राजस्थान में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधायक हेमाराम चौधरी के इस्तीफे के बाद प्रदेश में फिर से सियासी पारा चढ़ने लगा है. सचिन पायलट खेमे के कई विधायकों ने विधायकों ने अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ फिर से आवाज बुलंद कर रहे हैं. राजस्थान में एक बार फिर से सिर फुटव्वल की स्थिति बनती नजर आ रही है. बीते साल सचिन पायलट के खेमे वाले विधायकों के बागी हो जाने की वजह से गहलोत सरकार अल्पमत में आ गई थी. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और कांग्रेस के कद्दावर नेता अहमद पटेल ने उस बगावत को जैसे-तैसे शांत कर दिया था. लेकिन, हेमाराम चौधरी के इस्तीफे के बाद राजस्थान में माहौल बिगड़ने के संकेत मिलने लगे हैं. शीर्ष नेतृत्व पहले से ही जी-23 नेताओं और पंजाब में चल रही खींचतान में फंसा हुआ है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि नए सिरे से बगावत का इशारा सचिन पायलट को भाजपा का संकेत तो नहीं है?
कांग्रेस आलाकमान दे रहा गहलोत को तवज्जो
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बीते साल जिस तरह से कांग्रेस सरकार बचाई थी, कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें तब से ही तवज्जो देना शुरू कर दिया था. विधानसभा में बहुमत साबित करने के दौरान सचिन पायलट को आखिरी लाइन में बैठाना हो या शब्दबाणों से लगातार पायलट खेमे के विधायकों को चुनौती हो, अशोक गहलोत के हर वार पर कांग्रेस आलाकमान ने मौन सहमति दी हुई है. यही वजह है कि एक समाचार पत्र को दिए गए इंटरव्यू में राजस्थान के प्रभारी और दिग्गज कांग्रेस नेता अजय माकन ने साफ लहजे में कह दिया कि सचिन पायलट पार्टी के लिए एसेट है, लेकिन पार्टी किसी की उम्मीद के हिसाब से फैसला नहीं करती है. कांग्रेस आलाकमान का सचिन पायलट को बहुत स्पष्ट संदेश है कि राजस्थान में अशोक गहलोत का कद काफी ऊंचा है.
राजस्थान में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधायक हेमाराम चौधरी के इस्तीफे के बाद प्रदेश में फिर से सियासी पारा चढ़ने लगा है. सचिन पायलट खेमे के कई विधायकों ने विधायकों ने अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ फिर से आवाज बुलंद कर रहे हैं. राजस्थान में एक बार फिर से सिर फुटव्वल की स्थिति बनती नजर आ रही है. बीते साल सचिन पायलट के खेमे वाले विधायकों के बागी हो जाने की वजह से गहलोत सरकार अल्पमत में आ गई थी. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और कांग्रेस के कद्दावर नेता अहमद पटेल ने उस बगावत को जैसे-तैसे शांत कर दिया था. लेकिन, हेमाराम चौधरी के इस्तीफे के बाद राजस्थान में माहौल बिगड़ने के संकेत मिलने लगे हैं. शीर्ष नेतृत्व पहले से ही जी-23 नेताओं और पंजाब में चल रही खींचतान में फंसा हुआ है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि नए सिरे से बगावत का इशारा सचिन पायलट को भाजपा का संकेत तो नहीं है?
कांग्रेस आलाकमान दे रहा गहलोत को तवज्जो
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बीते साल जिस तरह से कांग्रेस सरकार बचाई थी, कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें तब से ही तवज्जो देना शुरू कर दिया था. विधानसभा में बहुमत साबित करने के दौरान सचिन पायलट को आखिरी लाइन में बैठाना हो या शब्दबाणों से लगातार पायलट खेमे के विधायकों को चुनौती हो, अशोक गहलोत के हर वार पर कांग्रेस आलाकमान ने मौन सहमति दी हुई है. यही वजह है कि एक समाचार पत्र को दिए गए इंटरव्यू में राजस्थान के प्रभारी और दिग्गज कांग्रेस नेता अजय माकन ने साफ लहजे में कह दिया कि सचिन पायलट पार्टी के लिए एसेट है, लेकिन पार्टी किसी की उम्मीद के हिसाब से फैसला नहीं करती है. कांग्रेस आलाकमान का सचिन पायलट को बहुत स्पष्ट संदेश है कि राजस्थान में अशोक गहलोत का कद काफी ऊंचा है.
पंजाब और राजस्थान एक ही राह पर
ये ठीक वैसे ही है जैसा आजकल पंजाब में चल रहा है. कांग्रेस के विधायक नवजोत सिंह सिद्धू ने उप मुख्यमंत्री पद पाने के लिए पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. सिद्धू को समझाने की नाकाम कोशिश के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत को कहना पड़ा कि पंजाब में अमरिंदर सिंह के हिसाब से ही चलना होगा. पंजाब में अमरिंदर सिंह और राजस्थान में अशोक गहलोत काफी दबदबे वाले नेता माने जाते हैं. इन दोनों के बारे में ही कहा जाता है कि पसंद न आने पर ये पार्टी आलाकमान का फैसला भी बदलने की ताकत रखते हैं. नवजोत सिंह सिद्धू जिस तरह से अमरिंदर सिंह पर अकाली दल से सांठगांठ के आरोप लगाते हैं. वैसे ही आरोप अशोक गहलोत पर वसुंधरा राजे को लेकर भी लगाए जाते हैं.
गहलोत खेमे में भी फूटे नाराजगी के सुर
हेमाराम चौधरी के इस्तीफे को राजस्थान में सियासी संकट की ठंडी पड़ चुकी राख से निकली चिंगारी कहा जा सकता है. सचिन पायलट के खेमे के तमाम विधायक एक बार फिर से गहलोत सरकार की कार्यप्रणाली पर मुखर हो गए हैं. इन विधायकों का आवाज उठाना समझ में आता है, लेकिन गहलोत खेमे के भी विधायक पार्टी और सरकार पर सवाल खड़े कर रहे हैं. पचपदरा विधायक मदन प्रजापत ने हेमाराम चौधरी के इस्तीफे के बहाने बिना नाम लिए गहलोत सरकार के मंत्री हरीश चौधरी पर निशाना साध दिया. मदन प्रजापत कहते नजर आए कि हेमाराम चौधरी एक भावुक और सीनियर नेता है. उनके इस्तीफे पर हाईकमान को सोचना होगा. कई विधायक दबी जुबान में पहले भी आरोप लगा चुके हैं कि गहलोत सरकार के मंत्री विपक्ष के नेताओं के कामों पर अपने विधायकों से ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. पिछले विधानसभा सत्र में गहलोत और पायलट खेमों के कई विधायक अपनी ही सरकार पर सवाल उठाते नजर आए थे. हेमाराम चौधरी ने तो सड़क निर्माण के कार्य में घोटाले की बात तक कह दी थी.
पायलट की कैबिनेट से दूरी बन रही खींचतान की वजह
राजस्थान में लंबे समय से मंत्रिमंडल विस्तार रुका हुआ है और फिलहाल अभी यह होता भी नही दिख रहा है. पायलट खेमे के विधायक ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थे. हेमाराम चौधरी के इस्तीफे ने इन विधायकों अपनी पीड़ा कांग्रेस आलाकमान तक पहुंचाने का मौका दे दिया है. वैसे, अजय माकन ने कह दिया है है कि कांग्रेस सरकार को बनाने में सचिन पायलट का योगदान रहा है. इसे ध्यान में रखते हुए आने वाले समय में उन्हें भूमिका सौंपी जाएगी. लेकिन, ऐसा लग रहा है कि यह भूमिका अशोक गहलोत को पसंद नहीं आ रही है. पिछले साल हुई बगावत के बाद से ही अशोक गहलोत ने पायलट खेमे को हाशिये पर रखा हुआ है. प्रदेश संगठन पर भी गोविंद सिंह डोटसारा के रूप में अशोक गहलोत का ही कब्जा है. गहलोत किसी भी हाल में सचिन को दोबारा उप मुख्यमंत्री पद देने के हक में नही हैं.
भाजपा की डगर पायलट के लिए कठिन
असम में हिमंता बिस्व सरमा को सीएम बनाकर भाजपा ने कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष में महत्वाकांक्षाएं रखने वालों को अप्रत्यक्ष रूप से निमंत्रण दे दिया हो. लेकिन, राजस्थान में भाजपा की ये मंशा आसानी से पूरी नहीं होगी. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपने लिए अभी से प्रेशर पॉलिटिक्स की जौर-आजमाइश में लगी हैं. राज्य के भाजपा नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से इस बाबत मुलाकात भी कर चुके हैं. लेकिन, वसुंधरा राजे पर कोई दबाव बनता दिख नहीं रहा है. अमित शाह से उनकी अदावत जगजाहिर है. वैसे, हो सकता है कि कांग्रेस से भाजपा में आए उनके भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया को समझाइश के लिए आगे किया जाए, लेकिन वसुंधरा राजे हैं तो उनकी बुआ ही. 2023 में भाजपा उनके बिना राज्य के विधानसभा चुनाव में जाती है, तो एक बार फिर से कांग्रेस की सरकार बनने का खतरा है. ज्योतिरादित्य राजे के साथ सचिन पायलट की नजदीकियों से भाजपा में जगह बन सकती है, लेकिन यहां भी उन्हें उप मुख्यमंत्री का पद ही मिलेगा.
सचिन पायलट के पास खास विकल्प नहीं
राजस्थान में चल रही प्रेशर पॉलिटिक्स की कहानी का 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले शायद ही कोई अंत दिखे. फिलहाल तो भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इससे जूझ रही हैं. गहलोत सरकार के गले में 'ऑपरेशन लोटस' का फंदा शायद ही पड़े. लेकिन, सचिन पायलट के लिए बागियों के साथ अशोक गहलोत के समानांतर पार्टी खड़ी करना बड़ी चुनौती होगी. भविष्य में अगर वो ऐसा करने की सोचते भी हैं, तो उनका हाल भी चिराग पासवान जैसा हो सकता है. भाजपा और कांग्रेस जैसे राजनीति के दो बड़े पाटों के बीच में सचिन पायलट बुरी तरह पिस जाएंगे. 'न माया मिलेगी, न राम'.
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