राज्य सभा में इस चुनाव की अहमियत सबसे ज्यादा सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी पार्टी कांग्रेस के लिए है. ये बात अलग है कि इस चुनाव के बाद भी बीजेपी राज्य सभा में बहुमत हासिल नहीं कर पाएगी. हालांकि, सच ये भी है कि कांग्रेस काफी कमजोर जरूर हो जाएगी.
राज्य सभा के लिए 33 उम्मीदवार निर्विरोध चुने जा चुके हैं, इसलिए सिर्फ 25 सीटों पर चुनाव और केरल की एक सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं. होने को तो ये चुनाव देश के कई राज्यों में हो रहे हैं लेकिन मामला ज्यादा दिलचस्प यूपी में हो गया है. यूपी में भी बीजेपी के 8 उम्मीदवारों की जीत तय है, सारी कवायद नौंवे उम्मीदवार को लेकर है. लिहाजा, बीजेपी के मुकाबले समाजवादी पार्टी और बीएसपी सीधी लड़ाई में आ गये हैं. बाकी चुनावों की तरह कांग्रेस एक बार फिर सीन से नदारद है.
जो निर्विरोध चुने गये
राज्य सभा के लिए निर्विरोध चुने जाने वालों में सबसे ज्यादा बीजेपी के ही हैं - 17. बीजेपी के अलावा कांग्रेस के 4, बीजेडी के 3, आरजेडी के 2, टीडीपी के 2, जेडीयू के 2 के अलावा शिवसेना, एनसीपी और वाईआरएस कांग्रेस के 1-1 उम्मीदवार शामिल हैं.
बीजेपी का होने के नाते बगैर चुनाव लड़े संसद पहुंचने वालों में 7 मोदी सरकार के मंत्री हैं - रविशंकर प्रसाद, धर्मेंद्र प्रधान, थावरचंद गहलोत, जेपी नड्डा, प्रकाश जावड़ेकर, मनसुखभाई मांडविया और पुरुषोत्तम रूपाला.
चुन चुन कर बीजेपी का बदला
जेल में बंद मुक्तार अंसारी और हरिओम यादव को वोट देने की अनुमति न मिलने से बीजेपी विरोधी खेमे को धक्का तो लगा ही, ऊपर से बीएसपी विधायक अनिल सिंह ने जोरदार झटका दिया. नरेश अग्रवाल के बीजेपी में जाने के बाद उनके बेटे नितिन का पाला बदलना भी पक्का था. नतीजा...
राज्य सभा में इस चुनाव की अहमियत सबसे ज्यादा सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी पार्टी कांग्रेस के लिए है. ये बात अलग है कि इस चुनाव के बाद भी बीजेपी राज्य सभा में बहुमत हासिल नहीं कर पाएगी. हालांकि, सच ये भी है कि कांग्रेस काफी कमजोर जरूर हो जाएगी.
राज्य सभा के लिए 33 उम्मीदवार निर्विरोध चुने जा चुके हैं, इसलिए सिर्फ 25 सीटों पर चुनाव और केरल की एक सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं. होने को तो ये चुनाव देश के कई राज्यों में हो रहे हैं लेकिन मामला ज्यादा दिलचस्प यूपी में हो गया है. यूपी में भी बीजेपी के 8 उम्मीदवारों की जीत तय है, सारी कवायद नौंवे उम्मीदवार को लेकर है. लिहाजा, बीजेपी के मुकाबले समाजवादी पार्टी और बीएसपी सीधी लड़ाई में आ गये हैं. बाकी चुनावों की तरह कांग्रेस एक बार फिर सीन से नदारद है.
जो निर्विरोध चुने गये
राज्य सभा के लिए निर्विरोध चुने जाने वालों में सबसे ज्यादा बीजेपी के ही हैं - 17. बीजेपी के अलावा कांग्रेस के 4, बीजेडी के 3, आरजेडी के 2, टीडीपी के 2, जेडीयू के 2 के अलावा शिवसेना, एनसीपी और वाईआरएस कांग्रेस के 1-1 उम्मीदवार शामिल हैं.
बीजेपी का होने के नाते बगैर चुनाव लड़े संसद पहुंचने वालों में 7 मोदी सरकार के मंत्री हैं - रविशंकर प्रसाद, धर्मेंद्र प्रधान, थावरचंद गहलोत, जेपी नड्डा, प्रकाश जावड़ेकर, मनसुखभाई मांडविया और पुरुषोत्तम रूपाला.
चुन चुन कर बीजेपी का बदला
जेल में बंद मुक्तार अंसारी और हरिओम यादव को वोट देने की अनुमति न मिलने से बीजेपी विरोधी खेमे को धक्का तो लगा ही, ऊपर से बीएसपी विधायक अनिल सिंह ने जोरदार झटका दिया. नरेश अग्रवाल के बीजेपी में जाने के बाद उनके बेटे नितिन का पाला बदलना भी पक्का था. नतीजा ये हुआ कि समाजवादी पार्टी और बीएसपी के दो-दो वोट यूं ही घट गये.
उन्नाव की पुरवा विधानसभा सीट से बीएसपी विधायक अनिल सिंह ने वोट डालने से पहले ही ऐलान कर दिया - वो तो महाराजजी के साथ हैं. योगी आदित्यनाथ के प्रति श्रद्धा भाव रखने वाले उन्हें ऐसे ही संबोधित करते हैं. बीजेपी ने इस तरह बीएसपी को बड़ी चोट दी.
निर्दल विधायक राजा भैया ने कुछ देर सस्पेंस जरूर बनाये रखा, लेकिन एक ट्वीट के जरिये मन की बात भी कह डाली. सीधे सीधे तो बस इतना ही कहा कि बीएसपी के साथ तो वो कतई नहीं जाने वाले हैं. वैसे भी वो मायावती राज में अपने खिलाफ हुए सरकारी एक्शन को कैसे भूल सकते हैं?
किसे क्या हासिल?
अब सवाल ये है कि इतनी जोड़ तोड़ के बाद किसे क्या हासिल होने वाला है? क्या सिर्फ बीजेपी ही फायदे में रहेगी? क्या अखिलेश यादव और मायावती को ज्यादा नुकसान होगा? ऐसा बिलकुल नहीं है. मिलना सबको कुछ न कुछ है, लेकिन बीजेपी की मुश्किल अभी नहीं खत्म होने वाली - तमाम तिकड़क के बावजूद बीजेपी को राज्य सभा में बहुमत नहीं हासिल होने वाला.
बीएसपी विधायक के साथ छोड़ देने के बावजूद मायावती से ज्यादा अखिलेश यादव को नुकसान होने वाला है. वैसे भी मायावती रिटर्न गिफ्ट में अखिलेश यादव से एकलव्य जैसा अंगूठा मांग चुकी हैं. अखिलेश को भी मालूम है कि मायावती को 10 निष्ठावान विधायक दे देना कितना जोखिमभरा है, फिर भी आने वाले दिनों में चुनाव के मैदान में उतरने के लिए जो जरूरी है वो तो करना ही है. अगर जया बच्चन की जगह बीएसपी कैंडिडेट भीमराव अंबेडकर की जीत अखिलेश यादव पक्की कर देते हैं, तो सौदा ज्यादा बुरा नहीं समझा जाएगा. फिर फैसला दलितों के हित में बताया जा सकेगा - और चुनावों में फायदे की उम्मीद भी की जानी चाहिये.
बीजेपी के हिसाब से राज्य सभा के आंकड़े देखें तो उसके 17 उम्मीवार निर्विरोध जीत चुके हैं. साथ ही, यूपी से 8 के अलावा कर्नाटक, झारखंड और छत्तीसगढ़ से 1-1 उम्मीदवार की जीत तय है. यानी अब तक बीजेपी के कुल 28 उम्मीदवारों की सीट पक्की हो चुकी है. अगले महीने बीजेपी के 14 सांसदों का कार्यकाल खत्म हो रहा है. फिलहाल राज्य सभा में बीजेपी के 58 सांसद हैं. अप्रैल में 14 सांसदों का कार्यकाल खत्म होने के बाद उसके सांसदों की संख्या 44 रह जाएगी, लेकिन तब तक उसमें 28 [अभी के हिसाब से] और जुड़ जाएंगे. इस तरह राज्य सभा में बीजेपी कम से कम 72 सांसद हो जाएंगे. बावजूद इसके बीजेपी बहुमत से काफी दूर रहेगी. बहुमत का आंकड़ा 121 है.
ये भी साफ है कि इस चुनाव के बाद कांग्रेस पहले के मुकाबले ज्यादा कमजोर हो जाएगी. जिस तरह कांग्रेस की कमजोरी का फायदा उठाकर बीजेपी गोवा, मणिपुर और मेघालय में सरकार बनाने में कामयाब रही, वैसा तो नहीं लेकिन राज्य सभा में उसकी मुश्किलें कम जरूर हो जाएंगी.
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