अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट ने नयी तारीख दे दी है - 10 जनवरी, 2019. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 10 जनवरी से पहले सुनवाई के लिए पीठ और उसमें शामिल जजों की जानकारी दे दी जाएगी. 29 अक्टूबर, 2018 को कोर्ट कहा था कि ये मामला जनवरी के पहले हफ्ते में उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध होगा - और जब 4 जनवरी को अगली तारीख मुकर्रर कर दी गयी है.
60 सेकंड की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या केस की सुनवाई 10 बजकर 40 मिनट पर शुरू हुई - और महज 60 सेकेंड ही सुनवाई खत्म भी हो गई.
अब राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद की सुनवाई के लिए 6 या 7 जनवरी तक बेंच और उसमें शामिल होने वाले जजों के नाम घोषित कर दिये जाने की बात है. जस्टिस दीपक मिश्रा के रिटायर होने के बाद इस मामले की सुनवाई के लिए कोई विशेष पीठ अब तक नहीं बनी है. 29 अक्टूबर को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ के तीन जजों की पीठ ने मामले की सुनवाई की थी.
अयोध्या केस 10 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की विशेष पीठ के सामने होगा. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा है कि केस की सुनवाई के लिए एक रेग्युलर बेंच बनेगी और 10 जनवरी को वही पीठ आगे के लिए आदेश परित करेगी.
एक याचिका दायर कर अयोध्या केस में रोजाना सुनवाई की मांग की गयी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस पीआईएल को खारिज कर दिया. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 के अपने फैसले में अयोध्या की 2.77 एकड़ जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बांटने का फैसला सुनाया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपील दायर की गई हैं.
सरकार, संघ और वीएचपी के इरादे
हाल तक बीजेपी नेता अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश या कानून बनाने की मांग जोर शोर से कर रहे थे. 1 जनवरी, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान आने के बाद वो शोर तो नहीं सुनाई दे रहा है, लेकिन बाकी गतिविधियां वैसे ही चल रही हैं.
प्रयागराज में धर्म संसद में बनेगी राम मंदिर निर्माण पर रणनीति
न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था - "हमने भाजपा के घोषणा-पत्र में भी कहा है कि इस मुद्दे का हल संविधान के दायरे में रहकर ही निकल सकता है... अदालती प्रक्रिया खत्म होने दीजिए... जब अदालती प्रक्रिया खत्म हो जाएगी, उसके बाद सरकार के तौर पर हमारी जो भी जवाबदारी होगी, हम उस दिशा में सारी कोशिशें करेंगे."
बीजेपी और वीएचपी नेता सुनवाई में देरी के लिए सुप्रीम कोर्ट को ही जिम्मेदार बताने लगे थे, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इस मामले में राजनीतिक विरोधी कांग्रेस को ही घसीट लिया, इंटरव्यू में बोले, "कांग्रेस के वकील खलल पैदा कर रहे हैं, इसलिए अदालती कार्यवाही धीमी हो गई है." प्रधानमंत्री का इशारा कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल की उस मांग की ओर रहा जिसमें उन्होंने अयोध्या केस की सुनवाई आम चुनाव तक टालने की गुजारिश की थी.
राम मंदिर निर्माण को लेकर कानून बनाने की मांग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने उठायी थी. प्रधानमंत्री मोदी के बयान के बाद जब सवाल उठा तो मोहन भागवत का कहना रहा - "अयोध्या में केवल राम मंदिर बनेगा... हमे भगवान राम में विश्वास है. वो समय बदलने में ज्यादा समय नहीं लेते."
आरएसएस नेता भैयाजी जोशी ने भी कहा था कि आम जनता और सत्ता में मौजूद लोग चाहते हैं कि अयोध्या में विवादित भूमि पर राम मंदिर बने. मोहन भागवत ने भैयाजी जोशी का सपोर्ट करते हुए कहा कि संघ उस बयान पर कायम है.
इस बीच वीएचपी के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार कहने लगे हैं कि अदालत के फैसले के लिए अनंत काल तक इंतजार नहीं कर सकते. आलोक कुमार ने साफ कर दिया है कि इस महीने के आखिर में प्रयागराज में धर्म संसद में ही आगे की रणनीति तय होगी.
आलोक कुमार के मुताबिक वो राहुल गांधी और सोनिया गांधी से भी मिलने का समय मांगे हुए हैं - और प्रधानमंत्री मोदी से भी मिल कर उन्हें मनाने की कोशिश करेंगे.
... और फारूक अब्दुल्ला करेंगे कारसेवा
अयोध्या मसले पर सबसे ज्यादा हैरान करने वाला बयान नेशनल कांफ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला की ओर से आया है. फारूक अब्दुल्ला का कहना है कि मंदिर निर्माण शुरू हुआ तो वो भी कारसेवा करने जाएंगे. फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि इस मसले पर चर्चा होनी चाहिए और समाधान खोजा जाना चाहिये.
कारसेवा से आगे क्या है?
फारूक अब्दुला ने कहा, "इस मामले को कोर्ट में ले जाने की क्या जरूरत है? मुझे पूरा भरोसा है कि बातचीत के जरिए इसे सुलझाया जा सकता है." फारूक अब्दुल्ला का कहना है कि भगवान राम सिर्फ हिंदुओं के नहीं हैं, वो पूरी दुनिया के हैं.
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की जोरदार वकालत करते दिखे फारूक अब्दुल्ला ने कहा, "भगवान राम से किसी को बैर नहीं है और होना भी नहीं चाहिए. कोशिश करनी चाहिए मामले को सुलझाने की और बनाने की. जिस दिन यह हो जाएगा, मैं भी एक पत्थर लगाने जाऊंगा."
हालांकि, फारूक अब्दुल्ला ने एक छोटा सा डिस्क्लेमर भी पेश किया, "मंदिर बनाने से बीजेपी का कोई सरोकार नहीं है. ये लोग सिर्फ कुर्सी पर बैठने के लिए मंदिर की बात उठाते हैं."
समझने की बात ये है कि फारूक अब्दुल्ला के इस बयान के क्या मायने हो सकते हैं. जम्मू-कश्मीर में भी लोक सभा के साथ ही चुनाव कराये जाने की चर्चा चल रही है. बीजेपी को भी एनडीए में नये साथियों की तलाश है. क्या फारूक अब्दुल्ला का बयान किसी नये गठबंधन का संकेत समझा जाना चाहिये?
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