लखनऊ (सरोजिनीनगर) सीट से स्वाति सिंह (Swati Singh) का टिकट काट कर राजेश्वर सिंह (Rajeshwar Singh) को दे दिया गया है, ऐसी हर तरफ चर्चा है. चाय-पान की दुकानों पर चर्चा के लिए तो ये सब ठीक है, लेकिन ऐसा कहना या समझना पॉलिटिकली करेक्ट नहीं लगता - राजनीति में गणित महत्वपूर्ण है, लेकिन मैथ्स का आधार कभी पॉलिटिक्स नहीं होती.
टिकट कटने के बाद एक और चर्चा है. स्वाति सिंह के नाराज होकर समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर लेने की. कहा तो ये भी जाने लगा है कि ऐसा करके अखिलेश यादव बीजेपी से अपर्णा यादव को बदला ले लेंगे.
ये कहना भी ठीक नहीं लगता. बेशक स्वाति सिंह को गहरा धक्का लगा होगा. पांच साल तक मंत्री रहने के बाद ये स्वाभाविक भी है. स्वाति सिंह राज्य मंत्री रहीं, लेकिन स्वतंत्र प्रभार. तमाम विधायक तरस कर रह जाते हैं, स्वाति सिंह तो एक बार कुर्सी पर बैठीं तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ कार्यकाल भी पूरा कर रही हैं.
अव्वल तो अखिलेश यादव पहले से ही बीजेपी से आने वालों के लिए नो-एंट्री का बोर्ड लगा चुके हैं, लेकिन स्वाति सिंह के मामले में कहीं म्युचुअल बेनिफिट जैसा कुछ लगता भी है, तो भी वो अपर्णा यादव का बदला नहीं होगा. बल्कि, वो स्वामी प्रसाद मौर्य के हिस्से का ही बैलेंस ट्रांसफर होगा. अखिलेश यादव ने तो स्वामी प्रसाद मौर्य की सीट भी बदल डाली है - मौर्य को कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से सपा उम्मीदवार बनाया है. स्वामी प्रसाद मौर्य 2017 में बीजेपी के टिकट पर पड़रौना सीट से चुनाव जीते थे.
वैसे स्वाति सिंह भी समाजवादी पार्टी के लिए बस उतने ही काम की हैं, जितनी अपर्णा यादव. जैसे अपर्णा यादव बीजेपी की तरफ से बढ़ चढ़ कर बोलने लगी हैं, स्वाति सिंह भी वैसी ही बातें कर सकती हैं. हो सकता है तेवर थोड़े और भी तीखे हों. नमूना तो तभी देखने को मिल गया था जब घर से बाहर कदम ही रखी थीं.
बीजेपी अपर्णा यादव का इस्तेमाल तो करने लगी है, लेकिन बदले अभी तक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू को कुछ मिला भी, अभी तक सार्वजनिक तौर पर तो कुछ नजर नहीं...
लखनऊ (सरोजिनीनगर) सीट से स्वाति सिंह (Swati Singh) का टिकट काट कर राजेश्वर सिंह (Rajeshwar Singh) को दे दिया गया है, ऐसी हर तरफ चर्चा है. चाय-पान की दुकानों पर चर्चा के लिए तो ये सब ठीक है, लेकिन ऐसा कहना या समझना पॉलिटिकली करेक्ट नहीं लगता - राजनीति में गणित महत्वपूर्ण है, लेकिन मैथ्स का आधार कभी पॉलिटिक्स नहीं होती.
टिकट कटने के बाद एक और चर्चा है. स्वाति सिंह के नाराज होकर समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर लेने की. कहा तो ये भी जाने लगा है कि ऐसा करके अखिलेश यादव बीजेपी से अपर्णा यादव को बदला ले लेंगे.
ये कहना भी ठीक नहीं लगता. बेशक स्वाति सिंह को गहरा धक्का लगा होगा. पांच साल तक मंत्री रहने के बाद ये स्वाभाविक भी है. स्वाति सिंह राज्य मंत्री रहीं, लेकिन स्वतंत्र प्रभार. तमाम विधायक तरस कर रह जाते हैं, स्वाति सिंह तो एक बार कुर्सी पर बैठीं तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ कार्यकाल भी पूरा कर रही हैं.
अव्वल तो अखिलेश यादव पहले से ही बीजेपी से आने वालों के लिए नो-एंट्री का बोर्ड लगा चुके हैं, लेकिन स्वाति सिंह के मामले में कहीं म्युचुअल बेनिफिट जैसा कुछ लगता भी है, तो भी वो अपर्णा यादव का बदला नहीं होगा. बल्कि, वो स्वामी प्रसाद मौर्य के हिस्से का ही बैलेंस ट्रांसफर होगा. अखिलेश यादव ने तो स्वामी प्रसाद मौर्य की सीट भी बदल डाली है - मौर्य को कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से सपा उम्मीदवार बनाया है. स्वामी प्रसाद मौर्य 2017 में बीजेपी के टिकट पर पड़रौना सीट से चुनाव जीते थे.
वैसे स्वाति सिंह भी समाजवादी पार्टी के लिए बस उतने ही काम की हैं, जितनी अपर्णा यादव. जैसे अपर्णा यादव बीजेपी की तरफ से बढ़ चढ़ कर बोलने लगी हैं, स्वाति सिंह भी वैसी ही बातें कर सकती हैं. हो सकता है तेवर थोड़े और भी तीखे हों. नमूना तो तभी देखने को मिल गया था जब घर से बाहर कदम ही रखी थीं.
बीजेपी अपर्णा यादव का इस्तेमाल तो करने लगी है, लेकिन बदले अभी तक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू को कुछ मिला भी, अभी तक सार्वजनिक तौर पर तो कुछ नजर नहीं आया है.
बीजेपी से टिकट मिलने पर अपर्णा यादव अपने अखिलेश भैया के खिलाफ भी मैदान में उतरने की बात कर रही थीं. बीजेपी ने वहां से केंद्रीय कानून राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल को उतार दिया.
रही बात लखनऊ कैंट सीट की तो वहां से भी बीजेपी ने योगी सरकार में ही मंत्री ब्रजेश पाठक को उम्मीदवार बना दिया है. न तो वो सीट अपर्णा यादव को मिली न ही रीता बहुगुणा जोशी के हिस्से. रीता बहुगुणा ने 2017 में अपर्णा को ही हराया था, लेकिन संसद पहुंच जाने के बाद वो अपना इलाका बेटे के नाम करना चाहती हैं. बीजेपी में तो बात नहीं बनी, आगे का अभी किसी को नहीं मालूम.
स्वाति सिंह तो, दरअसल, दयाशंकर सिंह (Daya Shankar Singh) के हिस्से का मुआवजा रहीं - अब मुआवजा तो एक ही बार मिलता है, कोई जिंदगी भर थोड़े ही मिलता रहता है. मायावती के वोटर नाराज न हो जायें, इसलिए दया शंकर सिंह को कुछ टाइम के लिए दूर कर दिया गया था - और तब तक भरपाई के लिए स्वाति सिंह को ड्यूटी पर तैनात कर दिया गया था.
स्वामी प्रसाद मौर्य एंड कंपनी के बीजेपी छोड़ कर जाने के बाद दयाशंकर सिंह फिर से मोर्चे पर डट गये हैं - फिर तो घर संभालने के लिए स्वाति सिंह को तो लौटना ही था. फिलहाल दयाशंकर सिंह बीजेपी के ओबीसी मोर्चा का काम देख रहे हैं. हाल फिलहाल वो ओम प्रकाश राजभर को बीजेपी में लाने की कोशिश कर रहे थे. ओम प्रकाश राजभर ने ये बात कंफर्म तो की थी, लेकिन बोले कि दया शंकर सिंह अपने लिए टिकट मांग रहे थे.
कहने को तो राजेश्वर सिंह पुलिस सेवा से वीआरएस लेकर बीजेपी के उम्मीदवार बने हैं - लेकिन जिस तरीके से स्वाति सिंह को लौटना पड़ा है, असल में तो वहीवीआरएस जैसा लगता है!
जैसे जमीन पर पैर ही नहीं पड़ रहे थे
20 जुलाई 2016 को दया शंकर सिंह ने बीएसपी नेता मायावती को लेकर एक विवादित बयान दिया था. मायावती पर टिकट बेचने के आरोप तो पहले भी कई नेता लगाते रहे, लेकिन दयाशंकर सिंह सारी हदें पार कर गये थे. बीजेपी बैकफुट पर आ गयी - और दयाशंकर को पार्टी से निकाल दिया गया.
तभी लखनऊ के हजरतगंज चौराहे पर बीएसपी के नेताओं ने पहुंच कर काफी शोर मचाया. तब बीएसपी में रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी कई साथी नेताओं के साथ नारेबाजी करने लगे. बीएसपी नेताओं पर जो आरोप लगे उसके मुताबिक वहां नारेबाजी हो रही थी - ‘दयाशंकर सिंह की मां को पेश करो, बहन को पेश करो, बेटी को पेश करो.’
बीएसपी नेताओं को ये हरकत भारी पड़ी दयाशंकर सिंह की मां ने पुलिस में शिकायत दर्ज करायी और स्वाति सिंह मोर्चे पर आ डटीं. स्वाति सिंह की बातों ने लोगों का ध्यान खींचा और मौके की नजाकत को भांपते हुए बीजेपी ने लखनऊ से टिकट देकर चुनाव मैदान में उतार दिया.
चुनाव जीत कर स्वाति सिंह मंत्री बन गयीं: लोगों की सहानुभूति और मोदी लहर में स्वाति सिंह चुनाव भी जीत गयीं और बीजेपी की सरकार बनी तो मंत्री भी बना दी गयीं.
चुनाव लड़ने से पहले तक स्वाति सिंह का राजनीति से उतना ही मतलब रहा जितना किसी भी नेता की पत्नी का होता है. सच तो यही है कि उनको जो कुछ भी मिला वो दयाशंकर सिंह की पत्नी होने और मौके की राजनीति की बदौलत ही मिला.
हो सकता है, वो रीता बहुगुणा जोशी जितनी सक्षम होतीं तो लोक सभा भेज कर पहले ही पैदल कर दिया गया होता, लेकिन स्वाति सिंह को वीआरएस देने के लिए बीजेपी को लंबा इंतजार करना पड़ा. अब चूंकि दयाशंकर सिंह काफी दिनों से रूटीन के काम देखने लगे हैं, स्वाति की जरूरत खत्म हो चुकी है.
हो सकता है बीजेपी को लगा हो कि अगर फिर से टिकट दिया जाये तो स्वाति सिंह की जीत सुनिश्चित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ सकता है, लिहाजा पहले विश्वास किया, फिर इस्तेमाल किया और अब काम हो गया तो हाथ खींच लिया.
राजनीति को हल्के में ले लिया: स्वाति सिंह को सब कुछ बड़ी आसानी से मिल गया और शायद राजनीति को हल्के में ले बैठीं. स्वाति सिंह को लेकर कई विवाद हुए, लेकिन न तो हैंडल कर पायीं, न ही सबक ले सकीं.
1. स्वाति सिंह के मंत्री पद की शपथ लेने के कुछ ही दिन वाद काफी बवाल मचा, जब वो गोमती नगर में एक बीयर शॉप का उद्घाटन करने पहुंच गयीं. मंत्री बने बमुश्किल दो महीने हुए होंगे.
2. एक नायब तहसीलदार के साथ स्वाति सिंह की गर्मागर्म बहस का वीडियो वायरल हुआ था. जिस अफसर को मंत्री भ्रष्ट बता रही थीं, उसका जवाबी इल्जाम रहा कि वो अवैध खनन के मामले में उसके एक्शन से नाराज थीं. ऐसे ही बाल पुष्टाहार विभाग के प्रमुख सचिव के साथ एक बड़े टेंडर को लेकर भी काफी बवाल मचा था.
3. स्वाति सिंह का एक और वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वो एक पुलिस अफसर को फटकार लगा रही थीं. तब स्वाति सिंह पर बिल्डर का पक्ष लेने का आरोप लगा था.
मौके का पूरा फायदा नहीं उठा सकीं: सबसे बड़ी बात तो ये थी कि बड़ी ही प्रतिकूल परिस्थितियों में स्वाति सिंह को बीजेपी में इतना बड़ा मौका मिला था. ये भी उसी चुनाव की बात है जब सात बार लगातार विधायक रहे श्यामदेव रॉय चौधरी का बनारस में टिकट काट दिया गया था - और स्वाति सिंह को मंत्री भी बनाया गया.
होना तो ये चाहिये था कि स्वाति सिंह खुद को साबित करतीं. स्वाति सिंह को पूरा मौका मिला था, लेकिन वो मौके का बिलकुल भी फायदा नहीं उठा सकीं. वो तो लगता है जैसे जो जो होता गया बस होने दीं. ऐसा लगता है जो जो उनके सलाहकार बताते गये आंख मूंद कर करती गयीं. स्वाति सिंह ने कभी सूझ बूझ से काम ही नहीं लिया.
क्या दयाशंकर की भी कोई भूमिका है?
स्वाति सिंह की जगह राजेश्वर सिंह को टिकट दे दिया जाने के बाद उनके सरकारी आवास के बाहर सन्नाटा पसरा हुआ देखा गया. ध्यान देने वाली बात ये रही कि दयाशंकर सिंह के घर पर जश्न जैसा माहौल था - आखिर माजरा क्या है?
1. मारपीट वाली वो बातें: एक और ऑडियो वायरल हुआ था, जिसमें किसी व्यक्ति के साथ स्वाति सिंह की बातचीत सुनी गयी थी. बताते हैं कि बातचीत में स्वाति सिंह ने अपने पति पर मारपीट के आरोप लगा रही थीं.
कुछ बातें जो चर्चित रहीं, दयाशंकर के बारे में स्वाति सिंह कह रही थीं, देखिये... क्या है... मेरी थोड़ी स्थिति अलग है... अगर उसे पता चलेगा तो वो आदमी मुझको भी मारना पीटना शुरू कर देगा... चीजें बहुत खराब हैं...'
दूसरी तरफ से दिलासा देते सुना गया, 'मेरी आपसे सहानुभूति है... क्योंकि आपने अपने दम पर राजनीति शुरू की... उनका कोई योगदान नहीं है.'
सच जो भी हो, लेकिन थोड़ा सा भी धुआं कहीं बगैर आग के तो नहीं निकलता - अगर ऑडियो क्लिप सही है, तो स्वाति सिंह को भी ऐसी सलाहियत से परहेज करना चाहिये था कि वो अपने बूते राजनीति में आयीं और मंत्री बनीं. जो भी हो लेकर सब कुछ सही तो नहीं ही चल रहा है, लगता तो ऐसा ही है.
2. दयाशंकर के चेहरे पर खुशी: आज तक के साथ बातचीत में दयाशंकर सिंह ने आपसी लड़ाई की चर्चाओं को खारिज कर दिया है. कहते हैं कि ऐसी बात नहीं है कि पति पत्नी के झगड़े की वजह से राजेश्वर सिंह को उम्मीदवार बनाया गया है.
दयाशंकर सिंह का कहना है, पार्टी जिसे समझती है कि वो चुनाव में जीत दिला सकता है, टिकट उसे ही दिया जाता है. राजेश्वर सिंह को टिकट देने का फैसला पार्टी ने लिया है.
क्या दयाशंकर सिंह को भी लग रहा था कि स्वाति सिंह अपना सीट नहीं बचा पातीं? और बीजेपी ने इसीलिए टिकट नहीं दिया.
कुछ दिन पहले ये भी खबर आयी थी कि पत्नी की जगह दयाशंकर सिंह उसी सीट से अपने लिये बीजेपी का टिकट चाहते हैं - क्या दयाशंकर सिंह को पहले ही ऐसी आशंका हो गयी थी?
या फिर वो स्वाति सिंह की जगह अपने लिए बीजेपी का टिकट लेना चाहते थे?
स्वाति सिंह को फिर से टिकट न मिलने को लेकर रिएक्शन मांगने पर दयाशंकर सिंह बेहद खुश नजर आये - आखिर चेहरे पर उभरी खुशी का राज क्या हो सकता है?
क्या दयाशंकर सिंह वास्तव में जो हुआ उससे खुश हैं? आखिर क्या गम है जिसे दयाशंकर सिंह छुपाने की कोशिश कर रहे हैं - कहीं सारी चीजों के सूत्रधार दयाशंकर सिंह ही तो नहीं हैं?
इन्हें भी पढ़ें :
Nida Khan-Aparna Yadav: बहुओं की क्रांति कहीं 'ससुरों' की राजनीति खराब न कर दे!
कोई BSP को भाजपा की B टीम कहे या C टीम, मायावती वैसे ही लड़ रही हैं जैसे लड़ना चाहिए!
शायर अच्छे थे मुनव्वर राणा, भाजपा-योगी विरोध ने उम्र भर का मुसाफिर बना दिया!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.