विधानसभा चुनाव के नतीजे जिस तरह से आ रहे हैं उन्हें देखकर लगता है कि राजस्थान में भाजपा की सरकार बनना अब मुश्किल है और वसुंधरा राजे के दोबारा मुख्यमंत्री बनने की उम्मीदें तो बेहद कम हो गई हैं. कांग्रेस और भाजपा के बीच का ये मुकाबला राजस्थान में बदलकर वसुंधरा खेमा और सचिन पायलट और अशोक गहलोत के खेमें में तब्दील हो गया था. पर ऐसा क्यों? राजस्थान में चुनाव हारने के पीछे कई कारण हैं जो भाजपा को इस राज्य में कमजोर पार्टी बनाते हैं.
5 कारण जो कांग्रेस की जीत की ओर इशारा करते हैं-
1. सत्ता विरोधी लहर-
भाजपा को राजस्थान में सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा. वसुंधरा राजे के प्रति लोगों का गुस्सा बहुत ज्यादा था और यही कारण है कि कांग्रेस को फायदा मिला. यहां भी किसानों और बेरोजगारों ने भाजपा को बेहद बुरे दौर में लाकर खड़ा कर दिया.
2. बड़े चेहरों का फायदा-
कांग्रेस के पास राजस्थान में बहुत बेहतर लीडर्स मौजूद हैं. वहीं भाजपा की तरफ से ऐसा कोई बड़ा लीडर वसुंधरा के अलावा खड़ा नहीं किया जा सका. राजस्थान उन कुछ राज्यों में से एक है जहां अभी भी कांग्रेस के पास लोकप्रिय लीडर्स मौजूद हैं. अशोक सिंह गहलोत पहले भी मुख्य मंत्री रह चुके हैं, सचिन पायलट खुद एक यूनियन मिनिस्टर रह चुके हैं और साथ ही साथ उनके पास विरासत की राजनीति का भी फायदा है क्योंकि वो राजेश और रमा पायलट के बेटे हैं. ऐसे में कांग्रेस को राजस्थान में फायदा मिलना ही था.
3. स्थानीय इलाकों में कांग्रेस की बढ़ती लोकप्रियता-
जैसे ही सचिन पायलट कांग्रेस के राज्य चीफ बने वैसे ही वो अपने काम पर लग गए और धीरे-धीरे कांग्रेस की नींव मजबूत करने में लग गए. उनके कड़े...
विधानसभा चुनाव के नतीजे जिस तरह से आ रहे हैं उन्हें देखकर लगता है कि राजस्थान में भाजपा की सरकार बनना अब मुश्किल है और वसुंधरा राजे के दोबारा मुख्यमंत्री बनने की उम्मीदें तो बेहद कम हो गई हैं. कांग्रेस और भाजपा के बीच का ये मुकाबला राजस्थान में बदलकर वसुंधरा खेमा और सचिन पायलट और अशोक गहलोत के खेमें में तब्दील हो गया था. पर ऐसा क्यों? राजस्थान में चुनाव हारने के पीछे कई कारण हैं जो भाजपा को इस राज्य में कमजोर पार्टी बनाते हैं.
5 कारण जो कांग्रेस की जीत की ओर इशारा करते हैं-
1. सत्ता विरोधी लहर-
भाजपा को राजस्थान में सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा. वसुंधरा राजे के प्रति लोगों का गुस्सा बहुत ज्यादा था और यही कारण है कि कांग्रेस को फायदा मिला. यहां भी किसानों और बेरोजगारों ने भाजपा को बेहद बुरे दौर में लाकर खड़ा कर दिया.
2. बड़े चेहरों का फायदा-
कांग्रेस के पास राजस्थान में बहुत बेहतर लीडर्स मौजूद हैं. वहीं भाजपा की तरफ से ऐसा कोई बड़ा लीडर वसुंधरा के अलावा खड़ा नहीं किया जा सका. राजस्थान उन कुछ राज्यों में से एक है जहां अभी भी कांग्रेस के पास लोकप्रिय लीडर्स मौजूद हैं. अशोक सिंह गहलोत पहले भी मुख्य मंत्री रह चुके हैं, सचिन पायलट खुद एक यूनियन मिनिस्टर रह चुके हैं और साथ ही साथ उनके पास विरासत की राजनीति का भी फायदा है क्योंकि वो राजेश और रमा पायलट के बेटे हैं. ऐसे में कांग्रेस को राजस्थान में फायदा मिलना ही था.
3. स्थानीय इलाकों में कांग्रेस की बढ़ती लोकप्रियता-
जैसे ही सचिन पायलट कांग्रेस के राज्य चीफ बने वैसे ही वो अपने काम पर लग गए और धीरे-धीरे कांग्रेस की नींव मजबूत करने में लग गए. उनके कड़े परिश्रम का नतीजा है कि कांग्रेस को जनवरी बाय-पोल में ही दिख गया था.
4. जाति समीकरण-
कांग्रेस को एक बड़ा फायदा इस बात का भी मिला है कि राजपूत भाजपा से नाराज चल रहे थे. कांग्रेस ने राजपूतों की नव्ज को पकड़ लिया था और उसी समय अन्य जातियों को भी कांग्रेस अपनी तरफ करने में सफल रही थी. उदाहरण के तौर पर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया गया ताकि जाट नाराज न हो जाएं क्योंकि पायलट गुज्जर हैं.
5. अंदरूनी लड़ाई पर लगाम लगाई-
अशोक सिंह गहतोल और सचिन पायलट दोनों ही बड़े लीडर्स हैं और उनके बीच की लड़ाई जगजाहिर है. पर इस इलेक्शन के लिए दोनों ने ही अपने मतभेदों को किनारे कर दिया और एक होकर चुनाव लड़े. राहुल गांधी की रैलियों में अशोक सिंह गहतोल और सचिन पायलट भी एक साथ दिखते थे.
पर भाजपा की हार के क्या कारण हैं?
जिस तरह कांग्रेस की जीत के कुछ अहम कारण हैं उसी तरह भाजपा की हार के भी कुछ खास कारण हैं.
1. किसानों की आत्महत्या और बेरोजगारी-
जैसा की पहले भी कहा गया है भाजपा की हार के पीछे किसानों की आत्महत्या और बेरोजगारी का बहुत गहरा नाता है. जहां सरकार ने कर्ज माफी का तो फैसला लिया, लेकिन इसके लिए कड़ी जांच और शर्तें भी रख दीं. वसुंधरा राजे के खजाने में असल में सारे वादों को पूरा करने के लिए पैसा नहीं था और बढ़ती बेरोजगारी भी सरकार कम करने में कामियाब नहीं रही.
2. वसुंधरा राजे के प्रति गुस्सा-
सत्ता विरोधी लहर की असली वजह वसुंधरा राजे थीं. यहां तक कि खुद भाजपा के विधायक और कार्यकर्ता भी उन्हें घमंडी और वक्त पर उपलब्ध न होने वाली रानी कहते थे. सिर्फ कुछ खास लोगों की ही वसुंधरा सुना करती थीं. इसी के साथ, उनपर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे हैं. उनके खिलाफ नारे भी ऐसे ही लगते आ रहे हैं कि , 'मोदी तुझसे बैर नहीं, रानी तेरी खैर नहीं.'
3. सब्सीडी की छतरी ने सबको बारिश से नहीं बचाया-
एक और अहम कारण राजस्थान में हार का ये रहा है कि वसुंधरा सरकार की सब्सिडी स्कीम में कई लोग हिस्सा नहीं थे. फर्जी लाभकर्ताओं को हटाने के कारण जो अभियान चलाया गया था उसमें कई वैध लाभकर्ता भी अपनी पेंशन, राशन और दवाओं आदि की सब्सिडी और पैसा पाने से वंछित रह गए थे. इसके अलावा, कई को इसीलिए सब्सिडी नहीं मिली थी क्योंकि Point of Sale (PoS) मशीने उनका फिंगरप्रिंट लेने में नाकाम हो गई थीं.
4. जाति और आरक्षण की जंग-
राजपूत जो भाजपा के सबसे अहम वोटर थे वो पद्मावत की रिलीज के कारण पीछे हो गए थे. इसी के साथ, राजपूत लीडर गजेंद्र शेखावत का भाजपा चीफ न बन पाना और गैंगस्टर आनंदपाल सिंह का एनकाउंटर ही राजपूतों को भाजपा के विरुद्ध ले गया. गुज्जर जो शुरू से ही भाजपा के साथ थे उन्हें उनका 5% कोटा नहीं दिया गया जिसका वादा किया गया था.
5. आरएसएस से वसुंधरा राजे का रिश्ता-
वसुंधरा राजे का रिश्ता न तो संघ परिवार के साथ अच्छा था और न ही भाजपा के आलाकमान से. इसके कारण आरएसएस और खुद भाजपा की तरफ से वसुंधरा राजे के लिए जमीन तैयार करने में समय लगाया गया और इसका फायदा मिला कांग्रेस को.
(DailyO से साभार)
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