत्री बनाने से कांग्रेस को जितना फायदा नहीं हुआ था, नुकसान उससे कहीं ज्यादा होगा - और ये नुकसान पंजाब तक ही सीमित रहे ऐसा भी नहीं है. पंजाब में तो दलित वोट बैंक पहले भी यूपी जैसी निर्णायक भूमिका में तो रहा नहीं है, लेकिन जब नुकसान की बात आएगी तो यूपी चुनाव में खामियाजा भी कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है.
कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से करीब करीब स्पष्ट संदेश दिया जा चुका है कि अलग से कोई मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया जाना है. चन्नी को भी समझ आ चुका है कि कांग्रेस उनके चेहरे को महज एक मोहरे के तौर पर इस्तेमाल कर रही है - भला कांग्रेस की हार की स्थिति में वो अपनी छवि क्यों खराब होने दें? चन्नी का ताजा पैंतरा तो ऐसे ही इशारे कर रहा है.
सिद्धू को भी तो जमीनी हकीकत मालूम होगी ही. तभी तो वो अभी से ही अलर्ट हो गये हैं. सिद्धू भी जानते हैं कि चुनाव नतीजे पक्ष में नहीं आये तो हार का ठीकरा भी उनके ही सिर फोड़ा जाने वाला है.
बेशक सिद्धू फिलहाल गांधी परिवार के दरबार में पूरी दखल रखते हों, लेकिन उनके जैसे दिल्ली में कई और भी करीबी नेता बैठे हैं. कांग्रेस के खिलाफ नतीजे आने पर जिम्मेदारी सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी पर थोपे जाने से पहले ही दो-तीन संकटमोचक आगे बढ़ कर सामूहिक जिम्मेदारी लेकर सिद्धू और चन्नी के मत्थे मढ़ देंगे - और ऐसा ही एक सर्टिफिकेट जारी करने के लिए हो सकता है, फिर से एके एंटनी कमेटी बिठा दी जाये. वो बहुत कुछ करे न करे, गांधी परिवार को किसी भी तोहमत से बचाने का हुनर तो उनको आता ही है.
भविष्य की ऐसी परिस्थितियों से वाकिफ चन्नी और सिद्धू दोनों ही अपने अपने तरीके से पहले से ही पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं - और कुछ ऐसा वैसा हुआ तो खामियाजा भी आखिरकार गांधी परिवार को ही भुगतना है.
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