जिस घड़ी का Hindu-Muslim पक्षों को वर्षों से इंतजार था, वो आ ही गई. Ayodhya Judgement Time and Date बता दी गई है. Supreme Court ने एलान कर दिया है कि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद (Ram Mandir-Babri Masjid dispute) शनिवार की सुबह 10.30 बजे सुनाया जाएगा. News Channels पर आई इस खबर ने देश में कौतूहल पैदा कर दिया. इस Ayodhya Ram Mandir verdict की news update से पहले हमने समाज के अलग-अलग हिस्सों में अपना गुजर-बसर करने वाले लोगों से इस फैसले को लेकर राय पूछी.
'मंदिर-मस्जिद विवाद पर फैसला मीडिया का भी इम्तेहान लेगा.' ये उद्गार किसी बुद्धिजीवी वर्ग के पेशेवर के नहीं हैं. बाल काटते हुए एक बुजुर्ग हज्जाम याक़ूब का ये ख्याल चौकाने वाला भी था और सुकून भी दे गया. लखनऊ के पुराने लखनऊ में गोलागंज की तंग गलियों में याकूब जैसे बड़े ख्याल के मालिक और भी हैं. लखनऊ की चौक की फूल वाली गली में कमला अम्मा नाम से पहचान रखने वाली एक बुजुर्ग महिला का ख्याल भी किसी दानिशवर से ज्यादा गहरा नजर आया. हिन्दू-मुस्लिम (Hindu Muslim nity) की मिक्स आबादी के बीच रहने वाली अम्मा को भरोसा है कि मंदिर-मस्जिद (Babri Masjid Ram Mandir) पर फैसला (Ayodhya Judgement) कुछ भी आये पर दोनों कौमों (Communal Harmony) के लोगों के रिश्तों में मिठास बरकरार रहेगी. छात्र संजीव भी देश के माहौल को सामान्य मान रहे हैं. उन्हें भी कहीं भी किसी भी फैसले पर तनाव जैसे हालात का कोई भी डर नहीं सता रहा. इस नौजवान को डर है तो बस सोशल मीडिया और मीडिया (Media And Social Media Role in Ayodhya Judgement) से. ध्यान रहे कि ये मीडिया और सोशल मीडिया ही हैं जो कट्टरपंथियों की कट्टरता को बढ़ावा देते हैं. चाहे मीडिया हो या फिर सोशल मीडिया क्योंकि इनको मौका चाहिए ये जैसे ही मौका पाते हैं शुरू हो जाते हैं और इनकी कारगुजारियों का खामियाजा देश की भोली भाली जनता को चुकाना पड़ता है.
अयोध्या मामले के मद्देनजर प्रयास यही किये जा रहे हैं कि शांति बनी रहे
फैशन डिजाइनर फरहा भी कुछ ऐसी ही बात कहती हैं- अगर मीडिया ने अपना सही दायित्व निभाया तो फैसले को देश के हर धर्म-समुदाय के लोग कुबूल करेंगे. अमन-शांति और भाईचारा बरकरार रहेगा. वाकई ये सच भी है कि अयोध्या की पावन धरती पर राम मंदिर-बाबरी मस्जिद (Ram Mandir Babri Masjid) के विवाद पर देश की सबसे बड़ी अदालत (Supreme Court) का फैसला कईयों का इम्तिहान भी लेगा. ऐसे नाजुक मौके पर देश की जनता का रुख तो सकारात्मक नजर आ रहा है.
विभिन्न धर्म समुदायों के धार्मिक गुरु भी अपनी जिम्मेदारी का दायित्व बखूबी निभा रहे है. बस अब मीडिया और सोशल मीडिया भी अपना सही कर्तव्य निभा ले तो इंशाअल्लाह सब कुछ ठीक-ठाक रहेगा. आम लोगों से बातचीत में लगा कि लोगों कि निगाहें मीडिया की जिम्मेदारी पर भी हैं. अयोध्या के पिच पर फाइनल का उत्साह बना हुआ है.राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर बड़ा फैसला आते ही भारत का कद और भी बड़ा हो जायेगा. विवाद खत्म हो जायेगा. सियासत के बाजार में भावनाएं बेची जाने की सबसे बड़ी दुकान बंद हो जायेगी. हम साबित करेंगे कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में न्यायिक फैसले का किस कद्र सम्मान किया जाता है.
हम दुनिया को बता देंगे कि धर्मनिरपेक्ष भारत में अखंडता, समरसता, सौहार्द, एकता-भाईचारे और गंगा जमुनी तहजीब को कोई भी ताकत चुनौती नहीं दे सकती. भारतीय समाज का हर तब्क़ा मंदिर-मस्जिद विवाद को खत्म करने वाले एतिहासिक और बहु प्रत्यक्षित का स्वागत करने को तैयार है. एक सप्ताह के दौरान सामने आने वाले इस फैसले को लेकर उत्साह जरूर है लेकिन गर्मागर्मी, गरमाहट या तनाव नहीं है. लग रहा हैं कि हम बदल गये हैं. सुधर गये हैं. कट्टरता और संकीर्णता की बर्फ पिघल रही है. नये भारत की नयी सोच आशा की किरण दिखा रही है.
बड़े फैसले की बेला पर लग रहा है कि नये भारत का निजाम लाजवाब हो गया है. इन दिनों शांति और सौहार्द की अपीलों से देश गूंज रहा है. सात बरस पहले लखनऊ के एक अखबार से रिटायर हो चुके वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष वाजपेई आज की मीडिया के बारे में अच्छी राय नहीं रखते. खासकर वो कहते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के चंद पत्रकार अपनी जिम्मेदारी का सही निर्वाहन नहीं कर रहे हैं.
अमन चैन से वो कहते हैं कि आज का अधिकांश भारतीय समाज जियो और जीने दो के सिद्धांत पर अमल कर रहा हैं. रही बात भारत विरोधी आतंकी ताकतों की, तो इनसे हमारी कुशल सरकार निपट लेगी. लेकिन डर बस एक ही बात का है. हमें मीडिया से डर लगता हैं. इनसे ही हमें सावधान रहना हैं. नफरत फैलाने और माहौल खराब करने के लिए ये आमादा हैं.
जैसा महाल तैयार किया जा रहा है लग यही रहा है कि सौहार्द बिगाड़ने की सुपारी इन्होंने ली है. बढ़ते न्यूज़ चैनलों ने पत्रकारिता को सबसे बुरे दौर पर ला कर खड़ा कर दिया है. जमीनी रिपोर्टिंग का स्थान टीवी डिबेट ने ली लिया है. हिंदू-मुस्लिम के अखाड़ानुमा डिबेट का संचालन एक एंकर करता है. जो एंकर/पत्रकार सबसे ज्यादा नफरत फैलाने में माहिर साबित होता है टेलीविजन के बाजार में वो सबसे बड़ा ब्रांड बन जाता है.
टीवी पैनल पर मजहबी नफरत और तू-तुकार करके भारतीय समाज के बीच फासले पैदा करने की साजिशें नई नहीं है. लेकिन आज जब अयोध्या मसले पर फैसला आने को लेकर शांति और सौहार्द की अपीलें की जा रही हैं तो ऐसे में कुछ टीवी चैनलों से भी सावधान रहने की जरूरत है.
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