राजस्थान (Rajasthan) के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट (Deputy CM Sachin Pilot) के बीच टकराव के बाद खतरे में पड़ी प्रदेश की कांग्रेस सरकार (Congress) का खतरा फिलहाल टल गया. मुख्यमंत्री गहलोत ने विधायक दल की बैठक में अपना संख्या बल साबित करने के बाद सचिन पायलेट के मंसूबों का जहाज क्रैश कर दिया. राजस्थान कांग्रेस में फूट के बाद सोशल मीडिया में तरह तरह के मजाक भी हो रहे थे. लोग कह रहे थे कि लड़की विदा होना आम बात है. ख़ास बात ये है कि कांग्रेस की ड्योढी से खानदानी और खूबसूरत लड़को का विदा होना आम बात हो गयी है. मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद अब राजस्थान में सचिन पायलट विदा होने के लिए बोरिया बिस्तर बांध रहे है. लेकिन पायलट कमजोर पड़ गये. मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह वो सरकार. गिराने के लिए अपने पक्ष में पर्याप्त विधायकों का समर्थन नहीं जुटा सके. राजस्थान की सियासत के जादूगर अशोक गहलोत और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के आगे पायलट के दावे फिलहाल फेल हो गये.
कांग्रेस की राजस्थान सरकार गिरने और भाजपा के आंगन में सत्ता की दुल्हन आने के लिए दहेज रूपी विधायकों की संख्या को लेकर जद्दोजेहद फिलहाल थम गयी. अशोक गहलोत ने विधायक दल की बैठक में अपने पक्ष में 102 विधायकों का समर्थन हासिल कर लिया. जबकि बागी सचिन पायलट जो अपने पक्ष में 25 विधायकों का दावा कर रहे थे, ये दावा फिलहाल फेल हो गया.
अब देखना है कि व्हिप का उल्लंघन करने वाले सचिन आगे किस तरह बाजी पलटते हैं. अब कांग्रेस उनके खिलाफ क्या कार्यवाही करती है. उनकी पार्टी समझा बुझा कर मना लेगी, या पायलट खुद सरेंडर कर देंगा या आगे वो बाज़ी पलट देंगे. ये वक्त...
राजस्थान (Rajasthan) के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट (Deputy CM Sachin Pilot) के बीच टकराव के बाद खतरे में पड़ी प्रदेश की कांग्रेस सरकार (Congress) का खतरा फिलहाल टल गया. मुख्यमंत्री गहलोत ने विधायक दल की बैठक में अपना संख्या बल साबित करने के बाद सचिन पायलेट के मंसूबों का जहाज क्रैश कर दिया. राजस्थान कांग्रेस में फूट के बाद सोशल मीडिया में तरह तरह के मजाक भी हो रहे थे. लोग कह रहे थे कि लड़की विदा होना आम बात है. ख़ास बात ये है कि कांग्रेस की ड्योढी से खानदानी और खूबसूरत लड़को का विदा होना आम बात हो गयी है. मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद अब राजस्थान में सचिन पायलट विदा होने के लिए बोरिया बिस्तर बांध रहे है. लेकिन पायलट कमजोर पड़ गये. मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह वो सरकार. गिराने के लिए अपने पक्ष में पर्याप्त विधायकों का समर्थन नहीं जुटा सके. राजस्थान की सियासत के जादूगर अशोक गहलोत और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के आगे पायलट के दावे फिलहाल फेल हो गये.
कांग्रेस की राजस्थान सरकार गिरने और भाजपा के आंगन में सत्ता की दुल्हन आने के लिए दहेज रूपी विधायकों की संख्या को लेकर जद्दोजेहद फिलहाल थम गयी. अशोक गहलोत ने विधायक दल की बैठक में अपने पक्ष में 102 विधायकों का समर्थन हासिल कर लिया. जबकि बागी सचिन पायलट जो अपने पक्ष में 25 विधायकों का दावा कर रहे थे, ये दावा फिलहाल फेल हो गया.
अब देखना है कि व्हिप का उल्लंघन करने वाले सचिन आगे किस तरह बाजी पलटते हैं. अब कांग्रेस उनके खिलाफ क्या कार्यवाही करती है. उनकी पार्टी समझा बुझा कर मना लेगी, या पायलट खुद सरेंडर कर देंगा या आगे वो बाज़ी पलट देंगे. ये वक्त बतायेगा. क्योंकि अभी तक उनके बाग़ी तेवरों और भाजपा की कोशिशों को देखते हुए लग रहा है कि पिक्चर अभी बाकी है.
जानकर अभी भी दावा कर रहे हैं ये पायलट उड़ने की तैयारी कर चुका है. सूत्र बताते हैं कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से उनका संपर्क बना है. जहात लैंड करने के लिए कभी भी उन्हें सिगनल मिल सकता है. गहलोत द्वारा विधायक दल की बैठक में बहुमत साबित करने से पहले कयास लगाये जा रहे थे कि आज ही तीन पीढ़ियों का साथ तोड़कर पायलट कांग्रेस से कह देंगे कि आज तेरह सात को तेरा साथ छोड़ने रहा हूं.
गौरतलब है कि सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ रहे, राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तब भी राजेश पायलट से उनका दोस्ताना रिश्ता था. उनके देहांत के बाद इनके पुत्र सचिन पायलट को कांग्रेस ने बड़ी अहमियत दी थी. वो राहुल गांधी के काफी करीबी रहे. किंतु राजस्थान की सियासत में गहरी पकड़ रखने वाले अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सामंजस्य नहीं स्थापित हो पा रहा था.
एक बुजुर्ग और एक युवा नेता के बीच मतभेद तब से बढ़ गये थे जब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद सचिन मुख्यमंत्री बनना चाहते थे. लेकिन पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने अति वरिष्ठम गहलोत को मुख्यमंत्री बनाना मुनासिब समझा. और सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी से संतोष करना पड़ा.
बताया जाता है कि हाइकमान के इस फैसले से वो संतुष्ट नहीं थे. गहलोत बतौर मुख्यमंत्री और गांधी परिवार के ख़ास होने के नाते उप मुख्यमंत्री सचिन को नजरअंदाज करते रहे. उन्होंने कई बार इशारों इशारों में कहा भी कि सरकार में उनकी एक भी नहीं सुनी जाती.
बस धीरे-धीरे इसी तरह एक युवा और एक बुजुर्ग नेता के बीच मतभेदों की खाई गहरी होती गयी, और नौबत यहां तक आ गयी. इस बीच सचिन और गांधी परिवार के बीच भी पहले जैसे रिश्ते नहीं रहे. अब देखना है कि पायलट की सियासत का जहाज बगावत की उड़ान भरता है या समझौते के ग्राउंड पर ठहर जाता है.
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