बजट से पहले ही बीजेपी के लिए बुरी खबर आनी शुरू हो चुकी थी - राजस्थान से भी, और पश्चिम बंगाल से भी. राजस्थान में कांग्रेस तो पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने बीजेपी को पछाड़ दिया है. राजस्थान में बीजेपी की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार है. राजस्थान के नतीजे खुद राहुल गांधी और गुजरात चुनाव में उनके साथ कदम से कदम मिला कर चलने वाले सचिन पायलट और अशोक गहलोत के लिए बेहद खुशनुमा खबर है. सचिन पायलट राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, जब अशोक गहलोत राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.
टीम राहुल के अच्छे दिन...
पश्चिम बंगाल में भी बीजेपी को ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने लाल झंडी दिखा दी है. नवपाड़ा विधानसभा सीट टीएमसी अपने नाम कर चुकी है. साथ ही, उलुबेरिया सीट पर भी कब्जा कायम रखने में कामयाब नजर आ रही है.
बीजेपी के बुरा... तो वसुंधरा के लिए बहुत ही बुरा
उपचुनाव के नतीजों पर अपने पहले रिएक्शन में कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने कहा - 'वसुंधरा राजे की सरकार को लोगों ने नकार दिया है.'
देखा जाये तो वसुंधरा राजे उपचुनावों को लेकर तलवार की धार पर खड़ी रहीं. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने तो उपचुनावों से पूरे तौर पर दूरी बनाये रखी. गुजरात चुनाव के दौरान जहां अहमदाबाद से लेकर राज्य के गली मोहल्लों तक मोदी कैबिनेट ने डेरा डाले रखा, वहीं राजस्थान उपचुनावों के दौरान दिल्ली से कोई झांकने तक न गया. ऐसे देखें तो तीनों उपचुनावों का पूरा दारोमदार सिर्फ और सिर्फ वसुंधरा राजे के कंधों पर ही रहा.
बीजेपी के अच्छे दिन... कितने दिन?
तो क्या समझा जाये बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ऐसा करके आगे के लिए वसुंधरा राजे का टेस्ट ले रहे हैं - और इसी बहाने उन्हें खुद को साबित करने का मौका दे रहे थे? कहने को तो बीजेपी नेता ये भी कह सकते हैं हाल के पंजाब उपचुनाव को लेकर भी उन्होंने तकरीबन यही रवैया अख्तियार किया था, लेकिन क्या दोनों की इस तरह तुलना करना ठीक होगा? पंजाब में तो नहीं लेकिन राजस्थान में तो बीजेपी की ही सरकार है.
जैसे राजस्थान उपचुनावों को बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने ट्रीट किया, अलवर सीट को लेकर वसुंधरा भी उसी अंदाज में पेश आईं. वसुंधरा का अजमेर और मंडलगढ़ पर तो ज्यादा जोर दिखा लेकिन अलवर से उन्होंने भी दूरी बनाये रखी.
अलवर के साथ सौतेले व्यवहार की एक और वजह चर्चा में है. अलवर से बीजेपी उम्मीदवार जसवंत सिंह यादव खुद भी अपनी जीत में दिलचस्पी नहीं ले रहे थे. दरअसल, जसवंत यादव फिलहाल वसुंधरा सरकार में मंत्री हैं और चुनाव जीतने पर उन्हें दिल्ली जाना पड़ता. दिल्ली में मंत्री बनने की गारंटी तो है नहीं. फिर दिल्ली में सांसद बनने से तो बेहतर है जयपुर में ही मंत्री बने रहना. ऐसी चर्चाओं में सच्चाई जितनी भी हो, मौजूदा हालात में फिट तो हो ही जा रही हैं. अब जबकि उम्मीदवार की ही कोई दिलचस्पी न हो, फिर मुख्यमंत्री को क्या पड़ी है.
बंगाल में भी नहीं गली बीजेपी की दाल
पश्चिम बंगाल में टीएमसी से मुकुल रॉय को तोड़ कर लाने के बाद बीजेपी ने बड़े बड़े ख्वाब सजा रखे थे - लेकिन ममता के करिश्मे ने उन्हें हकीकत में फिलहाल तो नहीं ही बदलने दिया.
पंचायत चुनावों से पहले ये उपचुनाव जीतने के लिए सभी दलों ने स्थानीय स्तर पर पूरी ताकत झोंक दी थी. बीजेपी के लिए ये उपचुनाव जहां बंगाल की जमीन पर पांव मजबूत करने का जरिया रहे, वहीं ममता बनर्जी के लिए साख का सवाल. ऊपर से हार का क्रेडिट मुकुल रॉय बड़े आराम से लूट लेते. नुआपाड़ा विधानसभा सीट टीएमसी उम्मीदवार एक लाख से अधिक वोटों से जीतने में कामयाब रहा. बीजेपी के लिए राहत की बाद बस इतनी रही कि नुआपाड़ा में वो दूसरे स्थान पर रही, जबकि शुरुआती रुझानों में वो तीसरे-चौथे पर नजर आने लगी थी.
पिछले विधानसभा चुनाव में टीएमसी उम्मीदवार को हार का मुहं देखना पड़ा था, हालांकि, फासला काफी कम रहा. ये सीट कांग्रेस विधायक मधुसूदन घोष के निधन से खाली हुई थी. पिछले चुनाव में वो कांग्रेस-सीपीएम गठबंधन के उम्मीदवार थे.
ममता का करिश्मा बरकरार
जहां तक उलुबेरिया सीट का सवाल है, वहां 2009 से ही टीएमसी का कब्जा है. ये सीट टीएमसी सांसद सुल्तान अहमद की मौते के कारण खाली हुई थी. ममता बनर्जी ने सुल्तान अहमद की पत्नी सजदा को ही उपचुनाव में उम्मीदवार बनाया था.
कुल मिलाकर देखा जाये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले 2019 में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के चुनौती देने के हिसाब से ये नतीजे काफी महत्वपूर्ण हैं. ये नतीजे साफ कर रहे हैं कि गुजरात में बीजेपी के संघर्ष भरे दिन आगे के दिनों में भी कायम रहने वाले हैं.
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