राजस्थान उन राज्यों में से एक है, जहां की जनता हर बार अपना मूड बदलती है. 1998 से लेकर अब तक राजस्थान की सत्ता एक बार भाजपा को मिलती है और दूसरी बार कांग्रेस के हाथ जाती है. इस बार भी उम्मीद लगाई जा रही है कि भाजपा का कार्यकाल पूरा हुआ और अब कांग्रेस सत्ता पर काबिज होगी. लेकिन अगर कांग्रेस को 200 सीटों वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव को जीतना है तो इसके लिए कम से कम 8 फीसदी का वोट स्विंग चाहिए होगा, वरना पार्टी जीत का लड्डू नहीं खा पाएगी. खैर, अगर पिछले कुछ चुनावों पर नजर डालें तो जैसा हर बार होता आ रहा है, वैसा इस बार भी होने की संभावनाएं दिखाई दे रही हैं. चलिए एक नजर डालते हैं इन पर.
उपचुनाव में कांग्रेस को फायदा
फरवरी 2018 में राजस्थान में 3 उपचुनाव हुए थे, जिनमें कांग्रेस जीती थी. ये जीत कांग्रेस के लिए बहुत अहम मानी गई, जो भाजपा के लिए किसी झटके से कम नहीं थी. इन उपचुनावों में भाजपा के खिलाफ 17 फीसदी वोट स्विंग हुए. यानी जो वोट भाजपा के पाले में जाने वाले थे, वह उनके खिलाफ चले गए, जिसका फायदा कांग्रेस को मिला.
सत्ताधारी पार्टी को पंचायत चुनाव में झटका
जब 2013 में विधानसभा चुनाव हुए तो भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई. भाजपा ने 163 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस के हाथ सिर्फ 21 सीटें आईं. वहीं 3 बसपा की झोली में गईं और 13 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की. इतनी तगड़ी जीत के बावजूद पंचायत चुनाव में 2017 और 2018 में कांग्रेस ही जीती, भाजपा नहीं. 2017 में कांग्रेस को 55 फीसदी सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा को 41 फीसदी सीटें मिलीं. वहीं 2018 में कांग्रेस सिर्फ 49 फीसदी सीटों पर विजय हासिल कर सकी, लेकिन भाजपा भी 44 फीसदी सीटों तक ही पहुंच सकी. ये...
राजस्थान उन राज्यों में से एक है, जहां की जनता हर बार अपना मूड बदलती है. 1998 से लेकर अब तक राजस्थान की सत्ता एक बार भाजपा को मिलती है और दूसरी बार कांग्रेस के हाथ जाती है. इस बार भी उम्मीद लगाई जा रही है कि भाजपा का कार्यकाल पूरा हुआ और अब कांग्रेस सत्ता पर काबिज होगी. लेकिन अगर कांग्रेस को 200 सीटों वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव को जीतना है तो इसके लिए कम से कम 8 फीसदी का वोट स्विंग चाहिए होगा, वरना पार्टी जीत का लड्डू नहीं खा पाएगी. खैर, अगर पिछले कुछ चुनावों पर नजर डालें तो जैसा हर बार होता आ रहा है, वैसा इस बार भी होने की संभावनाएं दिखाई दे रही हैं. चलिए एक नजर डालते हैं इन पर.
उपचुनाव में कांग्रेस को फायदा
फरवरी 2018 में राजस्थान में 3 उपचुनाव हुए थे, जिनमें कांग्रेस जीती थी. ये जीत कांग्रेस के लिए बहुत अहम मानी गई, जो भाजपा के लिए किसी झटके से कम नहीं थी. इन उपचुनावों में भाजपा के खिलाफ 17 फीसदी वोट स्विंग हुए. यानी जो वोट भाजपा के पाले में जाने वाले थे, वह उनके खिलाफ चले गए, जिसका फायदा कांग्रेस को मिला.
सत्ताधारी पार्टी को पंचायत चुनाव में झटका
जब 2013 में विधानसभा चुनाव हुए तो भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई. भाजपा ने 163 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस के हाथ सिर्फ 21 सीटें आईं. वहीं 3 बसपा की झोली में गईं और 13 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की. इतनी तगड़ी जीत के बावजूद पंचायत चुनाव में 2017 और 2018 में कांग्रेस ही जीती, भाजपा नहीं. 2017 में कांग्रेस को 55 फीसदी सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा को 41 फीसदी सीटें मिलीं. वहीं 2018 में कांग्रेस सिर्फ 49 फीसदी सीटों पर विजय हासिल कर सकी, लेकिन भाजपा भी 44 फीसदी सीटों तक ही पहुंच सकी. ये आंकड़े भी सत्ताधारी पार्टी को टेंशन देने वाले हैं और इस ओर इशारा कर रहे हैं कि आने वाले चुनाव में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ सकता है.
जाति का फैक्टर भी समझ लें
अगर 2013-2014 को आधार मानकर भाजपा की बात करें तो सवर्ण (10%), गुज्जर(9%), राजपूत(8%) और जाट(15%) भाजपा को पसंद करते हैं. जबकि एससी(17%), एसटी(13%), मीना(6%) और मुस्लिम(9%) जाति के लोगों का झुकाव कांग्रेस की ओर देखा गया. माना जा रहा है कि 2018 के विधानसभा चुनावों में इसमें एक बड़ा शिफ्ट देखने को मिल सकता है. अब अगर राजस्थान की राजनीति के इतिहास पर नजर डालें तो यहां सत्ता बारी-बारी भाजपा और कांग्रेस के हाथ जाती है. ऐसे में ये कहा जा सकता है कि जाति के आधार पर भी जो वोट शिफ्ट होंगे वो कांग्रेस का पलड़ा भारी करने का काम करेंगे.
महिलाओं का अहम रोल
2013 के चुनाव में पहली बार महिलाओं ने पुरुषों से भी अधिक वोटिंग की थी. महिलाओं की तरफ से अधिक वोटिंग करने की वजह वसुंधरा राजे का चेहरा भी हो सकता है. उम्मीद की जा रही है कि इस बार और अधिक महिलाएं वोट देंगी. ऐसे में महिलाओं का वोट जिस ओर जाएगा, जीत की संभावनाएं भी उस ओर जाएंगी. आखिर पुरुषों से अधिक वोटिंग टर्नआउट तो महिलाओं का ही है.
भाजपा जीती, तो मोदी-शाह को मिलेगा क्रेडिट
यूं तो इस बार राजस्थान के चुनाव में भाजपा के जीतने की संभावनाएं कम ही हैं, लेकिन जीत का फैसला तो 11 दिसंबर को ही होगा. लोगों के अनुमान और एग्जिट पोल के आंकड़ों को दरकिनार करते हुए पहले भी कई बार चुनावी नतीजों ने लोगों को चौंकाया है. आखिरी बार 1993 में राजस्थान में लगातार दूसरी बार भाजपा जीती थी. ऐसे में अगर इस बार भी भाजपा ही जीत जाती है, तो इसका क्रेडिट मोदी-शाह को जाएगा. वसुंधरा राजे 2013 के विधानसभा चुनावों की तरह जीत का ताज सिर्फ अपने सिर पर नहीं रख पाएंगी, जिसमें उन्होंने आगे रहकर चुनाव प्रचार की कमान संभाली थी और एक के बाद एक कई बैठकें की थीं. पार्टी में वसुंधरा के विरोधियों को समझाने और जनता के बीच राजे के कामों को गिनाने में मोदी-शाह ने अहम भूमिका निभाई है.
खुद अमित शाह भी राजे के लिए समर्थन जुटाने के मकसद से ये बात कह चुके हैं कि वसुंधरा राजे ने राजस्थान में काम तो बहुत किया है, लेकिन वह अपनी मार्केटिंग नहीं कर पाई हैं. हालांकि, राजे अमित शाह की बात से सहमत नहीं दिखीं. वह कहती हैं कि उनके पास इतना समय नहीं है कि वह खुद की मार्केटिंग करती रहें. वह कहती हैं कि या तो वह काम ही कर सकती हैं या फिर मार्केटिंग. वसुंधरा के गुस्सैल स्वभाव और जिद्दीपने की वजह से उनकी अपनी ही पार्टी में बहुत से वरिष्ठ नेता उनसे नाराज भी हुए. 2013 में भी यह उम्मीद की जा रही थी कि राजस्थान का सीएम वसुंधरा राजे के बजाए कोई और हो. पीएम ने तो राजे को यूनियन मिनिस्टर तक बनाने की कोशिश की थी, लेकिन राजे नहीं मानी. शायद पीएम उन्हें रक्षा मंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन राजे को पहली महिला रक्षा मंत्री बनने से अधिक अपने राज्य में रहकर लोगों के जनादेश को स्वीकारना ज्यादा सही लगा. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि इस बार राजस्थान की जनता किसे चुनती है.
करीब महीने भर पहले आए ओपिनियन पोल पर नजर डालें तो उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार भी राजस्थान की राजनीति में चली आ रही परंपरा बदस्तूर जारी रहेगी. यानी इस बार सत्ता कांग्रेस के हाथ जाएगी. अनुमान लगाया जा रहा है कि कांग्रेस को करीब 125 सीटें मिल सकती हैं, जो पूर्ण बहुमत तो होगा ही, साथ ही पिछले साल के मुकाबले 104 सीटों तक का फायदा कांग्रेस को मिल सकता है. वहीं भाजपा के पाले में सिर्फ 67 सीटें जाने का अनुमान लगाया जा रहा है. खैर, राजस्थान में कमल खिलेगा या सत्ता कांग्रेस के हाथ जाएगी, इसका फैसला तो 11 दिसंबर के चुनावी नतीजे कर ही देंगे. लेकिन अगर राजस्थान की राजनीति की परंपरा को तोड़ते हुए इस बार फिर से सत्ता में भाजपा आ जाती है, तो वसुंधरा राजे को पीएम मोदी और अमित शाह को थैंक्यू गिफ्ट तो देना ही चाहिए.
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