लोक जनशक्ति पार्टी के सांसद चिराग पासवान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल- एनजीटी) के अध्यक्ष सेवानिवृत न्यायधीश आदर्श कुमार गोयल को एनजीटी के अध्यक्ष पद से हटाने के मांग रखी है. 20 मार्च 2018 को न्यायधीश आदर्श कुमार गोयल और यूयू ललित की खंडपीठ ने एससी/एसटी अत्याचार रोकथाम एक्ट के विषय में अहम निर्णय दिया था. निर्णय के अनुसार किसी भी आरोपी को दलित अत्याचार के नाम पर बिना प्रारंभिक जांच के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता. इस निर्णय से पूर्व दलित अत्याचार का मामला दर्ज होने के तुरंत बाद गिरफ्तारी का प्रावधान था. दलित संगठनों और प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस निर्णय की आलोचना की थी.
चिराग ने केंद्र सरकार से संसद के वर्तमान सत्र में एससी/एसटी अत्याचार निरोधक बिल में संशोधन लाने के मांग भी उठाई है. केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान का बेटा इतने तक में संतुष्ट नहीं हुआ. चिराग ने सरकार को चेतावनी भी दे डाली है कि यदि 8 अगस्त तक उनकी मांगों को नहीं माना जाएगा तो उनकी पार्टी की दलित सेना देश भर में इस विषय को लेकर आंदोलन करेगी.
राजनीतिक दल कुछ भी कहें पर इसमें कोई शक नहीं कि न्यायधीश आदर्श कुमार गोयल और यूयू ललित की खंडपीठ का निर्णय बिल्कुल उचित था. जांच के बिना केवल आरोपों के आधार पर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करना सरासर अन्याय और मानव अधिकारों का हनन है. अपनी राजनीति चमकने के लिए और स्वयं को दलित हितेशी दिखाने की दौड़ में राजनीतिक दल कुछ भी झूठ बोल सकते हैं. इस मसले में भी दलित संगठन और राजनीतिक दल केवल सफेद झूठ बोल रहे हैं. जांच किए बिना, कैसे किसी व्यक्ति को दलित अत्याचार के नाम पर गिरफ्तार किया जा सकता है? दलित अधिकार की दुहाई देकर इस न्याय संगत...
लोक जनशक्ति पार्टी के सांसद चिराग पासवान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल- एनजीटी) के अध्यक्ष सेवानिवृत न्यायधीश आदर्श कुमार गोयल को एनजीटी के अध्यक्ष पद से हटाने के मांग रखी है. 20 मार्च 2018 को न्यायधीश आदर्श कुमार गोयल और यूयू ललित की खंडपीठ ने एससी/एसटी अत्याचार रोकथाम एक्ट के विषय में अहम निर्णय दिया था. निर्णय के अनुसार किसी भी आरोपी को दलित अत्याचार के नाम पर बिना प्रारंभिक जांच के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता. इस निर्णय से पूर्व दलित अत्याचार का मामला दर्ज होने के तुरंत बाद गिरफ्तारी का प्रावधान था. दलित संगठनों और प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस निर्णय की आलोचना की थी.
चिराग ने केंद्र सरकार से संसद के वर्तमान सत्र में एससी/एसटी अत्याचार निरोधक बिल में संशोधन लाने के मांग भी उठाई है. केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान का बेटा इतने तक में संतुष्ट नहीं हुआ. चिराग ने सरकार को चेतावनी भी दे डाली है कि यदि 8 अगस्त तक उनकी मांगों को नहीं माना जाएगा तो उनकी पार्टी की दलित सेना देश भर में इस विषय को लेकर आंदोलन करेगी.
राजनीतिक दल कुछ भी कहें पर इसमें कोई शक नहीं कि न्यायधीश आदर्श कुमार गोयल और यूयू ललित की खंडपीठ का निर्णय बिल्कुल उचित था. जांच के बिना केवल आरोपों के आधार पर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करना सरासर अन्याय और मानव अधिकारों का हनन है. अपनी राजनीति चमकने के लिए और स्वयं को दलित हितेशी दिखाने की दौड़ में राजनीतिक दल कुछ भी झूठ बोल सकते हैं. इस मसले में भी दलित संगठन और राजनीतिक दल केवल सफेद झूठ बोल रहे हैं. जांच किए बिना, कैसे किसी व्यक्ति को दलित अत्याचार के नाम पर गिरफ्तार किया जा सकता है? दलित अधिकार की दुहाई देकर इस न्याय संगत बात को सभी राजनीतिक दल दबा रहे हैं.
वर्तमान में 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' के जगह 'जिसकी लाठी उसका आरक्षण' यह मुहावरा सही बैठता है. दलित अधिकारों के नाम पर जनसंख्या बल की शक्ति का प्रयोग करके, तर्क और न्याय संगत बातों को कुचलना बहुत सरल हो गया है.
केंद्र सरकार भी इस दलित राजनीति के चक्रव्यूह में फंसी नजर आती है. भीतर से चाहे वह उच्चतम न्यायालय के निर्णय का समर्थन करे, परंतु चुनावी साल में न चाहते हुए भी उसे उच्चतम न्यायालय के निर्णय को चुनौती देनी पड़ी है. हालांकि केंद्र सरकार से इस प्रकरण में एक बहुत बड़ी संकेतिक गलती हो गई. न्यायधीश आदर्श कुमार गोयल जिन्होंने 20 मार्च 2018 को यह ऐतिहासिक निर्णय दिया था उन्हें भारत सरकार ने सेवानिवृत होने के तुरंत बाद एनजीटी का अध्यक्ष पद दे दिया. इस निर्णय से दलित समाज में अच्छा संदेश नहीं गया है. अपनी चुनावी रोटियां सेंकने के लिए विपक्ष तथा भाजपा के सहयोगी दल इसे भी सरकार का एक दलित विरोधी कदम कह देंगे. न्यायधीश आदर्श कुमार गोयल को एनजीटी के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग का सरकार कैसे सामना करेगी यह देखने का विषय होगा.
दलित समुदाय से आने वाले नेता अपने आपको देश के सबसे बड़े दलित नेता के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं. इन सब में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है जो की 2019 लोकसभा चुनाव आते-आते और तीव्र हो जाएगी. रामविलास पासवान का परिवार भी उसी लड़ाई को जीतना चाहता है और कुछ नहीं. रामविलास पासवान को भारत की राजनीति में मौसम वैज्ञानिक के रूप में जाना जाता है. यह माना जाता है कि पासवान देश की जनता का मिजाज़ भांपने में विशेषज्ञ हैं. लोकसभा चुनावों से पूर्व यदि भाजपा की स्थिति कमजोर पड़ती है तो लोक जनशक्ति पार्टी इस विषय के आधार पर भाजपा से बड़ी सरलता से मुंह मोड़ सकती है.
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