भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र का सबसे बड़ा वादा 'राम मंदिर', अब पूरा हो चुका है. राम मंदिर के लिए निधि समर्पण अभियान की शुरुआत 15 जनवरी को हो चुकी है. इसी के साथ राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने लोकसभा चुनाव 2024 से पहले मंदिर निर्माण पूरा हो जाने का ऐलान कर दिया है. राम मंदिर निर्माण के पूरा होने की तारीख सामने आने के बाद उत्तर प्रदेश के सियासी हलकों में घबराहट बढ़ गई है. देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसा माना जा रहा है कि इस चुनाव में राम मंदिर एक बड़ा मुद्दा बनेगा.
उत्तर प्रदेश की सत्ता में 15 वर्षों के वनवास के बाद 2017 में अभूतपूर्व बहुमत लेकर वापसी करने वाली भाजपा के लिए राम मंदिर एक बड़ा मुद्दा है. भाजपा इसे भुनाने में शायद ही कोई कोर-कसर छोड़ेगी. यूपी के सीएम बने योगी आदित्यनाथ के पास वैसे तो कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं था. लेकिन, सीएम योगी ने जिस तरह सरकार चलाने के दौरान बड़े और कड़े फैसले लिए हैं. बात CAA कानून लागू होने के बाद हुए दंगों में सरकारी संपत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए उपद्रवियों से ही वसूली करने की हो या प्रदेश में अपराध के खिलाफ 'जीरो टॉलरेंस' की नीति अपनाते हुए अपराधियों के एनकाउंटर जैसी कार्रवाई हो, सीएम योगी अपने फैसलों पर कभी कमजोर होते नहीं दिखे. प्रदेश के माफियाओं और बाहुबलियों की अवैध संपत्तियों पर बुलडोजर चलवाने के फैसले से योगी की छवि एक कुशल प्रशासक के रूप में लोगों के सामने है. योगी के ऐसे ताबड़तोड़ और प्रभावशाली फैसलों ने राज्य में भाजपा और योगी आदित्यनाथ दोनों का ही एक अलग तरीके का रसूख बना दिया है. विपक्षी दलों के सामने इस छवि को तोड़ना एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है.
वैसे हम बात राम मंदिर की कर रहे थे, तो उसी पर लौट आते हैं. राम मंदिर के लिए निधि समर्पण अभियान 2022 विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के लिए वरदान बनकर आया लगता है. निधि समर्पण अभियान के तहत देशभर में 13 करोड़ परिवारों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा गया है. यह अभियान 27 फरवरी तक...
भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र का सबसे बड़ा वादा 'राम मंदिर', अब पूरा हो चुका है. राम मंदिर के लिए निधि समर्पण अभियान की शुरुआत 15 जनवरी को हो चुकी है. इसी के साथ राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने लोकसभा चुनाव 2024 से पहले मंदिर निर्माण पूरा हो जाने का ऐलान कर दिया है. राम मंदिर निर्माण के पूरा होने की तारीख सामने आने के बाद उत्तर प्रदेश के सियासी हलकों में घबराहट बढ़ गई है. देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसा माना जा रहा है कि इस चुनाव में राम मंदिर एक बड़ा मुद्दा बनेगा.
उत्तर प्रदेश की सत्ता में 15 वर्षों के वनवास के बाद 2017 में अभूतपूर्व बहुमत लेकर वापसी करने वाली भाजपा के लिए राम मंदिर एक बड़ा मुद्दा है. भाजपा इसे भुनाने में शायद ही कोई कोर-कसर छोड़ेगी. यूपी के सीएम बने योगी आदित्यनाथ के पास वैसे तो कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं था. लेकिन, सीएम योगी ने जिस तरह सरकार चलाने के दौरान बड़े और कड़े फैसले लिए हैं. बात CAA कानून लागू होने के बाद हुए दंगों में सरकारी संपत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए उपद्रवियों से ही वसूली करने की हो या प्रदेश में अपराध के खिलाफ 'जीरो टॉलरेंस' की नीति अपनाते हुए अपराधियों के एनकाउंटर जैसी कार्रवाई हो, सीएम योगी अपने फैसलों पर कभी कमजोर होते नहीं दिखे. प्रदेश के माफियाओं और बाहुबलियों की अवैध संपत्तियों पर बुलडोजर चलवाने के फैसले से योगी की छवि एक कुशल प्रशासक के रूप में लोगों के सामने है. योगी के ऐसे ताबड़तोड़ और प्रभावशाली फैसलों ने राज्य में भाजपा और योगी आदित्यनाथ दोनों का ही एक अलग तरीके का रसूख बना दिया है. विपक्षी दलों के सामने इस छवि को तोड़ना एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है.
वैसे हम बात राम मंदिर की कर रहे थे, तो उसी पर लौट आते हैं. राम मंदिर के लिए निधि समर्पण अभियान 2022 विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के लिए वरदान बनकर आया लगता है. निधि समर्पण अभियान के तहत देशभर में 13 करोड़ परिवारों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा गया है. यह अभियान 27 फरवरी तक चलाया जाएगा. इसके तहत भाजपा, विहिप और आरएसएस के कार्यकर्ता देशभर में घर-घर जाकर चंदा एकत्रित करेंगे. उत्तर प्रदेश में भी राम मंदिर के लिए लोगों से चंदा लिया जाएगा. ऐसे में इस अभियान को चुनाव पूर्व एक बड़ी जनसंपर्क मुहिम के तौर पर देखा जा रहा है. विपक्षी दलों के मन में यह बात पूरी तरह से स्थापित हो चुकी है कि भाजपा मंदिर निर्माण 2024 के ठीक पहले पूरा करवाकर इसे आगामी विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनाएगी.
भाजपा भी दूसरी बार सत्ता में आने के लिए जरूरी किसी भी मुद्दे को छोड़ना नहीं चाहेगी. विकास के साथ ही राम मंदिर के मुद्दे को लेकर भाजपा का जनता के बीच जाना तय माना जा रहा है. सीएम योगी पहले ही फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या कर चुके हैं. हो सकता है कि डिजिटलीकरण का समर्थन करने वाली भाजपा विधानसभा चुनाव से पहले अयोध्या में ही अपना चुनावी वॉर रूम बना ले. प्रदेश में राम राज्य लाने की बात करने वाली भाजपा यह कदम उठा सकती है. भाजपा को शहरी वोटर्स वाली पार्टी कहा जाता है. लेकिन, भाजपा ने पिछले कुछ चुनावों में अपनी इस छवि को तोड़ा है. गांव की साक्षर और गैर पढ़े-लिखे मतदाताओं के बीच भी भाजपा ने पकड़ बनाई है. केंद्र की उज्जवला योजना, आयुष्मान भारत योजना, किसान सम्मान निधि आदि योजनाओं ने ग्रामीणों तक भाजपा की पहुंच बना दी है. उत्तर प्रदेश में भाजपा के अलावा किसी अन्य सरकार के सत्ता में आने पर राम मंदिर निर्माण में बाधाएं आ सकती हैं. इस मुद्दे को भी भाजपा जोर-शोर से उठा सकती है.
उत्तर प्रदेश को लेकर एक राजनीतिक उक्ति बहुत प्रचलित रही है कि 'देश की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है.' शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के बाद 2019 में भी वाराणसी को अपना निर्वाचन क्षेत्र चुना और विजयी हुए. प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 64 पर भाजपा और उसके सहयोगियों दलों को जीत हासिल हुई. उत्तर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में आए चुनाव परिणामों ने कांग्रेस को हाशिये डाल दिया है. 2019 लोकसभा चुनाव में रायबरेली से सोनिया गांधी ही चुनाव जीत पाई थीं. अमेठी में भाजपा की प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को मात दे दी थी. इसके बाद से ही कांग्रेस को यूपी में फिर से स्थापित करने के लिए पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं. इस पर भी गौर करना होगा कि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 7 विधायक निर्वाचित हुए थे. इनमें से दो विधायक बागी होने के बाद खुलकर भाजपा का साथ दे रहे हैं.
कमोबेश यही हाल बसपा का भी है. विधानसभा चुनाव में बसपा को 18 सीटों पर जीत मिली थी. लेकिन, इनमें से 7 विधायक बागी होकर सपा का समर्थन करते नजर आते हैं. पार्टी का एक विधायक मुख्तार अंसारी पंजाब की रोपड़ जेल में बंद है. सपा को 49 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. लेकिन, ये संख्या भी उसे फिलहाल एक प्रमुख विपक्षी नहीं बनाती है. राज्य में सत्ताविरोधी लहर की केवल विपक्षी पार्टियों के प्रदर्शन तक ही सिमट कर रह गई है. आम आदमी पार्टी भी इस बार मैदान में आ गई है. हालांकि, अभी सूबे में उनका जनाधार उंगलियों पर गिना जा सकता है. भाजपा की रणनीति विपक्षी दलों में बिखराव बनाए रखने की है. ऐसे में भाजपा राम मंदिर निर्माण को लेकर सूबे में अपने पक्ष में माहौल बनाने में कामयाब हो गई, तो सत्ता की चाभी उससे छीनना मुश्किल हो जाएगा.
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